Saturday, April 27, 2024
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सीता सोरेन के इस्तीफे ने झामुमो की मुश्किलें बढ़ा दी हैं

सीता सोरेन झारखंड मुक्ति मोर्चा की राजनीति में एक प्रमुख नेता के रूप में गिनी जाती रही हैं। सीता सोरेन तीन-तीन बार झारखंड मुक्ति मोर्चा के टिकट पर चुनाव लड़ी और विधानसभा में अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज करती रहीं।

झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक शिबू सोरेन की बड़ी पुत्र वधू सीता सोरेन के इस्तीफे के बाद झारखंड मुक्ति मोर्चा की मुश्किलें बढ़ा दी है। दिल्ली में मंगलवार को सीता सोरेन ने भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर ली । सदस्यता ग्रहण करने से पूर्व उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है। इस आशय का एक पत्र उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक शिबू शरण को प्रेषित कर दिया है। सीता सोरेन के इस्तीफा ने झारखंड मुक्ति मोर्चा की राजनीति में एक भूचाल खड़ा कर दिया है । सीता सोरेन के इस्तीफे से झारखंड मुक्ति मोर्चा की जमीन की खिसकती नजर आ रही है । सीता सोरेन झारखंड मुक्ति मोर्चा की राजनीति में एक प्रमुख नेता के रूप में गिनी जाती रही हैं। सीता सोरेन तीन-तीन बार झारखंड मुक्ति मोर्चा के टिकट पर चुनाव लड़ी और विधानसभा में अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज करती रहीं।
सीता सोरेन अपने पति दुर्गा सोरेन के जीवित रहते झारखंड मुक्ति मोर्चा की राजनीति में सक्रिय हो गईं थीं। सीता सोरेन इस बात से खास नाराज रहती थी कि उनके पति दुर्गा सोरेन को झारखंड मुक्ति मोर्चा की राजनीति में जो सम्मान मिलना चाहिए था । दुर्गा सोरेन को वह सम्मान कभी भी नहीं दिया गया था। यह बात सच है कि झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक शिबू सोरेन ने जिस प्रकार हेमंत सोरेन को झारखंड की राजनीति में अपना नैतिक समर्थन दिया था, ऐसा दुर्गा सोरेन को कभी प्राप्त नहीं हो पाया था । इस बात को लेकर सोरेन परिवार के बीच बराबर विवाद होते रहते थे ।
पिछले दिनों जब मनी लॉन्ड्रिंग और जमीन घोटाले के मामले में हेमंत सोरेन को जेल जाना पड़ा था, तब झारखंड के अगले मुख्यमंत्री के रूप में हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन का नाम आया था। जब इस बात की जानकारी सीता स्वयं को हुई थी तब उन्होंने अंदर ही अंदर इसका विरोध करना शुरू कर दिया था। चंपाई सोरेन के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद सीता सोरेन को उम्मीद थी कि मंत्रिमंडल में जगह दिया जाएगा। लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। जिस कारण भी सीता सोरेन काफी नाराज चल रही थी । अपनी इस नाराजगी को उन्होंने खुले रूप से प्रेस के समक्ष भी रखा था। जब बात काफी बढ़ गई तब झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक शिबू सोरेन के हस्तक्षेप के बाद मामला ठंडा पड़ा था । लेकिन बाहर से सीता सोरेन शांत जरूर दिख रही थी, लेकिन अंदर ही अंदर उनकी राजनीतिक खिचड़ी कहीं और पक रही थी । राजनीतिक के गलियारे में सीता सोरेन का भाजपा के नेताओं से बातचीत हो रही है, इसकी भनक तक ना लगी थी।
हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थिति दिन ब दिन गिरती चली जा रही है । हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन ने झारखंड मुक्ति मोर्चा की कमान अपने हाथों में जरूर ले ली हैं। वह मंच से बड़ी-बड़ी बातें भी कर रही हैं। झारखंड मुक्ति मोर्चा के कार्यकर्ताओं का उन्हें समर्थन भी मिल रहा है । वहीं दूसरी ओर झारखंड मुक्ति मोर्चा के कई विधायक भी चंपाई सोरेन सरकार से खासे नाराज भी चल रहे हैं। झारखंड मुक्ति मोर्चा के कई विधायकों के नाराजगी का बयान का अखबारों में आ चुके हैं। राजनीतिक गलियारे में यह भी चल रही है कि झारखंड मुक्ति मोर्चा के कई विधायक भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के संपर्क में हैं । अगर यह बात सच साबित होती है, तब यह झारखंड मुक्ति मोर्चा के लिए एक बड़ी ही बुरी खबर साबित होगी। सीता सोरेन के इस्तीफे के बाद झारखंड मुक्ति मोर्चा की जमीन की खिसकती नजर आ रही है। यह झारखंड मुक्ति मोर्चा के लिए शुभ संकेत नहीं है। फिलहाल झारखंड मुख्य मोर्चा के संस्थापक शिबू सोरेन बीमार चल रहे हैं। स्वास्थ्य कारणों के चलते शिबू सोरेन की पकड़ झारखंड मुक्ति मोर्चा पर ढीली पड़ती जा रही हैं । ऐसे में अगर हेमंत सोरेन लंबे समय तक जेल में रह जाते हैं, तब झारखंड मुक्ति मोर्चा जी की स्थिति और भी कमजोर पड़ती चली जाएगी। झारखंड मुक्ति मोर्चा को अपनी स्थिति को मजबूत बनाए रखने के लिए एक बड़े संघर्ष के दौर से गुजरना पड़ रहा है।
लोकसभा चुनाव का बिगुल बच चुका है। झारखंड के 14 लोकसभा सीटों पर चुनाव होना है। झारखंड मुक्ति मोर्चा को लोकसभा का यह चुनाव शिबू सोरेन और हेमंत सोरेन के बिना ही लड़ना पड़ेगा। झारखंड मुक्ति मोर्चा में शिबू सोरेन और हेमंत सोरेन के अलावा दूसरा कोई ऐसा नेता उभर कर सामने नहीं आ पाया है, जो इन दोनों नेताओं के समक्ष नेतृत्व दे सके। आज झारखंड मुक्ति मोर्चा नेतृत्व के अभाव का भी दंश झेल रही है। वहीं एनडीए ने झारखंड की 14 लोकसभा जीत की तैयारी में जुट गई हैं। झारखंड के चौदहों सीट पर एनडीए का तालमेल भी बहुत ही बेहतर रूप में सामने आया है । झारखंड में भाजपा, आजसू के साथ मिलकर चुनाव लड़ेगी । नरेंद्र मोदी की गारंटी की हवा भी बह रही है। भाजपा और आजसू कार्यकर्ताओं में जो उत्साह देखने को मिल रहा है, ऐसी उत्साह यूपीए गठबंधन के कार्यकर्ताओं और नेताओं के बीच नहीं दिख रही है बल्कि सीट के बंटवारे को लेकर यूपीए में अंदर ही अंदर काफी घमासान भी दिख रहा है।
झारखंड की सियासत में झारखंड मुक्ति मोर्चा की मुसीबत कम होने का नाम नहीं ले रही है। मनी लांड्रिंग जमीन घोटाला और लाभ के पद मामले में जेल में बंद हेमंत सोरेन की विधानसभा सदस्यता पर पहले से ही खतरा मंडरा रहा है। अब उनकी भाभी सीता सोरेन ने भाजपा का दामन थाम लिया है। राजनीतिक गलियारे में ऐसी भी चर्चा है कि सीता सोरेन भाजपा के टिकट पर लोकसभा का चुनाव भी लड़ेंगी । कल तक यही सीता सोरेन झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेताओं को जीताने के लिए सभाएं करती रही थीं । अब सीता सोरेन मुखर होकर झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेताओं का ही पोल खोलती नजर आएंगीं। सीता सोरेन के खुले रूप में झारखंड मुक्ति मोर्चा के खिलाफ में आने से झारखंड मुक्ति मोर्चा के संगठन पर इसका बहुत ही प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
सीता सोरेन ने यह पहली बार नहीं किया है बल्कि अक्सर अपनी मांगों को लेकर वो सरकार को असहज करती रही हैं । हेमंत सोरेन के सीता सोरेन के सियासी रिश्ते जगजाहिर हैं। सीता सोरेन के तेवर और बगावती रुख को देखर सवाल उठ रहे थे कि क्या वो झारखंड की ‘अपर्णा यादव’ तो नहीं बनेंगी? सीता सोरेन अब अपर्णा यादव की राह पर चल पड़ी हैं।
सीता सोरेन झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय अध्यक्ष शिबू सोरेन के पुत्र दिवंगत दुर्गा सोरेन की पत्नी हैं। सीता सोरेन जेएमएम के टिकट पर तीसरी बार झारखंड विधानसभा में पहुंचीं । झारखंड की सियासत में वो मजबूत पकड़ भी रखती हैं, लेकिन हेमंत कैबिनेट में उन्हें जगह नहीं मिल सकी। सीता सोरेन की राजनीतिक महत्वाकांक्षा भी जगजाहिर है। ध्यातव्य है कि सीता सोरेन ने अपनी ही सरकार के अधिकारियों के कामकाज और रवैये पर सवाल उठाती रही थीं । पिछले दिनों सीता सोरेन यह आरोप लगाया था कि धनबाद के वरीय पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) कोयले का अवैध खनन और परिवहन करा रहे हैं। इससे प्रतिदिन करोड़ों रुपये के राजस्व का नुकसान हो रहा है। सीता सोरेन के मुताबिक धनबाद के वरीय पुलिस अधीक्षक की मौन सहमति और अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन के कारण अवैध खनन किए जा रहे हैं। सीता सोरेन ने इस मामले में केंद्रीय गृह मंत्रालय, तत्कालीन पूर्व मुख्यमंत्री सीएम हेमंत सोरेन, ईडी और सीआईएसएफ मुख्यालय से कार्रवाई की मांग की  थीं।
सीता सोरेन अब भारतीय जनता पार्टी की सदस्य बन चुकी हैं। उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा भी दे दिया है । इस आशय का एक पत्र सीता स्वयं ने झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक अध्यक्ष शिबू सोरेन को प्रेषित कर दिया है। अपने पत्र में सीता सोरेन ने कई आरोप भी दर्ज कर दिया है। लोकसभा के चुनाव में सीता सोरेन एक भाजपा के प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ने जा रही है। ऐसी राजनीतिक आशंका व्यक्त की जा रही है। जब 2024 का लोकसभा का चुनाव का विगुल बच चुका है, ऐसे में सीता सोरेन का भाजपा का दामन थामना, झारखंड मुक्ति मोर्चा के लिए महंगा ही साबिर होगा। 2024 का लोकसभा चुनाव समाप्त होते ही झारखंड में भी विधानसभा चुनाव के बिगुल भी बज जाएंगे। सीता सोरेन के झारखंड मुक्ति मोर्चा छोड़ने से कई और झारखंड मुख्य मोर्चा के नेता भी भाजपा का दमन थाम सकते हैं। इसकी आशंका व्यक्ति जा रही है। सच्चे अर्थों में सीता सोरेन के इस्तीफे ने झारखंड मुक्ति मोर्चा की मुश्किलें बढ़ा दी हैं।

Vijay Keshari
Vijay Kesharihttp://www.deshpatra.com
हज़ारीबाग़ के निवासी विजय केसरी की पहचान एक प्रतिष्ठित कथाकार / स्तंभकार के रूप में है। समाजसेवा के साथ साथ साहित्यिक योगदान और अपनी समीक्षात्मक पत्रकारिता के लिए भी जाने जाते हैं।
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