लूटिये, आसान है

सेंगोल को अब लूटकर कोई ईरानी नहीं ले जा सकता, बस इसे अपने ही सांसदों से बचाया जाना चाहिए।

लूटिये, आसान है

आलोक पुराणिक:

पार्लियामेंट की नयी बिल्डिंग की लागत एक हजार करोड़ रुपये से ज्यादा आने का अनुमान है। 1648 में दिल्ली में लाल किला 60 लाख रुपये में बन गया था, ताजमहल भी उसके आसपास करीब 3 करोड़ रुपये से ज्यादा की लागत का बना था। और शाहजहां का सुपर लग्जरी सिंहासन तख्ते ताऊस करीब 6 करोड़ रुपये का बना था। शाहजहां तक के मुगल बादशाहों ने कमाने में मेहनत की, बाद के मुगल बादशाहों ने भी कम मेहनत ना की, कमाई को उड़ाने में।

फिर एक दिन ईरान से एक लुटेरा आया- नादिर शाह, वह तख्ते ताऊस को लूटकर ले गया।

बहुत मेहनत लगी तख्ते ताऊस बनाने में, और उसे कुछ दिनों ही लूटकर नादिर शाह ले गया। बनाने से ज्यादा आसान काम लूटने का होता है। ईरानी लुटेरों को भी यही बात मालूम थी और ब्रिटिश लुटेरों को भी यही बात मालूम थी।

लूट का रास्ता आसान रास्ता होता है। ईरान के लुटेरों ने यही फालो किया और ब्रिटेन से आये व्यापारिक लुटेरों ने भी यही किया। तो अक्लमंदी यही है कि ज्यादा से ज्यादा बड़ी रकम को इमारतों में लगा दिया जाये, तो उन्हे ईरान के लुटेरे ले नहीं जा सकते। लाल किला अगर 60 लाख के बजाय 6 करोड़ का बना दिया गया होता, तो पक्के तौर पर इसे लूटकर नहीं ले जाया जा सकता था।

नयी संसद को भी अगर और महंगा बनाया जाता तो फिर मामला शायद सेफ हो सकता था। पंजाब नेशनल बैंक की मोटी रकम को लूटकर विजय माल्या ले गये ब्रिटेन। पंजाब नेशनल बैंक लूटी गयी रकम को अगर बिल्डिग में लगा देता, तो शायद रकम बच जाती है।

ऐसे सुझाव को शायद बेवकूफाना सुझाव कहा जा सकता है, पर इंडिया से लूटी गयी रकम पर अगर रोयें, तो परम बेवकूफ दिखायी देते हैं। रकम लुट जाये तो बुरा लगता है, पर रकम लुटने के बाद किसी के सामने रोयें और वह बेवकूफ बताये तो बहुत ही बुरा होता है। आनलाइन लूट होती है, कोई बताता है कि आनलाइन उसके खाते में लाखों रुपये पार हो गये। ज्यादा बुरा यह लगता है कि लूट का यह कांड सुनकर कोई कहे-बहुत बेवकूफ हो जी।

हम बेवकूफ हैं, यह बात अपनी जगह सही हो भी, तो भी अगर यही बात कोई और बताये हमें, तो बहुत ही बुरा लगता है। खैर संसद की नयी बिल्डिंग का एक बड़ा फायदा यह हुआ कि टीवी डिबेट में अब कुछ वक्त के लिए पुराने घिसे पिटे बेवकूफी वाले विषयों से मुक्ति मिली, बेवकूफी के कुछ नये टापिक आ गये। सेंगोल की रक्षा करता है नाग, क्या नाग आकर संसद में रक्षा करेगा सेंगोल की-इस तरह के विषयों पर टीवी कार्यक्रम आपको जल्द दिखायी दे सकते हैं। सेंगोल नया विषय है, इसे पूरे तौर पर निचोड़कर ही मानेंगे टीवी चैनल।

सेंगोल को अब लूटकर कोई ईरानी नहीं ले जा सकता, बस इसे अपने ही सांसदों से बचाया जाना चाहिए। कहीं ऐसा ना हो कि सांसद किसी दिन गुस्से में सेंगोल को उखाड़कर-खींचकर ले जायें। चोल साम्राज्य पर चर्चा इस बहाने शुरु हो गयी कि सेंगोल का चलन चोल साम्राज्य में शुरु हुआ था। चोल साम्राज्य की चर्चा चली है, तो कुछ दिनों बाद गेम आफ थ्रोन्स आफ चोल साम्राज्य जैसी कोई वेब सीरिज शुरु हो सकती है।

वैसे यह भी एक तरह की लूट है, दर्शकों के टाइम और उनके पैसे की।

पर साहब यह तो पहले ही तय हो चुका है कि ज्यादा आसान काम लूटने का होता है।