नार्मलत्व की ओर
सामान्य स्थिति वह होती है, जब थाना, तहसील, किसी सरकारी दफ्तर में आम आदमी रिश्वत की रेट से परेशान हो, कोरोना से परेशान ना हो।स्थितियां नार्मल हो रही हैं-यह बात मैंने एक बैंड बाजा कारोबारी से कही, तो वह बरस पड़ा-क्या खाक नार्मल हो रही हैं।
बहुत हफ्तों बाद टीवी खोलकर वह सीरियल देखा, तो उसका एक अभिनेता उसी पुराने काम में जुटा था, जो वह कई बरसों से कर रहा था-धन के लालच में किसी लड़की को फंसा रहा था। कईयों को वह फंसा चुका था, अब सीरियल कई हफ्तों बाद शुरु हुआ, तो भी भाई अपने प्रिय काम में लगा हुआ था।करीब पांच साल से यह भाई यह काम कर रहा है। उसे यह काम करते हुए देखना चाहते हैं दर्शक। बीच में इस भाई ने कुछ भले आदमियों वाले काम शुरु किये थे। कुछ शराफत का रुख अपनाया था। तो पब्लिक ने डिमांड कर दी – ना , ये अच्छा ना लग रहा है। पुरानी स्टाइल में ही जमता था वह, सो वह फिर पुरानी हरकतों पर आ गया। पब्लिक भी कई बार किसी को भला मानस ना होने देती। खैर तो वह भाई लाकडाऊन के बाद नार्मलत्व की ओर आ लिया है और बदचलनी की राह पर पुरानी रफ्तार से दौड़ पड़ा है। उस सीरियल को देखने वाले भी नार्मल महसूस कर रहे हैं कि पुरानी बदचलनी के नार्मल टाइप दिन आ गये हैं।
मुझे अहसास हुआ कि अब मामला नार्मलत्व की ओर अग्रसर हो रहा है। सभी अपने अपने पुराने कामों में जुट रहे हैं। अभी खबर देखी – प्रेमी के साथ मिलकर पति की हत्या – टाइप पांच खबरें थीं – मामला नार्मलत्व की ओर जा रहा है। मदद अस्पताल में भरती होने के लिए ना मांगी जा रही है, पति को निपटाने के लिए मांगी जा रही है, तो समझना चाहिए कि स्थितियां सामान्य होती जा रही हैं। प्रेमी की मदद से पति की हत्या या प्रेमिका की मदद से पत्नी की हत्या-टाइप खबरें आम दिनों की खबरें हैं, लाकडाऊन में प्रेमी और प्रेमिका थोड़े रुके हुए थे।
अब हालात नार्मल हो रहे हैं। तेजी से नार्मल से हो रहे हैं, बल्कि मुझे तो डर है कि नार्मलता फुल भक्काटे के साथ मच रही है। सामान्य स्थिति तेजी से लौट रही है।वैसे सामान्य स्थिति होती क्या है? सामान्य स्थिति वह होती है, जब थाना, तहसील, किसी सरकारी दफ्तर में आम आदमी रिश्वत की रेट से परेशान हो, कोरोना से परेशान ना हो।स्थितियां नार्मल हो रही हैं-यह बात मैंने एक बैंड बाजा कारोबारी से कही, तो वह बरस पड़ा-क्या खाक नार्मल हो रही हैं! पब्लिक एकदम साधु टाइप हो गयी है, कोई घोड़ी नहीं चाहिए, कोई बैंड बाजा नहीं चाहिए। शादियों और शवय़ात्रा का फर्क ही मिट गया है। शादियां ठीक वैसी हो रही हैं, जैसी शादियों की कल्पना हमारे समाज सुधारक लोग करते रहे हैं। कोई फिजूलखर्ची नहीं हो, बहुत कम लोग शादियों मे शामिल हों। शराब पर खर्च ना हो, सादा खाना बनाया जाये।पर शादियों में फिजूलखर्जी रुक जाये तो बहुत बेरोजगारी फैल जाती है। एक टीवी चैनल पर एक मेंहदी कलाकार बता रही थी कि मैं पहले मेंहदी लगाकर एक ही शादी में एक लाख कमा लेती थी। अब तो एक लाख में दो पूरी शादियां ही निपट रही हैं। जितने में मेंहदी निपट रही थी, उतने में दो शादियां निपट रही हैं। भारतीय शादियों में फिजूलखर्ची रुक जाये, तो बहुत बेरोजगारी फैल लेती है। मैंने बैंड-बाजेवाले से कहा-ऐसा मत बोलो-शादियों और शवय़ात्राओं की तुलना ना करो। शादियों में पचास तक लोग आ रहे हैं, हिंदी लेखक मर ले, तो दो ना जुटते, क्योंकि बच्चे विदेश सैटल हो लिये होते हैं और पड़ोसी पहले से ही कटे रहते हैं।खैर बैंड बाजा कारोबारी ने हृदय विदारक खबर बतायी कि ऐश्वर्या अब आम बेचने जाती है। ऐश्वर्य़ा उसकी परम प्रिय घोड़ी का नाम है, शादी की बुकिंग ना हो रही है, तो ऐश्वर्या अब एक आम कारोबारी के साथ जाती है, आम कारोबारी तांगानुमा गाड़ी में आम बेचता है।
उफ्फ, हाय, हा हंत आम आदमी की कौन कहे, ऐश्वर्या तक आम बेच रही है।यही है नार्मल – बैंड बाजा कारोबारी मुझे डपट रहा है। ना जी नार्मल तो तब होगा, जब ब्लैक की कमाई को भर भर के 200 डिशों की शादियों में उड़ाया जायेगा। उस नार्मल का इंतजार बहुतों को है।