दुनिया देखती रह गई और रूस ने मार ली बाज़ी
'कैंसर' से मुक्ति की दिशा में रूस का 'वैक्सीन' एक वरदान साबित होगा

रूस के स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा कि कैंसर के खिलाफ उसने अपनी एम आर एन ए नामक वैक्सीन को विकसित कर लिया है। वर्ष के अंत में विश्व वासियों के के लिए एक बड़ी राहत देने वाली खबर है ।विश्व का ऐसा कोई देश बचा नहीं है, जिस देश में कैंसर के रोगी नहीं है । विश्व के सभी देश कैंसर से लड़ रहे हैं। हर साल कैंसर रोगियों की संख्या बढ़ती चली जा रही है। कैंसर से पीड़ितों की बढ़ती संख्या से विश्व स्वास्थ्य संगठन भी चिंतित हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस बीमारी से विश्वासियों को राहत देने के लिए कई तरह की योजनाएं चला रखी है। इसके साथ ही कैंसर से रोक थाम के लिए विश्व वासियों के बीच जन जागरण का भी अभियान भी चला रखा है। इसके बावजूद भी कैंसर रोगियों की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती चली जा रही है। यह बीमारी संपूर्ण विश्व के लिए एक चुनौती के समान है। ऐसे में रूस द्वारा कैंसर का वैक्सीन की खोज कर लेना, अपने आप में बड़ी बात है ।
रूस के स्वास्थ्य मंत्रालय ने बताया कि सब क्लिनिकल ट्रायल के बाद पता चला है कि वैक्सीन से कैंसर के ट्यूमर को विकसित होने से रोकने में मदद मिलेगी। अगर यह सच साबित हो जाती है, तो कैंसर से मुक्ति की दिशा में एक बड़ी वैज्ञानिक जीत साबित होगी। विज्ञान की जबरदस्त प्रगति के बावजूद कई बड़ी बीमारियों का अब तक इलाज संभव नहीं हो पाया है। कोरोनो जैसी विश्व महामारी ने यह बता दिया कि विज्ञान कितना भी तरक्की कर ले, प्रकृति की बीमारियों का आगे बौना ही रहेगा। एक जमाने में टीवी का लाइलाज महामारी के समान थी । लेकिन वैज्ञानिकों ने अपनी मेहनत और लगन की बदौलत टीवी पर पूर्णता विजय प्राप्त कर लिया। चेचक सहित कई ऐसी बीमारियां महामारी के रूप में दस्तक दी थी, लेकिन वैज्ञानिकों ने उस पर भी सफलता प्राप्त कर लिया । वैज्ञानिक खोजों का आलम यह है कि जब तक एक बीमारी से लड़ने की दवा खोजी जाती है, तब तक कई किस्म की नई बीमारियां दस्तक दे देती हैं।
चूंकि बात जब कैंसर की हो रही है, तब कैंसर बीमारी के संबंध में और भी गहराई तक जाने की जरूरत है । विश्व में कैंसर बीमारी पहली बार कब दस्तक दी थी। इस पर भी चर्चा करना लाज़मी हो जाता है । एक अध्ययन से यह बात खुलकर सामने आती है कि कैंसर का सबसे पुराना वर्णन मिस्र में मिलता है। यह बात लगभग तीन हजार वर्ष ईसा पूर्व का है । कैंसर तब वैज्ञानिकों की पंहुचा से बाहर थी। लेकिन आज स्थिति बदली है। इसके बावजूद कैंसर इतने परीक्षणों के बाद भी वैज्ञानिकों के लिए एक चुनौती के समान ही है। लोगों को यह जानना चाहिए कि कैंसर आखिर क्या मर्ज है ? कैंसर शब्द का इस्तेमाल उन कोशिकाओं के संग्रह के लिए किया जाता है, जो असामान्य रूप से बढ़ती और फैलती है। कैंसर का पहला स्टेज तो सामान्य ही रहता है, लेकिन दूसरे तीसरे चरण में जब यह रोग पहुंच जाता है, तब रोगी को इस बात का पता चल पाता है। तब तक काफी देर हो चुका होता है। ऐसे हालात में रोगियों का उपचार करना चिकित्सकों के लिए भी चुनौती पूर्ण हो जाता है।
वहीं दूसरी ओर एक अध्ययन यह बताता है कि दुनिया में कैंसर का प्रथम मरीज़ चौथी शताब्दी में ईसा पूर्व पाया गया था ।काला सागर के नजदीक बसे हेराकिला शहर के तानाशाह शासक सैटिरस को कैंसर हुआ था । तब ऐसी कोई दवा नहीं थी कि जिससे उसका दर्द कम हो सके। उस शासक की 65 वर्ष की उम्र में ही निधन हो गया था। भारत वर्ष के संदर्भ भी में एक जानकारी यह भी सामने आई है कि ईसा से पांच सौ पूर्व कैंसर के ट्यूमर के विकास को रोकने के लिए आर्सेनिक पेस्ट का इस्तेमाल किया जाता था। इस बात का उल्लेख रामायण महाकाव्य में भी मिलता है। अगर भारत के वैज्ञानिक अपने इस पारंपरिक खोज को आगे बढ़ाते तो शायद भारत कैंसर को जड़ से मिटा देने की औषधि खोज करने वाला पहला देश बन जाता।
कैंसर को मात देने के लिए इतनी दवाइयों की खोज हो जाने के बावजूद यह बीमारी अभी तक एक लाइलाज बीमारी समझा जाता है। हालांकि रूस ने कैंसर की वैक्सीन बनाने में सफलता हासिल कर ली है। रूस के स्वास्थ्य मंत्रालय ने मंगलवार को यह ऐलान किया और अब रूस की न्यूज एजेंसी तास ने कहा है कि रूस के लोगों को यह वैक्सीन 2025 से मुफ्त लगाई जाएगी। सर्वविदित है कि हर साल कैंसर दुनिया में लाखों लोगों को मौत के आगोश में ले लेता है। ऐसे में रूस की इस कैंसर वैक्सीन को सदी की सबसे बड़ी खोज माना जा रहा है। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन इस साल के शुरुआत में ही कहा था कि हम वैक्सीन और इसकी दवा बनाने के बहुत करीब आ गए हैं। रूस के स्वास्थ्य मंत्रालय के रेडियोलॉजी मेडिकल रिसर्च सेंटर के डायरेक्टर आंद्रेई कप्रीन ने कहा कि कैंसर के खिलाफ रूस ने अपनी एम आर एन ए ने वैक्सीन को विकसित कर लिया है। क्लिनिकल ट्रायल के बाद यह पता चला है कि कैंसर की वैक्सीन ट्यूमर को विकसित होने से रोकने में मदद करती है।
वैज्ञानिकों का कथन है कि जब कैंसर रोगी के शरीर में कोई भी सेल अप्रत्याशित रूप से तेजी से बढ़ने लगता है और ट्यूमर का रूप ले लेता हैं, ऐसे में यह वैक्सीन शरीर में मौजूद इस तरह के ट्यूमर को रोकने में मदद करता है। इंसानों के जेनेटिक कोड के हिस्से में आर एन ए होता है, जो हमारे सेल्स के लिए विशिष्ट प्रोटीन का निर्माण का कार्य करता है। वहीं जब हमारे शरीर पर किसी वायरस या बैक्टीरिया का हमला होता है तो एम आर एन ए टेक्नोलॉजी हमारी सेल्स को एक मैसेज भेजती है, जिसमें प्रोटीन बनाने का संदेश दिया जाता है। इस मैसेज का उद्देश्य होता है कि हमारे इम्यून सिस्टम को लड़ने के लिए जो भी जरूरी प्रोटीन होता है, वो उसे मिल सके. यह जरूरी प्रोटीन मिलने से शरीर में एंटीबॉडी बन जाती है। इसमें जल्द वैक्सीन बन जाती है और व्यक्ति की इम्युनिटी मजबूत हो जाती है।
लोगों को यह जानना चाहिए कि दरअसल कैंसर कोई बीमारी नहीं है। यह शरीर में अलग-अलग परिस्थितियों का परिणाम है, जो शरीर को नुकसान पहुंचाता है। यही कारण है कि कैंसर विशेषज्ञों के मुताबिक, कैंसर की वैक्सीन बनाना एक तरह से असंभव है। हालांकि वैक्सीन कुछ प्रकार के कैंसर में उपयोगी होती हैं और सुरक्षा प्रदान करती हैं। हालांकि कैंसर वैक्सीन कभी भी रोग से पहले नहीं दी जाती है। यह उन लोगों को दी जाती है, जिन्हें कैंसर का ट्यूमर होता है। वैक्सीन इम्यून सिस्टम को यह बताती है कि कैंसर सेल्स किस तरह की हैं।
दुनिया में में होने वाली लाखों मौतों के लिए कैंसर एक प्रमुख कारण है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, वैश्विक स्तर पर 2022 में अनुमानित करीब 2 करोड़ नए कैंसर के मामले सामने आए थे और करीब 97 लाख लोगों को इस बीमारी से अपनी जान गंवानी पड़ी थी । वहीं इसी साल सबसे आम कैंसर फेफड़े का कैंसर था। वहीं भारत में 2022 में कैंसर के 14.13 लाख मामले सामने आए थे। इनमें 7.22 लाख महिलाओं और 6.91 लाख पुरुषों में कैंसर की पहचान की गई. वहीं 9.16 लाख मरीजों की कैंसर से मौत हो गई.
रूस के साथ ही दुनिया के कई देश कैंसर को लेकर काम कर रहे हैं। डॉक्टरों ने इस साल अगस्त में अमेरिका और ब्रिटेन सहित सात देशों में रोगियों पर फेफड़े के कैंसर के टीके का क्लीनिकल ट्रायल शुरू किया है। जर्मनी स्थित बायो एन टेक ने कैंसर की वैक्सीन बीएनटी 116 विकसित की है जो नॉन स्माल सेल लंग कैंसर का इलाज करेगी, जो बीमारी का सबसे आम रूप है। अब देखना है कि रूस ने जो दावा किया है कि 2025 में यह वैक्सीन रूसी को उपलब्ध कराया जाएगा। अगर यह वैक्सीन ठीक ढंग से कम कर गया तो इस सदी के लिए यह वैक्सीन वरदान साबित होगा।