स्वाधीनता आंदोलन के अप्रतिम योद्धा : लाल बहादुर शास्त्री (118वीं जयंती पर विशेष)

लाल बहादुर शास्त्री, महात्मा गांधी के बाद दूसरे ऐसे बड़े नेता के रूप में साबित हुए, जिनकी बातों का भारतीय समाज पर बहुत ही व्यापक असर हुआ। लाल बहादुर शास्त्री का जीवन त्याग और बलिदान से ओतप्रोत है।

स्वाधीनता आंदोलन के अप्रतिम योद्धा : लाल बहादुर शास्त्री (118वीं जयंती पर विशेष)

विजय केसरी

देश के महान स्वाधीनता सेनानी भारत के द्वितीय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री अदम्य साहस के प्रतिमूर्ति थे। उनका संपूर्ण जीवन त्याग और बलिदान से ओतप्रोत रहा । वे सच्चे अर्थों में स्वाधीनता आंदोलन के एक अप्रतिम योद्धा थे । उनका व्यक्तित्व और कृतित्व सदा देशवासियों को प्रेरित करता रहेगा । वे महात्मा गांधी के आह्वान पर मात्र सोलह साल की उम्र में स्वाधीनता आंदोलन से जुड़ थे। स्वाधीनता आंदोलन से लेकर, उन्होंने जो भारत माता की सेवा की बेमिसाल रहा था। वे एक निर्भीक और साहस से ओतप्रोत प्रधानमंत्री के रूप में अपनी पहचान बनाए थे । उनकी सादगी, सरलता, सहजता, सत्य पथ पर चलने और राष्ट्र भक्ति देखते बनती थी । उनके लिए राष्ट्र ही सब कुछ था । राष्ट्र की सेवा करते हुए ही उन्होंने अपनी जान तक गंवा थी। उन्होंने गांधी के पद चिन्हों पर आजीवन चलकर एक मिसाइल कायम किया। वे कद काठी के छोटे जरूर थे किन्तु उतना ही विशाल उनका दिल था। वे देश की जनता से बेपनाह मोहब्बत करते थे। जनता के प्रति उनका प्रेम देखते बनता था। भारत पर बुरी नजर रखने वाले देशों के प्रति उनका नजरिया सख्त था। वे विपरीत परिस्थितियों से बिल्कुल घबराते नहीं थे बल्कि अपने अदम्य साहस के बल पर परिस्थितियों को अपने अधीन कर लिया करते थे ।
पंडित जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद जब वे देश के प्रधानमंत्री बने थे । संपूर्ण देश में अनाज की भीषण किल्लत थी। अमेरिका जैसे देश से लाल गेहूं भारत आता था। इसी लाल गेहूं से देशवासी अपनी भूख मिटाते थे। जबकि भारत का इतिहास कदापि ऐसा ना था। भारत अनाज मामले में पूरी तरह आत्मनिर्भर था। इस बात को लाल बहादुर शास्त्री भली-भांति जानते थे। इसलिए उन्होंने एक संकल्प लिया कि चाहे कुछ भी हो जाए अमेरिका से गेहूं नहीं मंगाया जाएगा । उन्होंने खुद और अपनी पत्नी, बच्चों सहित एक दिन का उपवास रखा। उसके पश्चात उन्होंने देशवासियों से अपील की कि हम सब एक दिन का उपवास रखेंगे और अमेरिका से खाने के लिए गेहूं नहीं मंगवाएंगे। उनकी अपील का ऐसा असर हुआ कि संपूर्ण देशवासियों ने उपवास रखना प्रारंभ कर दिया था। इसका समाज पर बड़ा ही व्यापक असर हुआ।
उन्होंने देश को अनाज के मामले में आत्मनिर्भर बनाने के लिए त्वरित कार्रवाई की। उन्होंने किसानों के साथ लगातार बैठकें की। किसानों की समस्याओं को दूर किया। संपूर्ण देश के किसान देश को अनाज के मामले में आत्मनिर्भरता बनाने की दिशा में जुट गए । भारत देखते ही देखते अनाज के मामले में आत्मनिर्भर बन गया । जब वे देश के प्रधानमंत्री बने थे, तब आज की तरह परिस्थितियां ना थी बल्कि पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान से बार-बार सीमा पर सैनिक हस्तक्षेप के कारण अशांति बनी हुई थी। चीन से युद्ध में भारत के पराजय से हजारों एकड़ जमीन चीन के हाथों में चल जाना आदि कई विकट समस्या थी । इसे ध्यान में रखते हुए लाल बहादुर शास्त्री ने सीमा की सुरक्षा को और मजबूत किया। उन्होंने देश की सीमा रक्षा को मजबूत करने के लिए सेना प्रमुखों के साथ बैठकें की। बैठक में देश की रक्षा व्यवस्था कैसे मजबूत हो ? इस दिशा में उन्होंने कई आवश्यक निर्णय लिया। उन्होंने कई योजनाओं का शिलान्यास किया ।
इसी समय उन्होंने ‘जय जवान और जय किसान’ का नारा संपूर्ण देश में दिया । उक्त नारा के माध्यम से देश को सीमा सुरक्षा की दिशा में और अनाज की आत्मनिर्भरता की दिशा में मजबूती प्रदान करने के लिए देशवासियों का ध्यान आकृष्ट किया था। देशवासियों का ध्यान देश की सेना और किसानों पर गया । संपूर्ण देश ने किसानों और सैनिकों को मनोबल को बढ़ाया । इसका आने वाले दिनों में भारतीय समाज पर बहुत ही व्यापक असर हुआ। देश के सैनिकों और किसानों का मनोबल बढ़ा। ये देश के दो महत्वपूर्ण स्तंभ पूरी मजबूती के साथ अपने अपने क्षेत्र में आगे बढ़ने लगे। आज देश जो अनाज के मामले में आत्मनिर्भर है। इसमें लाल बहादुर शास्त्री की बड़ी देन है। आज देश सुरक्षा के मामले में इतना मजबूत है। इसका ताना-बाना लाल बहादुर शास्त्री के प्रति प्रधानमंत्री काल में ही हो गया था।
लाल बहादुर शास्त्री, महात्मा गांधी के बाद दूसरे ऐसे बड़े नेता के रूप में साबित हुए, जिनकी बातों का भारतीय समाज पर बहुत ही व्यापक असर हुआ। लाल बहादुर शास्त्री का जीवन त्याग और बलिदान से ओतप्रोत है।
भारतीय स्वाधीनता आंदोलन में उनका पदार्पण आंदोलन की गति को तेज और मजबूती प्रदान के लिए हुआ था। वे जल्द ही राष्ट्रीय नेताओं की पंक्ति में आ गए थे। 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ। लाल बहादुर शास्त्री ने कांग्रेस पार्टी को मजबूत बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ा । उन्होंने कांग्रेस पार्टी को मजबूत करने के लिए संपूर्ण देश की यात्रा की थी। फलस्वरुप संगठनात्मक रूप से कांग्रेस पार्टी देश भर में मजबूत हुई थी।इसी का प्रतिफल था कि देश में लंबे समय तक कांग्रेस पार्टी का शासन रहा । देश की आजादी के बाद लाल बहादुर शास्त्री उत्तर प्रदेश की राजनीति से जुड़ गए थे । उन्होंने उत्तर प्रदेश के गृह मंत्री पद पर रह कर अपनी विशिष्टता का परिचय दिया था। उनकी विलक्षण प्रतिभा को देखकर अखिल भारतीय कांग्रेस पार्टी ने उन्हें केंद्र की सेवा से जोड़ दिया। उन्होंने केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों का दायित्व संभाला । रेल मंत्री पद में रहते हुए, जब एक बार रेल दुर्घटना हो गई, जिसमें कई जाने चली गई थी। उन्होंने इस दुर्घटना की जवाबदेही स्वयं पर लिया और उन्होंने रेल मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। उनके इस इस्तीफा का भारतीय समाज पर बड़ा ही व्यापक प्रभाव पड़ा। देश की आजादी के बाद यह पहली घटना थी, जिसमें एक केंद्रीय मंत्री अपनी जवाबदेही स्वीकार कर मंत्रिपरिषद से इस्तीफा दिया हो। जब प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू अस्वस्थ रह रहे थे, तब बिना किसी विभाग के मंत्री रहते हुए उन्होंने केंद्रीय मंत्रालय के विभिन्न विभागों का संचालन बड़े ही सफलतापूर्वक किया था ।
जवाहर लाल नेहरू के निधन के बाद वे देश के द्वितीय प्रधानमंत्री बने थे । वे मात्र अट्ठारह महीने ही देश के प्रधानमंत्री के रूप में अपनी सेवा दे पाए थे। उनका यह अट्ठारह माह हमेशा के लिए एक यादगार माह बन गया। देश की उन्नति के लिए उन्होंने जिन योजनाओं का शिलान्यास किया । आज उन योजनाओं का लाभ संपूर्ण देश को मिल रहा है। उनकी प्रसिद्धि सिर्फ देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी फैल गई थी । पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान, लाल बहादुर शास्त्री के कुशल और मजबूत नेतृत्व से हिल गया था। चीन भी भारत की ओर नजर उठाने का दुस्साहस भी नहीं कर पा रहा था । उन्होंने देश को आंतरिक और बाहरी रूप से मजबूती प्रदान करने में लाल बहादुर शास्त्री ने कोई कसर नहीं छोड़ा। वे अट्ठारह अट्ठारह घंटे नियमित काम किया करते थे। वे अवकाश के दिन भी काम किया करते थे । काम उनके जीवन का एक अभिन्न हिस्सा बन गया था ।उन्होंने कहा था कि ‘देश का काम कर मुझे आनंद की प्राप्ति होती है। मैं देश का काम कर कभी थकता भी नहीं।’ यह उनके अंदर के अदम्य साहस और देश के प्रति उनकी सत्य निष्ठा को प्रदर्शित करता है । वे प्रधानमंत्री रहते हुए भी एक आम भारतीय की तरह जीवन जीते थे। एक बार उनकी पत्नी श्रीमती ललिता जी ने दो तरह की सब्जी परोस दी थी। तब उन्होंने कहा था कि ‘देशवासियों को ढंग से एक सब्जी भी नसीब नहीं हो पाती है। तुमने मुझे दो तरह सब्जी दे दी। इसलिए मुझे तुम एक ही सब्जी देना।’ यह कहकर उन्होंने एक सब्जी का कटोरा अपने भोजन की थाली से अलग कर दिया था। इस छोटे से उदाहरण से यह बात पर परिलक्षित होती है कि लाल बहादुर शास्त्री देशवासियों का ख्याल कितना रखे थे।
वे महात्मा गांधी की तरह अंतिम व्यक्ति तक विकास पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़े थे। लाल बहादुर शास्त्री समय के बड़े पाबंद थे। वे फिजूलखर्ची को देश हित में नहीं मानते थे। वे छोटी-छोटी बचत के माध्यम से देश की आर्थिक स्थिति को मजबूत करना चाहते थे । उनकी सोच थी कि एक – एक भारतीयों के बचत से ही राष्ट्र को समृद्धि बनाया जा सकता। हम सब को उनकी सादगी, सरलता, सहजता, ईमानदारी, श्रद्धा, निष्ठा और देश प्रेम से सीख लेनी चाहिए।