'मशाल' और शस्त्र परिचालन के साथ निकलता था, 'मंगला जुलूस'

(25 मार्च, रामनवमी पर्व के दूसरे 'मंगला जुलूस' पर विशेष)

'मशाल' और शस्त्र परिचालन के साथ निकलता था, 'मंगला जुलूस'

हजारीबाग की  रामनवमी को इंटरनेशनल रामनवमी के रूप में ख्याति दिलाने में मंगला जुलूस का बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान रहा है। 1955 में मंगला जुलूस का प्रारंभ इसलिए किसी गया था कि रामनवमी जुलूस के दौरान रामनवमी समिति के सदस्य गण  परंपरा गत शस्त्र का परिचालन, प्रदर्शन और करतब बहुत ही बेहतर ढंग से प्रस्तुत कर सकें । रामनवमी के जुलूस के दौरान पूरी तरह अनुशासन बना रहे,इस बात की भी जानकारी महासमिति और रामनवमी पूजा समिति के द्वारा सदस्यों को दी जाती थी  चैत्र मास में पड़ने वाला हर मंगला  जुलूस समय  के साथ शुरू हो और इस जुलूस का समापन समय के साथ हो। अर्थात हर मंगला जुलूस बृहद रामनवमी जुलूस का मिनी रामनवमी मंगला जुलूस की  तैयारी के तौर पर निकाला जाता रहा था । इस  परंपरा का आज भी कुछ बदलावों के साथ निर्वहन हो रहा है।
  हम सबों को यह भी जानना चाहिए कि हजारीबाग में रामनवमी पर्व की शुरुआत हिंदू धर्म में नव जागृति और सामाजिक जड़ता को समाप्त करने के परम उद्देश्य को लेकर की गई थी। श्री चैत्र रामनवमी महासमिति  के संस्थापकों ने 1955  मंगला जुलूस का शुभारंभ किया था।‌ आज  से 70  वर्ष पूर्व हजारीबाग में मंगल जुलूस का प्रारंभ हुआ था। इन 70 वर्षों के दौरान मंगला जुलूस के स्वरूप में काफी बदलाव हुआ है । 1955 में प्रारंभ हुए इस  मंगला जुलूस  में हजारों की संख्या में जलते हुए मशाल  शामिल होते थे । रामनवमी पूजा समिति के सैकड़ों उत्साही सदस्य गण अपने-अपने हाथों में जलते हुए मशाल लेकर हर चौक चौराहों पर प्रदर्शन किया करते थे।  तब का मशाल जुलूस देखते बनता था। इस  जुलूस में हजारों की संख्या में लोग शामिल होते थे । रामनवमी पूजा समिति के सदस्य गण हाथों में  मशाल को लेकर शस्त्र की तरह प्रदर्शन किया करते थे। इसके साथ ही यह भी ध्यान रखा जाता था कि मशाल  प्रदर्शन व परिचालक के दौरान किसी को कोई नुकसान न हो, इसका भी विशेष रूप से ख्याल रखा जाता था ।
  उस कालखंड में सूर्यास्त के बाद मंगला जुलूस का  शुभारंभ हो जाता था। यह मंगला जुलूस अर्ध रात्रि के बाद लगभग डेढ़ बजे रात्रि तक समाप्त हो जाया करता था।  तब आज की तरह इतनी संख्या में पुलिसिया व्यवस्था नहीं होती थी।  कुछ खास खास चौराहे पर पुलिस की व्यवस्था हुआ करती थी।  रामनवमी पूजा समिति और महासमिति के पदाधिकारी गण ही मिलजुलकर मंगला जुलूस को संभाल करते थे।  मंगला जुलूस के 70 वर्षों के इतिहास में कभी भी कोई झंझट नहीं हुआ ‌और न ही सांप्रदायिकता की स्थिति कभी बनी। विभिन्न धर्मों, पंथों और विचारों के लोग  अपने-अपने घरों से निकलकर मंगल जुलूस को बहुत ही श्रद्धा से देखा करते रहे हैं। मंगला जुलूस अपने निर्धारित समय से निकला करता  और निर्धारित समय पर  समाप्त हो जाया  करता था। 
   हजारीबाग में आयोजित होने वाले मंगला जुलूस में काफी संख्या में युवा, बच्चे और उम्रदराज लोग भी शामिल होते थे,  यह परंपरा आज तक बनी हुई है। लेकिन  आज मंगला जुलूस के स्वरूप में काफी बदलाव आ गया है ।आज मंगला  जुलूस में मशाल देखने को नहीं मिलते हैं । चूंकि  जैसे-जैसे वैज्ञानिक आविष्कार और आधुनिकता का प्रचार प्रसार बढ़ा वैसे वैसे जुलूस के स्वरूप में भी काफी बदलाव देखा जा रहा है । अब रंग बिरंगे लाइटों सुसज्जित मंगला जुलूस देखने को मिल रहा है । लेकिन मशाल जुलूस  की बात ही कुछ निराली हुआ करती थी ।
  बड़ा बाजार ग्वाल टोली के रामनवमी  पूजा समिति के पुराने सदस्य वयोवृद्ध  छोटेलाल गोप  ने बताया कि मंगला जुलूस हजारीबाग की रामनवमी को एक बेहतर स्वरूप प्रदान करने में महती भूमिका अदा करता  चला आ रहा है। चैत्र मास के आगमन के साथ ही हजारीबाग में रामनवमी की शुरुआत हो जाती है। कई बार होली पर्व के समापन के दूसरे दिन में मंगला  जुलूस निकाला गया था 
  जिस कालखंड में हजारीबाग में मंगला जुलूस का शुभारंभ हुआ था, उस कालखंड को पहलवानी के दौर के  रूप में जाना जाता था।  बड़ा बाजार, सरस्वती विद्या मंदिर के बगल में शुकुल  बाबा का पहलवानी अखाड़ा चलता था। इस अखाड़ा में नगर के कई जाने-माने पहलवान प्रशिक्षित होते थे।   शुकुल बाबा के अखाड़ा में नाग पंचमी के दिन कुश्ती का वार्षिक  मुकाबला होता था।  इस मुकाबले में हजारीबाग के विभिन्न मुहल्लों के पहलवान शामिल होते थे ।  इस कुश्ती मुकाबले में जो पहलवान विजयी घोषित होते थे, उन्हें शुकुल बाबा द्वारा गमछा, लंगोट और गंजी प्रदान कर सम्मानित किया जाता था। रामनवमी पर्व  के विस्तार में  इन अखाड़ों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका रही  थी। शुकुल बाबा के अखाड़ा में चैत्र मास के आगमन के साथ ही रामनवमी पूजा समिति के  सदस्य गण शस्त्र  परिचालन का अभ्यास किया  करते थे। इस  अखाड़े में लाठी, भाला, त्रिशूल, गदा, तलवार आदि  का कैसे परिचालन किया जाए ? प्रशिक्षकों द्वारा सिखाया जाता था।  इन परंपरागत शस्त्रों के संचालन के माध्यम से  आत्मरक्षा कैसे की जाए ?  इसकी भी शिक्षा दी जाती थी।
  शुकुल बाबा के अखाड़ा के साथ स्थानीय पंच मंदिर के महंत प्रयाग दास द्वारा भी एक अखाड़ा चलाया जाता था । पंच मंदिर के मैदान में भी मंगला जुलूस  में शामिल होने वाले उत्साही युवक गण  शस्त्र परिचालन सीखा करते थे।  प्रयाग दास राधा कृष्ण मंदिर के जाने वाले महंत थे ।‌ वे  खुद एक पहलवान थे। उन्होंने आजीवन ब्रह्मचर्य धर्म का पालन किया था ।वे साधु संतों के समागम के आयोजन लिए सदैव लगे रहते थे ।
   मंगला  जुलूस में शामिल होने वाले उत्साही युवकों को पहलवानी के साथ शास्त्र परिचालन की भी सिख प्रदान किया जाता था।लेकिन जैसे-जैसे आधुनिकता बढ़ी, शस्त्र परिचालन और  पहलवानी अखाड़े  खत्म होते चले गए।  यहां यह लिखना जरूरी हो जाता है कि रामनवमी और मंगला के जुलूस में संख्या में पहलवान शामिल होते थे । ये पहलवान विभिन्न प्रकार के परंपरागत शस्त्र का परिचालन कर हजारीबाग वासियों का ध्यान आकृष्ट करते थे।  लोग ऐसे पहलवानों के शस्त्र  परिचालन को देखने के लिए घंटों  चौक चौराहे पर इंतजार किया करते  थे।  हजारीबाग में बड़ा बाजार स्थित राधा कृष्ण पंच मंदिर स्थित प्रयाग दास का अखाड़ा, कुम्हार टोली स्थित महावीर मंदिर के महंत गौरी शंकर बाबा का अखाड़ा, बाडम बाजार स्थित बड़ा अखाड़ा मंदिर का अखाड़ा सहित कई अन्य अखाड़े संचालित थे।  लेकिन समय के साथ जिस तरह चीज बदलती हैं , ठीक उसी तरह समाज से धीरे-धीरे कर पहलवानी और शस्त्र परिचालन करने वाले अखाड़े  समाप्त होते चले गए थे। अब उसकी जगह जीम ने जगह ले ली है।  लेकिन जो  बात पहलवानी  में थी, जीम में कहां है ?
  संपूर्ण देश में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम की जयंती हर वर्ष चैत्र मास के  शुक्ल नवमी  के दिन मनाई जाती है । लेकिन मंगला जुलूस निकालने की परंपरा सिर्फ और सिर्फ हजारीबाग में है। झारखंड के 24 जिलों में रामनवमी का जुलूस बहुत ही धूमधाम के साथ निकाला जाता है ।‌लेकिन मंगला जुलूस निकालने की परंपरा सिर्फ हजारीबाग में है ।
 हजारीबाग के रामनवमी पर्व की लोकप्रियता का आलम यह है कि श्री चैत्र रामनवमी महासमिति के पूर्व अध्यक्ष अमर  दीप यादव ने 2022  सर्वप्रथम हजारीबाग रामनवमी को राजकीय पर्व घोषित करने की मांग झारखंड के मुख्यमंत्री से की  थी । अभी चार दिन पूर्व ही हजारीबाग के विधायक प्रदीप प्रसाद ने भी विधानसभा में हजारीबाग की रामनवमी को राजकीय परै  घोषित करने कीमांग की । उम्मीद है कि झारखंड सरकार हजारीबाग की रामनवमी पर्व पर गंभीरता पूर्वक विचार कर सकारात्मक निर्णय जरूर लेगी ।