श्रद्धांजलि : हिंदी काव्य जगत का एक और  सितारा 'प्राणेश कुमार' खो गया 

प्राणेश कुमार का संपूर्ण जीवन हिंदी कविता और कथा सृजन को समर्पित रहा था। उनका जन्म 11 जनवरी 1955 को रामगढ़ जिले के गोला में हुआ था।

श्रद्धांजलि : हिंदी काव्य जगत का एक और  सितारा 'प्राणेश कुमार' खो गया 

आज देश ने हिंदी काव्य जगत के एक महानतम सितारा प्राणेश कुमार को खो दिया है । प्राणेश  कुमार जीवन के अंतिम क्षणों तक काव्य  रचना में मशगूल रहे थे।  पिछले दिनों मृत्यु से लगभग एक सप्ताह पूर्व ही प्राणेश कुमार अपने साहित्यिक मित्रों क्रमशः  रतन वर्मा और टी.पी पोद्दार के समक्ष कविता का वाचन किया था।  उन्होंने उन दोनों साहित्यिक मित्रों की कविताओं को सुनकर अपनी राय भी खुलकर रखी थी।  प्राणेश कुमार का संपूर्ण जीवन हिंदी कविता और कथा सृजन को समर्पित रहा था। उनका जन्म 11 जनवरी 1955 को रामगढ़ जिले के गोला में हुआ था।  उनकी प्रारंभिक शिक्षा गोला में ही पूरी हुई थी।‌ उन्होंने उच्च शिक्षा संत कॉलंबा महाविद्यालय से ग्रहण किया था। इसके बाद वे राजकीय सेवा से जुड़ गए थे । प्राणेश कुमार का बचपन से ही  हिंदी साहित्य की ओर झुकाव था।  वे  एक जनवादी विचार धारा के कवि थे।  उनका जनवादी पन  दिखावा का नहीं बल्कि उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन एक जनवादी रचनाकार के रूप में बिताया था।  उनकी कविताओं में जनवाद  की रेखाएं साफ झलकती नजर  आती हैं। 
प्राणेश कुमार एक संवेदनशील स्वभाव के रहे थे।  उनकी यह संवेदनशीलता जीवन के अंतिम क्षणों तक बरकरार रही थी । वे एक सहयोगी प्रकृति के व्यक्ति भी थे।  स्कूल और महाविद्यालय में शिक्षण के दौरान जब भी किसी मित्र को कोई कष्ट हुआ, प्राणेश कुमार सीधे मदद करने के लिए पहुंच जाते थे।  उनके पास जो भी धन होता,  अपने मित्रों के मदद में खर्च किया दिया करते थे।  साथ ही वे  सशरीर तब तक लगे रहते,  जब तक कि मित्र का कष्ट दूर न हो जाए । इस संबंध में झारखंड के जाने-माने  कथाकार रतन वर्मा ने बताया  कि एक बार उनकी पत्नी मंजू वर्मा गंभीर रूप से बीमार पड़ गई थी।  उनका सर्जरी होना था । उनकी पत्नी को लंबे समय तक अस्पताल में भर्ती रहना पड़ा था।  इस दौरान उनके चार बच्चों की देखभाल कौन करेगा ? इसे लेकर रतन वर्मा थोड़ा परेशान भी थे।  यह बात जब प्राणेश कुमार को पता चली तब उन्होंने रतन वर्मा के चारों बच्चों को अपने पास तब तक रखा, जब तक कि उनकी पत्नी पूरी तरह स्वस्थ होकर घर न चली जाए।  यह बात कहते हुए आज  भी रतन वर्मा की आंखें भर जाती हैं । प्राणेश कुमार का यह स्वभाव सिर्फ रतन रतन वर्मा के साथ ही ऐसा था, यह बात नहीं थी बल्कि वे अपने हर एक मित्रों के साथ उतनी ही आत्मीयता के साथ जुड़े हुए थे। 
    प्राणेश कुमार का हजारीबाग की धरती से गहरा लगाव था। प्राणेश कुमार के लिए हजारीबाग की धरती साहित्यिक कर्मभूमि रही थी। उन्होंने  अपने रचना कर्म के शुरुआती दिनों में हजारीबाग में कई रचनाओं को पूरा किया था। हजारीबाग की गलियों में घुमा फिरा करते थे ।  इसी दौरान उनकी मुलाकात जाने-माने साहित्यकार भारत यायावर और कथाकार रतन वर्मा से हुई थी । बाद के कालखंड में तीनों गहरे साहित्यिक मित्र भी बन गए थे।  80 के दशक में हजारीबाग के  हिंदी साहित्यिक प्रतिभाओं को उभारने के  लिए इन तीनों मित्रों ने मिलकर 'संभावना संगोष्ठी' नामक एक साहित्यिक संस्था का स्थापना किया था।  उस कालखंड में  हजारीबाग के काफी संख्या हिंदी के रचनाकार सृजन  रत थें।  लेकिन इन सबों के लिए कोई एक  साहित्यिक मंच नहीं था।  प्राणेश कुमार, भारत यायावर और रतन वर्मा ने मिलजुल कर 'संभावना संगोष्ठी' का गठन कर स्थानीय साहित्यकारों को एक उच्च कोटि का मंच प्रदान किया गया था।  सप्ताह में एक बार संभावना संगोष्ठी की  गोष्टी जरूर होती थी । जिसमें काफी संख्या में हजारीबाग के हिंदी के साहित्यकार जुटा  करते थे। इस गोष्ठी में रचनाकार अपनी रचनाओं का पाठ किया करते थे । यह लिखते हुए गर्व होता है कि इसी संभावना संगोष्ठी से निकले कई साहित्यकार राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाने में सफल रहें थे।  संभावना संगोष्ठी की अधिकांश  गोष्ठियां रमणिका  गुप्ता फाउंडेशन कार्यालय के बाहर वाले सभा कक्ष में संपन्न हुआ करती थी।  आगे चलकर संभावना संगोष्ठी राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाने में भी सफल रही थी।  देश भर के साहित्यकार संभावना संगोष्ठी को जानने लगे थे। 
   प्राणेश कुमार एक कवि के साथ एक अच्छे कथाकार भी थे । लेकिन उन्हें एक कवि के रूप में ज्यादा प्रसिद्धी मिल पाई। उनकी प्रकाशित पुस्तकों में 'एक ही परिवेश' ( अन्य पांच कवियों के साथ), "सख्त जमीन के लिए' (कविता संग्रह),  'तुमसे मुखातिब' ( कविता संग्रह),  'हंसता है सूत्रधार' ( कविता संग्रह ), 'ढाई आखर' ( कविता संग्रह)  'खोया हुआ आदमी' ( लघु कथा संग्रह)  'जुस्जू रोशनी की' ( गजल संग्रह), 'निशा का अंतिम प्रहर' (गीत संग्रह),  'सत्य का झोंका' ( लघु कथा संग्रह)  'क से कविता' ( कविता संग्रह ) 'प्रतिनिधि कविताएं',  'मुंडेर पर चिड़िया' (कविता संग्रह । इसके साथ ही उन्होंने अपने जीवन काल में कई पुस्तकों का संपादन भी किया।  'आम आदमी के लिए' ( कविता संग्रह), 'एक गीत लिखने का मन' (गीत संग्रह ) 'रोशनी की लकीरें' ( कविता संग्रह), 'समकालीन कहानी' ( कहानी संग्रह),  'नया मिजाज' ( गजल संग्रह),  'बोनेक बोल' ( खोरठा कवित संग्रह ). 'लठैत  की बहू' (कहानी संग्रह) । हजारीबाग से प्रकाशित 'युद्ध रत आम आदमी' नमक साहित्यिक पत्रिका का दस  वर्षों तक संपादन भी किया।  उनकी रचनाएं देश भर के विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं में नियमित प्रकाशित होती रही थी।  उनकी कई रचनाएं अन्य भाषाओं में भी अनुदित हुईं। 
   प्राणेश कुमार को 2018 में जब यह पता चला कि उन्हें पेट का कैंसर हो गया।  वे बिल्कुल विचलित नहीं हुए बल्कि उन्होंने कैंसर को मात देने के लिए  उचित चिकित्सीय  सहारा लिया । चिकित्सकों ने उन्हें जो भी परामर्श दिया,  उन्होंने पूरी तरह पालन किया।  इस दौरान उन्हें विषम सर्जरी का भी सामना करना पड़ा था।  वे  बिना विचलित हुए सर्जरी का सामना किया । वे कैंसर को परास्त करते हुए आगे बढ़ते रहे थे।  जब भी उन्हें अवसर मिलता लेखन से जुड़ जाता करते थे । उन्होंने कभी भी अपने किसी मित्र के समक्ष कैंसर होने का रोना रोया था । कैंसर होने के बावजूद  वे अपने मित्रों से खुलकर हंसते बोलते थे । कौन लेखक क्या रचना कम कर रहा है  ? इसकी उन्हें जानकारी होती थी।  सोशल मीडिया पर भी प्राणेश कुमार गतिशील बने रहते थे । वे  अपनी रचनाओं को सोशल मीडिया पर पोस्ट किया करते थे।  उनकी रचनाओं पर मिलने वाले प्रतिक्रियाओं का जवाब भी बहुत ही ढंग से दिया करते थे । कैंसर उन्हें हराने का बहुत प्रयास किया लेकिन हर बार कैंसर  ही उनसे हार जाया करता था।  उनकी उंगलियां जब भी मोबाइल और लैपटॉप पर गतिशील होती थीं, तब  कोई न कोई रचना जन्म ले लेती थीं । उनकी यह जीवटता अपने आप में बेमिसाल थी । जीवन के अंतिम दिनों में जब डॉक्टर ने उनके परिवार को यह बता दिया  कि अब प्राणेश कुमार ज्यादा दिनों तक रहने वाले नहीं है।‌ इसके बावजूद प्राणेश कुमार की साहित्यिक गतिशीलता कम नहीं हुई थी।  इसी दौरान उन्होंने देश के जाने-माने  कथाकारों की प्रतिनिधि कहानियों को लेकर एक कथा संग्रह भी तैयार कर लिया । उन्होंने कथा संग्रह पर  अपनी ओर से पूरा काम भी कर लिया था। उम्मीद है कि कुछ महीनो में ही उनका यह कथा संग्रह लोगों तक उपलब्ध भी हो जाए।  साहित्य के प्रति उनका यह गहरा लगाव अद्भुत था।
  प्राणेश कुमार 20 फरवरी,2025 को  सुबह 7:00 बजे इस दुनिया को अलविदा कह दिया।   उनकी मृत्यु  हिंदी सहित जगत के लिए एक अपूर्णीय क्षति के समान है । लेकिन यह भी सच है कि जिनका जन्म हुआ है, उसे मृत्यु को प्राप्त भी करना है । प्रणेश कुमार एक जिंदादिल कवि -  कथाकार थे।  इसी जिंदादिल के साथ उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया ।
हिंदी साहित्य की एक प्रतिष्ठित पत्रिका  'प्रसंग'  में प्रकाशित एक कविता 'सत्य' शीर्षक से है। उनकी इसी कविता की पंक्तियों से नम आंखों से श्रद्धांजलि दे रहा हूं।  आप बहुमूल्य रत्न है/  आपकी लिखी पंक्तियां / हीरा - मोती स तराशी होती हैं/ आप कभी रोते हैं/  आप कभी हंसते हैं/ आप राजा के प्यारे /राजा के अनमोल रतन है। आपकी कलम समर्पित है/ राजा के लिए /राजा की रक्षा में उगलती है आग/लगता है उसे आग में/  भस्म हो जाएंगे राजा के विरोधी /लेकिन सच और भी निखर जाता है/  उस आग से / खामोश करना चाहते हैं आप /उस आवाज को /जो गहरी नींद में सोए  / राजा को जगा सकती है/   खामोश/ खामोश/  खामोश/  राजा सोया है गहरी नींद में ।  राजा खुद ब खुद उठेगा / आपको देख मुस्कुराएगा/ आप धन्य -  धन्य हो जाएंगे / राजा की जयकार करेंगे /और आपकी समर्पित कलम/ फिर आग उगलेगी /  यही अग्नि जला देगी/  आपका ही आवरण ।