5 पूर्व मुख्यमंत्रियों से सुसज्जित झारखंड भाजपा को केंद्रीय नेतृत्व का करारा तमाचा, एक गैर झारखंडी CM इन्हें राजनीति का पाठ पढ़ा रहे
केंद्र में भाजपा गठबंधन की सरकार है और भाजपा अपने आपको राजनैतिक तकनीक और आर्थिक रूप से देश की किसी भी राजनीतिक दल से बहुत आगे बताती है। हालांकि यह कुछ हद तक सच भी है। ऐसे में एक छोटे से राज्य में अपनी समस्त शक्तियों का इस्तेमाल करने के बावजूद भी भाजपा का पिछड़ना उनके लिए गंभीर चिंता का विषय है।
झारखंड में विधानसभा चुनाव का पहला चरण समाप्त हो चुका है, और राजनैतिक दलों के साथ साथ जनता भी आगामी सरकार को लेकर लगभग आश्वस्त हो गई है।
वर्तमान सरकार के गठन के दिन से ही विपक्ष आज तक सिर्फ हेमंत सरकार की तोड़ ही ढूंड रही है। लेकिन वर्तमान सरकार के राजनैतिक दांव लगातार विपक्ष पर भारी पद रहा है।
आधुनिक तकनीक से लैस भाजपा आज पिछड़ रही है
गौरतलब है कि केंद्र में भाजपा गठबंधन की सरकार है और भाजपा अपने आपको राजनैतिक तकनीक और आर्थिक रूप से देश की किसी भी राजनीतिक दल से बहुत आगे बताती है। हालांकि यह कुछ हद तक सच भी है। ऐसे में एक छोटे से राज्य में अपनी समस्त शक्तियों का इस्तेमाल करने के बावजूद भी भाजपा का पिछड़ना उनके लिए गंभीर चिंता का विषय है।
प्रधानमंत्री की रैली भी नाकाम
विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री , गृहमंत्री सहित देश के दिग्गज नेताओं की बड़ी बड़ी रैलियां भी नाकाम साबित होती दिख रही है। वहीं दूसरी तरफ़ सिर्फ़ हेमंत सोरेन और राजनैतिक संकट के कारण राजनीति के मैदान में उतरनेवाली दृढ़ इच्छा शक्तिवाली एक भारतीय पत्नी ( कल्पना सोरेन) पर झारखंड की जनता अपना प्यार लुटा रही है।
आख़िर झारखंड में भाजपा की इस स्थिति के लिए जिम्मेवार कौन है? क्यों सारे संसाधनों के बावजूद भी भाजपा यहाँ की जनता का विश्वास नहीं जीत पा रही है ?
स्थानीय नेताओं को तवज्जो नहीं देती भाजपा
सबसे बड़ी वजह है स्थानीय नेतृत्व की कमी । भाजपा में अभी 5 ऐसे दिग्गज नेता शामिल हैं जो पूरे में राज्य की कमान संभाल चुके हैं। झारखंड में विकास की बयार बहाने में इन नेताओं की भागीदारी से यहां की जनता भी इंकार नहीं करती है। कुछ तो ऐसे पूरे मुख्यमंत्री हैं जो एकबार से अधिक राज्य के मुखिया रह चुके हैं और प्रदेश को एक व्यवस्थित राजनैतिक दिशा भी दिए हैं। लेकिन सबसे गंभीर विषय यह है कि 5 पूरे मुख्यमंत्रियों के होते हुए भी भाजपा ने उन्हें प्रदेश के चुनाव का नेतृत्व नहीं दी। शायद भाजपा का यह सोचना हो की एक झारखंडी क्या राजनीति करेगा। लेकिन भाजपा की इस सोच को एक झारखंडी नेता ( हेमंत सोरेन ) ने आज असमंजस में डाल दिया है।
झारखंड भाजपा के लिए शर्मनाक
झारखंड भाजपा को इसपर गंभीर होकर सोचने की आवश्यकता है । कहीं यह झारखंड को नीचा दिखाने की कोशिश तो नहीं! जिस तरह से भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व स्थानीय नेताओं के साथ सार्वजनिक मंचों पर व्यवहार करते दिखाई दे रहे हैं, उससे तो साफ़ प्रतीत हो रहा है कि भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व झारखंड के नेताओं को कितना सम्मान दे रहे हैं। झारखंड भाजपा के नेता भले ही इस मुद्दे पर अपनी जुबान नहीं खोल रहे लेकिन इस बात की कसक कहीं न कहीं उनके मन में जरूर हो रही होगी।
भाजपा की नेगेटिव पॉलिटिक्स एक बड़ी वजह
झारखंड में जिस तरह से भाजपा ने नेगेटिव राजनीति का सहारा लिया वह उन्हें उल्टा ही पड़ता दिखाएगा है। वहीं दूसरी तरफ़ सत्ताधारी दल अपने पॉजिटिव पॉलिटिक्स के ज़रिये जनता का विश्वास जीतने में सफल होते दिख रहे हैं। भाजपा के आयातित नेता जिस तरह से रैलियों में भाषा और दोषारोपण का इस्तेमाल कर रहे हैं, किसी भी राजनैतिक सत्ता के लिए लाभकारी नहीं है। नेगेटिव पॉलिटिक्स से क्षणिक लाभ भले ही मिल जाए लेकिन इसके दीर्घकालिक परिणाम उनके लिए घातक होते हैं। भाजपा की नेगेटिव पॉलिटिक्स का ही परिणाम है कि झारखंड की राजनीति में कल्पना सोरेन की एंट्री हुई । आज भाजपा को सबसे ज़्यादा यदि कोई झारखंडी नेता टक्कर दे रही है तो वह है कल्पना सोरेन। कल्पना सोरेन की रैलियों की भीड़ बता रही है कि झारखंड की जानता क्या चाहती है।
वहीं रिपोर्ट ये बता रहे हैं की भाजपा की रैलियों में आनेवाली भीड़ में वह उत्साह नहीं है जो जेएमएम की रैलियों में दिख रही है।
कुल मिलाकर झारखंड भाजपा को अब अपना आत्मसम्मान बचाने के लिए कड़े निर्णय लेने की आवश्यकता है। जो शायद झारखंड भाजपा के लिए भी लाभदायक हो। रिपोर्ट के मुताबिक यदि झारखंड भाजपा स्थानीय नेताओं को तवज्जो नहीं देती है और नेगेटिव पॉलिटिक्स करना बंद नहीं करती है तो झारखंड में सत्ता में आना नामुमकिन सा जान पड़ रहा है।
दिग्गजों की प्रतिष्ठा भी दाँव पर
झारखंड भाजपा की स्थिति का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि झारखंड भाजपा का गढ़ मानी जानेवाली रांची सीट पर भी भाजपाई एक तीसरे उम्मीदवार के सहारे जीत लगाने की आस लगाए बैठी है । भाजपा के एक समर्पित और कट्टर कार्यकर्ता की जुबानी कहें तो यदि AIMIM के उम्मीदवार रांची सीट पर चुनाव नहीं लड़ते तो किसी हाल में भाजपा उम्मीदवार के जीतने की गुंजाइश नहीं थी। बतौर भाजपाई AIMIM के उम्मीदवार को मिले वोट के कारण भाजपा के प्रतिद्वंदी (JMM) को नुकसान होने की संभावना है, जो भाजपा का राह आसान कर रही है। अब आप ख़ुद ही अंदाज़ा लगाइए की विगत 4 बार के भाजपा विधायक की यह स्थिति है, तो बाकियों का क्या हो रहा होगा?