भय से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करतीं कालरात्रि माता की आराधना

(29 सितंबर, शारदीय नवरात्र के सातवें  दिन माता कालरात्रि की आराधना पर विशेष)

भय से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करतीं कालरात्रि माता की आराधना

मनुष्य के हर प्रकार के भय से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करती हैं, कालरात्रि मंत्र की आराधना ।  देवी पुराण के अनुसार शारदीय नवरात्र के सातवें दिन माता कालरात्रि की उपासना का विधान है। मां कालरात्रि के नाम से इसलिए जानी जाती हैं कि मां बिल्कुल सघन रात्रि की कालिमा  के समान अपनी किया का रंग रखी हैं। ब्रह्मांड के समान माता कालरात्रि की तीन नेत्र सदा खुली रहती हैं। माता कालरात्रि के तीनों नेत्र राक्षसों को देख रही होती हैं। उनके नेत्रों से निकलने वाली ज्वाला से दैत्य - राक्षस सभी भस्म होते चले जाते हैं जा माता का स्वरूप इतना भयंकर प्रतीत होता है कि राक्षस - दैत्य उनके इस रूप को देखकर ही भाग खड़े होते हैं।  वही दूसरी ओर माता कालरात्रि अपने भक्तों के लिए उतने ही शुभकारी देवी हैं । इसलिए माता को शुभंकरी माता के नाम से भी जाना जाता है। माता कालरात्रि की उपासना से अग्नि भय, जल भय, जंतु भय, शत्रु भय, रात्रि भय  आदि कभी नहीं होते हैं । माता की कृपा से इनके उपासक सभी प्रकार के भय से मुक्त हो जाते हैं।

  कालरात्रि माता के इस स्वरूप के दर्शन से भक्तों के सभी प्रकार के कष्ट दूर हो जाते हैं । माता का यह स्वरूप भक्तों के लिए बहुत ही शुभकारी व मंगलकारी है । जो भी भक्त पवित्र व सच्चे मन से माता कालरात्रि का  नाम लेकर किसी कार्य को प्रारंभ करते हैं, तो उनका कार्य निर्विघ्न संपन्न हो जाता है। आगे उसके कार्य में कोई बाधा उत्पन्न नहीं होता है। वह माता कालरात्रि की कृपा से अपने कार्य में आगे बढ़ता ही चला जाता है । अगर कोई शत्रु उसके कार्य में बाधा पहुंचाने की कोशिश करता है, तो उल्टे शत्रु का ही नाश हो जाता है। माता कालरात्रि के स्मरण मात्र से मनुष्य के अंदर विद्यमान सभी तरह के भय दूर हो जाते हैं । जो साधक नियम पूर्वक पवित्र मन से माता कालरात्रि की उपासना करते हैं।  उसे कभी भी मृत्यु भय, अग्नि भय,जंतु भय,शत्रु भय, रात्रि भय आदि सता ही नहीं सकता है। ऐसे भक्तों के शरीर के चारों ओर अदृश्य रूप से माता कवच बन कर रक्षा करती रहती हैं।
  कालरात्रि माता  गधा पर सवार होकर दैत्य और राक्षसों का नाश बहुत ही तेजी के साथ करती चली जा रही होती हैं ।‌ माता जिस  गदहा पर सवार होकर रणभूमि में महिषासुर के राक्षसों का नाश कर रही होती हैं ,वह गदहा करोड़ों घोड़ों  के बल से भी अधिक बलशाली है।‌ वह गदहा हवा की गति से भी  तेज दौड़ता हुआ रणभूमि पर अपने पैरों से दैत्यों और राक्षसों का नाश करता हुआ आगे बढ़ता चला जा रहा होता है।  शारदीय नवरात्र के  सातवें दिन युद्ध भूमि राक्षसों और दैत्यों के खून से भर चुका होता है। चहुंओर दैत्यों और राक्षसों के खून ही खून नजर आ रहे होते हैं । इसके बावजूद राक्षस हार मानने के लिए तैयार नहीं हो रहे होते हैं। कालरात्रि माता द्वारा शुंभ, निशुंभ और रक्तबीज जैसे बलशाली राक्षसों को कुचल दिए जाने के बावजूद  महिषासुर  पीछे हटने को तैयार नहीं हो रहा होता है। इसलिए युद्ध भूमि में माता ने इतना भयंकर रूप बनाया था।
  कालरात्रि माता अपने चार भुजाओं के साथ युद्ध भूमि पर  युद्ध रत हैं। मां की काया से विद्युत के समान चमकीली किरणें नि:सृत होती रहती है। इनकी नासिका के श्वास  -प्रश्वास से अग्नि की भयंकर ज्वालाएं निकलती रहती हैं।‌ इनके तीनों नेत्र  ब्रह्मांड के समान गोल चौबीसों घंटे खुली रहती हैं। उनके नेत्रों से जो ज्वाला धधक रही होती हैं,उस धधकती ज्वाला से राक्षसों और दैत्यों का नाश भी होता चला जा रहा होता है। माता चारभुजा धारी हैं । ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ की वर मुद्रा से सभी को वरदान प्रदान करती हैं । दाहिनी तरफ का नीचे वाला हाथ अभय मुद्रा में है।‌ बाएं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का कांटा तथा नीचे वाले हाथ में कटार है सुशोभित हो रहा होता है। कालरात्रि माता के घने  काले बाल माता को और भी भयंकर बना दे रहे हैं। कालरात्रि माता वज्र का आभूषण धरण की हुई  होती हैं।
  शारदीय नवरात्र के सातवें दिन देवी उपासकों को बहुत ही पवित्र मन से मां की उपासना करनी चाहिए। इस दिन साधक का मन सहस्त्रार चक्र में स्थित होता है। ऐसी स्थिति में साधकों के लिए ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों के द्वार खुलने लगते हैं। इस चक्र में स्थित साधक का मन पूर्णतः माता कालरात्रि के स्वरूप में अवस्थित होता चला जाता है । माता कालरात्रि के साक्षात्कार से मिलने वाले पुण्य का साधक भाग हो जाता है। मां के साक्षात्कार से मिलने वाले पुण्य का वह भागी हो जाता है। भक्त के समस्त पापों और विघ्नों का नाश हो जाता हैं।  भक्तों को अक्षय पुण्य लोगों की प्राप्ति होती है। कालरात्रि माता के साधकों को शुभंकारी देवी के इस स्वरूप से बहुत कुछ सीखने की जरूरत है । थोड़ी सी शक्ति, धन और यश प्राप्त कर लेने के बाद व्यक्ति में अहंकार समाहित हो जाता है। यह मनुष्य की सबसे बड़ी भूल होती है। हर मनुष्य को इस भूल से बचना चाहिए।  माता चाहती तो रणभूमि में किसी घोड़े पर सवार होकर युद्ध रत होती, लेकिन उन्होंने पशुओं में नीचा समझा जाने वाला गधा की सवारी  को स्वीकार किया।  यह इस बात को दर्शाता है कि कदापि किसी भी जीव को छोटा अथवा बड़ा नहीं समझना चाहिए । बल्कि सभी को समान दृष्टि से देखना चाहिए। हर एक मनुष्य को अहंकार और छुआछूत से बचना चाहिए। ये वृत्तियां  ही उन्हें दैत्य व राक्षस के रूप में तब्दील कर देती हैं।
   माता कालरात्रि के स्वरूप विग्रह को अपने हृदय में अवस्थित करके साधकों को एकनिष्ठ भाव से उनकी उपासना करनी चाहिए । माता कालरात्रि का स्वरूप देखने में जितना भयानक है, माता अपने भक्तों के लिए उतने ही दयालु, कृपालु और शुभकारी हैं। माता कालरात्रि रणभूमि में रहकर भी अपने दोनों हाथों से भक्तों को  अभय और विभिन्न प्रकार के वरदान देने के लिए आतुर दिखाई पड़ती हैं। इसलिए व्यक्ति को जब धन, बल, पद और यश आदि प्राप्त होते हैं, तो इन प्राप्त शक्तियों को जनकल्याण में लगाना चाहिए। ये शक्तियां मां की कृपा से ही प्राप्त हुई होती हैं ।
  हर साधक को यह कदापि नहीं भूलना चाहिए कि मनुष्य जैसा कर्म करता है,  उसी रूप में उनका जन्म होता है । शास्त्रों का कथन है कि चौरासी लाख योनियों में सबसे श्रेष्ठ योनी मनुष्य योनि है।‌ इसलिए हर एक मनुष्य को यह विचार करना चाहिए कि अपने पूर्व जन्म के अच्छे कर्म के कारण ही उसका जन्म मनुष्य योनि में हुआ है । इसलिए यह जो जन्म मनुष्य के  रूप में उसे प्राप्त हुआ है, अच्छे कर्म और  माता की भक्ति कर सदा सदा के लिए मां के श्री चरणों में समाहित हो जाए।  माता काल रात्रि सदैव शुभ फल देने वाली होती है।  माता कालरात्रि के इस स्वरूप को देखकर भक्तों को तनिक भी भयभीत और आतंकित होने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि अपने खुले नेत्रों से कुछ मिनटों तक माता को ध्यान से देखें।  कुछ ही पलों में ध्यान मां  पर लग जाएगा । तब आपको एक प्रकार की अनुभूति होगी। ‌ खुद को पूर्व  से ज्यादा तरोताजा और बलशाली महसूस करेगें।  माता कालरात्रि के इस  विग्रह स्वरूप को अपने हृदय में अवस्थित कर साधकों को एकनिष्ठ भाव से उनकी उपासना करनी चाहिए। यम, नियम, संयम का  पूर्ण पालन करना चाहिए।  साथ ही मन, वचन, काया की पवित्रता भी रखनी चाहिए । कालरात्रि माता शुभकारी देवी हैं ।‌ उनकी उपासना से होने वाले शुभ  की गणना नहीं की जा सकती है। हमें निरंतर उनका  ध्यान और पूजन करना चाहिए। नवरात्र के नौ दिन हम सबों के लिए एक वरदान के रूप में आते हैं।  इस अवसर पर हर भक्तों को अपने अंदर छुपे बुराइयों को त्यागने का संकल्प लेना चाहिए। सच्चे अर्थों में यही नवरात्र है।