बैंक से क़र्ज़ लेने जा रहे हैं तो सावधान हो जाइए, एक भी किस्त चूके तो आपकी जान भी जा सकती है

जब तक ग्राहक समय पर किस्त देते रहते हैं तब तक बैंक ग्राहक को बहुत सम्मान देता है , लेकिन यदि किसी कारण वश किस्त देने में चूक गए फिर वही बैंक आपका नींद और चैन सब कुछ छीन लेगा।

बैंक से क़र्ज़ लेने जा रहे हैं तो सावधान हो जाइए, एक भी किस्त चूके तो आपकी जान भी जा सकती है

पटना:

पूरे देश में अभी त्योहारों का मौसम है। ऐसे में व्यापारियों के साथ-साथ बैंक भी ग्राहकों (शिकार कहना उचित होगा) को लुभाने में लगी हुई है। व्यापारी जहां सामानों की गुणवत्ता और ज़रूरत को दरकिनार कर मुफ़्त की छूट पर ज़ोर दे रहे हैं वहीं बैंक भी व्यापारियों के साथ मिलकर ग्राहकों की क्षमता और ज़रूरत को दरकिनार करते हुए कम पैसे में ही सामान उपलब्ध कराने की होड़ लगाए बैठे हैं। बैंक के द्वारा आसानी से ऋण मिल जाने के कारण साधारण व्यक्ति में ग़ैर-आवश्यक वस्तु ख़रीदने की परंपरा बढ़ती जा रही है। जैसे ही कोई ग्राहक किसी दुकान में प्रवेश करता है, दुकान के कर्मचारी के साथ-साथ बैंक/वित्तीय संस्था के लोग भी उन्हें घेर लेते हैं। बैंक/वित्तीय संस्था और दुकानदार द्वारा दी गई सुविधा के कारण जितनी ख़ुशी के साथ ग्राहक आसानी से सामान को ख़रीदता है, उसे इस बात का जरा भी आभास नहीं होगा की यही बैंक/वित्तीय संस्था भविष्य में उनके जरा सी भी चूक पर जीना मुश्किल करनेवाले हैं।

बैंक/वित्तीय संस्था जब ऋण देती है तो ग्राहकों के समक्ष कई पन्नों के दस्तावेज लाकर रख देती है। बैंक/वित्तीय संस्था के दस्तावेज ज़्यादातर अंग्रेज़ी में होते हैं। बैंक/वित्तीय संस्था से ऋण लेनेवालों में से लगभग 90% क़र्ज़दार हिंदी या स्थानीय भाषा जानते हैं। इसलिए बैंक/वित्तीय संस्था के दस्तावेज़ों को बग़ैर पढ़े अपना हस्ताक्षर कर अपनी जान जोखिम में डाल देते हैं। हालाँकि बैंक के कर्मचारियों का कर्तव्य होता है कि ग्राहकों के हस्ताक्षर लेते समय उन्हें सारी बातें बताई जाए, लेकिन यदि ऐसा होगा तो कोई भी ग्राहक बैंक से क़र्ज़ लेकर अपने लिए मुसीबत नहीं खड़ी करेगा। इसलिए बैंक/वित्तीय संस्था के कर्मचारी दस्तावेज में दर्ज शर्तों को ग्राहकों को बिना बताए उनका हस्ताक्षर करवा लेते हैं।

किसी भी बैंक/वित्तीय संस्था का क्रिया-कलाप RBI के नियमों के मुताबिक़ होता है। RBI बैंक/वित्तीय संस्था पर नज़र रखती है। यदि कोई बैंक/वित्तीय संस्था ग्राहकों के साथ नियम के परे व्यवहार करती है या किसी ग्राहक को परेशान करती है, तो पीड़ित ग्राहक RBI के समक्ष अपनी परेशानी रख सकता है। RBI मामले की जाँच कर उक्त बैंक/वित्तीय संस्था पर उचित कार्रवाई करती है और पीड़ित को न्याय दिलाती है। लेकिन सबसे बड़ी बात है कि क्या कोई साधारण व्यक्ति अपनी शिकायत को RBI तक पहुँचा सकता है? यदि RBI में शिकायत पहुँचा भी देता है तो, उसे कब तक न्याय मिलेगा? कहीं ऐसा न हो की जब तक RBI पीड़ित के पास न्याय लेकर पहुँचे तब तक बैंक/वित्तीय संस्था ग्राहक के शरीर से खून का एक एक बंद निकाल चुका हो! ऐसे में उस बेजान शरीर में बचे हड्डियों को अब न्याय की ज़रूरत भी नहीं होगी और बैंक/वित्तीय संस्था के चक्रव्यूह में एक आम इंसान आख़िरकार अपनी बलि दे चुका होगा।

पिछले कई वर्षों में अक्सर सुनने को मिलता रहा है कि क़र्ज़ के कारण लोग आत्महत्या कर लेते हैं। यह बात सबको हज़म नहीं होती है। क्यूँकि सभी को लगता है की एक तो क़र्ज़ लिया उस पर आत्महत्या क्यूँ? यह ऐसा प्रकरण है, जब तक ख़ुद पर नहीं बीतता समझ ही नहीं आएगा।

एक बार क़र्ज़ लेने के बाद ग्राहक पूरी तरह बैंक/वित्तीय संस्था के गिरफ़्त में आ जाता है। जब तक ग्राहक समय पर किस्त देते रहते हैं तब तक बैंक ग्राहक को बहुत सम्मान देता है , लेकिन यदि किसी कारण वश किस्त देने में चूक गए फिर वही बैंक आपका नींद और चैन सब कुछ छीन लेगा। वसूली के लिए बैंक/वित्तीय संस्था ने एक अलग ही विभाग बना रखे हैं। उस विभाग में क्षेत्र के छँटे हुए बदमाश से लेकर दिनभर आपको फ़ोन कर मानसिक प्रताड़ना देने वाली सुंदरियाँ भी शामिल हैं।

ऋण देते समय ग्राहकों से उनके कार्य का ब्योरा लिया जाता है। लेकिन ऋण अदायगी के अवधि के दौरान यदि ग्राहक का कार्य बंद हो जाता है तो बैंक/वित्तीय संस्था को इससे कोई मतलब नहीं होता।ऐसे समय में भी यदि ग्राहक बैंक/वित्तीय संस्था को किस्त नहीं दे पाता है तो बैंक/वित्तीय संस्था अपना वास्तविक चरित्र दिखाते हुए ग्राहक पर तरह तरह के जुल्म ढाना शुरू कर देता है।

एक अच्छे और ज़िम्मेवार नागरिक होने के नाते समस्त देशवासियों को सलाह :

  • क़र्ज़ से बचने की कोशिस करें ।
  • एक सुखी जीवन जीने के लिए कोशिस करें की क़र्ज़ न लेना पड़े। अति आवश्यक हो तभी क़र्ज़ लें ।
  • अपनी क्षमता और ऋण अदायगी की अवधि के दौरान अपने कार्यों की सुनिश्चितता को ध्यान में रखकर ही क़र्ज़ लें।
  • ग़ैर आवश्यक वस्तुओं के लिए कभी भी क़र्ज़ न लें।
  • विलासिता संबंधी वस्तुओं को नज़र अंदाज़ करें।
  • क़र्ज़ लेने के बाद यदि किस्त नहीं दे पा रहे हैं तो बैंक/वित्तीय संस्था से संपर्क कर अपनी मजबूरियों को बताएँ।
  • बैंक/वित्तीय संस्था आपकी मदद नहीं करती है तो RBI में शिकायत दर्ज करें।