'राम ग्यारहवीं जुलूस' ने सभी वर्ग के लोगों को एक सूत्र में बांध दिया है
(8 अप्रैल, हजारीबाग रामनवमी की 'राम ग्यारहवीं जुलूस' पर विशेष)

मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम की जयंती पर हजारीबाग जिले में निकलने वाले रामनवमी जुलूस का राम ग्यारहवीं के दिन अर्थात 8 अप्रैल की संध्या तक समाप्त हो जाता है। सर्वविदित है कि रामनवमी का यह जुलूस चैत्र शुक्ल नवमी के दिन निकाला जाता है। इस जुलूस में सौ से अधिक झांकियां शामिल होती हैं। हजारों हजार की संख्या में राम भक्त सहित समाज के सभी वर्ग के लोग इस रामनवमी के जुलूस में शामिल होते हैं। बाजे गाजे के साथ रामनवमी का यह जुलूस पूरे जुलूस मार्गों का भ्रमण करते हुए अर्ध रात्रि तक शांति प्रिय ढंग समाप्त हो जाया करता है। इस वर्ष भी ऐसा ही हुआ। दशमी के दिन भी हर वर्ष की तरह यह जुलूस पूरे जुलूस मार्गों का भ्रमण करते हुए, बिना रुके राम ग्यारहवीं में प्रवेश कर जाएगा। तीन दिनों तक चलने वाले इस जुलूस में शामिल राम भक्तों के उत्साह में कोई कमी नहीं दिखती है बल्कि उन सबों के उत्साह को देख कर बुढ़े और बच्चे भी नाच उठते हैं। यह नगर तीन दिनों तक जय श्री राम के नारो से गूंजायमान होता रहता है।
ध्यातव्य है कि तीन दिनों तक लगातार चलने वाले इस रामनवमी के जुलूस ने समाज के सभी वर्ग के लोगों को एक सूत्र में बांधकर रख दिया है। इस रामनवमी के जुलूस में विभिन्न धर्मावलंबियों के लोग खुले हृदय से शामिल होते हैं। वे सभी राम भक्तों के साथ मिलजुल कर नाचते गाते हुए जुलूस को आगे बढ़ाते रहते हैं। इस अवसर पर विभिन्न धर्मावलंबियों के लोग जुलूस मार्गों पर शस्त्र परिचालन कर आपसी भाईचारे का एक मिशाल प्रस्तुत कर जाते हैं। 1918 में शुरू हुआ यह जुलूस तब सिर्फ नवमी को दिन में ही निकल कर संध्या तक समाप्त हो जाया करता था। बाद के कालखंड में रामनवमी का जुलूस अर्धरात्रि तक समाप्त हो जाता करता था। लेकिन देश की आजादी के बाद 1948 के लगभग वासंतिक दुर्गा पूजा के जुलूस के साथ रामनवमी के जुलूस का विस्तार हो गया था। रामनवमी के जुलूस का वासंतिक दुर्गा पूजा के जुलूस के विस्तार में स्वर्गीय गुरु सहाय ठाकुर, हीरालाल महाजन, टीभर गोप, यदुनाथ बाबू, कर्मवीर सहित कई अन्य सामाजिक कार्यकर्ताओं का बड़ा ही योगदान था। तब यह रामनवमी का जुलूस नवमी के दिन निकलकर दसवीं की संध्या तक दुर्गा प्रतिमाओं के विसर्जन के साथ ही समाप्त हो जाया करता था।
1948 में रामनवमी जुलूस का वासंतिक दुर्गा पूजा के जुलूस के साथ मिलन से आगे चलकर यह और भी लोकप्रिय होता चला गया। इस जुलूस में समाज के सभी वर्ग के लोग जुड़ते चले गए और जुलूस का कारवां बढ़ता चला गया। संध्या तक विसर्जन हो जाने वाला यह जुलूस धीरे-धीरे कर अखाड़ों की झांकियों के बढ़ने के कारण जुलूस का आकार काफी बढ़ गया। जो जुलूस रामनवमी के दिन निकलकर दूसरे दिन दुर्गा प्रतिमा के विसर्जन के साथ ही संध्या तक समाप्त हो जाता था, अब यह जुलूस अर्धरात्रि को समाप्त होने लगा था । उस कालखंड में आज की तरह जनरेटर की व्यवस्था नहीं थी। इसलिए जुलूस धारी जुलूस में काफी संख्या में मशाल लेकर शामिल होते थे और इसी मशाल की रोशनी में शस्त्र परिचालन करते थे। यहां यह लिखना जरूरी हो जाता है कि रात्रि में रौशनी के लिए जुलूस धारी मशाल के साथ पेट्रोमैक्स, लालटेन आदि भी शामिल करते थे । अब सोचिए उस कालखंड की रामनवमी कैसी रहती थी ?
रामनवमी के जुलूस का राम ग्यारहवीं के जुलूस के रूप में रूपांतरित होने में लगभग 72 वर्ष लगे थे। चूंकि 1918 में सर्वप्रथम भगवान राम की जयंती पर हजारीबाग के वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता स्वर्गीय गुरु सहाय ठाकुर ने अपनी छ: मित्रों के साथ पहली बार रामनवमी का जुलूस निकाला था। रामनवमी का यह जुलूस 72 वर्षों तक कुछ विस्तार व परिवर्तन के साथ दसवीं के अर्ध रात्रि तक समाप्त हो जाया करता था। लेकिन रामनवमी जुलूस के बढ़ते आकार, लाखों की संख्या में शामिल होते राम भक्त गण, झांकियों की संख्या में लगातार वृद्धि एवं विधि व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए 1990 से यह जुलूस ग्यारहवीं की सुबह में जामा मस्जिद मार्ग से गुजरने लगा। पूरे जुलूस को गुजरने में लगभग 12 से 14 घंटे लग ही जाते हैं । रामनवमी के इस जुलूस को शांति प्रिय ढंग से गुजारने की दिशा में जिला प्रशासन का यह प्रयोग काफी सफल सिद्ध हुआ। रामनवमी का यह जुलूस सुबह-सुबह जामा मस्जिद मार्ग से गुजरने के दौरान बीते 34 वर्षों के दरमियान किसी भी तरह की कोई अशांति नहीं हुई। इस मार्ग में पर मुस्लिम धर्मावलंबियों द्वारा बड़े ही भव्य तरीके से राम भक्तों का स्वागत किया जाता है। जुलूस में शामिल राम भक्त गण जय श्री राम का जय घोष, शस्त्र परिचालन और नाचते गाते हुए बहुत ही हर्षित मन से गुजर जाते हैं। 1990 से रामनवमी का यह जुलूस राम ग्यारहवीं वीं के जुलूस में परिवर्तित हो गया। यह कहानी है, रामनवमी का जुलूस कैसे राम ग्यारहवीं के जुलूस में परिवर्तित हुआ।
हजारीबाग की रामनवमी जुलूस की खासियत यह है कि यह जुलूस अपने स्थापना काल से ही समाज के सभी वर्ग के लोगों को लेकर चलने का काम किया है। इस जुलूस ने समाज के सभी वर्ग के लोगों को जोड़ने का काम किया है। तीन दिनों तक चलने वाले इस जुलूस में अमीर - गरीब, छोटा - बड़ा, चाहे किसी जाति, धर्म, पंथ व विचार के हों, सभी मिलजुल कर नाचते गेट देखे जाते हैं। रामनवमी का यह जुलूस सांप्रदायिक सौहार्द के सूत्र को और भी मजबूती के साथ बांधने का काम किया है। इसी का प्रतिफल है कि यह रामनवमी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय हो पाया है। आज लोग हजारीबाग की रामनवमी को इंटरनेशनल रामनवमी,वर्ल्ड फेमस रामनवमी आदि नाम से जानने लगे हैं।
रामनवमी जुलूस की इन तामम उपलब्धियों के बावजूद कुछ मुट्ठी भर लोग हमारे भाईचारे और एकता को बाधित करने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं । लेकिन हम सबों ने विपरीत परिस्थितियों में भी भाईचारे और सांप्रदायिक सौहार्द के सूत्र को कभी बिखरने नहीं दिया बल्कि एक जुट होकर ऐसे सामाजिक तत्वों को प्रश्रय नहीं दिया। तीन दिनों तक चलने वाले इस रामनवमी जुलूस के अवसर पर पूरी तरह विधि व्यवस्था बनी रहे। असामाजिक तत्वों को कोई भी अवसर न मिले इस निमित्त हजारीबाग की उपयुक्त नैंसी सहाय ने कहा है कि 'रामनवमी पर्व शांतिपूर्ण माहौल में संपन्न हो । इसके लिए हजारीबाग जिला प्रशासन एवं पुलिस प्रशासन पूरी मुस्तैदी के साथ कार्य कर रही है। असामाजिक तत्वों पर नजर रखी जा रही है। विधि व्यवस्था बिगाड़ने की कोशिश करने वाले व्यक्ति के विरुद्ध कड़ी कानूनी कार्रवाई की जाएगी। जुलूस मार्गो से सटे निजी मकानों के छतों और खाली पड़े ग्राउंडों की तस्वीर कैद की जा रही है। ड्रोन और सीसीटीवी कैमरे की मदद से भी निगरानी की जा रही है। आगे उन्होंने कहा कि जिला प्रशासन द्वारा जारी निर्देशों का माइकिंग कर जरूरी एहतियात संबंधी जानकारी लोगों को दी जा रही है। साथ ही जगह-जगह पर आपातकालीन हेल्पलाइन नंबर, और क्या करें, क्या न करें से संबंधित बैनर, पोस्टर लगाकर भी लोगों को जागरूक किया जा रहा है।' रामनवमी जुलूस के दौरान हजारीबाग की विधि व्यवस्था पूरी तरह बनी रहे। य जुलूस शांति प्रिय ढंग से गुजरे । इस निमित्त हजारीबाग की उपयुक्त नैंसी सहाय एवं आरक्षी अधीक्षक अरविंद कुमार सिंह ने जैसी चुस्त दुरुस्त व्यवस्था कर रखी है। इस चुस्त-दुरुस्त व्यवस्था को देखकर यह कहा जा सकता है कि इस बार की रामनवमी बहुत ही शांति प्रिय से बीतेगी।
इसके साथ ही हम सबों को यह जानना चाहिए कि भगवान राम की जयंती पर उनके ही कालखंड में उत्सव मनाने की प्रक्रिया शुरू हुई थी। यह उत्सव की मनाने की प्रक्रिया आज तक जारी है। भगवान राम ने अहंकारी रावण का सर्वनाश कर सत्य को प्रतिष्ठित किया था। उन्होंने समाज में जिस मर्यादा और नैतिक मूल्यों की स्थापना की थी, उस पर आजीवन चलना ही सच्चे अर्थों में इस जीवन की यात्रा का सच्चा जुलूस होगा।