Sunday, April 28, 2024
HomeJHARKHANDमहान स्वाधीनता सेनानी सरस्वती देवी की अमर गौरव गाथा

महान स्वाधीनता सेनानी सरस्वती देवी की अमर गौरव गाथा

सरस्वती देवी जैसी वीरांगना की अमर गाथा से भारत की पवित्र भूमि सदा पुष्पित और पल्लवित होती रहेगी । भारत माता को अंग्रेजी हुकूमत से मुक्ति दिलाने के लिए देश के वीर सपूतों ने एड़ी चोटी एक कर दिया था। वहीं दूसरी ओर देश की नारी शक्ति सरस्वती देवी जैसी वीरांगना से प्रेरित होकर अपना सब कुछ देश की आजादी के नाम न्योछावर कर दिया था ।

देश की आजादी और सामाजिक कुप्रथा के खिलाफ संघर्षरत सरस्वती देवी की अमर गाथा सदा देशवासियों को अपनी ओर आकर्षित करती रहेगी । सरस्वती देवी जैसी वीरांगना की अमर गाथा से भारत की पवित्र भूमि सदा पुष्पित और पल्लवित होती रहेगी । भारत माता को अंग्रेजी हुकूमत से मुक्ति दिलाने के लिए देश के वीर सपूतों ने एड़ी चोटी एक कर दिया था। वहीं दूसरी ओर देश की नारी शक्ति सरस्वती देवी जैसी वीरांगना से प्रेरित होकर अपना सब कुछ देश की आजादी के नाम न्योछावर कर दिया था । एकीकृत बिहार की पहली नारी शक्ति सरस्वती देवी ने भारत माता को अंग्रेजों की दासता से मुक्त कराने के लिए स्वाधीनता आंदोलन में कूद पड़ी थी। सरस्वती देवी का जन्म भारत माता को आजादी दिलाने के लिए ही हुआ था। उनका जन्म झारखंड के हजारीबाग जिला के बिहारी दुर्गा मंडप के पास सन् 1901 को हुआ था । इनके पिता स्वर्गीय विष्णु दयाल सिन्हा संत कोलंबस कॉलेज के प्राध्यापक थे। घर में शिक्षा का बहुत ही बेहतर माहौल था । सरस्वती देवी बचपन से ही पढ़ाई के साथ घर के कामों में भी हाथ बंटाया करती थी। वह घर आए अतिथियों का सत्कार भी बहुत ही बेहतर ढंग से किया करती थी। वह बचपन से ही जरूरतमंदों की सेवा किया करती थी । उन्हें बचपन से ही समाज में व्याप्त कुप्रथा, छुआछूत , अस्पृश्यता पसंद नहीं था। बचपन में अपने पिता से स्वाधीनता आंदोलन की चर्चाएं सुना करती थी । यह चर्चा उन्हें बहुत भाती थी।

देश के विकास में स्त्री और पुरुष दोनों की सहभागिता जरूरी है

सरस्वती देवी की मात्र तेरह वर्ष की उम्र में हजारीबाग जिला, दारू ग्राम के भैया केदारनाथ सहाय के साथ कर दी गई थी । उस जमाने में शादियां इसी उम्र में कर दी जाती थी। विवाह के बाद सरस्वती देवी अपने ससुराल आ गई। भैया केदारनाथ सहाय वकालत किया करते थे । वे, महान स्वाधीनता सेनानी डॉ राजेंद्र प्रसाद के बिहार स्टूडेंट वेलफेयर सोसाइटी से भी जुड़े हुए थे। इस कारण वेलफेयर सोसाइटी के कई कार्यकर्ता गण उनके यहां आया जाया करते थे। सरस्वती देवी का इन लोगों से बराबर मिलना जुलना हुआ करता था। वह इस मुलाकात के दौरान सोसायटी के लोगों से देश की आजादी पर भी चर्चा करती रहती थी। सरस्वती देवी ने स्वाधीनता आंदोलन में प्रवेश करने की इच्छा जताई थी। 1916 – 17 में वह स्वाधीनता आंदोलन से जुड़ गई थी। सबसे पहले उन्होंने समाज में व्याप्त कुप्रथा के खिलाफ जनसंपर्क अभियान प्रारंभ किया था। देशभर में गांधी जी ने हरिजन उद्धार के लिए एक बड़ा अभियान चला रखा था। सरस्वती देवी, गांधी जी के हरिजन उद्धार कार्यक्रम से जुड़ कर आस पास के गांवों में जाकर लोगों को जागृत करने लग गई थी। सरस्वती देवी को यह कभी पसंद नहीं था कि पुरुष को एक विशेष दर्जा दिया जाए और नारी शक्ति को घर के अंदर कैद कर रखा जाए । उनका मत था, ‘देश के विकास में स्त्री और पुरुष दोनों की सहभागिता जरूरी है। अन्यथा देश कभी भी पूर्ण विकसित नहीं हो सकता।’ उस जमाने में नारी शक्ति को घर के अंदर कैद कर रखा जाता था । नारियों के जिम्मे में घर का चूल्हा चौकी ही था । जरूरत पड़ने पर अगर नारियां घर से बाहर निकलती थी, तब उन्हें विशेष पर्दा कर निकलने की इजाजत थी। यह सब बातें सरस्वती देवी को नापसंद थी । उन्होंने पर्दा प्रथा के खिलाफ आवाज बुलंद की थी । इस पर्दा प्रथा के खिलाफ आवाज बुलंद करने पर समाज में इनकी जबरदस्त आलोचना हुई थी। लेकिन सरस्वती देवी ने इस आलोचना की तनिक भी परवाह ना की । उन्होंने पर्दा प्रथा के खिलाफ खुद एक रिक्शा में सवार होकर नगर का भ्रमण की थीं, जिसका हजारीबाग नगर के सभी नारियों ने स्वागत किया था।

सरस्वती देवी असहयोग आंदोलन में जेल भी गई

गांधी जी के आह्वान पर सरस्वती देवी ने 1921 में असहयोग आंदोलन में जमकर हिस्सा लिया था। फलस्वरूप उन्हें गिरफ्तार कर हजारीबाग सेंट्रल जेल भेज दिया गया । सरस्वती देवी हजारीबाग के स्वाधीनता सेनानी कृष्ण बल्लभ सहाय, बजरंग सहाय, त्रिवेणी सिंह आदि स्वाधीनता सेनानियों के साथ मिलकर कदम से कदम मिलाकर चली थीं। सरस्वती देवी जब मंच से अपनी बातों को रखती थी, लोग मंत्रमुग्ध होकर सुना करते थे । भारत माता की जय, सरस्वती देवी की जय के नारों से पूरा माहौल गूंज उठता था। महात्मा गांधी ने जब संपूर्ण देश में असहयोग आंदोलन का आह्वान किया था । तब सरस्वती देवी ने अपने स्वाधीनता सेनानी मित्रों के साथ इस आंदोलन में जम कर हिस्सा लिया था। फलस्वरूप उनका नाम पूरे प्रांत में फैल चुका था । सरस्वती देवी का नाम एकीकृत बिहार में जन जन की जुबान पर चढ़ गया था। अब वह एक मशहूर महिला नेता के रूप में जानी जा रही थी ।

जेल में ही अपने छोटे पुत्र को जन्म दिया

महात्मा गांधी, डॉ राजेंद्र प्रसाद, जवाहरलाल नेहरू, आचार्य कृपलानी जैसे बड़े नेता भी सरस्वती देवी को जानने लगे थे। 1925 में पहली बार सरस्वती देवी, गांधी जी से मिली थी । उनका मार्गदर्शन प्राप्त कर सरस्वती देवी आजीवन गांधी जी के आदर्शों पर चली थीं। असहयोग आंदोलन के क्रम में उन्होंने विदेशी वस्तु का त्याग कर दिया था। वह स्वनिर्मित व देशी वस्तुओं का ही उपयोग आजीवन करती रही थी। स्वाधीनता सेनानियों के आह्वान पर 1930 में जब संपूर्ण देश में तिरंगा लहराया जा रहा था, तब सरस्वती देवी भी जगह-जगह घूम कर तिरंगा शान के साथ लहरा रही थीं। अब सरस्वती देवी ब्रिटिश हुकूमत के हिट लिस्ट में आ चुकी थीं। तिरंगा लहराते हुए उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और भागलपुर जेल में भेज दिया गया था । उन्हें एक वर्ष से अधिक समय तक जेल में रहना पड़ा था। उस समय वह गर्भवती थी । जेल में ही उन्होंने अपने छोटे बेटे भैया द्वारकानाथ सहाय को जन्म दिया था। यह बात आग की तरह संपूर्ण देश में फैल गई थी। यह खबर सुनकर कई वीरांगना महिलाएं भी स्वाधीनता आंदोलन में कूद पड़ी थी। सरस्वती देवी की गिनती देश के बड़े नेताओं की श्रेणी में होने लगी थी। सरस्वती देवी जेल से छूटने के बाद एक दिन भी घर में विश्राम बैठी नहीं की बल्कि लगातार स्वाधीनता आंदोलन से जुड़ी रही थी। उन्होंने समाज को जागरूक करने और स्वाधीनता आंदोलन के हेतु युवक – युवतियों को तैयार करने में लगी रही थीं । उनका कार्यक्रम सुबह से लेकर शाम तक बना ही रहता था ।

सूत काटना और स्वनिर्मित वस्त्र धारण करना सिखाया

गांधी जी ने 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के तहत करो या मरो का नारा दिया था। इस आंदोलन को जन जन तक पहुंचाने में सरस्वती देवी ने अहम भूमिका निभाई थी । महात्मा गांधी के खादी आंदोलन को जन जन तक पहुंचाने मेंभी सरस्वती देवी ने अहम भूमिका अदा की थी । उन्होंने ग्राम वासियों को सूत काटना और स्वनिर्मित वस्त्र धारण करने की सीख दी थी । सरस्वती देवी की सीख का ग्रामीण वासियों पर बहुत ही अनुकूल प्रभाव पड़ा था। लोग सूट काटकर स्व निर्मित वस्त्र धारण करने लगे थे । फलस्वरूप धीरे धीरे कर यह बात जन जन तक फैलती चली गई थी ।
ब्रिटिश हुकूमत की नीव हिलने लगी थी । 1942 के द्वितीय विश्व युद्ध में ब्रिटिश हुकूमत की पराजय के बाद उसकी आर्थिक स्थिति पूरी तरह लड़खड़ा गई थी । इधर संपूर्ण देश में अंग्रेजो के खिलाफ चल रहे आंदोलन के कारण अंग्रेजों ने भारत छोड़ने का मन बना लिया था। सरस्वती देवी जैसी वीरांगना नारी शक्ति ने अंग्रेजी हुकूमत की नींद हराम कर दी थी । स्वाधीनता सेनानियों ने अंग्रेजों को भारत आजाद करने के लिए विवश कर दिया था। ।

1946 में सरस्वती देवी MLA चुनी गई

1937 में जब बिहार विधान सभा ने महिलाओं के लिए चार सीटें आरक्षित की थी। तब उन्होंने इसका प्रतिनिधित्व किया था। 1946 में सरस्वती देवी बिहार लेजिसलेटिव की सदस्य चुनी गई । वह इस पद पर 1951 तक बनी रही थीं। 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ । वह अस्वस्थ रहने के बावजूद सामाजिक कुप्रथा, हरिजन उद्धार जैसे कार्यों में लगातार जुड़ी रही थी। सरस्वती देवी ने स्वास्थ्य कारणों के चलते 1952 में राजनीति से संयास ले लिया था । 10 दिसंबर 1958 को मात्र 57 वर्ष की उम्र में वह इस दुनिया से विदा हो गई थी । उनका संपूर्ण जीवन देश की आजादी, सामाजिक कुप्रथा को दूर करने और हरिजन उद्धार में बीता था । सरस्वती देवी देश की एक ऐसी वीरांगना थी,जिस पर समस्त देशवासियों को सदा नाज रहेगा।

Vijay Keshari
Vijay Kesharihttp://www.deshpatra.com
हज़ारीबाग़ के निवासी विजय केसरी की पहचान एक प्रतिष्ठित कथाकार / स्तंभकार के रूप में है। समाजसेवा के साथ साथ साहित्यिक योगदान और अपनी समीक्षात्मक पत्रकारिता के लिए भी जाने जाते हैं।
RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -

Most Popular

Recent Comments