लंबोदर पाठक की राजनीति जन सेवा और समाजोत्थान को समर्पित रहा था
लंबोदर पाठक बहुत ही कम समय में कांग्रेस पार्टी के एक कर्मठ कार्यकर्ता के रूप में अपनी पहचान बनाने में सफल रहे थे । वे कांग्रेस पार्टी द्वारा आयोजित होने वाली जनसभाओं में धारा प्रवाह अपनी बातों को रखा करते थे ।

हजारीबाग के जाने-माने समाजसेवी कांग्रेस पार्टी के नेता लंबोदर पाठक का संपूर्ण जीवन समाजोत्थान, जन सेवा और मंदिर के जीर्णोद्धार को समर्पित रहा था । उनका जन्म स्वाधीनता आंदोलन के दौरान 18 अक्टूबर 1935 को हजारीबाग के ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता भगवान नरसिंह के एक बड़े भक्त के रूप में जाने जाते थे। उनकी माता जी भी बहुत ही धर्म परायण महिला थी । एक धार्मिक परिवेश के बीच उनका पालन पोषण हुआ था । लंबोदर पाठक अपने माता-पिता से काफी प्रभावित थे। उनका बचपन से ही धर्म और अध्यात्म के प्रति गहरा लगाव रहा था। उनका यह लगाव जीवन के अंतिम क्षणों तक बना रहा था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा हजारीबाग के मिशन स्कूल और महाविद्यालय की शिक्षा संत कोलंबा महाविद्यालय से पूरी हुई थी । वे बचपन से ही एक मेघावी विद्यार्थी रहे थे। स्कूलिंग के दौरान उन्हें हमेशा अपने शिक्षकों से काफी सराहना मिलती रही थी। महाविद्यालय के शिक्षण के दौरान ही उनका छात्र संघ से जुड़ाव हो गया था।
वे एक अनुशासन प्रिय व्यक्ति थे। इसके साथ ही एक स्पष्ट वक्ता के रूप में अपनी पहचान बनाने में सफल रहे थे । उन्होंने आजीवन असत्य का प्रतिकार किया और सत्य को आत्मसात किया था। उन्होंने विपरीत परिस्थितियों में भी सत्य का दामन कभी नहीं छोड़ा। वे स्कूलिंग के दौरान अपनी पढ़ाई का खर्चा पूरा करने के लिए होम ट्यूशन भी दिया करते थे। उन्होंने कड़ी मेहनत कर स्कूलिंग और महाविद्यालय की शिक्षा पूरी की थी। उनका अखिल भारतीय कांग्रेस पार्टी की राजनीति में प्रवेश 1957 में हुआ था। तब देश के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू थे । लंबोदर पाठक बहुत ही कम समय में कांग्रेस पार्टी के एक कर्मठ कार्यकर्ता के रूप में अपनी पहचान बनाने में सफल रहे थे । वे कांग्रेस पार्टी द्वारा आयोजित होने वाली जनसभाओं में धारा प्रवाह अपनी बातों को रखा करते थे ।उनकी सभाओं में हजारों की संख्या में भीड़ जुटने लगी थी। वे पांच - छः वर्षों के दौरान ही एकीकृत बिहार में कांग्रेस पार्टी के युवा नेता के रूप में जाना जाने लगे थे। बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री बिंदेश्वरी दुबे एक युवा नेता के रूप में लंबोदर पाठक का बहुत ही सम्मान किया करते थे । उन्हें कांग्रेस पार्टी की राजनीति में हमेशा बिंदेश्वरी दुबे से मार्ग निर्देशन प्राप्त होता रहता था। लंबोदर पाठक भी बिंदेश्वरी दुबे को बहुत ही सम्मान किया करते थे। बिंदेश्वरी दुबे और लंबोदर पाठक के बीच बड़े भाई और छोटे भाई के साथ दोस्ताना संबंध भी थे । इस बात को कांग्रेस के तमाम बड़े नेता भी जानते थे।
कांग्रेस पार्टी की राजनीति करते हुए वे सर्वप्रथम कटकमसांडी मुखिया बने थे। वे इस पद पर रहकर समाज के अंतिम व्यक्ति तक सरकार द्वारा प्रदत्त लाभ को पहुंचाने का काम किया था। उन्होंने इस दौरान कई गरीब बच्चों की शिक्षा रुक नहीं, इसलिए खुद के पैसे से उनकी पढ़ाई जारी रखे थे। वे गरीब बच्चियों की शादी में खुद से पैसे खर्च कर शादियां कराया करते थे। बतौर एक मुखिया के रूप में जब जन समस्याओं को लेकर संबंधित ब्लॉक के आला अधिकारियों मिलते थे, तब उनकी बातों को बड़े ही ध्यान से आला अधिकारी सुनकर तत्क्षण फाइल पर कार्रवाई कर दिया करते थे। मुखिया के बाद वे प्रमुख बने थे। इस पद पर रहकर भी उन्होंने जनसेवा को ही आत्मसात किया था । अर्थात कांग्रेस पार्टी की राजनीति उनके जीवन का एक जन सेवा संकल्प के समान था। आज के नेताओं को लंबोदर पाठक की राजनीति से जनसेवा की जा सकती है ? यह सीख लेनी चाहिए।
एकीकृत बिहार में लंबोदर पाठक हजारीबाग जिला परिषद के अध्यक्ष निर्वाचित हुए थे। इस पद पर निर्वाचित होने के लिए उन्हें कड़े राजनीतिक संघर्ष से गुजरना पड़ा था। वे मजबूत जनाधार और साफ सुथरी छवि के कारण ही जिला परिषद के अध्यक्ष निर्वाचित हो पाए थे। वे 18 वर्षों तक इस पद पर रहे थे । तब हजारीबाग जिला परिषद के अधीन हजारीबाग, गिरीडीह, रामगढ़, कोडरमा, चतरा,गिरिडीह आदि जिले शामिल थे। हजारीबाग जिला परिषद का अध्यक्ष निर्वाचित होना किसी भी मायने में एक मंत्री से कम का रुतबा नहीं था। वे इस पद पर रहकर उसी तरह सहज और सरल बने रहे थे । उन्होंने जिला परिषद के अध्यक्ष के रूप में परिषद के अधीनस्थ जिलों में विकास की गंगा बहा दी थी। इसके पूर्व किसी भी अध्यक्ष ने इनके जैसा विकास का कार्य नहीं किया था। उन्होंने विकास के हर कार्य पूरी सफलता के साथ किया था । उन्होंने इस पद पर रहकर कभी भी कोई हेरा फेरी नहीं की बल्कि अपना ही रुपया लगाकर जन सेवा के कार्य को आगे बढ़ाया था। उनकी साफ-सुथरी छवि के कारण ही जिला कलेक्टर सहित अन्य आला अधिकारी भी सम्मान किया करते थे।
उन्होंने पहली बार 1985 में बरकट्ठा विधानसभा का चुनाव कांग्रेस पार्टी की टिकट से चुनाव लड़ा था। वे इस चुनाव में विजयी घोषित हुए थे। वे अपने पांच वर्षों के कार्यकाल के दौरान बरकट्ठा विधानसभा की खूब खिदमत की थी। आज भी लोग उस कालखंड की लंबोदर पाठक की सेवा को याद कर फूले नहीं समाते हैं । लंबोदर पाठक एक विधायक के तौर पर बरकट्ठा विधानसभा में बहुत ही ख्याति अर्जित की थी । उन्होंने बतौर एक विधायक के रूप में कभी जातिवाद नहीं किया।वे समाज के सभी वर्ग के लोगों के बीच सामंजस्य बनी रहे, इस दायित्व का निर्वहन किया था। उन्होंने 1990 में बड़का गांव विधानसभा का चुनाव कांग्रेस पार्टी की टिकट से लड़ा था। लेकिन वे इस चुनाव में हार गए थे। 2000 में कांग्रेस पार्टी की टिकट पर हजारीबाग विधानसभा का चुनाव लड़े थे । इस चुनाव में भी वे भाजपा के नेता देव दयाल कुशवाहा से चुनाव हार गए थे। दो-दो बार चुनाव में जीत नहीं मिलने के बावजूद उनके व्यवहार में कोई कमी नहीं आई थी। वे इस विपरीत परिस्थिति में भी उसी तरह सहज और सरल बने रहे थे । प्रतिदिन सैकड़ो की संख्या में लोग अपने-अपने कामों के लिए उनके घर दस्तक देते रहते थे। वे क्रमवार सब की बातों को सुनते थे। यथासंभव उनसे जो भी बन पड़ता था, सहयोग किया करते थे। वे बिना विधायक के भी विधायक थे। 2002 में अखिल भारतीय पंचायत परिषद का उन्हें अध्यक्ष निर्वाचित किया गया था। वे मृत्यु से पूर्व तक इस पद पर रहे। यह पद काफी सम्मान का है । इस पद पर भी रहकर उन्होंने एक अपनी नई छवि निर्मित की थी । आज भी उनके उस कालखंड को याद कर नेता व कार्यकर्ता गण का फूले नहीं समाते हैं।
कांग्रेस पार्टी की राजनीति करते उन्होंने उसी मजबूती के साथ धर्म व आध्यात्मिक के सूत्र को पकड़े रखा था। शिव के भक्ति होने के नाते वे हमेशा कांवड़ लेकर बाबा बैजनाथ धाम की पैदल यात्रा किया करते थे। बाबा बैजनाथ धाम के मंदिर में भक्तों द्वारा अर्पित बेलपत्र - फुल जो काफी संख्या में जमा जाया करते थे । वे उसकी सफाई बड़े ही मन से किया करते थे । जब तक उनके शरीर में शक्ति रही, वे बाबा बैजनाथ का दर्शन करते रहे थे । उन्होंने आपने पैसे से बैजनाथ धाम में तीर्थ यात्रियों की सुविधा के लिए एक पाठक धर्मशाला का निर्माण किया था। यहीं से उन्होंने पुराने मंदिरों के जीर्णोद्धार का संकल्प लिया था।
उन्होंने अपने पैसे से हजारीबाग मंगल बाजार स्थित सतनारायण मंदिर का जीर्णोद्धार किया था। अगर उस समय उक्त मंदिर का जिर्णोद्धार नहीं किया गया होता तो वह मंदिर अब तक गिर चुका होता। इसके साथ ही उन्होंने टाटी झरिया के मंदिर सहित कई मंदिरों का पूर्ण रूपेण जीर्णोद्धार किया था। हजारीबाग स्थित नरसिंह मंदिर का इतिहास साढ़े चार सौ वर्ष पुराना है । यह मंदिर पूरे प्रांत में एक खास स्थान रखता है। इस मंदिर का पर्यटन की दृष्टि से भी बहुत ही महत्व है। इस मंदिर का भी जर्जर हाल हो गया था। तब लंबोदर पाठक ने यह संकल्प लिया कि इस मंदिर का खुद के खर्चे से जीर्णोधार करूंगा । लेकिन भगवान नरसिंह ने उनके इस संकल्प को स्वीकार नहीं किया था। तब लंबोदर पाठक ने 1995 में भगवान नरसिंह की प्रतिमा के समक्ष यह संकल्प लिया कि सबके सहयोग से मंदिर का जीर्णोद्धार किया जाएगा। तब भगवान नरसिंह की प्रतिमा से पुष्प नीचे गिरकर जीर्णोद्धार की स्वीकृति प्रदान की थी। उन्होंने ग्रामीण वासियों से सहयोग के रूप कुछ-कुछ धनराशि संग्रहित कर शेष राशि खुद से अर्पित कर नरसिंह मंदिर का पूर्ण रूपेण जीर्णोद्धार किया था । इसके साथ ही उन्होंने इस परिसर में अन्य कई देवालयों का भी निर्माण किया था। लंबोदर पाठक की राजनीति के जन सेवा और मंदिर जीर्णोद्धार को समर्पित रहा था । 72 वर्ष की उम्र में 8 अक्टूबर 2007 को उनका निधन हुआ था । वे हमेशा लोगों के दिलों में रहेंगे। उनकी राजनीति और जन सेवा से समाज की हर वर्ग के लोगों को सीख लेनी चाहिए।