शोभा के स्टैंडर्ड

अद्भुत समाज बना है यह- अशोभनीय आचरणवाला नेता फुल शोभा है, और बेचारा फोन पुराना भर होने से अशोभनीय हो जाता है।

शोभा के स्टैंडर्ड


आलोक पुराणिक

बड़े दिनों बाद पुरानी स्टाइल का एक निमंत्रण-पत्र मिला, जिसमें लिखा था कि आप आइये हमारे आयोजन में शोभा बढ़ाने के लिए। शोभा बढ़ाने के लिए बुलानेवाले निमंत्रण-पत्र अब कम हो गये हैं। पहले लगभग हर निमंत्रण-पत्र में यही दर्ज होता था कि प्लीज आइये हमारे आयोजन की शोभा बढ़ जायेगी।

अब शोभा बढ़ाने की बात नहीं होती, बस यह सा दर्ज होता है-आ जाइये। जैसे निमंत्रण-पत्र कह रहा हो कि आ जाइये, शोभा-वोभा की कोई बात नहीं है।

शोभाओं ने अर्थ खो दिया है दरअसल।

बरसों पहले रहा होगा कुछ इस तरह का विचार कि किसी नामी-गिरामी बंदे को बुलाओ, तो अपने आयोजन की शोभा बढ़ जायेगी। चार लोग कहेंगे देखो कि बुलानेवाला सच में दमदार, रसूखदार आदमी है, कितने शोभाशाली बंदे को बुलाया है। पर बाद के बरसों में तो यह हुआ कि जितना अशोभनीय आचरणवाला बंदा हुआ, वह समाज में उत्ता बड़ा शोभाशाली बंदा मान लिया गया।

कई बेईमान नेताओं को कई आयोजनों में शोभा बढ़ाने सिर्फ इसलिए बुला लिया जाता है कि ये ब्लैक कैट कमांडो के साथ आयेंगे, तो कार्यक्रम की शोभा बढ़ जायेगी। कई काला बाजारियों को बतौर मुख्य-अतिथि इसलिए शोभा बढ़ाने के लिए बुलाया जाता है कि वह किसी धार्मिक आयोजनों में लाखों का चंदा दे देते हैं।

संत महाराज मंच से प्रवचन दे रहे हैं कि अनुचित आचरण नहीं करना चाहिए। नीचे प्रवचन के स्पांसर काला बाजारी मन ही मन कह रहे हैं-महाराज ये महान बातें बताने के लिए आप इतनी रकम वसूलते हो कि उचित आचरणवाला बंदा तो अफोर्ड ही ना कर सकता। उसकी अफोर्डनीयता प्याज-दाल पर खत्म हो जाती है। मैं ही अफोर्ड कर सकू हूं आपको, सो कार्यक्रम की शोभा उर्फ मुख्य-अतिथि बना बैठा हूं यहां।

अशोभनीय आचरण वाला बंदा शोभा हो गया है।

शोभनीय आचरणवाले से उसकी बीबी ही नाराज रहती है-तुमसे कुछ ना हो पायेगा। पास इनकम टैक्स बाबू को देखो, हर साल दुबई शापिंग ले जाता है, अपनी बीबी को। तुम लोकल प्याज-दाल की शापिंग में हाथ खड़े कर देते हो।

शोभाओं के मामले बहुत बदल गये हैं।

जिसकी शोभा कल थोड़ी-बहुत थी, उसकी शोभा अब बिलकुल खत्म हो गयी है।

मेरे पास एक पुराना फोन था पांच साल पुराना, बढ़िया काम कर रहा था।

एक आफिस में दोस्त से मिलने गया, तो मैंने वह फोन टेबल रख दिया।

मित्र असहज होकर बोला-प्लीज इस फोन को जेब में रख लो। सबका यही इंप्रेशन बनेगा कि कितना चिरकुट है इसका दोस्त, पांच साल पुराने इस फोन पर ही अटका हुआ है।
फिर मुझे समझ आया कि अगर लेटेस्ट चाल का एक लाखवाला फोन टेबल पर रखकर बैठता, तो मेरा मित्र मुझे शोभा मान लेता। अभी तो मेरा फोन अशोभनीय हो गया है।

अद्भुत समाज बना है यह- अशोभनीय आचरणवाला नेता फुल शोभा है, और बेचारा फोन पुराना भर होने से अशोभनीय हो जाता है।

शोभाएं बहुत तेजी से गतिशील हो रही हैं। अशोभनीय बंदे शोभा बन रहे हैं, मुख्य अतिथि बन रहे हैं, तो समझदारों ने सोचा होगा-छोड़ो निमंत्रण-पत्रों में शोभा बढ़ानेवाली बात लिखना बंद कर दो। सिर्फ बुला लो, निमंत्रण-पत्र यह आशय भर दें कि भाई आ जाओ, जैसे हो। क्या करें। तुम्हे ना बुलायेंगे, किसी और को बुलायेंगे, वो भी तुम ही जैसा होगा। तुमसे ज्यादा अशोभनीय हो सकता है। सो आ जाओ, कोई विकल्प नहीं है। फंक्शन में किसी मंत्री के आने से शोभा बढ़ जाती है। सिंचाई मंत्री को ना बुलाकर खाद्य मंत्री को बुलाने का विकल्प है, घपलों के आरोप दोनों पर हैं। पर दोनों के पास ब्लैक-कैट कमांडो हैं, जिनसे आयोजन की शोभा एक झटके में बढ़ जाती है।

शोभा बढ़ानी हो, तो फिर क्या घपला देखना। बुला लो।

शोभा बढ़ाना अब हरेक बूते की बात ना रही।

खैर मुझे भेजे गये निमंत्रण-पत्र में लिखा है कि शोभा बढ़ाने को आइये।

फोन मेरे पास अभी भी पुराना ही है, इससे शोभा कम तो ना हो जायेगी और टू व्हीलर से जाने की योजना है। इससे मेजबान की शोभा एकदम गढ्ढे में तो ना घुस जायेगी। शोभा के मामले हैं, पूछना पड़ता है।

चलूं दोस्त से पूछूं-मेरे इन आइटमों के साथ आने की परमीशन है ना।