Sunday, May 5, 2024
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शैलप्रिया अपने जीवन के संघर्ष और परेशानियों से भी प्रेम करती थी

11 दिसंबर, महान कवयित्री शैलप्रिया की 74वीं जयंती पर विशेष

कवयित्री शैलप्रिया अपने नाम के अनुरूप ही उनका गुण और स्वभाव था। काव्य – लेखन से उनका जुड़ाव छात्र जीवन से ही था । उनकी सहजता, सरलता और वाणी की मिठास आज भी उनसे मिलने जुलने वाले लोग महसूस करते हैं। शैलप्रिया का मन, क्रम और वाणी में कोई भेद नहीं था । वह सबों से एक समान व्यवहार करती थी । शैलप्रिया की आत्मा कविताओं में बसती थी। वह जीवन संघर्ष और परेशानियों से भी प्रेम करती थी। शैलप्रिया अपने जीवन के संघर्ष, दुश्वारियां और परेशानियों को अपनी छोटी बहने मानती थी और उसी अनुरूप उनसे प्रेम करती रही थी। शैलप्रिया ने अपनी रचनाओं के माध्यम से स्त्री मन की पीड़ा और संवेदना को एक और सार्थक अभिव्यक्ति दी है। शैलप्रिया का ऐसा मानना था कि जब तक जीवन के संघर्षों में छोटी बहनें प्रवेश नहीं करेंगी, तब तक जीवन के अर्थ को पूरी तरह से समझा नहीं जा सकता। इसलिए सुख और दुख दोनों मानवीय जीवन के लिए बहुत जरूरी है । इसके साथ ही शैलप्रिया पीड़ा, संघर्ष व बदलाव की कवयित्री के रूप में अपनी पहचान बनाने में सफल है। शैलप्रिया की कविताएं सदा समय से संवाद करती नजर आती हैं। उनकी कविताएं सीधे दिल तक पहुंच जात हैं।
हिंदी में एम.ए. करने के पश्चात शैलप्रिया जी का विवाह वरिष्ठ पत्रकार, साहित्यकार कवि विद्या भूषण जी से हो गया। विवाह के उपरांत उन्होंने एक कुशल गृहिणी बनना स्वीकार किया। पति – पत्नी दोनों के साहित्यकार होने के कारण उनकी आपस में खूब जमती थी। इस कारण शैलप्रिया और विद्याभूषण के घर पर साहित्यकारों का आना जाना लगा रहता था। साहित्य अकादमी के पूर्व सदस्य शंभु बादल, कवि भारत यायावर और कथाकार रतन वर्मा, शैलप्रिया के आतिथ्य की चर्चा करते थकते नहीं। रतन वर्मा कहते हैं कि शैलप्रिया जी सामाजिक रिश्ते में भाभी जरूर लगती थी, किंतु उनके व्यवहार से उन्हें हमेशा मातृ – वात्सल्य सा छलकता हुआ महसूस होता था । हममें से शायद किसी ने भी उनका मुरझा हुआ चेहरा कभी देखा होगा। रतन वर्मा ने कहा कि” शैलप्रिया जी के असमय जीवन से विदाई के बाद से आज तक उनके घर जाने का साहस नहीं जुटा पाये । शैलप्रिया जी खुद में साक्षात एक कविता थी। वह अपनी कविताओं में खुद की उपस्थिति का अहसास करा जाती है।
शैलप्रिया जी ने कविताओं के रचना क्रम के अलावा छोटी-छोटी कहानियां सम – सामयिक आलेख सहित विभिन्न विषयों पर भी महत्वपूर्ण काम किया। उनकी पहली कविता “युद्ध रत आदमी” नामक पत्रिका में छपी थी। शैलप्रिया जी के तीन कविता संग्रह1983 में “अपने लिए”, 1982 में “चांदनी आग है”, और 1995 में “घर की तलाश में यात्रा” नाम से प्रकाशित हुए । 1995 में ही उनकी एक और पुस्तक “जो अनकहा रहा” नाम से आई। 2000 में शैलप्रिया जी की रचनाओं का एक संग्रह “शेष है अवशेष है”, नाम से प्रकाशित हुआ। शैलप्रिया ने स्वयं को सदा किसी वाद अथवा किसी खास विचारधारा से मुक्त रखा । शैलप्रिया जी ने जो रचना कर्म किए, सदा समय से संवाद करते रहेंगे। उनकी कविताएं जीवन के अर्थ को तलाशती नजर आती हैं। इनकी रचनाएं जीवन के संघर्ष के दौरान एक वीर बालिका की तरह आगे बढ़ती नजर आती है । हताशा और निराशा शैलप्रिया के शब्दकोश है ही नहीं। वे “फुरसत में” शीर्षक कविता में दर्ज करती है – “जब कभी/फुरसत में होता है आसमान / उसके नीले बिस्तर में/ डूब जाते हैं / मेरी परिधि और बिंदु के / अर्थ / क्षितिज तट पर / आंधी पड़ी दिशाओं में / बिजली की कौंध / मरियल जिजीविषा सी लहराती” । इस कविता के माध्यम से बड़ी बात कहने की कोशिश की है। उनकी साधारण सी दिखनी वाली पंक्तियों में असाधारण बातें समाहित है। कवयित्री यहां अपने फुरसत के क्षणों को भी जाया नहीं जाने देती । उनके जीवन का यह क्षण बहुत ही बेशकीमती और महत्वपूर्ण है । यहां उन्होंने अपनी तुलना आसमान से कर बातें दूर तक पहुंचाने का साहस किया है । दिन भर की भागदौड़ और थकान से चूर जिंदगी जब बिस्तर पर समाती है , तब जिंदगी उसी में बहुत दूर तक समाहित होती चली जाती है । डूबना ऐसा होता है की परिधि और बिंदु के सभी अर्थ एक हो जाते हैं । कवयित्री आगे दर्ज करती हैं – “इच्छाओं की मेघ गर्जना / आशाओं की चमकती चमक / के साथ गूंजती रहती है / तन मन का घाटियों में / बर्षों में दुमका पड़ा सन्नाटा / खाली बर्तनों की तरह / थर्राता है / जब कभी फुर्सत में होती हूं मैं / मेरा आसमान मुझको रौंदता है / बंजर उदास मिट्टी की ढूह की तरह / सारे अहसास / हो जाते हैं व्यर्थ” – फुरसत के क्षणों में ही इच्छाएं आशाएं एक-एक कर टतपती चली आती है। इच्छाओं का जब मानवीय मस्तिष्क में प्रवेश होता है , तब मेघ गर्जना के समान अहसास करा जाती हैं। इन्हीं इच्छाओं के माध्यम से मानवीय जीवन रौंदा जाता है। और यह अंतहीन रौंद और दौड़ जीवन के साथ तब तक बना रहता है , जब तक जीवन चलता रहता है । जीवन के समाप्त होते ही सारी इच्छाएं भी दूर चली जाती है।
शैलप्रिया जी की एक कविता, “जिंदगी” शीर्षक में दर्ज है – अखबारों की दुनिया में / महंगी साड़ियों के सस्ते इश्तेहार / शो – केसों मिठाइयों और चूड़ियों की भरमार है / प्रभु तुम्हारी महिमा अपरंपार है / कि घरेलू बजट की बुखार है /तीज और कर्मा / अग्रिम और कर्ज / एक फर्ज / इनका समीकरण / खुशियों का बंध्याकरण/ त्योहारों के मेले में / उत्साह अकेला है / जिंदगी एक ठेला है” – शैलप्रिया जी की यह कविता मध्यमवर्गीय परिवारों की परेशानियों को समर्पित है। जिंदगी है, इसे जीना तो पड़ेगा। रोकर जिए अथवा हंसकर जिए । जीना तो पड़ेगा । इसलिए जब जीना ही है तो क्यों ना जिंदगी हंस कर जिया जाए । महंगी साड़ियों में सस्ते विज्ञापन के माध्यम से कवयित्री ने देश के करोड़ों मध्यम वर्गीय परिवारों के हाल के सच को उसी रूप में प्रस्तुत किया है । ऊपर से तीज और त्योहार भी है । इसके साथ अग्रिम और कर्ज भी है । तब कहीं ना कहीं ऐसे परिवारों को समझौता करना ही पड़ता है । ऐसे परिवार अपनी खुशियों का बंध्याकरण करने के लिए विवश हो जाते हैं । इन सबके बावजूद जिंदगी जीना है, रहना है, खाना है और पीना भी है। इसीलिए यह जिंदगी है।
उनकी प्रतिनिधि कविताओं में “क्रंदन” शीर्षक कविता जीवन के मर्म को छू जाती है – “जहर का स्वाद / चखा है तुमने /उतना विषैला नहीं होता / जितनी विषैली होती है बातें / कि जैसे / काली रातों से उजली होती है / सूनी रातें”। – इस कविता के माध्यम से कवयित्री ने मानवीय जीवन के सच को सामने रखा है । किसी भी बात का प्रभाव मानव जीवन पर बहुत दूर तक असर डालता है। बचपन में सुनी बातें लोग जीवन भर भूल नहीं पाते । बातों की तुलना जहर से कर इसके विषैले में प्रभाव को भी उसी रूप में रखा है । उन्होंने दर्ज किया हैं कि कुछ बातें ऐसी होती है, जो जहर से ज्यादा विषैली होती है। इसलिए हर एक व्यक्ति को पूरी सावधानी के साथ अपनी बातें रखनी चाहिए। इस कविता में आगे कवयित्री दर्ज करती है कि -” पिरामिडी खंडहर में / राजसिंहासन की खोज / एक भूल है / और सूखी झील में / लोटती मछलियों को जाल में समेटना भी / क्या खेल है ?” उपरोक्त पंक्तियों में कवयित्री जीवन के यथार्थ से रूबरू करा जाती है। साथ ही दकियानूसी बातों पर जोरदार प्रहार भी करती नजर आती है । शैलप्रिया जी की कविताओं को लंबी सूची है । उनकी कुछ प्रतिनिधि कविताओं का जिक्र करना यहां उचित समझता हूं । “सार्थक एक लम्हा”, “एक सुलगती नदी”, “जिंदगी का हिसाब”, “स्वागत”, रात के साए में”, “आज तुम्हारे आंगन में”,”टूटता पटरा”, “जिजीविषा”, “रीता मन”, “आमंत्रण”, “आग का अक्षर”, “मातृत्व”, “सवाल” आदि । उनकी हर एक कविता महत्वपूर्ण है । सभी कविताएं संवाद करती नजर आती है। कविता में प्रयोग हुए सहज और सरल शब्द उसके अर्थ को भी सहज बनाने में सफल होते हैं । उनका बहुत कम उम्र में इस दुनिया से जाना हुआ । उनकी कविताएं जिंदगी से वार्तालाप करते हुए आगे बढ़ रही थी। धार पकड़ ही रही थी कि उन्हें हमेशा हमेशा के लिए नीले आसमान में समा जाना पड़ा।
कवयित्री शैलप्रिया की स्मृति में हर वर्ष एक कवि को उनके साहित्यिक अवदान के लिए “शैलप्रिया स्मृति सम्मान” प्रदान किया जाता है । निश्चित तौर पर शैलप्रिया की कविताएं समय से संवाद करती नजर आती हैं। शैलप्रिया अपने जीवन के संघर्ष और परेशानियों से भी प्रेम करती थी । हम सबों को उनके जीवन संघर्ष और कविताओं के बीच के तालमेल से बहुत कुछ सीखने को मिल सकता है।

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