समस्त सिद्धियों की प्रदाता देवी माता सिद्धिदात्री हैं 

(06 अप्रैल, वासंतिक चैत्र नवरात्र के नौवें दिन सिद्धिदात्री माता  की आराधना पर विशेष)

समस्त सिद्धियों की प्रदाता देवी माता सिद्धिदात्री हैं 

दुर्गा सप्तशती के अनुसार  अनुसार वासंतिक चैत्र नवरात्र के नौवें दिन माता सिद्धिदात्री की आराधना का विधान है।माता सिद्धिदात्री समस्त सिद्धियों की प्रदाता देवी के रूप में पूजित होती हैं । शिव पुराण के अनुसार भगवान शिव ने माता सिद्धिदात्री की कृपा से ही  समस्त सिद्धियों को प्राप्त किया था। माता सिद्धिदात्री की अनुकंपा से ही भगवान शिव का शरीर देवी का हो गया था।‌ इसीलिए भगवान शिव को अर्धनारीश्वर के नाम से भी जाना जाता है । हिंदू धर्म ग्रंथ शास्त्रों अनुसार शिव और पार्वती दोनों एक ही हैं। संसार को एक नया रूप  व आकार देने और जगत के कल्याण के लिए उन्होंने स्वयं को शिव और पार्वती के रूप में विभक्त किया था । अन्यथा दोनों एक ही हैं । भगवान शिव की स्तुति करने पर भक्तों को माता पार्वती की भी कृपा प्राप्त होती है । अगर भक्त माता पार्वती की उपासना करते हैं, तो  उन्हें भगवान शिव की  कृपा प्राप्त होती है। जो भी साध सालों भर माता सिद्धिदात्री की उपासना करते हैं, उन्हें जीवन में कभी भी कष्ट और व्याधियों का सामना नहीं करना पड़ेगा।
   माता सिद्धिदात्री परम शांति प्रदान करने वाली देवी के रूप में भी जानी जाती हैं । माता सिद्धिदात्री पद्मासना देवी के रूप में भी जानी जाती हैं । माता सिद्धिदात्री कमल पुष्प पर विराजमान होकर अपने भक्तों को दर्शन देती हैं । सिद्धिदात्री माता चार भुजा धारी हैं ।  उनके एक हाथ में भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र है।  वहीं दूसरे हाथ में भगवान विष्णु का शंख है। माता के तीसरे हाथ में भगवान विष्णु का गदा है ।  चौथे हाथ में कमल पुष्प है।‌ अर्थात माता सिद्धिदात्री भगवान विष्णु के समस्त अस्त्र शास्त्रों और पुष्प के साथ अपने भक्तों को दर्शन दे रही होती हैं। अपने भक्तों को समस्त सिद्धियां को देने वाली माता बड़ी ही दयालु और कृपालु हैं। देवी पुराण के अनुसार माता सिद्धिदात्री की कृपा से ब्रह्मांड पर पूर्ण विजय प्राप्त करने का भी सामर्थ्य भक्तों में आ जाता है ।‌ अर्थात माता इतनी दयालु और कृपालु हैं ,अपने भक्तों के लिए।
   दुर्गा सप्तशती में नवरात्र पर सर्वप्रथम माता शैलपुत्री, दूसरे दिन माता ब्रह्मचारिणी, तीसरे दिन माता चंद्रघंटा, चौथे दिन माता कुष्मांडा, पांचवें दिन माता स्कंदमाता, छठे दिन माता कात्यायनी, सातवें दिन माता कालरात्रि, आठवें दिन माता महागौरी और नौवे दिन माता सिद्धिदात्री की उपासना का विधान बताया गया है। आदिशक्ति माता दुर्गा अपने इन नौ रूपों के माध्यम से अपने भक्तों के कष्टों को हरती हैं। साथ ही माता अपने भक्तों को सत्य की  राह पर चलने का मार्ग प्रशस्त करती हैं। समस्त सिद्धियों की प्रदाता देवी सिद्धिदात्री सभी प्रकार की सीढ़ियां को देनेवाली  हैं। मार्कंडेय पुराण के अनुसार अणिमा, महिमा, गरिमा,  लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व, वशित्व कुल आठ सिद्धियां होती हैं, लेकिन ब्रह्मवैवर्त पुराण के श्री कृष्णा जन्म खंड में अठारह का उल्लेख मिलता है।
   श्री कृष्ण जन्म खंड के अनुसार  सिद्धियां  अणिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, महिमा, ईशित्व, वशित्व, सर्व कामावसायिता, सर्वज्ञत्व, दूरश्रवण,  परकाया प्रवेशन, वाक सिद्धि , कल्प वृक्षत्व, सृष्टि, संघार करण सामर्थ्य, अमरत्व,  सर्व न्यायकत्व, भावना एवं सिद्धि कुल अठारह सीढ़ियां हैं। दुर्गा माता के उपासक अपनी सघन  भक्ति से सिद्धिदात्री माता से ये सिद्धियां प्राप्त कर सकते हैं। हर साधक का यह कर्तव्य है कि वह माता सिद्धिदात्री की कृपा प्राप्त करने का निरंतर कोशिश करें । माता की कृपा में ही सभी सिद्धियों निहित होती हैं । माता की कृपा से बड़ी कोई भी सिद्धी नहीं होती हैं । भक्त  माता की इन सिद्धियों को प्राप्त कर कुछ विशेष जरूर बन जाते हैं, लेकिन उनकी कृपा ही सबसे बड़ी सिद्धि होती है।
   संसार में जिन लोगों के पास यश, धन, पद, बुद्धि, ज्ञान आदि जो कुछ भी है, माता सिद्धिदात्री की ही अनुकंपा से प्राप्त हुई होती है। माता की इस विशेष कृपा को प्राप्त कर व्यक्ति को जग कल्याण के लिए अग्रसर होना चाहिए।  माता जो अपने भक्तों पर कृपा करती हैं, उसके पीछे एक ही उद्देश्य निहित होता है कि संसार में कोई भी व्यक्ति कष्ट में न हो।  कोई भी व्यक्ति भूख न सोए।  कोई भी व्यक्ति चिंतित न हो । इसलिए  धनवानों का पहला कर्तव्य बनता है कि माता के भूखे सो रहे बच्चों को खाना खिलाए। उनकी चिंता को दूर करने के लिए जो बन पड़ता है, सहयोग अवश्य करें। समाज में कई लोग ऐसे मिल जाएंगे, जिनके पास अपार धन और संपदा है। इसके बावजूद  वे रति भर धन समाज की भलाई में नहीं लगते हैं । ऐसे लोग अगले जन्म में धन और संपदा से काफी दूर हो  जाते हैं । इसलिए हर धनवान व्यक्ति कमजोर लोगों की सेवा में आगे जरुर आएं। सच्चे अर्थों में नवरात्र यही है। शारदीय नवरात्र पर आप नए-नए वस्त्र पहन कर मां का दर्शन करें और आपके घर के बगल का परिवार बिना भोजन का रहे। तब इन नए-नए वस्त्रों को धारण कर मां के दर्शन का क्या औचित्य  रह जाता है ? इसलिए नए-नए वस्त्रों को धारण कर मां का दर्शन करने से पूर्व अपने अगल-बगल के लोगों के घरों का क्या हाल है ? यह देखना और उनकी भलाई करना नवरात्र है।
  नव दुर्गा में मां सिद्धिदात्री अंतिम देवी के रूप में अपने भक्तों को दर्शन देती है ।‌ इससे पूर्व आदिशक्ति मां दुर्गा अपने विभिन्न आठ स्वरूपों में बहुत ही विधि विधान के साथ अपने भक्तों से पूजा ग्रहण करती हैं । अंत में माता, सिद्धिदात्री के रूप में भक्तों के समक्ष उपस्थित होकर समस्त सिद्धियां  प्राप्त कर जाती हैं । भक्तों को यह जानना चाहिए कि माता सिद्धिदात्री की उपासना पूर्ण कर लेने के बाद भक्तों और साधकों की लौकिक पारलौकिक सभी प्रकार की कामनाओं की पूर्ति हो जाती है।  सिद्धिदात्री मां के कृपा पात्र भक्त के भीतर कोई ऐसी कामना शेष बचती ही नहीं, जिसे वह पूर्ण करना चाहे।  वह सभी सांसारिक इच्छाओं आवश्यकताओं से ऊपर उठकर मानसिक रूप से मां भगवती के दिव्य लोकों  में विचरण करता हुआ उनके कृपा रस पीयूष का निरंतर पान करता हुआ, विषय भोग शून्य हो जाता है । मां भगवती का परम सानिध्य ही उसका सर्वस्व हो जाता है । इस परम पद को पाने के बाद उसे किसी भी वस्तु की आवश्यकता शेष नहीं रह जाती है।
  वासंतिक नवरात्र पर माता सिद्धिदात्री की पूजा व  उपासना के बाद नवरात्र की पूर्ण होती हो जाती है।  इसलिए हर एक साधक को बहुत ही पवित्र और निर्मल मन से मां  की आराधना करनी चाहिए।  समस्त सिद्धियों  की प्रदाता देवी सिद्धिदात्री के समक्ष अपनी सारी बुराइयों को त्यागने का भी संकल्प करना चाहिए। इसके साथ ही जीवन में खुद से कोई गलती न  हो, इसका भी संकल्प लेना चाहिए। माता की कृपा सदा भक्तों पर बनी रहे, यह भी प्रार्थना करनी चाहिए। माता के नौ रूपों के नामों के लेकर यज्ञ कुंड में आहुतियां दी जाती हैं । इसके साथ ही विश्व कल्याण की कामना के लिए भी आहुति दी जाती। ‌ इस आहुति के बाद ही नवरात्र की पूर्णाहुति होती है।‌ इस अवसर पर नौ  कुंवारी कन्याओं को माता के समान श्रृंगार,सम्मान, प्रसाद और दक्षिण प्रदान कर विदाई दी जाती है।  इसके पीछे उद्देश्य यह निहित है कि नारी शक्ति का स्वयं से कभी भी अपमान न हो।  एक नई माता के रूप में होती है। दूसरी ओर एक नारी अर्धांगिनी के रूप में भी होती हैं । एक नारी बहन के रूप में होती हैं। एक  नारी बेटी के रूप में भी होती हैं। इसलिए कभी भी नारी शक्ति का किसी भी स्तर पर अपमान नहीं होना चाहिए ।‌ हमारे धर्म शास्त्रों में यह वर्णित है कि जिस घर में स्त्री पर जुल्म होते हैं, उस घर में कभी भी सुख, समृद्धि, और शांति का वास नहीं हो सकता है। इसलिए सबसे पहले अपने ही घर की नारी शक्ति का सुध लें, सच्चे अर्थों में यही नवरात्र है।