शब्दवीणा की महाराष्ट्र प्रदेश इकाई द्वारा मासिक काव्यगोष्ठी का आयोजन, बादलों के पंख लेकर, नाचता मन आज मेरा, मर्यादा में पले प्रेम ने कभी न की अपनी मनमानी, बजे बांसुरी, बाजे मीठी-सी धुन, इंतजार की घड़ियाँ बीतीं, नभमंडल में छाये बादल
शब्दवीणा की महाराष्ट्र प्रदेश इकाई द्वारा मासिक काव्यगोष्ठी का आयोजन, बादलों के पंख लेकर, नाचता मन आज मेरा, मर्यादा में पले प्रेम ने कभी न की अपनी मनमानी, बजे बांसुरी, बाजे मीठी-सी धुन, इंतजार की घड़ियाँ बीतीं, नभमंडल में छाये बादल

गयाजी । राष्ट्रीय साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था शब्दवीणा की महाराष्ट्र प्रदेश समिति के संयोजन में आयोजित मासिक काव्यगोष्ठी में देश के विभिन्न प्रदेशों से जाने-माने कवियों ने मन मोह लेने वाली रचनाएँ पढ़ीं। कार्यक्रम का शुभारंभ शब्दवीणा महाराष्ट्र प्रदेश संरक्षक प्रो. डॉ. कनक लता तिवारी द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना से हुआ। शब्दवीणा की संस्थापक एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रो. डॉ. रश्मि प्रियदर्शनी ने आमंंत्रित रचनाकारों का संक्षिप्त परिचय देते हुए कार्यक्रम में स्वागत किया। आशीष प्रदाता के रूप में शब्दवीणा के राष्ट्रीय परामर्शदाता पुरुषोत्तम तिवारी ने पावन हुगली नदी के घाट से हार्दिक शुभकामनाएं दीं। मुख्य अतिथि के रूप में आमंंत्रित वाराणसी के वरिष्ठ कवि हौसला प्रसाद अन्वेषी ने कार्यक्रम की सराहना करते हुए कहा कि आज 'शब्दवीणा' संस्था एक अत्यंत समृद्ध साहित्यिक संस्था मंच बन गयी है और यह राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित कर रही है। विशिष्ट अतिथि कवयित्री बिट्टू जैन सना ने भी बधाइयाँ प्रेषित कीं। काव्यगोष्ठी में कवि हौसला प्रसाद अन्वेषी, डॉ. कनक लता तिवारी, डॉ. रश्मि प्रियदर्शनी, लक्ष्मी यादव ओजस्विनी, प्रतिष्ठा श्याम, जैनेन्द्र कुमार मालवीय, दीपक कुमार, पल्लवी रानी, श्रीधर मिश्रा, डॉ शिप्रा मिश्रा, प्रणत अंशुमान, ज्ञानेन्द्र मोहन ज्ञान, सुनीता सैनी गुड्डी, विजयेन्द्र सैनी, ताज मोहम्मद सिद्दीकी, जागृति सिन्हा, अरुण अपेक्षित, रमेश चंद्र, फतेहपाल सिंह सारंग, रामदेव शर्मा राही, विनोद बरबिगहिया, अरविंद कुमार ने सावन, बारिश, बादल, हरियाली, देशप्रेम, शिवभक्ति, नारी उत्थान, पिता आदि विषयों पर एक से बढ़कर एक गीत, ग़ज़ल, सवैया छंद, मुक्तक, दोहे एवं चौपाइयों की प्रस्तुतियाँ दीं। श्री अन्वेषी की रचना "वतन की सुरक्षा बहुत है जरूरी, यही बात सबको पढ़ाने चले हम। वातावरण में ज़हर घुल गया है, यही बात सबको बताने चले हम" पर खूब वाहवाहियाँ मिलीं। डॉ कनक लता की "बजे बांसुरी, बाजे मीठी-सी धुन। पिया तेरी धुन पर, हुई मैं मगन", डॉ रश्मि की "इंतजार की घड़ियाँ बीतीं, नभमंडल में छाये बादल। जग वालों की पीड़ा हरने, लहर-लहर लहराये बादल", प्रणत अंशुमान की "बादलों के पंख लेकर, नाचता मन आज मेरा। क्या करूं, किस देश जाऊँ, किस नगर में लूं बसेरा" जैसी रचनाओं की सुमधुर प्रस्तुतियों ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर डाला। डॉ शिप्रा मिश्रा की "अपनी अनुभूतियों को सीख लिया है छुपाना मैंने", प्रतिष्ठा श्याम की "गुलाबों के बीच एक किस्सा मशहूर हो गया। किसी के रूप की ख्वाहिश में वह भौंरा जग से दूर हो गया", पल्लवी रानी की "जब-जब बिजुरी चमके नभ में, मन मोरा घबराये। साजन तुम ना आये" रचनाओं पर खूब वाहवाहियाँ लगीं। जैनेन्द्र कुमार मालवीय की "बार-बार मैं तुझे पुकारूं, जाके तेरे द्वार, तेरे बिन भोला लागे ना जियरा हमार", सुनीता सैनी गुड्डी की "सावन का महीना सुहाना, बहनों जमकर मनाना", दीपक कुमार की "अहसासों में रही अंकुरित प्रतिक्षण मेरी प्रेम कहानी। मर्यादा में पले प्रेम ने कभी न की अपनी मनमानी", रामदेव शर्मा राही की "पिता के चरणों की धूलि लगाकर, ज़माने में बढ़ता है, रुतबा हमारा", फतेहपाल सिंह सारंग की "घूंघट के पट खोल सखी" एवं ज्ञानेन्द्र मोहन ज्ञान की "संबंधों के मधुर गीत आखिर कैसे गाते। बहुत पास से देख लिए हैं सब रिश्ते-नाते" पंक्तियों को खूब सराहना मिली। कार्यक्रम का सीधा प्रसारण शब्दवीणा केन्द्रीय पेज से किया गया, जिससे राम नाथ बेखबर, आनंद दधीचि, डॉ रवि प्रकाश, प्यारचन्द कुमार मोहन, प्रो. सुनील कुमार उपाध्याय, ललित शंकर, डॉ विजय शंकर, सरोज कुमार, सुरेश विद्यार्थी एवं अन्य साहित्यानुरागी श्रोता रचनाकारों का अपनी टिप्पणियों द्वारा उत्साहवर्द्धन करते रहे।