झूठ-फ्रेंडली तकनीक की ओर
कुछ दिनों में गूगल से कुछ इस तरह की सूचनाएं भी मिलने लगेंगी -आपकी गर्लफ्रेंड उस रास्ते पर जा रही है, पर आज उसके साथ जाने में बहुत खतरा है, क्योंकि हमारी जानकारी के हिसाब से उसके तीनों पहलवान भाई, चारों पहलवान चाचा भी उसी रुट से गुजर रहे हैं।
गूगल ने बताया कि जिस रास्ते पर आप रोज जाते हैं, उस रास्ते पर ट्रेफिक जाम है, रोज 28 मिनट लगते हैं, आज 50 मिनट लगने का अनुमान है। कुछ दिनों में गूगल से कुछ इस तरह की सूचनाएं भी मिलने लगेंगी -आपकी गर्लफ्रेंड उस रास्ते पर जा रही है, पर आज उसके साथ जाने में बहुत खतरा है, क्योंकि हमारी जानकारी के हिसाब से उसके तीनों पहलवान भाई, चारों पहलवान चाचा भी उसी रुट से गुजर रहे हैं। गूगल को सब पता है। जितना हमारे बारे में हमारी मांएं ना जानतीं, उतना गूगल को पता है। ज्ञान का अतिरेक घातक हो जाता है।
लेट पहुंचने पर कोई बास को बताये कि जी उस रास्ते पर विकट जाम था, तीन घंटे फंसा रहा, तो बास का जवाब हो सकता है-झूठ बोल रहे हैं। मैंने अपने सारे कर्मचारियों के रूट गूगल में फिक्स कर रखे हैं, गूगल से पता चल जाता है कि किस रोड पर कितना ट्रेफिक है, कितना टाइम लगना है।
गूगल ने एक बुनियादी मानवाधिकार का हनन कर डाला है। झूठ बोलना मानवाधिकार है इसलिए कि सिर्फ मानव ही झूठ बोलता है। कुत्ते या शेर को झूठ बोलते नहीं देखा गया। गूगल ने झूठ बोलना बहुतै मुश्किल कर दिया है। गूगल पकड़वा देता है। बंदा कायदे से झूठ ही नहीं बोल सकता।
मेरे मित्र अपने एक मित्र के साथ फिल्म देखने जानेवाले थे। आनलाइन टिकट बुक कराया था, जीमेल के जरिये टिकट आया था। गूगल को यह बात पता थी। फिल्म के आधे घंटे पहले मोबाइल पर मैसेज आने लगा-निकलिये घर से थियेटर की दूरी आधे घंटे की है। बीबी ने पिटाई इस मित्र की, मित्र ने घर पर बताया था कि शाम को सत्संग में जाना है। बीबी ने कुटाई के बाद पूछा-संसार की किस भाषा में फिल्म का मतलब सत्संग होता है। इस सवाल का जवाब तो गूगल के पास भी ना होगा।
गूगल को सब पता है और गूगल तो सब कुछ बताने का शौक भी है। अज्ञान मरवा देता है, यह बात तो पुरानी हो गयी है, अब गूगल के जमाने में ज्ञान भी मरवाने के इंतजाम कर रहा है।
टेक्नोलोजी को झूठ-फ्रेंडली होना चाहिए, वरना पिटाई के खतरे बने रहेंगे।
जैसे यूं हो कि बंदा फिल्म की टिकट बुक कराये, पर उसके पास मैसेज यह आये कि आपके सत्संग में जाने का वक्त हो गया है। सत्संग के लिए निकलिये ना। बंदा शराब पीने के लिए कोई बार में बुकिंग कराये, तो तय समय पर बार से मैसेज आयें-भजन कार्यक्रम शुरु होनेवाला है, जल्दी आकर पुण्य-लाभ हासिल करें।
इतनी झूठ-फ्रेंडली हो जाये तकनीक तो ही माना जा सकता है कि तकनीक इंसान के करीब हो रही है। तकनीक में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के क्षेत्र में शोध कार्य चल रहे हैं, उनमें सबसे बड़ी समस्या यही आ रही है कि इंसान की तरह रोबोट सोच ही नहीं पा रहे हैं। इंसान तो मौके के मुताबिक झूठ बोल सकता है। मौके के मुताबिक नये झूठ भी गढ़ सकता है। पर रोबोट इतने इंटेलीजेंट कैसे हो जायें कि मौके के मुताबिक झूठ बोल दें। झूठ ही ना बोल पाये रोबोट तो उसे इंसान जैसा इंटेलीजेंट कैसे माना जा सकता है।
रोबोट की तरह इंसान सच्चे जवाब देने लग जाये, तो कई जवाब यह होंगे कि दिन भर कई घंटे मैं फेसबुक, इंटरनेट पर टाइम वेस्ट करता हूं। फर्जी आईडी बनाकर फेसबुक पर शीला के नाम से कई पुरुषों को फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजता हूं।
पर रोबोट तो साफ कह देगा-मैं बहुत झूठ बोलता हूं। जब लोग समझते हैं कि मैं लैपटाप पर काम करता हूं, तब दरअसल मैं फेसबुक पर फालतू की चैट कर रहा था। जब सब लोग समझ रहे थे कि मैं एप्पल कंपनी के संस्थापक स्टीव जोब्स के भाषण सुन रहा था, तब मैं दरअसल सन्नी लियोनी के वीडियो देख रहा था।
हद से हद रोबोट यह कर सकता है कि सन्नी लियोनी के हर भाषण को स्टीव जोब्स का भाषण बता दे। पर तब दूसरी समस्याएं पैदा हो जायेंगी। फिर रोबोट बताने लगेगा कि मैं रोज सुबह एक घंटा स्टीव जोब्स के वीडियो देखता हूं। फिर चार बजे स्टीव जोब्स का वीडियो देखता हूं। फिर रात को ग्यारह बजे स्टीव जोब्स के वीडियो देखता हूं।
सब लोग रोबोट की बातें सुनकर चकरा जायेंगे कि भई स्टीवी जोब्स जैसे इतने महान बंदे के इतने वीडियो देखता है यह, फिर भी इसका काम बेहतर क्यों नहीं हो रहा है। ऊपर स्वर्ग में स्वीटी जोब्स की आत्मा भी नीचे रोबोट की इस हरकत का बुरा मान सकती है कि सन्नी लियोनी के खाते का वक्त उनके खाते में लिखा जा रहा है।
मसले बहुत हैं।
तकनीक ने आफतें विकट कर दी हैं, बहुत चुनौतियां खड़ी कर दी हैं। पर मैं तकनीक का फुल विकास तब ही मानूंगा, जब तकनीक झूठ-फ्रेंडली हो जायेगी। ना सिर्फ झूठ फ्रेंडली हो जायेगी, बल्कि एडवांस्ड किस्म के झूठ खुद ही गढ़कर पेश भी करने लग जायेगी। बिना झूठा हुए इंसान ना हुआ जा सकता। जो झूठ नहीं बोल सकता, वह गधा या कुत्ता या शेर भी हो सकता है, इंसान नहीं हो सकता।
गूगलवालो सुन रहे हो या न बात, जब तक झूठ-फ्रेंडली तकनीक ना हो जाये, तब तक प्लीज कुछ कम बताना शुरु करो। इतना ज्ञान, इतना सच हम झेल ना सकते जी।