क्या सुप्रीम कोर्ट 'वक्फ संशोधन अधिनियम - 2025' को अवैध घोषित कर सकता है ? पढ़िए इस खबर को

सवाल यह उठता है कि क्या सुप्रीम कोर्ट को देश की सबसे बड़ी पंचायत लोकसभा और राज्यसभा द्वारा पारित तथा राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद किसी कानून को अवैध घोषित करने का अधिकार है  ?

क्या सुप्रीम कोर्ट 'वक्फ संशोधन अधिनियम - 2025' को अवैध घोषित कर सकता है ? पढ़िए इस खबर को

वक्फ संशोधन अधिनियम - 2025 के विरोध में सुप्रीम कोर्ट में 70 से अधिक याचिकाएं दाखिल की गई ,जिसे सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार भी  कर लिया।  याचिका कर्ताओं की दलीलें सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि फिलहाल केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्डों में कोई नई नियुक्ति न की जाए।  यह आदेश वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने दिया। सुप्रीम कोर्ट के उक्त आदेश का निहितार्थ यह है कि वक्फ संशोधन अधिनियम - 2025 एक तरह से एक अवैध अधिनियम है। इसलिए इस पर रोक लगाई गई है। अब सवाल यह उठता है कि क्या सुप्रीम कोर्ट को देश की सबसे बड़ी पंचायत लोकसभा और राज्यसभा द्वारा पारित तथा राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद किसी कानून को अवैध घोषित करने का अधिकार है  ?
   सुप्रीम कोर्ट के उक्त निर्देश से विधायिका और न्यायपालिका पूरी तरह आमने सामने आ गए हैं । यह किसी भी सूरत में उचित नहीं है। विधायिका और न्यायपालिका की टकराहट से देश में एक असमंजस की स्थिति बन गई है । देश भर में यह भी सवाल उठ रहे हैं कि लोकसभा और राज्यसभा तथा राष्ट्रपति  की मंजूरी के बाद क्या सुप्रीम कोर्ट को उक्त कानून के विरोध में याचिकाओं को स्वीकार करने का अधिकार है ? अगर देश में सुप्रीम कोर्ट द्वारा ऐसा किया गया है, तब सवाल यह उठता है कि क्या यह अधिकार उसे  भारत का संविधान ने दिया है ?  भारत के संविधान के अनुसार विधायिका और न्यायपालिका  दोनों एक संवैधानिक संस्था हैं ,जो संविधान के अनुसार अपने-अपने कानून सम्मत कर्तव्यों का निर्वहन से बंधे हुए हैं । न्यायपालिका और विधायिका दोनों के  संबंध में भारत के संविधान में उन दोनों के अधिकार और कर्तव्यों पर बहुत ही सारगर्भित ढंग उल्लेख है। अब सवाल यह उठता है कि देश की सबसे बड़ी पंचायत लोकसभा और राज्यसभा ने जिस कानून को बहुमत के आधार पर पारित कर दिया तथा राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद वक्फ संशोधन अधिनियम 2025  के अधिकारों पर रोक लगाकर सुप्रीम कोर्ट ने किस संवैधानिक कर्तव्य का निर्वहन किया है ?  इसकी चर्चा आज संपूर्ण देश भर में हो रही है।    
   संभवत यह देश का पहला ऐसा मामला है, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने लोकसभा और राज्यसभा द्वारा पारित कानून पर रोक लगाई है।  हम सबों को यह जानना चाहिए कि इसी देश में शाहबानो प्रकरण में जब सुप्रीम कोर्ट ने शाहबानो को तलाक की अवधि में भी उनके शौहर द्वारा मासिक भत्ता दिए जाने का फैसला सुनाया  था ।  इस फैसले के विरोध में संपूर्ण देश भर में जोरदार आंदोलन हुआ था । आंदोलन को देखते हुए तत्कालीन राजीव गांधी की सरकार को सुप्रीम कोर्ट के उक्त आदेश के विरुद्ध एक नया संशोधित बिल लोकसभा और राज्यसभा में लाना पड़ा था । लोकसभा और राज्यसभा से यह संशोधित बिल पारित होने के बाद  राष्ट्रपति द्वारा उक्त कानून को मंजूरी मिली थी । तब सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिया गया वह फैसला निरस्त हुआ था।  और देश में चल रहे आंदोलन समाप्त हो पाया था। यह सब करने का अधिकार भारत का संविधान ने विधायिका को प्रदान किया था।   अगर भारत का संविधान लोकसभा और राज्यसभा को यह अधिकार नहीं दिया होता, तब सुप्रीम कोर्ट द्वारा शाहबानो प्रकरण में दिए गए फैसले के बाद जो देश भर में अराजकता की स्थिति उत्पन्न हो गई थी, उससे निजात मिल पाती । 
  भारत के संविधान के अनुसार न्यायपालिका को विधायिका द्वारा निर्मित कानून को चुनौती अथवा अवैध घोषित करने का अधिकार नहीं है। सुप्रीम कोर्ट लोकसभा - राज्यसभा और राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद जो कानून अस्तित्व में आते हैं, उसका  पालन करना है न कि उसे अस्वीकार करना है। जैसा कि शाहबानो प्रकरण में हुआ था। भारत एक जनतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष देश है।  जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि ही देश का संचालन करते हैं । अर्थात देश का संचालन विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के हाथों संपन्न होता है।  भारत जैसे विशाल जनतांत्रिक देश के लिए विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका सबसे बड़ी संस्था है। इसके साथ ही हम सबों को यह समझना होगा कि जनता द्वारा चुनी गई विधायिका देश की सबसे बड़ी संस्था होती है। जिस तरह सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 के विरोध में याचिकाओं को स्वीकार किया है, इससे प्रतीत होता है कि सुप्रीम कोर्ट विधायिका द्वारा निर्मित कानून को मानने से इनकार कर रहा है ? यह बड़ा अहम सवाल है।  इस विषय पर देश के तमाम  कानूनविदों को गंभीरता पूर्वक  विचार करने की जरूरत है।
सुप्रीम कोर्ट में वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 पर सुनवाई के दौरान  सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत से केंद्र की ओर से प्रारंभिक जवाब दाखिल करने के लिए एक सप्ताह का समय मांगा।‌ जिसे सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार भी कर लिया। 5 मई को भारत सरकार को सुप्रीम कोर्ट में वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 के औचित्य के पक्ष में अपनी बातों को खना है।   
  सुप्रीम कोर्ट के उक्त निर्देश पर केंद्र सरकार ने वक्फ संशोधन अधिनियम  2025 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में जवाब दाखिल किया और कहा कि पिछले सौ  वर्षों से उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ को केवल पंजीकरण के बाद ही मान्यता दी जाती है, मौखिक रूप से नहीं। इसलिए, संशोधन जरूरी था। केंद्र सरकार ने कहा कि वक्फ परिषद और वक्फ बोर्ड में 22 सदस्यों में से अधिकतम दो गैर-मुस्लिम होंगे, यह एक ऐसा उपाय है, जो समावेशिता का प्रतिनिधित्व करता है ।  वक्फ के प्रशासन में हस्तक्षेप नहीं करता है। केंद्र ने कहा कि जानबूझकर यह गलत तरीके से वक्फ संपत्तियों के रूप में उल्लिखित सरकारी भूमि की पहचान राजस्व रिकॉर्ड को सही करने के लिए है। यह संशोधित अधिनियम सरकारी भूमि को किसी भी धार्मिक समुदाय से संबंधित भूमि नहीं माना जा सकता है।
 वहीं दूसरी ओर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल जवाब के जरिए वक्फ कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज करने की मांग की है। केंद्र सरकार ने अपने जवाब में कहा है कि सुप्रीम कोर्ट किसी भी कानून के प्रावधान पर आंशिक रूप से अंतरिम रोक नहीं लगा सकती है। न्यायिक समीक्षा करते हुए पूरे कानून पर रोक लगानी होती है। इसके अलावा ये भी माना जाता है कि संसद ने जो कानून ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमेटी के सुझावों पर बनाया है, वह सोच समझकर बनाया होगा। वक्फ मुसलमानों की कोई धार्मिक संस्था नहीं है। आगे केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि वक्फ संशोधन कानून के मुताबिक मुतवल्ली का काम धर्म निरपेक्ष होता है न  कि धार्मिक। ये कानून निर्वाचित जन प्रतिनिधियों की भावनाओं को परिलक्षित करता है। इसे बहुमत से इसे पारित किया गया है। इस बिल को पारित करने से पहले संयुक्त संसदीय समिति की 36 बैठकें हुईं और 97 लाख से ज्यादा हितधारकों ने सुझाव और ज्ञापन दिए। समिति ने देश के दस बड़े शहरों का दौरा किया और जनता के बीच जाकर उनके विचार लिए गए। तब जाकर वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 का ड्राफ्ट तैयार हुआ।
  आज 5 मई को देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट को वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 के औचित्य पर फैसला लेना है । भारत सरकार ने अपनी ओर से सुप्रीम कोर्ट में जवाब दाखिल कर दिया है। वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 के विरुद्ध में याचिका कर्ताओं ने भी अपनी ओर से सारी बातों को अपने  अपने दस्तावेजों के जरिए सुप्रीम कोर्ट के सुपुर्द कर दिया है । सुप्रीम कोर्ट को वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 पर फैसला करना एक अग्नि परीक्षा के समान होगा । सुप्रीम कोर्ट के सामने वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 के विरोध में याचिका कर्ताओं के दस्तावेज है तो दूसरी ओर जॉइंट पार्लियामेंट  द्वारा पारित वक्फ संशोधन कानून 2025 है, दोनों को ध्यान में रखकर फैसला लेना है ।‌अब देशवासियों को देखना यह है कि सुप्रीम कोर्ट वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 को अवैध घोषित करती है अथवा याचिकाकर्ताओं  के दस्तावेजों को खारिज करती है ?