सरोजनी जी के कपड़े पहन के डिस्को
कुडी सेटर्डे-सेटर्डै करदी नामक गीत में गायक बता रहा था कि सरोजनी के कपड़े पहनकर जाती मैडम डिस्को।
आलोक पुराणिक:
गफ्फार में सस्ते-चाईनीज फोन बहुत चकाचक मिलते हैं-यह सुनकर मैं थोड़ा सदमे में आया।
गफ्फार मार्केट दिल्ली के करोलबाग में स्थित है और इलेक्ट्रानिक आइटम मिलते हैं यहां, वजह-ए-सदमा यह थी कि स्वतंत्रता संग्राम के बहुत महत्वपूर्ण सेनानी स्वर्गीय खान अब्दुल गफ्फार खान के नाम से बना यह बाजार की इज्जत-अफजाई सस्ते चाइनीज आइटमों की वजह से हो रही है। वैसे यह भी इस बाजार की इज्जत का प्रमोशन ही माना जाना चाहिए, बहुत सालों पहले दबे-छिपे लहजे-लफ्जों में गफ्फार मार्केट की धूम इस बात के लिए भी होती थी कि दुनिया भर के तस्करी होकर आये तमाम इलेक्ट्रानिक आइटम यहां धड़ाके से खरीदे जा सकते थे।
उफ्फ तस्करी के आइटम और गफ्फार खान के नाम के बाजार में, समझदार लोग यह सुनकर बेहोश हो सकते थे। पर समझने की बात यह है कि समझदारी लगातार कम होती जा रही है, इस मुल्क में। बहुत नये बच्चे ये अपडेट तो फौरन बता देंगे कि सैमसंग का फोन एस 7 कब लांच होगा, पर गफ्फार खान के बारे में पूछने पर अचकचा जायेंगे।
एक और चर्चित गाना सुनकर फिर दहशत में आ गया, कुडी सेटर्डे-सेटर्डै करदी नामक गीत में गायक बता रहा था कि सरोजनी के कपड़े पहनकर जाती मैडम डिस्को। मुझे मैडम के डिस्को जाने से कोई एतराज नहीं है। पर चिंता इस बात की है कि भारत की विदुषी-स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सरोजनी नायडू के नाम पर बने बाजार की ख्याति कपड़ों तक सीमित रह गयी है। नयी पीढ़ी की बालिकाएं स्वर्गीय सरोजनी नायडू की विद्वत्ता, अध्ययनशीलता-मननशीलता से कई सबक लें, इसके बजाय उन्हे सरोजनी से कपड़े पहनकर डिस्को जाने की प्रेरणा मिल रही है।
थोड़ा घबराने की बात है यह। पांच सौ हजार साल बाद इतिहास कहीं यूं ना हो जाये कि स्वर्गीय सरोजनी नायडूजी की इस मार्केट में बहुत बड़ी कपड़े की दुकान थी, यही उनकी ख्याति का आधार था।
और एक शहर के लाटरी बाजार ने मुझे दहला दिया-सुभाष चंद्र बोस के नाम पर बना बाजार शहर के लाटरी-कारोबार का केंद्र था। सुभाष चंद्र बोस एकदम पुरुषार्थ के बूते जीवन जीनेवाला महापुरुष का नाम था, उसके नाम से बने बाजार में लाटरी जैसे कतई भाग्यवादी धंधे चलें, गलत बात है।
कुछेक नामों पर बने बाजारों के कारोबारों को उचित ठहराया जा सकता है। जैसे दिल्ली में बिजली से चलनेवाले आइटमों के बाजार का नाम लाजपत राय मार्केट। यह एक हद तक समझ में आता है, बिजली की कड़क जैसी प्रखरता से स्वतंत्रता संग्राम में अपनी जान देनेवाले इस स्वतंत्रता सेनानी के प्रति एक हद तक सम्मान इस बाजार के नाम से झलकता है। पर सुभाष बाबू के नाम पर चल रही लाटरीबाजी का क्या किया जाये।
बाजारों के नामों पर पुनर्विचार के लिए एक कमेटी का गठन किया जाये, जो बदले हुए हालात के मुताबिक बाजारों के, इलाकों के नये नाम रखे। कुछ नाम तो बदलने की जरुरत ही ना पड़ेगी। जैसे दिल्ली में आजादपुर सब्जी-मंडी एकदम सही नाम है। सब्जियों के भाव जितनी स्पीड से उछल जाते हैं, उसे देखकर लगता है कि सब्जी कारोबार में हर कोई आजाद है भावों को किसी भी लेवल पर ले जाने के लिए, तो सब्जी-मंडी का नाम आजादपुर सब्जी-मंडी होना तो बनता है। पर बाकी नामों के लिए बाजार नाम रिव्यू कमेटी बननी ही चाहिए, जो यह देखे कि बदले हालात में किस बाजार का नाम क्या रखा जाये।
नये-पुराने अपराधियों, नेताओं के नामों की सूची बनायी जाये, लाटरी, सट्टा, तस्करी के कारोबार जहां होते हों, वहां के नाम इस सूची से जाने चाहिए। विदेशी प्रतिभाओं का सम्मान करके हम ग्लोबलाइजेशन के प्रति अपनी आस्था दिखा सकते हैं। जिन बाजारों में भयंकर मोलभाव होता है, मतलब दुकानदार पांच हजार का बोलकर पांच सौ में बेचने को तैयार होता हो, उन बाजारों का नाम चार्ल्स शोभराज बाजार या नटवरलाल बाजार रख दिया जाये। मतलब ऐसे बाजार में घुसते ही, बाजार का नाम देखकर ही बंदे को फील आ जाये कि उसके साथ किसी भी दुकान पर सौदे में ठगी टाइप की वारदात हो सकती है और वह मानसिक तौर पर तैयार हो जाये