महागौरी माता की शक्ति अमोघ और सद्य फलदायिनी
(06 अप्रैल, वासंतिक नवरात्र के आठवें दिन महागौरी माता की आराधना पर विशेष)

देवी पुराण के अनुसार वासंतिक चैत्र नवरात्र के आठवें दिन माता महागौरी की आराधना का विधान है। महागौरी माता की भक्ति,पूजा, अर्चना और आराधना से भक्तों के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं । माता महागौरी दुर्गति नाशनी है । माता महागौरी कालनाशनी है । महागौरी माता की आराधना से भक्तों को इसी संसार में सब प्रकार के सुख, समृद्धि और शांति की प्राप्ति होती है तथा मृत्यु के बाद पुनः माता की सेवा में जन्म लेते हैं। समस्त प्राणियों की सुखदात्री महागौरी माता की कृपा से उनके भक्तगण सदा आनंद में रहते हैं। माता के भक्त दूसरे को भी आनंद प्रदान करते हैं। संसार में जितने भी प्रकार के सुख, शांति, समृद्धि और वैभव विद्यमान हैं। यह सब कुछ माता की ही कृपा है। शारदीय नवरात्र में अष्टमी के दिन पूजित होने वाले देवी महागौरी माता का विशेष महत्व है। इसलिए अष्टमी को महाष्टमी कहा जाता है। अष्टमी के दिन माता के भक्त गण निर्जला उपवास रखकर महागौरी माता की वंदना करते हैं।
देवी पुराण में वर्णन है कि महागौरी माता की उपासना से अमोघ और शीघ्र फल की प्राप्ति होती है । इनकी उपासना से भक्तों के सभी पाप धुल जाते हैं । भक्तों के पूर्व संचित पाप भी नष्ट हो जाते हैं ।भविष्य में पाप संताप करने से बच जाते हैं। दुःख उसके पास कभी नहीं आते । वे सभी प्रकार से पवित्र और अक्षय पुण्य के अधिकारी बन जाते हैं । महाअष्टमी के दिन सुहागन महिलाएं सदा सुहागन बने रहने के लिए माता के श्री चरणों में चुनरी अर्पित करती है । ऐसी सुहागन महिलाएं महागौरी माता के श्री चरणों में चुनरी अर्पित कर सदा सुहागन रहने का आशीर्वाद प्राप्त करती हैं।
महागौरी माता का स्वरूप पूर्ण गोर है। माता के इस गोरेपन की तुलना सिर्फ माता महागौरी से ही की जा सकती है । माता सफेद रंग का वस्त्र और सफेद रंग के पुष्प से बने आभूषण धारण की हुई है। उनका चित बिल्कुल शांत और सौम्य है। इनकी प्रतिमा के दर्शन मात्र से भक्तों को एक अजीत शांति की प्राप्ति होती है। माता महागौरी चारभुजा के साथ अपने भक्तों को दर्शन दे रही होती हैं। माता के एक हाथ में भगवान शिव का त्रिशूल, दूसरे हाथ में शिव का डमरु वहीं तीसरे हाथ से अभय का वरदान और चौथा हाथ से वर दे रही होती है। माता महागौरी भगवान शिव के वृषभ पर सवार होकर अपने भक्तों का पूजा स्वीकार कर रही होती है।
एक हाथ से भक्तों को आशीर्वाद दे रही होती है तथा दूसरे हाथ से वरदान भी दे रही होती है।
माता महागौरी अपने पार्वती रूप में भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए बड़ी कठोर तपस्या की थी। नारद पांचरात्र में संत कवि गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा है कि 'जन्म कोटि लगी रगर हमारी/ बरऊं शंभु न त रहऊं कुंवारी।' अर्थात माता पार्वती इस जन्म में यह संकल्प लेती हैं कि अगर विवाह करूंगी तो शिव से ही। उन्हें विवाह करने के लिए कोटि-कोटि जन्म क्यों न लेना पड़े। माता पार्वती ने शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठिन तपस्या की थी । जिस कारण उनका शरीर एकदम काला पड़ गया था। माता महागौरी की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उनके शरीर को गंगा जी के पवित्र जल से मलकर धोया था। तब माता पार्वती विद्युत प्रवाह के समान अत्यंत कांतिमान और गोरी हो गई थीं। इस कारण उनका नाम महागौरी पड़ा था।
आदिशक्ति स्वरूपा देवी माता के भक्तों को यह जानना चाहिए कि पाप और पुण्य दोनों मां के ही पुत्र हैं। दोनों को मां समान रूप से जन्म देती हैं। लेकिन एक अपने प्रारब्ध कर्म के कारण पाप में परिवर्तित होता और दूसरा पुण्य में। जब सृष्टि में पाप बढ़ जाते हैं। तब पुण्य जनों के उद्धार के लिए माता प्रकट होती हैं। नवरात्र की उपासना का उद्देश्य है, असत्य को पराजित कर सत्य को स्थापित करना। असत्य कितना भी विशाल क्यों न हो जाए, वह कालजयी नहीं हो सकता है। उसे एक न एक दिन सत्य के हाथों पराजित होना ही होता है। नवरात्र का पर्व हम सबों को सत्य के साथ खड़े होने की सिख प्रदान करता है।
यह पर्व सिर्फ भारत देश तक ही सीमित नहीं है। हिंदू धर्म को मानने वाले विश्व भर में जहां-जहां भी हैं, सभी नवरात्र व दशहरा का पर्व बड़े ही धूमधाम के साथ मनाते हैं। देश में प्रचलित सभी पर्वों के बीच नवरात्र पर्व का एक विशेष स्थान और महत्व है। इसे सब लोग बड़े ही धूमधाम के साथ और मिलजुल कर मनाते हैं। यह पर्व हम सबों को एक साथ मिलकर रहने की भी सीख प्रदान करता है।
देवी पुराण में वर्णन है कि जब पृथ्वी पर आसुरी शक्तियां बहुत ही प्रबल हो गई थीं। आसुरी शक्तियों के अत्याचार से देवगण भयाक्रांत हो गए थे। आसुरी शक्तियों के वर्चस्व इतने बढ़ गए थे कि देवगण के सिंहासन भी आसुरी शक्तियों के अधीन हो गए थे। आसुरी शक्तियों की रक्षा के लिए सभी देवताओं ने मिलकर माता दुर्गा की आराधना की थीं। एक कथा के अनुसार भगवान विष्णु, भगवान शिव और भगवान ब्रह्मा जी के तेज से आदि शक्ति स्वरूपा मां दुर्गा अवतरित हुई थीं। इस महायुद्ध में संपूर्ण ब्रह्मांड हिल गया था । आकाश से बादल टूटकर गिरने लगे थे। हवा की तरह पर्वत इधर से उधर बह रहे थे ।आकाश से सिर्फ और सिर्फ आग ही वर्षा हो रही थी। युद्ध सत्य और असत्य के बीच चल रही थी। आसुरी शक्ति महिषासुर ने विभिन्न रूपों में भेष बदलकर माता को पराजित करने का संपूर्ण कोशिश किया था। लेकिन उस अहंकारी महिषासुर को यह पता ही नहीं था कि उसके पास जो भी शक्तियां विराजमान थीं। सभी मां की कृपा से ही प्राप्त हुई थी। महिषासुर की शक्तियां, मां की तेज का एक अंश भी नहीं था। उसे इस अंश पर इतना गुमान था। मां उन्हें अपनी पूर्ण शक्ति को प्रदर्शित करने का अवसर दे रही थीं। माता ने उसे अपनी गलती स्वीकार करने का भी अवसर पर अवसर प्रदान करती चली जा रही थीं। इसके बावजूद महिषासुर को अपने अहंकार का भान ही नहीं हो रहा था। अन्ततः माता ने अपने त्रिशूल से महिषासुर का सर्वनाश कर दिया था।
माता महागौरी बहुत ही कल्याणकारी देवी के रूप में पूजी जाती हैं। शारदीय नवरात्र पर इनकी आराधना संपूर्ण देश में बहुत ही भक्ति पूर्ण ढंग से होती है। महाअष्टमी के दिन माता के दरबार में महाभोग का आयोजन होता है । शारदीय नवरात्र के अष्टमी के दिन देश में स्थापित लगभग सभी पंडालों में महा भोग का आयोजन होता है। भक्तों के बीच तरह-तरह के पकवान बांटे जाते हैं । माता का प्रसाद श्रद्धा पूर्वक खाने वाले भक्तों के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं । मां के प्रसाद में इतनी ताकत होती है कि उसका मन पाप कर्म में से दूर भागता है , तथा सत्कर्म करने की ओर खुद ब खुद पैर आगे बढ़ जाते हैं। इसलिए महाअष्टमी के दिन भक्तों को मन और चित शांत कर पूरे ध्यान से माता महागौरी की आराधना करनी चाहिए । शारदीय नवरात्र पूजा के नौ दिनों की पूजा का बड़ा महत्व है, लेकिन महाष्टमी की पूजा का विशेष महत्व है । इसलिए भक्तों को महाष्टमी के दिन बहुत ही ध्यान के साथ माता महागौरी की पूजा - वंदना करनी चाहिए।