दाऊद , शहाबुद्दीन , अनंत सिंह , सूरजभान – जब इनके अनुयायी हो सकते हैं , तो फिर गोडसे के क्यूँ नहीं ?

एक तरफ़ छल, प्रपंच, माया से सुसज्जित स्वयं ईश्वर की दी हुई शक्तियों के साथ भयावह असुरी शक्तियाँ ,तो दूसरी तरफ़ सत्य ,अहिंसा ,प्रेम ,दया और योग के साथ संख्या बल में बिलकुल थोड़े दिखते (धर्म की स्थापना के लिए) दैविक शक्तियाँ ।

दाऊद , शहाबुद्दीन , अनंत सिंह , सूरजभान – जब इनके अनुयायी हो सकते हैं , तो फिर गोडसे के क्यूँ नहीं ?

भारत के राष्ट्रपिता और समस्त विश्व को सत्य और अहिंसा का मूलमंत्र देनेवाले महात्मा गांधी की जयंती पर नमन ।

वर्तमान में 4442 नेताओं पर आपराधिक प्रकरण
सफ़ेद लिबास पहने चेहरे पर चमक और साथ में सरकारी फ़ौज का क़ाफ़िला ।युवाओं को आकर्षित करने के लिए काफ़ी है । आज युवा इसी ओर आकर्षित होकर रास्ते से भटक रहे हैं और अपने द्वारा तय किए गए आदर्श पुरुषों के क्रिया कलापों को ही आत्मसात करने में लगे हैं ।ऐसे में उन्हें धन दौलत का अंबार, सरकारी सुविधाएँ और ऐश मौज की सारी व्यवस्था को पा लेना ही जीवन का मंज़िल समझ आता है ।इसमें युवाओं का क्या क़सूर ? जैसी व्यवस्था उन्हें दी गई है उस साँचे में वे ढल रहे हैं ।छोटी सी बात है मगर इसमें कई सवाल हैं. चपरासी जैसी छोटी सी नौकरी में एक आपराधिक पृष्टभूमि के व्यक्ति को नहीं लिया जा सकता किन्तु देश के संविधान के रक्षकों और देश के भविष्य के निर्माताओं के लिए यह सुविधा दी गई है? तो फिर देश की युवा पीढ़ी क्यूँ न इनका ही मार्गदर्शन करें ?
543 सांसदों और 4123 विधायकों को जोड़ कर लगभग साढ़े चार हज़ार चुने हुए नेता हैं हमारे देश में. इनमें से आज की संसद के चुनाव जीत कर आये 539 सांसदों में से 233 ने स्वयं ही यह घोषणा की है कि उनके विरुद्ध विभिन्न न्यायलयों में आपराधिक प्रकरण चल रहे हैं. दुखद सत्य ये भी है कि कुछ सांसद ऐसे भी हैं जिन पर 100 से ज़्यादा मुकदमे लंबित हैं. अब बताइये देश की ऐसी संसद देश का कैसा भविष्य तय कर सकती है.
देश की अन्य संस्थाओं के लिए प्रेरणा
हमारे सांसद हमारे देश की अन्य संस्थाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बनते हैं. ये सांसद हमारे देश के सरकारी सेलेब्रिटी हैं जिनका यशगान मीडिया को करना पड़ता है. यदि हमारे सांसदों की तरह हमारे देश के शिक्षक भी हो जाएँ, हमारे अधिकारी भी ऐसे ही हो जाएँ, हमारे न्यायाधीश भी हो जाएँ, हमारा पुलिसबल हमारी सेना भी यदि ऐसी ही हो जाए – तो आप अनुमान लगाइये इस देश को रसातल में जाने से कौन रोक सकता है?
डेमोक्रेसी के जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि हमारे सांसद और विधायक हमारे देश की लाइफ-लाइन हैं. यदि हमारी लाइफ-लाइन को कीड़े लग जाएं तो हमारे देश के भविष्य से क्या आशा की जा सकती है. हमारे मृतप्राय लोकतंत्र में अपराधी नेता बाहर से चुनाव तो लड़ते हैं, जेल के भीतर से भी चुनाव लड़ने की सुविधा उन्हें प्राप्त है. जेल से छूट कर जब ये अपराधी नेता बाहर आते हैं तो फिर अपने बाहुबल और पैसे की दम पर चुनाव लड़ने पर आमादा हो जाते हैं. ऐसे में एक सच्चा जनप्रितिनिधि उनके खिलाफ कैसे खड़ा रह सकता है और कैसे चुनाव जीत सकता है? किस लोकतंत्र पर गर्व करते हैं हम?

आज जो आदर्श पुरुष बने हुए हैं ,युवाओं के प्रेरणा स्रोत बने हुए हैं –

आज की युवा पीढ़ी किसे अपना आदर्श बना रहे हैं उन्हें यह भी नहीं पता । वह जिन्हें आदर्श पुरुष और प्रेरणा स्रोत बनाए हुए हैं उनके कौन से आदर्श को वे अपने जीवन में आत्मसात करते हैं और अपने आदर्श पुरुष के जीवन की कौन सी बात से उन्हें प्रेरणा मिली है ? आखिर आदर्श पुरुषों की कौन सी ऐसी बात है जिस पर आज का युवा वर्ग इतना सम्मोहित है ? क्या वाकई में इन आदर्श पुरुषों के मार्ग पर चलकर जीवन का परम आनंद प्राप्त किया जा सकता है ।

जिस गांधी नाम का सहारा आज तक आजाद भारत में राजनीतिक पार्टियां लेती आई उस गांधी को इस देश से क्या मिला ? एक सूती कपड़े में अपना जीवन बिताने वाला सन्यासी जिसने सच्चे त्याग को परिभाषित किया , आज के युवा पीढ़ी के आँखों का काँटा बना हुआ है । भले ही गांधी का विरोध करने वालों को ना समझ कह कर दरकिनार कर दिया जाए ।लेकिन आखिर इस देश में युवा वर्ग को ऐसा क्या मिला कि – पूरे विश्व को सत्य और अहिंसा का मार्ग दिखाने वाले गांधी से नफ़रत करने लगे ।हालाँकि गांधी के इस देश में गांधी को जीनेवाले भी लोग हैं ,जो गांधी के बताए मार्ग पर चल रहे हैं और जीवन के मूल्यों को सत्य की कसौटी पर पाकर आनंदमयी जीवन जी रहे हैं । गांधी जिसने देश के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर अपनी जान तक की बलि दे दी ,उस गांधी को आज का युवा तबका नापसंद करने लगा है ।गांधी का विरोध करना मतलब सत्य का विरोध करना ।गांधी का विरोध करना सीधे-सीधे बतलाता है कि आज सत्य ,अहिंसा और प्रेम लोगों की पसंद से दूर होता जा रहा है ।और मानवीय समाज हिंसात्मक विचारों के जाल में उलझते जा रहे हैं । जोकि मानवीय जीवन के लिए काफी खतरनाक है ।

सच तो यह है कि गांधी के रास्तों पर चलना आज के समय में किसी के बूते की बात नहीं है । क्यूँकि जब ऊपर से ही झूठ ,हिंसा , छल और माया की शिक्षा दो जा रही हो तो फिर गांधी दर्शन या गांधी का अनुकरण कैसे संभव है ।सबसे बड़ा सत्य ये है की गांधी को बुरा भला कहने वाले न तो गांधी को जानते हैं और न ही भारत के बारे में कुछ जानते हैं ।इसके लिए कहीं ना कहीं शिक्षा और बच्चों के पालन पोषण में सहायक अभिभावकों के द्वारा दिया गया संस्कार जिम्मेवार है ।शिक्षा को दरकीनार कर मौजूदा भोग विलास एवं आधुनिकतावाद को तवज्जो देना हमारी आनेवाली पीढ़ी को ऐसे दलदल में ले जाएगा जहां से निकल पाना शायद संभव नहीं होगा ।

जैसा हमारे आसपास घटित होता है ,जैसा हम देखते हैं ,जैसा हम सोचते हैं, वैसे ही हम हो जाते हैं और वैसा ही हम करते हैं । हमारे आस-पास हो रही घटनाओं और उसके साथ हमारी जीने की कोशिश करने की कलाओं को ,हम अपनी आने वाली पीढ़ी को सौगात के रूप में देते हैं ।जीवन जीने की वही कला जिसे हम जीवन भर पूरी तरह सीख भी ना पाए (केवल सिखने की कोशिशें करते रह गए) अंततः जीवन के लक्ष्य को ढूंढते ही रह गए पता भी न चल पाया कि मेरे जीवन का लक्ष्य क्या था । जब हम स्वयं लक्ष्य विहीन हैं तो फिर आने वाली पीढ़ी को इस लक्ष्यहीन जीवन की कलाओं को सिखा कर उनका भला नहीं कर रहे हैं ।

एक ऐसा भी समय आता है जब मनुष्य अपना आत्म विश्लेषण करता है ।तब उसे पता चलता है कि उसने अपने इस संपूर्ण जीवन में क्या खोया और क्या पाया । जिस आनंद को पाने के लिए उसे पृथ्वी जैसे अतिसुन्दर लोक में भेजा गया था उस आनंद को पा सका क्या? इस यक्ष प्रश्न का जवाब शायद ही कोई मनुष्य दे पाए ! लेकिन आनंद को पाने का मार्ग दिखाने वाले महापुरुष (जिनका जीवन ही एक दर्शन है) के आदर्शों का विरोध कर हम अपना ही नुकसान कर रहे हैं ।क्योंकि मनुष्य चाहे जितना भी दम भर ले -अदृश्य शक्तियों से मुकाबला मनुष्य के बस की बात नहीं है । गांधी कोई व्यक्ति नहीं है जिन्हें की नष्ट कर दिया जाए ।गांधी एक विचारधारा है ।सत्य की एक शक्ति है ।जिसे नुकसान पहुंचाने की सोच आज की युवा पीढ़ी खुद अपना ही नुकसान कर रही है ।हां सामाजिक और लोकतांत्रिक व्यवस्था में ऐसी व्यवस्था है कि दैवी शक्तियों का बुरा चाहने वाले या उन्हें बुरा भला करने वालों को असुरों के राजा विशेष पुरस्कार देकर सम्मानित करते हो । लेकिन क्षण भर के लिए प्रफुल्लित करनेवाला यह सम्मान इन्हें जीवन पर्यंत भी सम्मान दिला पाएंगे ! असंभव है ।क्योंकि सत्य ही जीवन है ।सत्य ही दर्शन है । सत्य ही परमेश्वर है ।सत्य के अलावा सब कुछ विनाशसील है ।

समाज हमेशा से दो धड़ा में विभक्त रहा है।एक तरफ़ छल, प्रपंच, माया से सुसज्जित स्वयं ईश्वर की दी हुई शक्तियों के साथ भयावह असुरी शक्तियाँ ,तो दूसरी तरफ़ सत्य ,अहिंसा ,प्रेम ,दया और योग के साथ संख्या बल में बिलकुल थोड़े दिखते (धर्म की स्थापना के लिए) दैविक शक्तियाँ ।
इतिहास साक्षी है की – असुरी शक्तियाँ हमेशा से विशाल संख्या बल में होती है और समय समय पर दैविक शक्तियाँ जो कम संख्या बल में होती है उनपर भारी पड़ती दिखती है ।।
प्राकृतिक नियमों के अनुसार यह होना भी ज़रूरी है ।इसी को भ्रमजाल कहते हैं जिसमें पड़कर मनुष्य अपना विवेक खो देता है और अपने को सर्वशक्तिमान समझ अपने द्वारा किए निर्णय को ही सत्य मान लेता है ।
मनुष्य चाहे लाख दावा कर ले या फिर अपने आप को एक मात्र छोटे से ग्रह ( इसके जैसे असंख्य ग्रहों को ईश्वर अपनी उँगली पर रखे हुए हैं ) का सर्वे सर्वा घोषित कर ले , जीत तो संख्या बल में बिलकुल नगण्य और भौतिक रूप से दिखने में कमजोर दैविक शक्तियों (सत्य ) की ही होती है ।।
जीतना और हारना ही आज के समाजिक जीवन की परिभाषा बन गई है । क्यूँकि पाने का अद्भुत आनंद तो शायद ही किसी को पता हो । इसलिए आनंद को पा लेना बहुसंख्यकों का लक्ष्य ही नहीं है ।क्यूँकि जो आनंद को पाएगा ,वही राम को पाएगा ।और जो राम को पा लिया वो सत्य को पा लिया , मतलब वो गांधी को पा लिया ।
बहुत दुःख होता है जब अपने ही नज़रों के सामने – अपनों को उस रास्ते पर दौड़ते हुए देखना जिसकी कोई मंज़िल ही नही है ।जो सत्य से बहुत नफ़रत करता है और असत्य से प्रेम ।

ज़रूरत है आज की युवा पीढ़ी को सच्ची राह दिखाने की ।जो केवल शिक्षा की समुचित , सुलभ , स्तरीय और निःशुल्क व्यवस्था से ही सम्भव हो सकता है ।