हजारीबाग की रामनवमी के गौरवशाली इतिहास से सबक लेने की जरूरत है
(6 अप्रैल, हजारीबाग में भगवान राम की जयंती पर निकलने वाले रामनवमी जुलूस के 107 वें वर्ष में प्रवेश पर विशेष)

सन् 1918 में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम की जयंती, चैत्र शुक्ल नवमी के दिन हजारीबाग के सामाजिक कार्यकर्ता स्वर्गीय गुरु सहाय ठाकुर ने अपने पांच मित्रों सहित सर्व प्रथम जुलूस निकालकर एक कृतिमान गढ़ने का काम किया था । तब शायद किसी ने कल्पना तक नहीं की थी कि यह छः व्यक्तियों द्वारा निकाला गया आने वाले दिनों में जुलूस इंटरनेशनल रामनवमी और वर्ल्ड फेमस रामनवमी के नाम से जाना जाएगा। चैत्र नवमी से शुरू होकर यह महा जुलूस तीन दिनों तक लगातार हजारीबाग के विभिन्न जुलूस मार्गों पर शस्त्र परिचालन, पहलवानी करतब, विभिन्न प्रकार की झांकियों, जय घोषों सहित गाजे बाजे के साथ राम भक्तों को राम भक्ति से स्नान कराया रहता है। इस जुलूस में हजारों - लाखों की संख्या में बच्चें, बूढ़े, युवा, महिलाएं और बच्चियां सम्मिलित होती है। यह जुलूस अपने आप में एक अनूठा जुलूस बन चुका है। संभवत देश भर में भगवान राम की जयंती पर निकलने वाले जुलूसों की तुलना में हजारीबाग की रामनवमी जुलूस एक विशेष स्थान रखता है। अब यह महा जुलूस 107 वें वर्ष में प्रवेश कर चुका है। हजारीबाग की रामनवमी के जुलूस स्वरूप में हर वर्ष कुछ न कुछ रूपांतरण होता ही रहता है। इसलिए इसकी नूतनता
और भी दर्शनार्थियों को मोहित करती रहती है।
हजारीबाग की गौरवशाली रामनवमी के इतिहास से सबक लेने की जरूरत है। इंटरनेशनल रामनवमी ने समाज के सभी वर्ग के लोगों को एक सूत्र में बांधकर रख दिया है। भगवान राम जिस मर्यादा में और नैतिक मूल्य को समाज में स्थापित करना चाहते थे, इस अवसर पर निकलने वाली विभिन्न झांकियां उसी मर्यादा और नैतिक मूल्य की सीख देती चली आ रही है। इसका हमारे समाज पर बहुत ही अनुकूल प्रभाव पड़ा है। हजारीबाग रामनवमी के संस्थापक वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता स्वर्गीय गुरु सहाय ठाकुर समाज में नव जागृति लाने, सामाजिक कुरीतियों को दूर करने और बालिका शिक्षा को बढ़ावा देने जैसे उद्देश्यों को लेकर जुलूस का शुभारंभ किया था। हजारीबाग की रामनवमी की लोकप्रियता का आलम यह है कि इसे इंटरनेशनल रामनवमी के रूप में जाना जाने लगा है। 2022 में श्री चैत्र रामनवमी महासमिति के पूर्व अध्यक्ष अमरदीप यादव ने राज्य के मुख्यमंत्री से हजारीबाग की रामनवमी को राजकीय पर्व घोषित करने का मांग की थी । पिछले दिनों हजारीबाग के सदर के विधायक प्रदीप प्रसाद ने भी झारखंड विधानसभा में हजारीबाग की रामनवमी को राजकीय पर्व का दर्जा देने का मांगता किया। 2025 की रामनवमी की बात ही कुछ निराली लग रही है। देश के कई जाने-माने कलाकारों ने संगीत और रंगारंग कार्यक्रम प्रस्तुत कर स्थानीय लोगों को राम रस में भिंगोकर रख दिया । इस अवसर पर हजारीबाग जिले के विभिन्न मंदिरों में रामलीला का आयोजन भी इसकी शोभा को और भी बढ़ा दी है।
रामनवमी का नाम जेहन में आते ही इस पर्व में विभिन्न तरह के बजने वाले वाद्य यंत्रों की सुरीली आवाजें मस्तिष्क में सुनाई देने लगती है।हजारीबाग की रामनवमी जितनी प्रसिद्ध है, उसका इतिहास भी उतना ही गौरवशाली है। सर्व विदित है कि हजारीबाग की रामनवमी की शुरुआत सन 1918 में हुई थी । देश की आजादी से 29 वर्ष पूर्व शुरू हुई हजारीबाग की रामनवमी के जुलूस के स्वरुप में क्रमवार विस्तार दिखता है । देश की आजादी के बाद जुलूस के स्वरूप में बेतहाशा वृद्धि होती चली गई । प्रारंभ में इस जुलूस में नगर के गणमान्य लोगों सहित राम भक्त काफी संख्या में शामिल होते थे । आगे धीरे - धीरे कर जैसे- जैसे जुलूस के स्वरूप में विस्तार होता गया, शस्त्र संचालन का प्रदर्शन चौक - चौराहों पर होने लगा था । बाद के कुछ वर्षों में नगरवासी काफी संख्या में इस जुलूस मैं सम्मिलित होते चले गए । हजारीबाग रामनवमी जुलूस की प्रसिद्धि आस-पास के गांवों में फैलती चली गई । धीरे धीरे कर इस जुलूस में आसपास के गांवों के लोग भी शामिल होते चले गए । 19 60 तक पहुंचते-पहुंचते इस जुलूस में लाखों की संख्या में लोग शामिल होते चले गए ।
नगर वासियों ने जुलूस के बढ़ते स्वरूप को ध्यान में रखकर 1950 में एक केंद्रीय चैत्र रामनवमी महा समिति का गठन किया था। जिसका दायित्व था कि रामनवमी के जुलूस को शांतिपूर्वक ढंग से गुजार देना । इस दायित्व को केंद्रीय महासमिति ने पूरी निष्ठा और ईमानदारी के साथ निभाया । फलस्वरुप चैत्र रामनवमी महासमिति की लोकप्रियता के साथ लोगों का महासमिति पर विश्वास भी बढ़ता गया । रामनवमी महासमिति के गठन के पश्चात हर वर्ष इसके अध्यक्ष और कार्यसमिति का निर्वाचन होने लगा। तब से लेकर यह परंपरा आज भी उसी तरह अनवरत जारी है ।
रामनवमी के जुलूस में प्रारंभिक दिनों में छोटे-छोटे महावीरी झंडे शामिल होते थे । किंतु बाद के काल खंडों में गगनचुंबी महावीरी झंडा शामिल होने लगे थे । महावीरी झंडे के निर्माण का बड़ा ही दिलचस्प इतिहास है। हजारीबाग के निवासी आसपास के राज्यों से महावीरी झंडों में बहुत ही खूबसूरत कारीगरी करवाते थे। कई महावीरी झंडों में चांदी व सोना से खूबसूरत आकृतियां बनवाई जाती थी । हजारीबाग नगर स्थित पंच मंदिर में आज भी चांदी व सोना से निर्मित झंडे उपलब्ध है । पंच मंदिर के झंडे को देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते थे । इसके साथ ही हजारों की संख्या में गगनचुंबी महावीर झंडे शामिल होते थे। इन झंडों में भगवान राम, लक्ष्मण, माता सीता, भक्त हनुमान की तस्वीरें बनी रहती थी । इन महावीरी झंडों का भी बहुत ही भव्य तरीके से प्रदर्शन होता था । रामनवमी जुलूस के समापन के बाद भी इन झंडों की चर्चा नगर और आस-पास के गांव में होते रहती थी। हजारीबाग स्वर्णकार समाज द्वारा राम भक्त हनुमान की चांदी से बनी हुई प्रतिमा की झांकी भी लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता रहता है । जुलूस मार्गों पर बिजली के तारों की भरमार के कारण धीरे-धीरे कर झंडों का आकार भी छोटा होता चला जा रहा है। लेकिन झंडो की संख्या लगातार पढ़ती भी चली जा रही है।
आज भी स्थानीय स्तर पर बजने वाले वाद्य यंत्र ढोल, नगाड़ा, तुरपी, शहनाई, बांसुरी आदि काफी संख्या में जुलूस की शोभा बढ़ा रहे होते हैं । ये लोक कला के वाद्य यंत्रों के जुलूस में शामिल होने से जुलूस की रौनक ही बदल जाती । साथ ही इन वाद्य यंत्रों के बजाने वाले कलाकारों को रोजगार का एक नया अवसर मिल जाता। इन परंपरागत वाद्य यंत्र की जगह अब ताशा पार्टी और डीजे ने ले लिया है। इसके बावजूद परंपरागत वाद्य यंत्रों की मिठास हमेशा राम भक्तों को आकर्षित करती रहेगी। रामनवमी जुलूस ने इन कलाकारों को अपनी कलाकारी दिखाने का एक बेहतर अवसर प्रदान किया था ।
1955 के बाद जुलूस के स्वरुप में काफी विस्तार होना प्रारंभ हो गया था। उस कालखंड में आज की तरह जनरेटर की सर्व सुलभ नहीं रहने के कारण मंगला जुलूस जलते हुए मशाल के साथ निकाला जाता था । आज भी लोग उस मशाल जुलूस को भूल नहीं है। नगरवासियों ने चैत्र माह पड़ते ही हर मंगलवार को संध्या में मंगलवारी जुलूस निकालना प्रारंभ किया था । यह परंपरा आज भी ज्यों की त्यों बनी हुई है । मंगलवारी जुलूस में महावीरी झंडों के साथ स्थानीय स्तर पर काफी संख्या में लोग शामिल होते हैं । पंच मंदिर, महावीर स्थान, बड़ा अखाड़ा मंदिर, खजांची तालाब मंदिर में जुलूस में शामिल लोग प्रसाद चढ़ाते हुए धीरे-धीरे कर नगर का भ्रमण करते हैं । मंगला जुलूस अर्ध रात्रि तक समाप्त हो जाता है । मंगला जुलूस की परंपरा प्रारंभ होने के साथ ही स्थानीय युवाओं में शस्त्र संचालन सीखने की ललक जगी थी । इस निमित्त पहलवानी अखाड़ों, मंदिर परिसर और किसी खाली स्थान पर युवकों को शस्त्र संचालन की सीख दिना जाने लगा था । लेकिन बाद के काल खंडों में शस्त्र सीखने और सिखाने की परंपरा कम होती चली जा रही है । इस विषय पर सभी समिति एवं महा समिति के पदाधिकारियों को ध्यान देने की जरूरत है ।
1970 में पहली बार हजारीबाग की रामनवमी के जुलूस में कोलकाता से ताशा पार्टी को शामिल किया गया था । इसी समय से जुलूस में शामिल होने वाली झांकियों की संख्या में इजाफा होना प्रारंभ हुआ था । 15 - 20 झांकियों से शुरू हुई यह परंपरा आज एक सौ से अधिक झांकियों में तब्दील हो चुकी हैं । रामनवमी जुलूस में शामिल झांकियां ऐसी होती है कि उसे देखने का बार-बार मन कर जाता है । बीते 20 वर्षों से जीवंत झांकियां लगातार बढ़ती चली जा रही है। इसकी शुरुआत सर्वप्रथम बड़ा बाजार केवट रामनवमी पूजा समिति द्वारा की गई थी। आज भी केवट पूजा समिति द्वारा निर्मित जीवंत झांकी को देखने के लिए लोग लालायित रहते हैं। इन झांकियों को देखने के लिए हजारीबाग में देश के विभिन्न प्रदेशों से हजारों - हजार की संख्या में श्रद्धालु आते हैं । रामनवमी जुलूस के दौरान हजारीबाग जिले में पूरी तरह शांति व्यवस्था बनी रहे, इस निमित्त हजारीबाग के उपायुक्त नैंसी सहाय और हजारीबाग के एसपी अरविंद कुमार लगातार बैठकें कर रहे हैं। जिले के लगभग सभी थानों में शांति समिति की बहुत ही सार्थक बैठकर आयोजित हो रही है। हजारीबाग के सांसद मनीष जायसवाल और सदर के विधायक प्रदीप प्रसाद भी रामनवमी जुलूस शांतिप्रिय ढंग से गुजरे इस निमित्त हर रामनवमी पूजा समिति के पदाधिकारियों -सदस्यों से मिल रहे हैं। वहीं दूसरी ओर श्री चैत्र रामनवमी महासमिति के अध्यक्ष बसंत यादव भी पूरी शिद्दत के साथ तीन दिनों तक चलने वाले इस रामनवमी महाजुलूस को सफल बनाने और शांति प्रिय ढंग से संपन्न कराने में जुटे हुए हैं।