अपनी-अपनी मातृभाषा के उत्थान के लिए आगे आएं 

(21 फरवरी' 'अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस' पर विशेष)

अपनी-अपनी मातृभाषा के उत्थान के लिए आगे आएं 

आज विश्व अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस है। यूनेस्को ने वर्ष 1999 में पहली बार 21 फरवरी को मातृभाषा दिवस के लिए मुकर्रर किया था। तब से हम सभी विश्व वासी आज के दिन अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूप में मनाते चले आ रहें हैं। अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस घोषित करने के पीछे उद्देश्य है कि दुनिया भर में विभिन्न भाषाएं बोली जाती हैं।  देश की संस्कृति, रीति रिवाज, रहन सहन और पहचान उसकी भाषा से जुड़ी होती है। किसी की भी मातृभाषा का अर्थ है, जब बच्चा अपनी मां की गोद में होता है, वह अपनी मां से ही बोलचाल की भाषा सिखता है । मां की बोलचाल की भाषा ही उसकी मातृभाषा होती है। 
  हर देश की अपनी अपनी अलग-अलग भाषाएं हैं।‌ सभी भाषाओं का एक वजूद है। सभी भाषाओं के निर्माण की एक एक स्वर्णिम कहानी भी जुड़ी हुई है। किसी भी भाषा के निर्माण में सैकड़ों वर्ष लगते हैं।  मां से बोली गई भाषा ही उसकी मातृभाषा कहलाती है। ‌ यह मातृभाषा  जीवन भर उसके साथ जुड़ी रहती है। भारत एक विशाल धर्मनिरपेक्ष जनतांत्रिक देश है।‌ देश की आबादी 140 करोड़ की भी संख्या  पार कर गई है।‌ इस देश के जितने भी प्रांत हैं, सबकी अलग-अलग प्रांतीय भाषाएं है । देश के कई राज्यों में हिंदी बोली जाती हैं।  लेकिन बोली जाने वाली हिंदी में भी कई भिन्नताएं पाई जाती हैं।  ये भिन्नताएं भी अपनी मातृभाषा से जुड़ी होती हैं। इन भिन्नता की भी अलग अलग कहानी है। यह  भाषा के लिए एक शोध का विषय है। सभी को अपनी निजी भाषा पर गर्व होना चाहिए।
  हम  सब रोजी रोटी के कारण राज्य से दूसरे राज्य की ओर रुख करते हैं।  हम सब जब दूसरे राज्य में रोजी रोटी से जुड़ जाते हैं। जिस राज्य की भाषा कुछ और होती है।  लेकिन हम सब अपनी मातृभाषा को भी  लेकर वहां जाते हैं।  मैं  हिंदी भाषी हूं, बंगाल चले गए और वहां रोजी-रोटी से जुड़ गए।  लेकिन साथ में हिंदी भाषा भी लेकर चले गए । मैं बंगाल जाकर अपनी हिंदी भाषा के एक प्रतिनिधि के रूप में भी काम कर रहा हूं।  वहां टूटी फूटी बांग्ला में बोलते हैं, लेकिन घर आकर अपने परिवार से हिंदी में ही संवाद करते हैं।  उसी प्रकार बंगाल से कई बंगाली परिवार झारखंड सहित देश के विभिन्न राज्यों में रोजी रोटी के लिए गए।  ये बंगाली परिवार जिन प्रदेशों में भी बसें,  उन्होंने  उस प्रांत की भाषा भी सीखी। साथ ही  बांग्ला भाषा भी अपने परिवार वालों के साथ बोलते रहे।‌ अर्थात ये बंगाली परिवार जिन राज्यों में भी जाकर बसें, बांग्ला भाषा के एक प्रतिनिधि के रूप में भी कार्य करते रहें।  उस बंगाली परिवार से जुड़े कई लोग बातचीत में थोड़ी बहुत बंगला भाषा भी सीख ली।  ये बंगाली परिवार दूसरे राज्यों में जाकर दूसरे राज्य की भाषा सीखें, साथ ही बांग्ला भाषा भी लोगों को सिखा दिए । यह भाषाओं उत्थान का बेहतर आदान-प्रदान हुआ।
 विश्व मातृभाषा दिवस पर  झारखंड की क्षेत्रीय भाषाओं की  बात करते हैं।‌  झारखंड प्रांत में भी विभिन्न तरह की भाषाएं बोली जा रही है और।  यहां काफी संख्या में बंगाली परिवार हैं।  पंजाबी परिवार हैं। गुजराती परिवार हैं।  मारवाड़ी परिवार हैं। मुस्लिम परिवार के साथ अन्य भाषा भाषाई के लोग निवास करते हैं । सबकी अपनी अपनी स्वतंत्र मातृभाषा है। आदिवासी परिवार इस क्षेत्र की पहचान है । आदिवासी परिवारों की भी अपनी कई तरह की क्षेत्रीय भाषाएं है। सबों की अपनी अपनी मातृभाषा है।  राजकाज की भाषा हिंदी और उर्दू जरूर है।  इसके बावजूद सबकी अपनी अपनी मातृभाषा है। ये सभी लोग अपने अपने घरों में अपनी मातृभाषा में बात करते हैं । 
झारखंड की क्षेत्रीय भाषा के संदर्भ में इतना जरूर कहना चाहूंगा कि आदिवासी समाज इस प्रांत की पहचान है।  ये झारखंड के मूलवासी हैं । झारखंड में लगभग अट्ठारह क्षेत्रीय भाषाएं हैं । मुंडारी, खोरठा, खड़िया, नागपुरी आदि भाषाएं आज एक विशेष संकट के दौर से गुजर रही हैं।  सभ्यता के विकास के साथ हम सब आधुनिक जरूर बनते जा रहे हैं, लेकिन कई महत्वपूर्ण चीजों को पीछे छोड़ते भी चले जा रहे हैं। उसमें झारखंड की क्षेत्रीय  मातृभाषा है। आदिवासी समाज में जागृति आई है । आदिवासी परिवार शहरों में बसना शुरू कर दिए हैं।  आज आदिवासी परिवारों में भी शिक्षा का नवजागरण हो रहा है।  वे नौकरियों में जा रहे हैं । आदिवासी परिवार के बच्चे आईएएस और आईपीएस बन रहे हैं।  ये  विज्ञान के क्षेत्र में मजबूत उपस्थिति दर्ज करते जा रहे हैं।  लेकिन उनकी मातृभाषा का बहुत नुकसान भी हो रहा है।  नागपुरी, झारखंड की एक बहुलता में बोली जाने वाली भाषा है।  लेकिन नागपुरी भाषा में राज्य काज  नहीं होने के कारण यह  भाषा भी अब विलुप्त होने की स्थिति में आ गई है। भाषाएं रोजगार भी प्रदान करती हैं।  इस सत्य को सबों को स्वीकारना चाहिए । नागपुरी भाषा में कुछ काम जरूर हो रहे हैं । लेकिन नागपुरी भाषा  नौकरी सृजन नहीं कर पा रही है।  नागपुरी भाषा के विकास के लिए  राज्य सरकार को जो ध्यान देना चाहिए नहीं दे पा रही है ।  पहले नागपुरी भाषा में कुछ फिल्मों का भी निर्माण हुआ था । लेकिन फिल्म नहीं चलने के कारण निर्माताओं  को काफी नुकसान सहना पड़ा था।  फलस्वरुप नागपुरी भाषा में  फिल्मों का निर्माण होना बंद हो गया।  यही हाल खोरठा भाषा की है। खोरठा भाषा झारखंड में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। यह भाषा यहां के स्थानीय निवासियों की मातृभाषा है।‌ लेकिन यह भाषा भी राजकाज की भाषा नहीं बन पाई है। खोरठा भाषा के प्रति भी सरकार पूरी तरह उदासीन है। 
क्षेत्रीय भाषाओं के विकास में अंग्रेजी स्कूलों का निरंतर खुलते जाना एक रुकावट के समान है। जैसे-जैसे अंग्रेजी स्कूलों का इस प्रांत में प्रचलन बढ़ता चला जा रहा है।  वैसे वैसे यहां की स्थानीय  भाषाओं के विकास पर ग्रहण लगता चला जा रहा है।  अंग्रेजी स्कूलों में क्षेत्रीय  मातृभाषा के उत्थान के लिए कोई भी पाठ्यक्रम शामिल नहीं है ।  इन स्कूलों में  अंग्रेजी, हिंदी और ‌संस्कृत पढ़ाई हो पाती है। स्कूलों में बातचीत  अंग्रेजी और हिंदी में ही होती है ।‌ इसका परिणाम यह हो रहा है कि इस प्रांत की क्षेत्रीय भाषाएं धीरे धीरे कर बोलचाल से दूर होती चली जा रही है।  सरकारी स्कूलों में भी क्षेत्रीय भाषाओं की पढ़ाई की कोई समुचित व्यवस्था नहीं है। और  ना ही कोई पाठ्यक्रम है ।  परिणाम स्वरूप क्षेत्रीय भाषाओं को नुकसान पहुंचा रहा है । मैं यहां हिंदी के  महान साहित्यकार भारतेंदु हरिश्चंद्र की  एक बात दर्ज करना उचित समझता हूं। उन्होंने दर्ज किया था कि 'निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल'। इसके साथ ही देश के जाने माने कवि नागार्जुन ने अपनी मातृभाषा के लिए  किसी गोष्ठी में कहा था, 'मैथिली मरी जाए'। अर्थात मैथिली मर जाएगी। 
 आज भारत विश्व गुरु बनने की स्थिति में है।  आज भारत का डंका विश्व में बज रहा है।  भारत आर्थिक प्रगति में विश्व के अन्य देशों मुकाबले काफी आगे है। लेकिन भाषाई आधार पर देश के कई प्रांतों की अपनी मातृभाषा संकट के दौर से गुजर रही है । लोगों को अपनी मातृभाषा के प्रति सजग होने की जरूरत है।  उन्हें अपनी मातृभाषा से प्रेम करने की जरूरत है । उन्हें अपनी मातृभाषा को कदापि नहीं भूलना चाहिए।  जिस दिन वे अपनी मातृभाषा को भूल जाएंगे, अर्थात उसी दिन अपने ही हाथों से अपनी भाषा का गला घोट देंगे। व्यक्ति कितना भी महान क्यों ना बन जाए।  उसे अपनी मातृभाषा को कदापि नहीं भूलना चाहिए।  उनसे अपनी मातृभाषा के विकास के लिए जो भी पड़ता है, करना चाहिए।  परिवार के बीच मातृभाषा में बात करनी चाहिए।  देश लंबे समय तक गुलाम रहा। ब्रिटिश हुकूमत देशवासियों पर अंग्रेजी भाषा लाद दे दी थी। यह लिखते हुए पीड़ा होती है कि  हिंदी बोलने वाले को कम ज्ञानवान और अंग्रेजी बोलने वाले को ज्यादा ज्ञानवान समझा जाता है। इस परिपाटी को जड़ से मिटाने की जरूरत है। आज हमारी क्षेत्रीय मातृभाषा  इसी का शिकार हो रही हैं।  हम सब सार्वजनिक मंचों से अपनी मातृभाषा में बोलने  से कतराते हैं । अगर हम अपनी मातृभाषा में अपनी बात को रखते हैं, मन से बोल पाएंगे, सुनने वाले मन से सुनेंगे।  हमारी भाषा जैसी भी हो, मातृभाषा है । उस पर सबों को गर्व करना चाहिए। अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा का आयोजन इसी देश के लिए होता है। इसलिए आज अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर हम सबों को यह संकल्प लेना चाहिए कि अपनी मातृभाषा के उत्थान के लिए जो भी संभव हो,  जरूर करना चाहिए। साथ ही हम सबों को अपने अपने घर, परिवार और समाज के लोगों से अपनी मातृभाषा  में बात करनी चाहिए।