आज महाष्टमी को ताशा और जय श्री राम के जयघोष से गुंजायमान होगा हजारीबाग 

(5 अप्रैल, महाष्टमी को भगवान राम के जन्मदिन के एक दिन पूर्व निकलने वाले ताशा जुलूस पर विशेष)

आज महाष्टमी को ताशा और जय श्री राम के जयघोष से गुंजायमान होगा हजारीबाग 

मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के जन्मदिन के एक दिन पूर्व चैत्र महाष्टमी को विभिन्न रामनवमी पूजा समितियों द्वारा निकाले जाने  वाले ताशा जुलूस और जय श्री राम के नारो से गुंजायमान हो  उठेगा हजारीबाग। विभिन्न टुकड़ों में बंटे ताशा पार्टी के कलाकार बारी बारी से अपने-अपने ढोल और बैंजो के मधुर संगीत  से राम भक्तों के उत्साह को बढ़ाते रहेंगे। राम भक्त ढोल  और बैंजो के मधुर संगीत के बीच नाचते गाते विभिन्न चौक चौराहों पर दर्शकों को लुभाते रहेंगे । इसके साथ ही राम भक्त नगर के विभिन्न मंदिरों में  प्रसाद चढ़ाते  हुए आगे बढ़ते रहेंगे । ढोल और बैंजो के मधुर संगीत के साथ जय श्री राम, जय श्री राम के नारों का एक साथ गुंजित स्वर पूरे हजारीबाग को भक्तिमय  बना देता है। हजारीबाग नगर के निवासी इस ताशा पार्टी जुलूस का अपने-अपने घरों  और प्रतिष्ठानों पर खड़े होकर देखने का इंतजार करते रहते हैं। भगवान राम के जन्मदिन के दिन से पूर्व इस तरह का जुलूस सिर्फ और सिर्फ हजारीबाग में ही निकलता है।
   ऐसे संपूर्ण भारतवर्ष में भगवान राम की जयंती बड़े ही धूमधाम के साथ मनाई जाती है। लेकिन झारखंड के चौबीसों जिलों में भगवान राम की जयंती पर निकलने वाले जुलूस की बात ही कुछ निराली होती है। हजारीबाग में तो चैत्र मास के आगमन के साथ ही पूरा जिला राम भक्ति में लीन हो जाता है । चैत्र मास के पहले मंगलवार से मंगला जुलूस का निकालना प्रारंभ हो जाता है। इसके साथ ही विभिन्न पूजा समीतियों द्वारा कई और भी जुलूस निकाले जाते हैं। हजारीबाग जिले के सभी मंदिरों और पूजा स्थलों में रामचरितमानस का सुंदरकांड, हनुमान चालीसा आदि का पाठ प्रारंभ हो जाता है । चैत्र मास में नवरात्र का अनुष्ठान भी बहुत ही भक्तिपूर्ण रूप  से किया जाता है।  इस अवसर पर नगर के विभिन्न देवी मंडपों में दुर्गा की बड़ी-बड़ी प्रतिमाएं स्थापित की जाती हैं । इन प्रतिमाओं को बहुत ही सुंदर ढंग से सुसज्जित किया जाता है। इन देवी मंडपों में काफी संख्या में भक्त गण जुटते हैं। यह लिखते हुए गर्व होता है कि हजारीबाग जिले के कई परिवारों के कुल देवता के रूप में भगवान राम और भक्त हनुमान श्रद्धा के साथ पूजे जाते हैं। पवित्र चैत्र माह में कई राम भक्त  अपने अपने घरों में  भगवान राम की विशेष आरती करते हैं। इस अवसर के पूर्व से ही विभिन्न अखाड़ों में शस्त्र परिचालन सिखाया जाता है , ताकि रामनवमी के अवसर पर निकलने वाले जुलूस में राम भक्त बेहतर ढंग से शस्त्र परिचालन का प्रदर्शन कर सकें। 
  ये उपरोक्त सारे क्रियाकलाप हजारीबाग की रामनवमी को विशिष्ट बना देते हैं। इसी का प्रतिफल है कि आज हजारीबाग की रामनवमी इंटरनेशनल रामनवमी और वर्ल्ड फेमस रामनवमी आदि नामों से जाना जा रहा है । 2022 में श्री चैत्र रामनवमी महासमिति के पूर्व अध्यक्ष अमरदीप यादव ने राज्य सरकार से हजारीबाग की रामनवमी पर्व को राजकीय पर्व घोषित करने की मांग की थी। पिछले दिनों हजारीबाग सदर के विधायक प्रदीप प्रसाद ने भी विधानसभा में हजारीबाग की रामनवमी को राजकीय पर्व घोषित करने की मांग की थी। इन मांगों का हजारीबाग  सहित पूरे प्रांत के लोगों ने समर्थन किया है।  उम्मीद है कि राज्य सरकार उक्त मांग पर जरूर सकारात्मक निर्णय लेगी। 
  हजारीबाग वासी रोजी-रोटी के लिए देश के विभिन्न प्रांतों में जरूर रहते हैं, लेकिन रामनवमी पर्व पर रामनवमी देखने के लिए हजारीबाग जरूर आते हैं । वे हजारीबाग आकर रामनवमी जुलूस का हिस्सा बन जाते हैं। ताशा और बैंजो के मधुर धुन पर खुले मन से सड़कों पर नाचते हैं। जय श्री राम के नारे लगाते हैं। वे ऐसा करके अपने को धन्य धन्य कर जाते हैं।‌ इसके साथ ही हजारीबाग की बेटियां जो दूर दराज अपने ससुराल की गृहस्थी से जुड़  चुकी होती हैं , उनकी भी पहली इच्छा होती है कि हजारीबाग की रामनवमी देखें। उनमें से कुछ बेटियां अपने बच्चों और पति के साथ  हजारीबाग की रामनवमी देखने के लिए जरूर आती हैं। जो बेटियां अपनी गृहस्थी के कारण हजारीबाग की रामनवमी देखने के लिए नहीं आ पाती हैं, वे अपनी मां, पिता, भाइयों व अन्य रिश्तेदारों से  रामनवमी जुलूस पर बात कर मन  को तसल्ली दे लेती हैं । वे व्हाट्सएप पर रामनवमी जुलूस की तस्वीर मंगाकर देखती रहती हैं।‌ वे सोशल मीडिया पर रामनवमी जुलूस का सीधा प्रसारण देखकर खुद को संतोष कर लेती है। हजारीबाग से बाहर रहने वाले के कई ऐसे परिवार हैं, जो सिर्फ रामनवमी देखने के लिए हजारीबाग अपने रिश्तेदारों के पास आते हैं। वे सभी बड़े मन से हजारीबाग की रामनवमी देखते हैं और रामनवमी जुलूस का हिस्सा बनकर गर्व महसूस करते हैं। ऐसी है हजारीबाग रामनवमी की लोकप्रियता।
  सर्वविदित है कि हजारीबाग की रामनवमी जुलूस जो सन 1918 में सामाजिक कार्यकर्ता स्वर्गीय गुरु सहाय ठाकुर के नेतृत्व में पहली बार निकला गया था, उन्होंने इसकी शुरुआत अपने पांच मित्रों के साथ की थी।  तब किसी को पता नहीं था कि मात्र छः व्यक्तियों द्वारा निकाला गया यह जुलूस आगे चलकर इंटरनेशनल रामनवमी और वर्ल्ड फेमस रामनवमी के रूप में प्रसिद्ध हो जाएगा। कालांतर में रामनवमी जुलूस के स्वरूप में काफी बदलाव होते रहे हैं । कई तब्दीलियां आई गई हैं।‌ हजारीबाग की रामनवमी ने हर रूपांतरण को स्वीकार किया और रामनवमी जुलूस का कारवां आगे बढ़ता चला जा रहा है । 
  1947 में देश को आजादी मिली थी। उस कालखंड में जब रामनवमी का जुलूस निकाला गया था, तब परंपरागत ढोल, नगाड़ा, तूरपी, बांसुरी, शहनाई, घंटी आदि से युक्त  जुलूस अपने आप में अद्भुत और निराला था। उस कालखंड के लोगों का कथन है कि उन्होंने अपने जीवन काल में ऐसा जुलूस कभी देखा ही नहीं था।  पूरा जुलूस राम भक्ति से युक्त था।  सब जुलूस  धारियों की आंखें चमक रही थीं।  भारत माता की जय, जय श्री राम के नारों से पूरा रामनवमी का जुलूस गूंज रहा था।  आज की तरह उस कालखंड  के जुलूस में जेनरेटर की व्यवस्था नहीं हुआ करती थी।  और न ही सड़कों पर आज की तरह स्ट्रीट लाइट की व्यवस्था थी । इसके बावजूद उस जुलूस में काफी संख्या में पेट्रोमैक्स, लालटेन और मशाल शामिल थे। तब के जुलूस में गगनचुंबी महावीरी झंडे शामिल होते थे।‌ कई लोग राम, लक्ष्मण, हनुमान और सीता बनकर लोगों को दर्शन देकर दर्शकों से भक्ति मय प्रेम अर्जित करते थे।
 देश की आजादी के बाद रामनवमी के जुलूस में काफी विस्तार होता चला गया।  जुलूस को व्यवस्थित, पंक्ति बद्ध और शांति प्रिय ढंग से गुजारने के लिए सन 1950 में श्री चैत्र रामनवमी महासमिति का गठन किया गया था। इस महासमिति के सर्वप्रथम अध्यक्ष के रूप में स्वर्गीय गुरु सहाय ठाकुर को मनोनीत किया गया था । तब से हर साल हजारीबाग की रामनवमी को शांति प्रिय ढंग से गुजारने के लिए श्री चैत्र रामनवमी महासमिति का गठन होता चला आ रहा है। 1955 में पहली बार हजारीबाग में मंगला जुलूस का निकलना प्रारंभ हुआ था।  तब से यह क्रम जारी है । उस कालखंड में हजारीबाग के विभिन्न अखाड़ों में पहलवानी सिखाया जाता था। इन्हीं अखाड़ों में मंगलवारी जुलूस का शस्त्र परिचालन सिखाया जाता था।  तब के जुलूस में काफी संख्या में हजारीबाग के पहलवान शामिल होते थे ।आज पहलवानों की संख्या कम जरूर हो गई है, लेकिन अभी भी यह परंपरा जारी है। 
  1970 में पहली बार  हजारीबाग नगर के ग्वालटोली चौक पूजा समिति द्वारा कोलकाता से ताशा पार्टी और बैंजो को बुलाया गया था।  उस कालखंड में लोग ताशा पार्टी और बैंजो के धुन पर जमकर नाचे थे। हजारीबाग निवासियों को ताशा पार्टी और बैंजो का मधुर संगीत बहुत ही पसंद आया था। दूसरे साल यानी 1971 में कई रामनवमी पूजा समिति ने भी अपने जुलूस में ताशा बैंजो पार्टी को शामिल किया था। बाद के कालखंड में हजारीबाग के संगीत प्रेमियों ने भी खुद  ताशा बैंजो पार्टी का निर्माण कर लिया था । जिसमें घनश्याम प्रसाद के ताशा बैंजो पार्टी को आज भी लोग याद करते  हैं। रामनवमी के ताशा बैंजो पार्टी का हमारे समाज पर ऐसा असर डाला कि यहां से निकलने वाले शादी के अवसर पर बरातों में ताशा बैंजो पार्टी पहली पसंद बन गया था।‌ आज भी शादी के अवसर पर लोग ताशा बैंजो के मधुर संगीत पर नाचना-गाना पसंद करते हैं। अर्थात हजारीबाग की रामनवमी सिर्फ एक पर्व नहीं है , बल्कि यह पर्व  हमारी संस्कृति का एक हिस्सा बन गया है।