रसचंद्रिका घाटी बनाम बेताब वैली
टूरिस्ट लोगों को जिन बातों में मजा आता है, हम तो वही बतायेंगे।
आलोक पुराणिक:
आगरा में फतेहपुरसीकरी में घूमने गये टूरिस्टों को गाइड बताते हैं कि देखिये, वहां लाल पत्थर फिल्म की शूटिंग हुई थी। और देखिये, अनारकली इधर से इस रास्ते सुरंग से चली गयी थी। अजी अनारकली, वो ही मधुबाला बनी थी, मुगलेआजम। मैंने एक बार निवेदन किया था कि गाइड जी थोड़ा अकबर के बारे में भी बता दें, जिन्होंने ये पूरा फतेहपुरसीकरी कांपलेक्स बनवाया था।
गाइड ने डांटा था मुझे पलटकर-क्या फालतू बात करता है। टूरिस्ट लोगों को जिन बातों में मजा आता है, हम तो वही बतायेंगे। टूरिस्टों को फिल्मी बातों में मजा आता है, तो धीरे धीरे पूरा टूरिज्म फिल्म केंद्रित हो जायेगा।
अभी कश्मीर में पहलगाम के पास एक टूरिस्ट स्पाट पर जाना हुआ-शानदार नदी का सा प्रवाह, शायद कोई बड़ा झरना था। हरी भरी वादियां, बड़े बड़े पेड़, स्पाट का नाम था-बेताब वैली। बताया गया कि सन्नी देओल की बेताब फिल्म की शूटिंग यहीं हुई थी। पर उस फिल्म के आने से पहले भी तो कुछ नाम होगा इस जगह का, जी किसी को पता नहीं, क्या नाम था। मसला बेताब पर अटक गया।
मेरी कल्पना में उभरता है कि महाकवि कालिदासजी कश्मीर के इस सुंदर स्थल को चंद्रमा की रोशनी में निहार रहे हैं, बहुत बहुत खूबसूरत जगह। चांदनी में पानी बहता हुआ लगता है कि चांदनी की ही नदी है। कालिदास ने नाम दिया होगा-रसचंद्रिका स्थल यानी चंद्रमा का रस देने वाला स्थल। अब कालिदास आयें, तो यहां बेताब घाटी मिलेगी। और जी बेताब का ही क्या ठिकाना। सौ सालों बाद ये फन्ने खां वैली हो जाये। पता चले कि यहां फन्ने खां फिल्म की शूटिंग हुई थी, जो बेताब से ज्यादा हिट साबित हुई थी। मुझे डर ये लग रहा है कि किसी हिट भोजपुरी फिल्म की शूटिंग वहां हो, जो बहुत हिट साबित हो जाये, तो उस बेताब घाटी का नाम हो जायेगा-भौजी हम देवर तोहार घाटी या गौने से पहले मिलिहें हम टाइप्स कुछ। सरकाय ले खटिया टाइप गानों और फिल्मों का दौर नहीं है अब, वरना घाटी का नाम ये भी हो सकता था-सरकाय ले खटिया वैली।
साऊथ के रजनीकांत साहब किसी हिट फिल्म की शूटिंग यहां कर जायें, तो फिर घाटी का नाम ऐसा हो जायेगा कि उत्तर भारत की पब्लिक को समझ नहीं आयेगा। मुंडरी मुडुच्चू वैली टाइप्स कुछ नाम हो जायेगा। सिलसिला अनंत है।
कश्मीर में ही सोनमर्ग की तरफ जाते हुए एक बड़ा सा मैदान पड़ता है। गाइड बताता है कि ये सत्ते पे सत्ता मैदान है। यहां हिट फिल्म सत्ते पे सत्ता की शूटिंग हुई थी। मैदान का सारा सौंदर्य सिर्फ सत्ते पे सत्ता के लिए ही था।
मुझे बहुत खतरनाक दृश्य दिखायी दे रहे हैं टूरिज्म में। ताजमहल को दिखाते वक्त गाइड कह रहा है टूरिस्टों से, देखिये, वो फिल्म आयी थी ना जिसमें ताजमहल दिखाया गया था। उसकी शूटिंग यही हुई थी। बंटी और बबली फिल्म में हीरो और हीरोईन ताजमहल को बेच देते हैं ना , वही ताजमहल है ये।
कोई निवेदन करेगा-जी थोड़ा सा शाहजहां के बारे में भी बताइये।
गाइड बतायेगा जी शाहजहां बहुत पुरानी फिल्म है जी, 1946 में आयी थी, के एल सहगल साहब थे इसमें।
हुजूर फिल्मों के अलावा भी ताजमहल कुछ है या नहीं।
ना ये सवाल ना पूछना-गाइड डांटेगा-क्या फालतू बात करता है। टूरिस्ट लोगों को जिन बातों में मजा आता है, हम तो वही बतायेंगे।