सुहागिनों ने वट वृक्ष की पूजा कर अमरत्व-बोध और सुहाग के पुरुषत्व का वरदान माँगा
“मूले ब्रह्मा तना विष्णु शाखा शाखा महेश्वराय” वट वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु व महेश यानी त्रिदेव का वास है।
वट वृक्ष दीर्घायु, अमरत्व-बोध और ज्ञान का प्रतीक है। महिलाएं व्रत-पूजन कर, कथा पढ़ के, वट वृक्ष के चारो तरफ सूत के धागे को लपेटते हुए परिक्रमा करती हैं। धागा लपेटते हुए महिलाएं सावित्री-सत्यवान की कथा का स्मरण करती हैं कि जिस तरह सावित्री ने अपने पति के प्राणों की रक्षा की थी, उसी तरह हे ब्रह्मा, विष्णु और महेश यानी त्रिदेव हमारे परिवार की रक्षा करें।
बरगद का पेड़ पुरुषत्व का प्रतीक है। बरगद के पत्ते का दूध पुरुषत्व की दिव्य औषधि होती है। एक तरह से वट पति-पत्नी के अखंड प्रेम का भी प्रतीक है। इस वृक्ष की आयु बहुत ज्यादा होती है, यही कारण है कि पति की दीर्घायु के लिए उसके समक्ष प्रार्थना की जाती है। बरगद के वृक्ष के गुणों को समझने की आवश्यकता है। यह ज्ञान और शक्ति से भरा हुआ है। यह जेष्ठ माह की भयंकर गर्मी यानी जीवन की विपरीत परिस्थितियां एवं संकट से बचाता है। वट यानी बरगद एक ऐसा वृक्ष है जिसके नीचे सूर्य का ताप नहीं पहुंचता है, जिसकी जड़ें बहुत ही मजबूत और विस्तृत होती हैं और तने से जो जड़ें नीचे पहुंचती हैं वह भी वृक्ष को मज़बूती देती है। बरगद का वृक्ष भारतीय संस्कृति में संयुक्त परिवार और संस्कार को मजबूती प्रदान करने का प्रतीक है। यह वृक्ष भारतीय नारी की जीवटता और उसके पति की आयु वृद्धि लिए संघर्ष का भी प्रतीक है। स्त्रियों के लिए यह व्रत बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। इस दिन सुहागिनें बरगद की छांव में बैठ कर पूजा पाठ करती हैं और अपने पति के दीर्घायु, परिवार में सुख समृद्धि की कामना करती हैं।
तिथियों में भिन्नता होते हुए भी व्रत का उद्देश्य एक ही है : सौभाग्य की वृद्धि और पतिव्रत के संस्कारों को आत्मसात करना। कई व्रत विशेषज्ञ यह व्रत ज्येष्ठ मास की त्रयोदशी से अमावस्या तक तीन दिनों तक करने में भरोसा रखते हैं। इसी तरह शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी से पूर्णिमा तक भी यह व्रत किया जाता है। विष्णु उपासक इस व्रत को पूर्णिमा को करना ज्यादा हितकर मानते हैं। वट सावित्री व्रत में ‘वट’ और ‘सावित्री’ दोनों का विशिष्ट महत्व माना गया है। वट वृक्ष अपनी विशालता के लिए भी प्रसिद्ध है। संभव है वनगमन में ज्येष्ठ मास की तपती धूप से रक्षा के लिए भी वट के नीचे पूजा की जाती रही हो और बाद में यह धार्मिक परंपरा के रूप में विकसित हो गई हो। दार्शनिक दृष्टि से देखें तो वट वृक्ष दीर्घायु व अमरत्व-बोध के प्रतीक के नाते भी स्वीकार किया जाता है। वट वृक्ष ज्ञान व निर्वाण का भी प्रतीक है। महिलाएँ व्रत-पूजन कर कथा कर्म के साथ-साथ वट वृक्ष के आसपास परिक्रमा के दौरान सूत के धागे लपेटती हैं।
अमरत्व-बोध का प्रतीक है बरगद
पुराणों में वर्णित है “मूले ब्रह्मा तना विष्णु शाखा शाखा महेश्वराय”। इससे स्पष्ट है कि वट वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु व महेश यानी त्रिदेव का वास है। मूले ब्रह्मा अर्थात ब्रह्मा जी बरगद के पेड़ की मूल यानी जड़ में विराजमान हैं, अब सभी जानते हैं कि जड़ का दायित्व बहुत जिम्मेदारी भरा होता है। इतने बड़े वृक्ष को भूमि पर अडिग और सँभाले रखने का काम जड़ ही करती है, यही कारण है कि बरगद की जड़ बहुत गहरी होती है और यह जड़ें ऊपर तक आ जाती हैं इसलिए ब्रह्मा जी का वास इनकी जड़ों में बताया गया है, क्योंकि ब्रह्मा जी सृष्टि के जनक हैं और जीवों को अडिग और सँभाले रखना भी ब्रह्मा के हाथ में ही है। तना विष्णु यानी जो पेड़ को एक स्वाभिमान के साथ खड़ा रखता है, जो वृक्ष के पुरुषत्व को दर्शाता है, पौरूष बढ़ाता है इसीलिए सुहागिनें तना में विराजित श्री हरि विष्णु को साक्षी मन यह प्रार्थना करती हैं की उनके पति को पुरुषत्व प्रदान कर मार्गदर्शन करें । शाखा महेश्वरा का अर्थ है महादेव बरगद की हर शाखा में विराजित हैं और इन्हीं शाखाओं से जड़ के स्वरूप में उनकी शाखाएं सुशोभित होती हैं और यह शाखाएं महादेव की भुजाओं की तरह बहुत विशाल हैं। महादेव की भुजाओं की छाया के नीचे उनकी कृपापात्र बनकर समस्त सुहागिनें सुरक्षित एवं सदा सुहागिन रहती हैं। इतने अधिक गुणों वाला दूसरा कोई वृक्ष नहीं है। इसीलिए बरगद के वृक्ष के नीचे बैठकर पूजन, व्रत कथा आदि सुनने से एक नई ऊर्जा का संचार होता है । वट वृक्ष अपनी विशालता के लिए भी प्रसिद्ध है। वट वृक्ष के इन्हीं गुणों को देखते हुए उसको भारत का राष्ट्रीय वृक्ष भी बनाया गया है।