Monday, April 29, 2024
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एक ही परिवार से 100 से अधिक लोग शहीद हुए थे, जब बुधु भगत ने अंग्रेज़ों से गुरिल्ला युद्ध किया था।

आजादी की लड़ाई में आदिवासियों की भूमिका बहुत अहम रही है और आगे देश के विकास में भी आदिवासियों की भूमिका रचनात्मक और सार्थक रहेगी।

रांची:

सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार के प्रेस इनफॉर्मेशन ब्यूरो, रीजनल आउटरीच ब्यूरो रांची तथा फील्ड आउटरीच ब्यूरो, धनबाद के संयुक्त तत्वावधान में “आजादी का अमृत महोत्सव: झारखंड के स्वतंत्रता सेनानियों का योगदान” विषय पर आज गुरूवार को एक सफल वेबिनार का आयोजन किया गया, जिसमें राज्य के प्रमुख इतिहास के व्याख्याताओं और विमर्शकों ने अपनी राय रखी।

अमृत महोत्सव कार्यक्रमों के द्वारा अगले 25-30 साल का लक्ष्य निर्धारित कर विकसित भारत का सपना पूरा करना है: अरिमर्दन सिंह

वेबिनार की अध्यक्षता करते हुए पीआईबी-आरओबी रांची के अपर महानिदेशक श्री अरिमर्दन सिंह ने अतिथि वक्ताओं का स्वागत करते हुए कहा कि देश की आजादी के 75 साल पर अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है जिसके अंतर्गत पूरे देश में कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। यह कार्यक्रम केवल आजादी के आंदोलन के ऊपर नहीं बल्कि उससे पहले और उसके बाद के कार्यों पर भी केंद्रित हैं। इन कार्यक्रमों के द्वारा अगले 25-30 साल का लक्ष्य निर्धारित कर विकसित भारत का सपना पूरा करना है।

आजादी की लड़ाई में आदिवासियों की भूमिका बहुत अहम रही है -महादेव टोप्पो

वेबिनार के मुख्य अतिथि वक्ता और झारखंड के जाने माने साहित्यकार श्री महादेव टोप्पो ने सबसे पहले शहीदों का जोहार नमन किया और श्याम चरण हेंब्रम जी की कविता “भगना डीहा में क्यों सिंघा बज रहा है?” से शुरुआत की। उन्होंने कहा कि आजादी से पहले झारखंड की प्रशासनिक व्यवस्था स्थानीय राजाओं के साथ थी। अंग्रेज, भारत में अत्याचार करने आए थे जैसे भी हो वह यहां से धन लूटना चाहते थे। झारखंड में भी अंग्रेजों को आदिवासियों के जल जमीन से मतलब नहीं था। अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड का उन्हें क्रूर अनुभव था और उन्हें किसी भी हाल में पैसा कमाना था। झारखंड में बार्टर सिस्टम था जिसे उन्होंने खत्म कर दिया और पैसे के रूप में कर मांगा। साहूकारों ने आदिवासियों की जमीन गिरवी रखी और लोगों को पैसा दिया और बदले में 200% का ब्याज वसूल किया गया। इसी दौर में बुधु भगत जी ने गुरिल्ला युद्ध किया और इतिहास में संभवतः पहला उदाहरण रहा होगा जब एक ही परिवार से 100 से अधिक लोग शहीद हुए। इतिहासकार डॉ पुरुषोत्तम कुमार ने एक लेख में लिखा कि महात्मा गांधी जी ने संभवतः अहिंसा टाना भगत आंदोलन से सीखा था। इस तरह देखें तो आजादी की लड़ाई में आदिवासियों की भूमिका बहुत अहम रही है और आगे देश के विकास में भी आदिवासियों की भूमिका रचनात्मक और सार्थक रहेगी।

डॉ उमेश कुमार, सहायक प्राध्यापक, पीजी विभाग, इतिहास, विनोद बिहारी महतो कोयलांचल यूनिवर्सिटी, धनबाद ने परिचर्चा में हिस्सा लेते हुए कहा कि मैं सर्वप्रथम झारखंड के स्वतंत्रता सेनानियों को जोहार करता हूं – जिन्होंने अपने फसल और जमीन के लिए संघर्ष किया, अंग्रेजी शासकों का विरोध किया और साथ ही एक आदर्श समाज के लिए अपना बलिदान दिया। वर्तमान में इतिहासकारों ने इन आंदोलनों को अलग-अलग तरह से प्रस्तुत किया है। जो अंग्रेजों से सहानुभूति रखते थे, उन्होंने इन आंदोलनों को कानून को भंग करने वाला बताया और जो आदिवासियों से सहानुभूति रखते थे उन्होंने बताया कि यह जनता के अनुभवों का प्रस्फुटन था।

झारखंड के स्वतंत्रता सेनानियों ने संघर्ष के लिए आदर्श का निर्माण किया
अंग्रेजों ने झारखंड में कई परिवर्तन किए। आदिवासियों को जमीन से निकाला, किसानों से राजस्व वसूली की, उन्हें बिचौलियों के चंगुल में फसाया और आदिवासियों के असंतोष को नजरअंदाज किया। अंततः आदिवासियों द्वारा आंदोलन प्रारंभ किया गया। भगवान बिरसा मुंडा ने धर्म की शुद्धता एवं पुरातन संस्था को स्थापित किया, किसानों को संगठित किया और सबको समान अधिकार दिया तो अंग्रेजों ने उन्हें अपराधी करार दिया जबकि झारखंड के स्वतंत्रता सेनानियों ने संघर्ष के लिए आदर्श का निर्माण किया और सभी आंदोलनकारियों ने अपनी पुरातन व्यवस्था को स्थापित करने का प्रयास किया।

झारखंड के महानायकों ने अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए

श्री सुरेश सिंह मुंडा, सहायक प्राध्यापक और प्रमुख, इतिहास विभाग, आर.एस.पी. कॉलेज, झरिया, धनबाद ने बताया कि झारखंड राज्य की स्थापना 15 नवंबर को हुई थी जो भगवान बिरसा मुंडा का जन्म दिन है और उनके द्वारा चलाया गया आंदोलन जनाकांक्षा का प्रतीक था। उस समय बहुत सारी बीमारियां फैल जाती थी जिससे लोगों की अकाल मृत्यु हो जाती थी। उस समय सब की आर्थिक स्थिति भी बहुत खराब थी लेकिन ऐसी विषम परिस्थितियों में झारखंड के महानायकों ने अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए। भगवान बिरसा मुंडा ने अंग्रेजों के खिलाफ तीर धनुष से लड़ाई लड़ी। उससे पहले तिलका मांझी ने अंग्रेजों के विरुद्ध अत्याचार के खिलाफ हथियार उठाए और लेफ्टिनेंट क्लीवलैंड को मार गिराया… जतरा भगत ने गांधी जी के साथ मिलकर स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान दिया।

फूलो- झानो घोड़ों पर बैठकर घर-घर सखुआ की डाली से निमंत्रण देतीं थी

वेबिनार की वरिष्ठ वक्ता डॉ. वीणा शर्मा, सहायक प्राध्यापक, इतिहास विभाग, बोकारो स्टील सिटी कॉलेज ने अपनी बात रखते हुए कहा कि आज हम देश की आजादी की 75 वीं वर्षगांठ मना रहे हैं लेकिन क्या यह इस आजादी को पाना आसान था? झारखंड के स्वाधीनता सेनानियों ने भी इसमें अपना बलिदान दिया, झारखंड के क्रांतिकारी महिलाओं का भी संघर्ष इस में शामिल है। सिद्धू-कान्हु की बहनें फूलो- झानो घोड़ों पर बैठकर घर-घर सखुआ की डाली से निमंत्रण देतीं थी। इन दो बहनों ने एक लड़ाई में कुल्हाड़ी से 21 अंग्रेजों का सर काट दिया था। आजादी की लड़ाई में सभी जातियों ने साथ दिया और अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का शंखनाद किया। झारखंड की महिला क्रांतिकारियों का बलिदान हमेशा याद रखा जाएगा और उनका नाम हमेशा अमर रहेगा।

अगले 75 हफ्ते तक अमृत महोत्सव मनाया जाएगा

इससे पूर्व वेबिनार के आरंभ में क्षेत्रीय प्रचार अधिकारी श्री ओंकार नाथ पाण्डेय ने बताया कि पूरे देश में यह कार्यक्रम विभिन्न प्लेटफार्म के माध्यम से आयोजित किए जा रहे हैं जैसे, ऑन ग्राउंड, वेबीनार, क्विज, पेंटिंग, गीत आदि और इन के माध्यम से हम अपने आजादी के दीवानों की भूमिका को याद कर रहे हैं। 12 मार्च 2021 डांडी मार्च यात्रा के दिन प्रधान मंत्री द्वारा शुरू किए गए इन कार्यक्रमों के जरिए अगले 75 हफ्ते तक अमृत महोत्सव मनाया जाएगा जिसका समापन 15 अगस्त 2023 को होगा ।

वेबिनार का समन्वय एवं संचालन क्षेत्रीय प्रचार अधिकारी श्री ओंकार नाथ पाण्डेय ने किया। वहीं क्षेत्रीय प्रचार अधिकारी श्रीमती महविश रहमान ने सहयोग प्रदान किया। वेबिनार में विशेषज्ञों के अलावा शोधार्थी, छात्र, पीआईबी, आरओबी, एफओबी, दूरदर्शन एवं आकाशवाणी के अधिकारी-कर्मचारियों तथा दूसरे राज्यों के अधिकारी-कर्मचारियों ने भी हिस्सा लिया। गीत एवं नाटक विभाग के अंतर्गत कलाकार एवं सदस्य, आकाशवाणी के पीटीसी, दूरदर्शन के स्ट्रिंगर तथा संपादक और पत्रकार भी शामिल हुए।

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