चैत्र शुक्ल नवमी को मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम की जयंती पर संपूर्ण देश में रामनवमी का उत्सव बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। रामनवमी के अवसर पर देश भर में निकलने वाले जुलूस रात्रि में ही समाप्त हो जाते हैं। वहीं हजारीबाग में रामनवमी के अवसर पर निकलने वाला यह जुलूस नवमी को निकल कर दूसरे दिन विजयदशमी जुलूस के रूप में परिवर्तित हो जाता है। यह विजय जुलूस दशमी की पूरी रात गतिमान रहता है। तीसरे दिन अर्थात ग्यारहवीं के संध्या तक यह रामनवमी का जुलूस समाप्त हो पाता है। भगवान राम का जन्म त्रेता युग में चैत्र शुक्ल नवमी के दिन हुआ था। हमारे हिंदू धर्म ग्रंथो का कथन है कि भगवान राम विष्णु के अवतार थे । भगवान राम का जन्म समाज में नैतिक मूल्यों की स्थापना और असत्य पर सत्य को स्थापित करने के लिए हुआ था। राम ने अहंकारी रावण का वध कर असत्य पर सत्य की जीत दर्ज किया था। इस असत्य पर सत्य की जीत के रूप में दूसरे दिन दशमी को राम की सेना ने बड़े धूमधाम के साथ विजयदशमी का जुलूस निकाला था। भगवान राम की जयंती पर निकलने वाला यह जुलूस विजयादशमी के जुलूस से ही पूर्ण हो पता है ।
भगवान राम का प्रादुर्भाव एक ईश्वरीय लीला थी। भगवान राम ने समाज में नैतिक मूल्यों की स्थापना के लिए दुराचारी व अहंकारी रावण का वध किया था। भगवान राम ने कोई मामूली जीत दर्ज नहीं की थी। भगवान राम की इस जीत पर देवताओं ने आकाश पुष्प वर्षा की थी। भगवान इंद्र सहित कई अन्य देवता गण भी अहंकारी रावण के दुराचार से आतंकित थे। भगवान राम की जयंती विजयादशमी के जुलूस से पूर्ण होती है। ऐसी मान्यता हमारे हिंदू धर्म ग्रंथो में दर्ज है ।
हजारीबाग में तीन दिनों तक चलने वाले इस जुलूस की रूपरेखा ही कुछ अलग और निराली है। यही कारण है कि हजारीबाग की रामनवमी को इंटरनेशनल रामनवमी और वर्ल्ड फेमस रामनवमी के नाम से जाना जा रहा है। हजारीबाग रामनवमी महापर्व की नवमी, दशमी और ग्यारहवीं के जुलूस में शामिल राम भक्तों के उत्साह और उमंग देखते बनते हैं। पारंपरिक अस्त्र शस्त्रों का बहुत ही शानदार प्रदर्शन तीन दिनों तक चलता रहता है । एक से एक पारंपरिक अस्त्र शस्त्र परिचालन देखने को मिलते हैं। एक से एक सुंदर झांकियां जुलूस में शामिल रहती हैं। हर एक झांकियां एक नई बात कह गुजरती हैं । इस बार भी विभिन्न रामनवमी समितियों द्वारा एक से एक सुंदर झांकियां प्रस्तुत की गई हैं । इन झांकियों को देखने के लिए हजारों हजार की संख्या में लोग सड़कों पर देखे जा रहे हैं।
आज की बदली परिस्थिति में हम सबों को मर्यादा पुरुषोत्तम राम के जीवन से सीख लेने की जरूरत है । भगवान राम ने समाज में नैतिक मूल्यों को स्थापित कर रामराज की स्थापना की थी। जहां प्रजा पूरी स्वतंत्रता के साथ अपना जीवन यापन कर सकते थे। समाज में किसी भी तरह का कोई डर, भय , संशय अथवा दुविधा की स्थिति न हो । यह राम राज्य की अवधारणा थी।
राम की जयंती पर हर वर्ष हम सब बहुत ही शानदार तरीके से जुलूस निकलते चले आ रहे हैं। राम के संदेशों व विचारों पर एक से एक सुंदर और मोहक झांकियां भी प्रस्तुत कर रहे हैं। अब मुख्य बात यह है कि स्वयं के अंदर छुपे असत्य को पर विजय प्राप्त कर पाएं हैं अथवा नहीं ? इस विषय पर जुलूस में शामिल हर व्यक्ति को विचार करने की जरूरत है।
भगवान राम ने जिन नैतिक मूल्यों की स्थापना त्रेता युग में की थी। उन मूल्यों की रक्षा हम सब कितना कर पाए हैं ? भगवान राम के नैतिक मूल्य हमारे जीवन को कितना प्रभावित कर पाया है ? हमारे जीवन को कितना स्पर्श कर पाया है ? हम सब राम के संदेशों को अपने जीवन में कितना आत्मसात कर पाए हैं ? जब भगवान राम ने दुराचारी व अहंकारी रावण का वध किया था, तब राम की सेना ने बड़े ही उत्साह और उमंग के साथ दशमी के दिन विजय जुलूस निकाला था। तब से यह परंपरा बनी हुई है। राम की सेना में लक्ष्मण, हनुमान, विभीषण सहित काफी संख्या में वानर जाति के लोग शामिल थे। वानर जाति के होकर भी सभी शरीर और बुद्धि से विशिष्ट थे। सभी वानरों की राम के प्रति अटूट श्रद्धा थी सभी राम मय थे। उन्हें राम के अलावा कुछ दिखता ही नहीं था। राम का आदेश ही उनके लिए सर्वोपरि था। भगवान राम वानरों की अटूट श्रद्धा से भली भांति परिचित थे । उन्होंने उनकी श्रद्धा को बरकरार रखने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी।
रामचरितमानस में संत तुलसी दास ने भगवान राम के गुणों का बहुत ही सुन्दर ढंग से वर्णन किया है। उन्होंने राम को एक मर्यादित पुरुष के रूप में स्थापित किया है। अब सवाल यह उठता है कि राम और राम की मर्यादा क्या है ? राम इसलिए मर्यादा पुरुषोत्तम कहे जाते हैं कि उन्होंने सामाजिक मर्यादाओं का पूरी शिद्दत के साथ पालन किया था । उन्होंने अपने पिता महाराज दशरथ के वचन का मान रखने के लिए राजतिलक छोड़कर चौदह वर्षों का वन गमन स्वीकार किया था। क्या आज कोई पुत्र अपने पिता के वचन का मान रखने के लिए वन गमन स्वीकार करेगा ? यह एक यक्ष सवाल है सकल समाज के लिए। यह लिखते हुए दुःख होता है कि जिस मर्यादा पुरुषोत्तम राम के हम सब वंशज कहे जाते हैं। आज अनगिनत उदाहरण ऐसे मिलते हैं कि एक पुत्र ने थोड़े से धन के लिए अपने पिता की हत्या कर दी। घर की प्रॉपर्टी को लेकर पिता और पुत्र के बीच न्यायालय में मुकदमे चल रहे। भगवान राम ने समाज में जिन नैतिक मूल्यों को स्थापित किया था, आज की बदली सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य मैं सम्यक रूप से विचार करने की जरूरत है ।
भगवान राम की कथा सिर्फ एक कथा भर नहीं है बल्कि राम की कथा समाज को एक जागृत करने वाली एक कथा है। भगवान राम की कथा हर घर में होती है। भगवान राम के संदेशों को हम सब अपने-अपने दैनंदिन जीवन में कितना उतर पाते हैं ? यह बात सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण। हम सब तीन दिनों तक जय श्री राम! जय श्री राम! सहित विजय घोष से जुड़े अनेक गगन भेदी नारों को सामूहिक रूप से उच्चारित करते हैं । पूरा माहौल राम मय हो उठता है । यह इसका बाह्य स्वरूप है। जय श्री राम के नारे और राम के विजय जय घोष स्वयं के अंदर बैठे आसुरी शक्तियों को कितना दूर कर पाए हैं ? इस निमित्त हो। हम सब राम के आदर्शों और नैतिक मूल्यों को स्वयं में उतारने को समाज को जागृत करने में लगाएं। विजयादशमी के जुलूस का यह वास्तविक अर्थ है।
हजारीबाग रामनवमी जुलूस के जन्मदाता स्वर्गीय गुरु सहाय ठाकुर आज से 106 वर्ष पूर्ण राम के आदर्शों को समाज में स्थापित करने के लिए रामनवमी जुलूस की शुरुआत की थी। कालांतर में रामनवमी के अवसर पर निकलने वाला यह जुलूस दसवीं के दिन विजय जुलूस के आकार को प्राप्त कर लिया। बाद के कालखंड में विधि व्यवस्था के कारण यह जुलूस ग्यारहवीं के रूप में परिवर्तित हो गया है। यह राम के नाम का असर है कि हजारीबाग की रामनवमी हर साल अपने स्वरूप को विस्तार देती जा रही है। अगर हम सब निर्मल मन से राम को भेजेंगे तब निश्चित रूप से स्वयं के अंदर बैठे रावण का नाश कर पाएंगे। संत तुलसीदास ने बहुत ही सटीक दर्ज किया है कि ‘कलयुग केवल नाम आधार’। अर्थात भगवान राम का नाम निर्मल मन से जपने मात्र से यह जीवन तर जाएगा। विजयादशमी के दिन राम के इस विजय जुलूस से हम सब यह सीख ले सकते हैं कि स्वयं के अंदर छुपे आसुरी शक्तियों पर विजय प्राप्त करना ही इसका मुख्य उद्देश्य बने। मन के अंदर विजय और बाहर भी विजय, यही विजयादशमी है। अर्थात भगवान राम के विजय जुलूस से पूर्ण होती है, ‘रामनवमी’।
भगवान राम के विजय जुलूस से पूर्ण होती है, ‘रामनवमी’
(18 अप्रैल, चैत्र शुक्ल दशमी, विजयादशमी जुलूस पर विशेष)