नाटकों के सीजन
असली हीरो इस मुल्क के नेतागिरी में नहीं,क्रिकेट में दिख रहे हैं-महेंद्र सिंह धोनी।
दुनिया एक मंच है और हम यहां आते हैं और अपना रोल करके निकल जाते हैं-कुछ इस टाइप की बात शेक्सपियर ने कही थी। यूं शेक्सपियर अगर यह बात न कहते तो भी दुनिया नाटक का मंच ही है और इतने नाटक इतनी तरह के हो रहे हैं कि समझना मुश्किल है कौन से देखें और कौन सा छोड़ें। पाकिस्तान तो 75 सालों से चल रहा नाटक है, एक साथ कामेडी भी, ट्रेजेडी भी। कामेडी यूं कि पाकिस्तान के पूर्व मंत्री फवाद चौधऱी अपना 120 किलो का वजन लेकर पुलिस से बचकर जब भागते दिखते हैं, तो लगता है कि यह पाकिस्तान पूरा मुल्क ही सच्चाई से भागने की कोशिश कर रहा है, बस भाग नहीं पा रहा है। पाकिस्तान के बड़े धार्मिक नेता मौलाना फजलुर्रहमान थाईलैंड का यात्रा करते हैं, थाईलैंड की यात्रा अपने आप में मुहावरा है। जिस उम्र में लोगों को तीर्थयात्राएँ करनी चाहिए, उस उम्र में लोग थाईलैंड की तरफ निकल रहे हैं, यह कामेडी है।
इंडिया भी पीछे नहीं है। ममता बनर्जी कांग्रेस की तरफ सहयोग का हाथ बढ़ाती हुई दिखती हैं, पर वह हाथ पकड़कर कांग्रेस के विधायक कांग्रेस छोड़कर ममता बनर्जी की पार्टी में शामिल हो जाते हैं । यूं विपक्षी एकता चालू है पर विपक्षी एकता में जुटे नेता कुछ ज्यादा ही चालू है। तेलंगाना के केसीआर मोदी के विरोधी हैं, पर राहुल गांधी के साथ नहीं हैं। केसीआर को लगता है कि अकेले ही अपने बूते पर पीएम बन जायेंगे। अपने बूते पीएम बन जायेंगे ऐसा माननेवाले नेताओं की तादाद इस मुल्क में इतनी है जितनी तादाद सेलिब्रिटी और सेलिब्रिटा लोगों के ट्विटर फालोअरों की होती है।
असली हीरो इस मुल्क के नेतागिरी में नहीं,क्रिकेट में दिख रहे हैं-महेंद्र सिंह धोनी। लगातार सफलता के बावजूद विनम्रता की मूर्ति। धोनी पाकिस्तान जैसे किसी मुल्क में होते, तो पीएम बनाये जा सकते थे, इमरान खान की कसम। पर अच्छा हुआ कि धोनी पीएम बनने की लाइन में नहीं हैं, बड़े बड़े घाघ लोगों से कंपटीशन करना पड़ता और पाकिस्तान में पीएम, डीएम हो या सीएम हो, सबकी पिटाई सेना करती है।जिस देश में पीएम तक की पिटाई सेना करे, उस देश की यही नियति होती है कि वह इंटरनेशनल लेवल पर बुरी तरह पिटे। पाकिस्तान में हालत यह हो गयी है कि पाकिस्तानी आर्मी जनरलों के पास तो द्वीप हैं, होटल हैं, अरबों हैं, पर जनता आटे की लाइन में लगी हुई है। वैसे, धोनी खेल की दुनिया के पीएम हैं।
देश के कई हिस्सों में मौसम का अलग नाटक चल रहा है। जून के महीने में विकट गर्मी पड़नी चाहिए, कभी कभार जून के महीने में दिल्ली में कुछ इलाकों में कोहरा पड़ता दिख जाता है। समझना मुश्किल है। रेहड़ीवाला सुबह निकलता है कि आईसक्रीम बेचेंगे, पब्लिक बारिश में पकौड़ों की मांग करने लग जाती है। नेता तो आधे मिनट में राष्ट्रवाद से सेकुलरवाद पर आ सकता है, पर रेहड़ीवाला आधे मिनट में आईसक्रीम से पकौड़ी पर ना आ सकता है। रेहड़ी का काम नेतागिरी के काम के मुकाबले बहुत मुश्किल काम है।
महाराष्ट्र के नाटक बिलकुल ही अलग लेवल के हैं। चाचा शरद पवार जो कहते हैं, भतीजे अजित पवार उसका उलटा करते दिखते हैं। फिर भी दोनों एक ही पार्टी में है, वैसे कहना मुश्किल है कब अजित पवार किसी और तरफ कूद जायें। पालिटिक्स में नेताओं की सच में एक ही पार्टी होती है, वह है कुर्सी।
नाटकों की इतनी वैरायटी है, इंटरनेशनल से लेकर लोकल, जो मन हो सो देखिये।