डुमरौन में  घटित हिंसा  सभ्य समाज के लिए कदापि उचित नहीं

देश की आजादी के समय बंटवारे के दौरान यहां के एक भी मुस्लिम समुदाय के लोग पाकिस्तान नहीं गए, बल्कि यहां के बहुसंख्यक समाज के लोगों ने उन्हें यहीं  सुरक्षित रहने का आश्वासन दिया था । तब से लेकर आज तक बहुत ही राजी खुशी के साथ दोनों समुदाय के लोग यहां रह रहे हैं ।

डुमरौन में  घटित हिंसा  सभ्य समाज के लिए कदापि उचित नहीं

गत 26 फरवरी, महाशिवरात्रि पर्व पर हजारीबाग जिले के अंतर्गत इचाक थाना क्षेत्र में पड़ने वाले एक गांव डुमरौन में जिस तरह लाउडस्पीकर को बांधे जाने को लेकर  दो पक्ष आपस में ही भिड़ गए, फलस्वरुप डुमरौन  में हिंसा भड़क गई।  यह किसी भी सभ्य समाज के लिए उचित नहीं है ।‌ डुमरौन  एक घनी आबादी वाला गांव है , जहां आज भी  ज्यादातर लोग खेती किसानी कर जीविकोपार्जन कर रहे हैं । कई लोग मजदूरी कर जीविकोपार्जन कर रहे हैं । बहुत कम संख्या में लोग सरकारी नौकरियों में है । इस  गांव में निवास करने वाले  ज्यादातर लोग गरीबी रेखा के नीचे के  हैं। गरीबी में भी रहकर यहां के लोग अपने बच्चों को अच्छी तालीम दे रहे हैं।  ऐसे यहां दोनों समुदाय के लोग मिलजुल कर रहते चले आ रहे हैं ।‌ जब 1947 में भारत को आजादी मिली थी , तब इस गांव की आबादी बहुत कम थी । आज इस गांव की आबादी लगभग दस हजार के आसपास है । देश की आजादी के समय बंटवारे के दौरान यहां के एक भी मुस्लिम समुदाय के लोग पाकिस्तान नहीं गए, बल्कि यहां के बहुसंख्यक समाज के लोगों ने उन्हें यहीं  सुरक्षित रहने का आश्वासन दिया था । तब से लेकर आज तक बहुत ही राजी खुशी के साथ दोनों समुदाय के लोग यहां रह रहे हैं ।
  हजारीबाग जिले में देश की आजादी के बाद 1971 और 1989 में भीषण दंगे हुए थे । इसके बावजूद इस गांव के लोगों ने मिलजुल कर संप्रदायिक सौहार्द्र का परिचय दिया था।  शिवरात्रि के दिन  डुमरौन  में जो घटना घटी , इस घटना की जितनी भी निंदा की जाए कम है । महाशिवरात्रि के दिन हिंदुस्तानी चौक पर   लाउडस्पीकर बांधने के दौरान जो आपसी विवाद हुआ,  यह किसी भी सूरत में उचित नहीं था । ऐसे विवाद को आपसी बातचीत और सूझबूझ के साथ हल किया जा सकता था। जबकि निकटवर्ती थाना प्रभारी ने अपनी ओर से दोनों समुदायों के बीच सांप्रदायिक सौहार्द बनी रहे,इसके लिये एक सार्थक पहल भी किया था । लेकिन इस पहल के बावज़ूद वहाँ के हालात ने देखते ही देखते हिंसा का रूप अख्तियार कर लिया।  इस हिंसा का परिणाम यह हुआ कि एक कार और छः बाइक समेत आठ वाहन  जलकर  खाक हो गए। अब सवाल यह उठता है कि इन निजी संपत्तियों को जलाने से समाज को क्या मिल गया ?  लाखों रुपयों की आमजन की संपत्ति इस हिंसा की भेंट चढ़ गई । बात यह है कि डुमरौन के दोनों  पक्षों के लोगों को कहीं बाहर जाकर रहना नहीं है, बल्कि जिस तरह वे सब पूर्व में रहते चले आ रहे हैं, आगे भी  उन्हें  उसी तरह रहना होगा।‌ इस संबंध में विचारणीय यह है कि  न गांव बदल जाएगा और न ही लोग बदले जाएंगे । डुमरौन  निवासियों के समक्ष मिलजुल कर रहने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है।
   यह स्वाभाविक है कि जहां दो बर्तन रहते हैं, आपस में टुनटुन हो ही जाती है । इसका कतई मतलब यह नहीं निकाला जाना चाहिए कि बर्तन को ही आपस में लड़ा दें, बल्कि इसका समाधान यह है कि बर्तन को उचित स्थान पर रखा जाए । तभी रसोई घर की शोभा बनी रह पाती है।  दो पक्षों  के बीच जो पत्थरबाजी की घटना घटी, यह पूरी तरह निंदनीय है।  जब बातचीत से समाधान निकाले जाने की कोशिश की जा रही थी, तब पत्थर बाजी करना किसी भी सूरत में उचित नहीं था। पत्थरबाजों से मैं यह कहना चाहता हूं कि पत्थरबाजी से लहू बहाया जा सकता है, लोगों को जख्मी किया जा सकता है, पत्थरबाजी से कदापि समस्या का समाधान नहीं ढूंढा जा सकता है । समस्या का समाधान बातचीत ही है।  भारत वर्ष विविधताओं का देश है । यहां  विभिन्न धर्मों,विचारों और पंथों के लोग मिलजुल कर वर्षों  से रहते चले आ रहे हैं ।‌ यही इस देश की पहचान है।    
    हम सभी भारत के नागरिक हैं। हम सबों को एक समान स्वतंत्रता के साथ रहने  का अधिकार प्राप्त है । चाहे किसी धर्म,वर्ण,  जाति, विचार व पंथ के हों, सबों को भारत के संविधान के तहत मिले समान अधिकारों पर ही चलना होगा। ध्यातव्य है कि कुछ ऐसी शक्तियां देश में काम कर रही हैं ,जो हमारी अखंडता और एकता को भी प्रभावित करने में लगी हुई हैं । मिलजुलकर रहने की साझा संस्कृति हमारी रही है। कुछ बाहरी शक्तियां हमारी मिलजुल कर साझा संस्कृति पर हमला करने पर लगी रहती है। डुमरौन की हिंसा भी इसी की एक कड़ी है । जिसे समझने की जरूरत है।
    डुमरौन  प्रारंभ से ही एक शांतिप्रिय गांव रहा है।  यह के लोग मिलजुल कर रहते चले आ रहे हैं।  दोनों पक्षों के लोग एक दूसरे के पर्वों व त्योहारों पर मिलजुलकर खुशियां मनाते  हैं।  सभी एक दूसरे से भाईचारे की तरह जुड़े हुए हैं। हजारीबाग जिला प्रशासन ने डुमरौन में  भड़की  हिंसा को दबाने के लिए त्वरित कार्रवाई की।  डुमरौन  में शांति व्यवस्था बहाल करने के लिए पुलिस बल की  भारी संख्या तैनात कर दी गयी। कुछ ही घंटों के प्रयास के बाद डुमरौन  में शांति बहाल हो गई । अब सवाल यह उठता है कि पुलिस बल के सहारे डुमरौन के  ग्रामीण कितने दिनों तक शांति के साथ रह सकते हैं ?  10 दिन, 15 दिन, 20 दिन में पुलिस को यहां से हटा ही दिया जाएगा।  तब डुमरौन  के लोगों को बिना पुलिस बल के साथ शांतिप्रिय  ढंग से रहने के अलावा और कोई विकल्प बचता ही नहीं है।  इसलिए दोनों पक्षों के सामाजिक कार्यकर्ताओं और  अमन चैन  की राह पर चलने वाले लोगों को आपस में मिल बैठकर डुमरौन  में भड़की हिंसा की पुनरावृत्ति न हो,इसपर गंभीरता पूर्वक विचार करने की जरूरत है।‌ आगे भविष्य में इस तरह की घटना न घटे, इसपर भी दोनों पक्षों को ध्यान देने की जरूरत है ।
    किसी भी सभ्य समाज के लिए अशांति की राह उचित नहीं है। यहां यह देखना जरूरी हो जाता है कि  डुमरौन  में जो भी सरकारी विकास के कार्य चल रहे थे , भड़की हिंसा को लेकर कुछ दिनों के लिए रुक जाएंगे । इस गांव में सरकारी विकास के कार्य तभी चल पाएंगे,जब डुमरौन में शांति रहेगी।  दोनों पक्षों  के लोगों को यह भी विचार करना चाहिए कि शांति ही अंतिम विकल्प है।  इसी में डुमरौन के निवासियों का भला निहित है। दो पक्षों के बहुत सारे लोग जो हजारीबाग नगर के विभिन्न व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में काम करते हैं।  इसके साथ ही सैकड़ो की संख्या में लोग शहर के विभिन्न क्षेत्रों में दैनिक  मजदूर के तौर पर काम करते हैं, उन सभी लोगों का काम रुक सा गया। इसलिए जरूरी है कि हिंसा के विरुद्ध मिलजुल कर रहने का मार्ग ही श्रेयस्कर है। 
    यह लिखते हुए यह जरूरी हो जाता है कि दोनों पक्षों में कुछ ऐसे लोग भी घुले मिले हुए हैं, जो इस विवाद को कुछ और अलग रूप देना चाहते हैं।  वैसे मुट्ठी भर लोगों से दोनों पक्षों को सावधान रहने की जरूरत है ।इन्हीं मुट्ठी भर लोगों के कारण डुमरौन  में हिंसा भड़की । फलस्वरुप डुमरौन  की शांति कुछ दिनों के लिए चली गई । ऐसे लोगों को समाज में कदापि जगह नहीं मिलनी चाहिए।  पत्थरबाजी किसी भी मायने में उचित नहीं है । पत्थरबाजी से दिल  टूटते हैं। डुमरौन  में भड़की हिंसा पर हजारीबाग के डी.सी नैंसी सहाय ने कहा कि 'स्थिति शांतिपूर्ण और नियंत्रण में है। पुलिस कैंप कर रही है। विधि व्यवस्था को हाथ में लेने वालों पर कठोर कार्रवाई की जाएगी।  इसके साथ ही उन्होंने लोगों  से अपील की  कि अफवाहों पर ध्यान न दें।' 
   ऐसी भड़की हिंसा को लेकर अफवाहों का बाजार भी गर्म हो जाता है। मुट्ठी भर अशांति फैलाने वाले लोग इसी ताक में रहते हैं। इसलिए लोग अफवाहों पर बिल्कुल ही ध्यान न दें । हजारीबाग जिला ने इसका शत प्रतिशत पालन किया।‌ डुमरौन में भड़की  हिंसा की घटना के बाद पूरे हजारीबाग जिले में शांति व्यवस्था बनी रही।  यह हजारीबाग जिले के लिए एक अच्छी खबर है। उम्मीद है कि हजारीबाग जिला प्रशासन हिंसा पैदा करने वाले लोगों के खिलाफ जरूर कठोर कार्रवाई करेगी। ताकि भविष्य में  कोई भी लोग कानून को अपने हाथ में लेने की जुर्रत न करें ।‌  जब मैं यह आलेख डुमरौन की हिंसा पर लिख रहा हूं, तब डुमरौन में पूरी तरह शांति बनी हुई है । इसके साथ ही डुमरौन  की हिंसा पर बिल्कुल राजनीति बयानबाजी नहीं की जानी चाहिए। डुमरौन की स्थिति पूरी तरह नियंत्रण में है ।‌ डुमरौन  बहुत तेजी के साथ शांति बहाली की दिशा में आगे बढ़ रही है ।