ग्लोबल गालियों की डिक्शनरी

औरंगजेब और टीपू सुल्तान पर इतना कुछ आ रहा है टीवी पर कि अब हर टीवी चैनल के पास टीपू सुल्तान संवाददाता और औरंगजेब संवाददाता होना चाहिए।

ग्लोबल गालियों की डिक्शनरी

पाकिस्तान के पूर्व आर्मी जनरल बाजवा पेरिस में गालियां खा रहे थे, एक अफगानी जनरल बाजवा को गालियां दे रहा था इस आरोप के साथ कि पाकिस्तानी जनरल से अफगानिस्तान को बर्बाद कर दिया।

पाकिस्तानी जनरलों को अब तक अपने देश में उर्दू में गालियां पड़ती थीं। अब अफगानी भाई ने पश्तो में पेरिस में गालियां दीं। पाकिस्तानी पीएम शहबाज शरीफ बता रहे थे कि वह किसी देश के पीएम, राष्ट्रपति को फोन करते हैं, तो वो लोग फोन ना उठाते, डरते हैं कि भाई पैसे ना मांग ले। शरीफ साहब ने यह ना बताया कि फोन के उस तरफ वाले अपने देश की भाषा में गालियां भी देते हैं-भिखारी रोज सुबह मांगने आ जाता है। एक पाकिस्तानी नेता सऊदी अरब गये थे, तो वहां भी उन्हे लोगों ने गालियां दीं।

दुनिया की हर भाषा में गालियां खाने का जुगाड़ पाकिस्तानी जनरलों ने, पाकिस्तानी नेताओं ने कर लिया है। पाकिस्तानी जनरलों , पाकिस्तान नेता एक काम करें, दुनिया भर की गालियों की वह डिक्शनरी बना सकते हैं, यह काम वो ही कर सकते हैं, क्योंकि उतनी ग्लोबल गालियां किसी और देश के नेता और जनरल ना खाते।

ग्लोबल गालियों की डिक्शनऱी को बेचकर पाकिस्तान दुनिया भर से कमाई कर सकता है।

पाकिस्तान में गालियां चल रही हैं।

इंडिया में औरंगजेब चल रहे हैं। औरंगजेब को लेकर बवाल मचा हुआ है। चुनावों से कुछ पहले औरंगजेब की इलेक्शन ड्यूटी लग जाती है। टीपू सुल्तान की इलेक्शन ड्यूटी लगा दी जाती है। । ऊपर गये लोगों को भी चैन से नहीं बैठने देते, खींच लाते हैं,नीचे के चुनावों में। लोकसभा चुनाव एक साल में होनेवाले हैं। इलेक्शन ड्यूटी नेताओं की लग रही है। वह उनसे मिल रहे हैं,वह उनसे मिल रहे हैं। जिनसे हाथ मिलाना गवारा नहीं था, उनसे मिल रहे हैं। कवि कुंभन दास ने शताब्दियों पहले कहा था- जिनको मुख देखे दुख उपजत, तिनको करिबे परी सलाम यानी जिनका चेहरा देखकर ही दुख उपजने लगता है, उन्हे सलाम करना पड़ता है। ममता बनर्जी राहुल गांधी के नेताओं को तोड़कर अपनी पार्टी में ले आती हैं, ऐसी ममता बनर्जी से कांग्रेस के नेताओं को मिलना पड़े, समझौता वार्ता चलानी पड़े, तो दुख तो होता ही है। पर सत्ता की सीकरी की राह में उन्हे भी सलाम करना होता है, जिनके चेहरे को देखकर सिर्फ दुख पैदा होता है। कुंभनदास कवि-संत थे तो कह सके- संतन को कहा सीकरी सों काम?। निकल आये सत्ता की सीकरी के चक्कर में ना पड़े। पर नेताओं का तो जीवन ही सीकरी है, जीवन से बाहर कोई कैसे आ सकता है।

एक टीवी चैनल पर औरंगजेब और टीपू सुल्तान पर ज्ञान बंट रहा था। मैंने निवेदन किया कि इन पर जो भी बोले, तथ्यों के साथ बोले, पढ़कर लिख कर बोले, बहुत संवेदनशील मामले हैं इनके। औरंगजेब और टीपू सुल्तान पर इतना कुछ आ रहा है टीवी पर कि अब हर टीवी चैनल के पास टीपू सुल्तान संवाददाता और औरंगजेब संवाददाता होना चाहिए। इन पर लिखने से पहले इन्हे पढ़ लेना बेहतर है। इतिहासकार जदुनाथ सरकार ने औरंगजेब पर पांच वोल्यूम की बहुत विराट किताब लिखी है, उसे पढ लेना चाहिए औरंगजेब संवाददाता बनने से पहले –यह ज्ञान मैंने एक टीवी चैनल के चीफ को दिया तो उसने सवाल किया कि इतना टाइम पढ़ने में वेस्ट कर देंगे, तो भानगढ़ किले का भूत कब दिखायेंगे। अब आप ही बताइए इस सवाल का कोई क्या जवाब दे सकता है.