आलोक पुराणिक:
अहा हा क्या दृश्य है –वह वाले बाबाजी सेलिब्रिटी हो रखे हैं-तमाम मंत्री उनके दरबार में पहुंचकर दंडवत हैं।
मैंने ऐसे ही कहा-सोच रहा हूं कि बाबा बन जाऊं।
मेरी मां ने डपटा-चाल चलन खराब होने की उम्र नहीं तेरी। शराफत से काट दी है लाइफ, अब बची खुची भी शराफत से काट दे। बाबा-ठग-चोर-डकैत बनने की बात ना कर। भले आदमी की तरह जिंदगी काट दे, जमाने के हाल को रोते हुए। वरना तमाम जनता तेरे नाम से रोयेगी, और कामयाब बाबा बन गया, तो क्या पता अंदर ही हो जाये। लच्छन तेरे ठीक ना चल रहे आजकल तब ही साधु बनने के चक्कर में है।
मुझे अपने बारे में एक श्रद्धांजलि सुनायी दे रही है-
आलोकजी भले आदमी थे। व्यंग्य लिखते थे, लेख लिखते थे। महंगाई पर रोना रोते थे, लुटेरे निजी अस्पतालों पर रोते थे। कुल मिलाकर मंझोली हैसियत के ईमानदार टाइप थे, क्योंकि बहुत ज्यादा बेईमानियों के मौके उन्हे वक्त ने दिये नहीं। पर बाद में कुछ सोहबत बिगड़ी और वह साधु हो गये, बाबा हो गये। उनके बाबाकाल पर बात करना ठीक नहीं होगा, क्योंकि श्रद्धांजलि सभा में सिर्फ भली बातें करने का ही चलन है। कुल मिलाकर साधु बनने से पहले लगभग साधु चरित्र के ही बंदे थे वह।
बाबा के साथ ठग विशेषण इन दिनों ऐसे जुड़ रहा है, जैसे दान के साथ दक्षिणा का विशेषण जुड़ता है। बाबा है तो ठग होगा या ठग है, तो बाबा क्यों ना बन रहा है। सिंपल ठगी में बहुत जोखिम है, बाबा बनकर ठगी करो, तो तमाम तरह के समर्थन मिल जाते हैं।
कांग्रेस और ममता बनर्जी के बीच सहयोग की बातें चल रही हैं। और बीच बीच में ममता बनर्जी कांग्रेस के नेता तोड़कर अपनी पार्टी में शामिल कर लेती हैं। उधर से जोड़ की बातें हैं, इधर से तोड़ की बातें हैं, पालिटिक्स इसलिए जोड़-तोड़ का कारोबार कहा जाता है। इतिहास पढ़ रहा था-अलाऊद्दीन खिलजी ने अपने चाचा और ससुर जलालुद्दीन खिलजी को मार दिया, धोखे से। अपने चाचा और बाप और भाई को ना बख्श रहे, तो सहयोगी पार्टी को कैसे बख्श देंगे जी।
सब धोखा , सब माया है, साधौ धोखा सब संसार, साधौ समेत।