शिव का आशय क्या है ? जानिए राम मनोहर लोहिया के इस लेख में
शिव का आशय क्या है, यह अपने एक सुदीर्घ लेख में भारतीय मनीषा के अप्रतिम व्याख्याता राम मनोहर लोहिया ने स्पष्ट किया है। उनके उस सुदीर्घ लेख का अंश, इस शिवरात्रि पर

आलोक पुराणिक
वैधानिक चेतावनी-यह व्यंग्य नहीं है
शिव का आशय क्या है, यह अपने एक सुदीर्घ लेख में भारतीय मनीषा के अप्रतिम व्याख्याता राम मनोहर लोहिया ने स्पष्ट किया है। उनके उस सुदीर्घ लेख का अंश,शिवरात्रि पर
शिव का मस्तिष्क
राम मनोहर लोहिया
जब देवों और असुरों ने समुद्र मथा तो अमृत के पहले विष निकला। किसी को यह विष पीना था। शिव ने उस देवासुर संग्राम में कोई हिस्सा नहीं लिया और न तो समुद्र-मंथन के सम्मिलित प्रयास में ही। लेकिन कहानी बढ़ाने के लिए वे विषपान कर गए। उन्होंने अपनी गर्दन में विष को रोक रखा और तब से वे नीलकंठ के नाम से जाने जाते हैं। दूसरा स्वप्न हर जमाने में हर जगह पूजने योग्य है। जब एक भक्त ने उनके बगल में पार्वती की पूजा करने से इनकार किया तो शिव ने आधा पुरुष आधा नारी, अर्धनारीश्वर रूप ग्रहण किया। मैंने आपाद-मस्तक इस रूप को अपने दिमाग में उतार पाने में दिक्कत महसूस की है, लेकिन उसमें बहुत आनंद मिलता है।
मेरा इरादा इन किंवदंतियों के क्रमश: ह्रास को दिखाने का नहीं है। शताब्दियों के बीच वे गिरावट का शिकार होती रही हैं। कभी-कभी ऐसा बीज जो समय पर निखरता है, वह विपरीत हालतों में सड़ भी जाता है। राम के भक्त समय-समय पर पत्नी निर्वासक, कृष्ण के भक्त दूसरों की बीवियाँ चुरानेवाले और शिव के भक्त अघोरपंथी हुए हैं। गिरावट और क्षतरूप की इस प्रक्रिया में मर्यादित पुरुष संकीर्ण हो जाता है, उन्मुक्त पुरुष दुराचारी हो जाता है, असीमित पुरुष प्रसंग-बद्ध और स्वरूपहीन हो जाता है। राम का गिरा हुआ रूप संकीर्ण व्यक्तित्व, कृष्ण का गिरा हुआ रूप दुराचारी व्यक्तित्व और शिव का गिरा हुआ रूप स्वरूपहीन व्यक्तित्व बन जाता है। राम के दो अस्तित्व हो जाते हैं, मर्यादित और संकीर्ण, कृष्ण के उन्मुक्त और क्षुद्र प्रेमी, शिव के असीमित और प्रसंगबद्ध। मैं कोई इलाज सुझाने की धृष्टता नहीं करूँगा और केवल इतना कहूँगा : ऐ भारतमाता, हमें शिव का मस्तिष्क दो, कृष्ण का ह्रदय दो तथा राम का कर्म और वचन दो। हमें असीम मस्तिष्क और उन्मुक्त ह्रदय के साथ-साथ जीवन की मर्यादा से रचो।