रांची:
जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग, रांची विश्वविद्यालय में आज सोशल डिस्टेंशिंग का पालन करते हुये विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर परिचर्चा का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का संचालन प्राध्यापक किशोर सुरीन ने तथा धन्यवाद प्राध्यापक डॉ निरंजन कुमार ने किया। परिचर्चा में मुख्य अतिथि के रूप में रांची विश्वविद्यालय के प्रभारी कुलपति डॉ कामिनी कुमार उपस्थित थीं। आदिवासी समाज के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करते हुये उन्होंने कहा कि दुनिया भर के आदिवासी समुदाय को बचाने के लिये प्रत्येक वर्ष आदिवासी दिवस मनाते हैं। उनकी समास्याओं के निराकरण करने के लिये इस दिवस का काफी महत्व है। उन्होंने कहा कि आदिवासी प्रकृति पूजक होते हैं। समुदाय में रहकर ये अपनी कार्यों का निर्वहन करते हैं। ये हम सबों के लिये गर्व की बात है कि आजादी का विगुल इन्हीं आदिवासी समुदाय के द्वारा सबसे पहले फूंका गया था। उन्होंने कहा कि पूरे दुनिया को बचाये रखने का श्रेय भी इन्हीं को जाता है। वे सदियों अपनी परम्परा और संस्कृति को सीने से लगाये रखा है। परन्तु इनके लिये चिंतन करने वाला आज कोई नहीं है। तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद ये निरंतर आगे बढ़ रहें हैं। उन्होंने कहा कि दुनिया में कुल आदिवासियों की संख्या करीब 37 करोड़ है। भारत समेत दुनिया के कई देशों में आदिवासी समुदाय के लोग रहते हैं। आदिवासी समुदाय के लोग आज भी समाज की मुख्यधारा में शामिल नहीं हुए हैं, जिसके चलते ये आज भी काफी पिछड़े हुए हैं।
उन्होंने कहा कि जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग की पहचान पूरे विश्व में हो यह मेरी कोशिश होगी। विभाग के माध्यम से समाज में शैक्षिक माहौल तैयार किया जायेगा। उन्होंने कहा कि हर समाज अपने संघर्ष के बल पर आगे बढ़ता है। हमें उन सबों का सम्मान करना चाहिये।
उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय कर्मचारियों के लिये 960 पद सृजित किया गया है। शिक्षकों के पदों का रोस्टर क्लीयर कर दिया गया है। जिन की प्रोन्नति काफी लम्बे समय से रूकी हुई है उन शिक्षकों का प्रोन्नति हेतु भी प्रयासरत हैं।
उन्होंने कहा कि टीआरएल विभाग में नौ भाषाओं के लिये अलग अलग विभागाध्यक्ष की नियुक्ति जल्द की जायेगी। नयी शिक्षा नीति को ध्यान में रखते हुये अगले सत्र में अन्य विषयों में स्नातक पास करने वाले छात्र भी टीआरएल विभाग में नामांकन करा सकेंगे।
अध्यक्षता करते हुये विभागाध्यक्ष डॉ हरि उराँव ने कहा कि आज पूरे विश्व में आदिवासियों व मूलनिवासियों की दशा व दिशा पर चर्चाएँ की जा रही है। उनके चहुमुखी विकास के लिये हमेशा बातें की जाती है. परन्तु धरातल पर कुछ भी दिखाई नहीं पड़ता है। यह बहुत ही दुखद बात है। उन्होंने कहा कि आज आदिवासी लोगों को अपना अस्तित्व, संस्कृति और सम्मान बचाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। आज दुनियाभर में नस्लभेद, रंगभेद, उदारीकरण जैसे कई कारणों की वजह से आदिवासी समुदाय के लोग अपना अस्तित्व और सम्मान बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि झारखंड की कुल आबादी का करीब 28 फीसदी आदिवासी समाज के लोग हैं। वैश्वीकरण के दौर में आदिवासियों की जो दशा है उस पर मूल्यांकन करने की आवश्यकता है।
प्राध्यापक डॉ उमेश नन्द तिवारी ने अतिथियों का स्वागत करते हुये कहा कि आदिवासी समाज सबसे सम्पन्न, सुखी और खुशहाल है। क्योंकि वह प्रकृति के सबसे नजदीक है। उन्होंने कहा कि दुनिया को जीवन जीने का तौर तरीका सीखाने वाले आदिवासी समुदाय सदियों से मुख्य धारा के समाज के द्वारा छले जाते रहें हैं। इन आदिवासियों के चहुमुखी विकास के लिये सच्चे दिल से काम करने की जरूरत है।
जब तक आदिवासियों की भाषा एवं संस्कृति का विकास नहीं होगा,तब तक आदिवासियों का विकास संभव नहीं है-डॉ दमयन्ती सिंकु
डॉ सरस्वती गागराई ने आदिवासी समुदाय के सामाजिक, आर्थिक व सांस्कृतिक पहलुओं पर चर्चा करते हुये कहा कि आज आदिवासी समाज को बचाना है तो सबसे पहले उनकी भाषाओं को संरक्षित कर उसे रोजगार से जोड़ने का प्रयास किया जाना चाहिये। आदिवासी भाषाओं की लिपियों में पठन पाठन की व्यवस्था प्राथमिक स्तर से किया जाना चाहिये।
गुरुचरण पूर्ति ने कहा कि आदिवासी विश्व इतिहास की जननी है। इसकी महता को आज समझने की आवश्यकता है।
इस मौके पर टीआरएल विभाग के प्राध्यापक डॉ बीरेन्द्र कुमार महतो, डॉ निरंजन कुमार, डॉ किरण कुल्लू, महामनी उराँव, अमिया सुरिन, डॉ तारकेश्वर महतो, जय प्रकाश उराँव, करम सिंह मुंडा, बीरेन्द्र उराँव, सुखराम, बसंत कुमार, पप्पू बांडों उपस्थित थे।