आधुनिकता के लिबास में समाज में ख़ौफ़नाक होता लिव इन रिलेशन, क्या इनकी मंज़िल यही है?
पिछले कुछ समय से लिव इन रिलेशन यानि बिना शादी किए एक महिला और पुरुष का एक साथ पति-पत्नी की तरह रहने के मामले ने अब ख़ौफ़नाक रूप अख़्तियार करते जा रही है। लिव इन रिलेशन में रहनेवाले जोड़े बात-बात पर एक दूसरे के प्राण ले रहे हैं। यहाँ सिर्फ़ प्राण ही नहीं ले रहे हैं बल्कि मानवता की सारी सीमाओं को लांघते हुए क्रूरतम दरिंदगी का परिचय भी दे रहे हैं। हालाँकि भारतीय समाज ने इस रिश्ते को खुले तौर पर कभी भी स्वीकार नहीं किया है। लेकिन बड़े बड़े शहरों में तथाकथित आधुनिक जीवनशैली के शौक़ीन, बिना रीति-रिवाज के शादी किए रहनेवाले इन जोड़ों को हमारे न्यायालय ने राहत और बल देते हुए वाजिब ठहराया है। जिसका अमानवीय परिणाम अभी हाल की कुछ घटनाओं में देखने को मिल रही है। ऐसे समय में हमारे समाज को एक संस्कारित मार्गदर्शन की ज़रूरत है ताकि बच्चों में आधुनिकता और भारतीय संस्कार का सामंजस्य स्थापित हो सके। आधुनिकता की आड़ में इन युवाओं का जीवन पूरी तरह से बिखरता जा रहा है। जहां एक ओर पूरी दुनिया हमारे भारत कि परंपरा और संस्कृति को आत्मसात कर जीवन के मानवीय मूल्य की नई ऊँचाइयों को छू रही है, वहीं हम भारतीय अपनी सभ्यता और संस्कृति को दरकिनार करते हुए आधुनिकता और पश्चिमी सभ्यता की आड़ में अपने जीवन को ही अमूल्य बनाते जा रहे हैं।
क्या है लिव इन रिलेशन :
लिव इन रिलेशन मतलब होता है सामाजिक रीति-रिवाज के साथ वैवाहिक प्रक्रिया किए बिना एक महिला और पुरुष का पति-पत्नी की तरह एक साथ रहना। हमारा भारतीय समाज कभी भी इस रिश्ते को सामाजिक स्तर पर स्वीकार नहीं किया है। समाज में इस रिश्ते को इज्जत भी नहीं दी जाती है। ज़्यादातर भारतीय परिवार भी इस रिश्ते को स्वीकार नहीं करते हैं और इनसे दूरी बना लेते हैं। इसलिए इस तरह के रिश्ते ज़्यादातर बड़े शहरों में देखने को मिलती है जहां लोग एक दूसरे से कोई मतलब नहीं रखते हैं। बड़े शहरों में इनके बारे में पूछनेवाला भी कोई नहीं रहता है और अपने समाज और परिवार का भी कोई इनका हाल लेनेवाला नहीं होता है। समाज में भले ही इस रिश्ते को मंज़ूरी नहीं मिली हो लेकिन देश के कई उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय ने इस रिश्ते को जायज़ ठहराया है और कहा है कि -“बालिगों को उनकी स्वेच्छा से रहने-जीने का अधिकार है। कोई भी उनके मौलिक अधिकार में हस्तक्षेप नहीं कर सकता है।”
मनुष्य को एक सामाजिक प्राणी कहा गया है। वह इसलिए कि मनुष्य एक ऐसे समाज में रहता है जहां मानवीय जीवन को बेहतर बनाने के लिए उच्च कोटि के नियम बनाये गये हैं, जिन्हें आधुनिक जीवनशैली में परंपरा का नाम दिया जाता रहा है। न्यायालय ने भले ही बालिग़ होने की वजह बताकर निजी स्वतंत्रता के आधार पर इन्हें लिव इन रिलेशन में रहने आज़ादी दे दी है, लेकिन सामान्य सी बात है कि समाज में पला बढ़ा व्यक्ति जब समाज के नैतिक मूल्यों का त्याग कर आधुनिकता का लिबास ओढ़ने को तत्पर हो जाता है, तब उसे यही अनमोल परंपरा और संस्कृति दक़ियानूसी लगने लगती है, जिसके परिणाम स्वरूप वह अपने अनमोल जीवन को खोने लगता है। वाजिब सी बात है कि जिस माँ बाप ने अपने बच्चों के बेहतर जीवन का सपना लिये उन्हें आत्मनिर्भर होना सिखाया, उस माँ-बाप को त्यागकर और नज़रअंदाज़ कर क्या ये बच्चे खुशहाल जीवन जी पायेंगे? जज और वकील भले ही किताबों के आधार पर युवाओं की निजी स्वतंत्रता का हवाला देकर लाख तर्क दे लें लेकिन किसी भी क़ीमत पर अपनी परम्परा और संस्कृति का त्याग कर एक मनुष्य अपने जीवन में ख़ुशियाँ नहीं ला सकता है। निजी स्वतंत्रता के लिए अपनी परम्परा और संस्कृति का अनादर या फिर कहें त्याग करना क्या अति आवश्यक है? भारतीय परंपरा के अनुसार जीवन निर्वाह कर रहे लोग क्या आज खुश नहीं हैं?
आधुनिकता के लिबास में हाल की कुछ घटनाओं पर नज़र डालते हैं:
केस नंबर-1 ( लिव-इन पार्टनर ने आकांक्षा का गला घोंट कर हत्या की)
बेंगलुरु में लिव-इन पार्टनर की हत्या करने का एक और मामले सामने आया है जहां लिव इन रिश्तों में 23 साल की एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर आकांक्षा की हत्या कर दी गई है। खबर के अनुसार सोमवार को एक 23 साल की एक लड़की की उसके 27साल के पूर्व लिव-इन पार्टनर ने कथित तौर पर गला घोंट कर हत्या कर दी है। हैदराबाद की रहने वाली आकांक्षा बेंगलुरु में एक प्राइवेट फर्म में काम करती थी। हत्या का आरोप उसके पार्टनर अर्पित पर लगा है जो मूल रूप से दिल्ली का रहनेवाला बताया जा रहा है। अर्पित टेक कंपनी बायजू के साथ काम करता है। पुलिस ने अभी तक अर्पित को गिरफ्तार नहीं किया है। पुलिस के एक सूत्र का कहना है कि आकांक्षा और अर्पित चार साल पहले बायजूज में मिले थे। दोनों साथ रह रहे थे, लेकिन बाद में रिश्ते में खटास आ गई। हालांकि वे अब साथ नहीं रह रहे थे, लेकिन अर्पित बेंगलुरू में आकांक्षा से मिलने जाता था। सोमवार को अर्पित जब बेंगलुरु आया तो दोनों के बीच कहासुनी हो गई। इसके बाद कथित तौर पर उसने आकांक्षा का गला घोंट दिया। इस मर्डर को आत्महत्या का शक्ल देने की कोशिश में अर्पित ने उसके शव को छत के पंखे से लटकाने की कोशिश की । हालांकि, वह इसमें सफल नहीं हो सका। बाद में वह शव को फर्श पर ही छोड़ दिया। अपार्टमेंट का दरवाजा बंद कर वह मौके से फरार हो गया।
केस नंबर-2 (लिव इन पार्टनर मनोज ने सरस्वती को बोटी-बोटी काटकर टुकड़ों को उबाला और कुत्तों को खिलाया)
मुंबई में 56 साल के हत्यारे मनोज साहनी ने अपनी लिव-इन पार्टनर सरस्वती वैद्य को बोटी-बोटी काट डाला। जिस फ्लैट में सरस्वती की हत्या कि गई वहाँ मनोज साहनी और सरस्वती तीन साल से साथ रहते थे। सरस्वती 32 वर्षीय अनाथ थी और मुंबई के बोरीवली इलाकों के एक अनाथालय में रहा करती थी। मनोज और सरस्वती दस साल पहले एक राशन की दुकान पर मिले थे और वहीं से दोनों के बीच में नजदीकी बढ़ी। उस समय दोनों ही बोरीवली इलाके में रहते थे। 56 साल के मनोज ने खुद से 24 साल छोटी लिव इन पार्टनर को गला रेतकर मार डाला और फिर शव के 20 टुकड़े कर डाले। लाश के टुकड़ों को वह कुकर में उबाल कुत्तों को खिला देता था। यही नहीं मीरा रोड के गीता नगर के उसके फ्लैट से कई बाल्टियां मिली हैं, जिनमें सरस्वती के शव के टुकड़े पाए गए हैं। पुलिस सूत्रों का कहना है कि मनोज साहनी ने गला रेत कर सरस्वती की हत्या कर दी थी और फिर आरे से उसके टुकड़े-टुकड़े कर डाले। यही नहीं इन टुकड़ों को वह कुकर में उबालकर कुत्तों को खिला रहा था। यही नहीं शव के टुकड़ों से बदबू ना आए इसके लिए दरिंदा मनोज साहनी ढेर सारा परफ्यूम भी लाया था। उसी को छिड़क-छिड़क कर वह बदबू को रोकने की कोशिश कर रहा था। पीड़िता सरस्वती के सिर के बालों को मनोज ने अलग से बेडरूम में रख दिया था। पूरे फ्लैट में जहां-तहां शव के टुकड़े पड़े थे और खून बिखरा था। पुलिस सूत्रों का कहना है कि अब तक मनोज साहनी की निशानदेही पर शव के 13 टुकड़े बरामद कर लिए गए हैं, जबकि कुछ और की तलाश बाकी है। मनोज साहनी ने माना है कि उसने सरस्वती के शव के 20 टुकड़े कर दिए थे।
केस नंबर-3 (लिव-इन पार्टनर आफताब ने श्रद्धा वालकर को बोटी-बोटी काटा था)
दिल्ली में हुए श्रद्धा वॉकर मर्डरकेस में आफताब पूनावाला ने लिव इन पार्टनर श्रद्धा की हत्या कर दी थी। इसके बाद उसके शरीर के टुकड़े करके उन्हें फ्रिज में छिपाकर रख दिया था। धीरे-धीरे करके उसने सभी टुकड़ों को ठिकाने लगा दिए। आफताब श्रद्धा के साथ दिल्ली में रह रहा था। 18 मई 2022 को उसने श्रद्धा की गला घोंटकर हत्या कर दी थी । इसके बाद उसने शव के टुकड़े-टुकड़े किए। धीरे-धीरे वह इन टुकड़ों को ठिकाने लगा रहा था। श्रद्धा मर्डर केस में आरोपी आफताब अमीन पूनावाला ने अपनी लिव इन पार्टनर श्रद्धा की हत्या के बाद उसकी हड्डियों को पीसकर उसका चूरा बना लिया था। इसके लिए उसने मार्बल ग्राइंडर का इस्तेमाल किया था। इस चूरे को उसने सड़क पर फेंक दिया था। यह खुलासा आरोपी ने खुद पुलिस को दिये बयान में किया है। आफताब के बयान के मुताबिक दिल्ली में उसने 652 नंबर दुकान से एक हैमर, एक आरी और उसके तीन ब्लेड खरीदे और घर पर आकर डेड बॉडी के दोनों हाथ की कलाई आरी से काटकर एक पॉलिथीन में बाथरूम में ही रख दिया था। आफताब अमीन पूनावाला ने श्रद्धा की डेड बॉडी के दोनों पैरों को एंकल से काटकर उनको ट्रैश बैग में पैक किया था और काटे हुए बॉडी पार्ट्स को फ्रिज के फ्रीज़र में रख दिया था।
यदि अब भी नहीं समझे तो आनेवाला समय और भी भयावह होगा जिसकी ज़िम्मेवारी समाज तो लेगा भी नहीं और न्यायालय भी इसे विक्षिप्त मानसिकता करार देकर अपना पल्ला झाड़ लेगा………