सातवें महीने में जन्मा, वजन एक किलोग्राम, मृतप्राय बच्चा स्वस्थ होकर लौटा घर
गया शहर स्थित बच्चों का अस्पताल के डॉ बीडी शर्मा और उनकी टीम का प्रयास लाया रंग,हुआ चमत्कार।
गया:
एक प्रसिद्ध कहावत है – डॉक्टर भगवान का दूसरा रूप होता है, वह जीवनरक्षक भी होता है.कुछ इसी कहावत को चरितार्थ करते हैं गया शहर स्थित बच्चों का अस्पताल के संस्थापक और जाने माने नवजात एवं शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ बीडी शर्मा।
गया जिले के बाराचट्टी प्रखंड के बाजुकलां निवासी शैलेश रविदास की पत्नी रितु देवी ने गर्भावस्था के सातवें महीने में ही बाराचट्टी के एक निजी क्लिनिक में विगत 3 जून को एक बच्चे को जन्म दिया. जन्म के समय बच्चे का वजन मात्र एक किलोग्राम था. उस अस्पताल के डाक्टर ने उसकी हालत बहुत ही नाजुक बतायी और उसे जल्द ही गया शहर के बड़े अस्पताल ले जाने के लिए कहा. बच्चे के दादाजी मुखदेव रविदास उसे लेकर विगत 6 जून को गया शहर के जीबी रोड स्थित आनंदी माई मंदिर के पास स्थापित बच्चों का अस्पताल नामक हॉस्पिटल लेकर पहुंचे. बच्चे के अस्पताल पहुंचते ही डॉ बीडी शर्मा अपनी टीम के साथ बच्चे की जिंदगी बचाने जुट गए और हरसंभव इलाज भी शुरू कर दिया. बच्चा बार बार अपनी सांसें रोक रहा था, उसे बहुत तेज बुखार भी था. अंत में करीब दो महीने के समुचित इलाज के बाद बच्चे को 28 जुलाई को स्वस्थ अवस्था में अस्पताल से छुट्टी दे दी गई.बच्चे का इलाज करनेवाले डॉ बीडी शर्मा ने बताया कि विगत 6 जून को यह बच्चा बहुत ही गंभीर अवस्था में उनके अस्पताल में लाया गया था. समय से पहले सातवें महीने में जन्म लेने के कारण बच्चे का विकास गर्भ में पूरी तरह से नहीं हुआ था. उसका वजन महज एक किलोग्राम था. उसने माँ के गर्भ में ही गंदा पानी भी पी लिया था. उसकी दिल की धड़कन बार बार रुक रही थी. मैंने इसे एक चुनौती के रूप में स्वीकार किया और बच्चे को NICU में भर्ती कर अपने ट्रैंड स्टाफ की मदद से उसको बचाने में जुट गया. करीब दो महीने के मेहनत के बाद बच्चे को स्वस्थ कर उसे आज डिस्चार्ज कर दिया गया. अभी बच्चे का वजन पौने दो किलोग्राम है.डॉ शर्मा ने बताया कि इलाज के दौरान बच्चे की गंभीर स्थिति को देखते हुए मैंने उसके परिजनों को उसे गया शहर से बाहर ले जाने के लिए भी सलाह दिया, लेकिन बच्चे के परिजनों ने अपनी आर्थिक स्थिति का ब्योरा देते हुए मुझे और मेरी टीम पर विश्वास जताया और बच्चे का इलाज मेरे ही अस्पताल कराने पर अपनी सहमति दी.उन्होंने बताया कि पहले भी इसी तरह के कई बच्चों को नयी जिंदगी दी गई है. बाराचट्टी से आए इस बच्चे की जिंदगी बचाने में उनके अस्पताल के स्टाफ अबोध राज, रंजन, पवन, मंटू, किरण, खुशी परवीन, आरती, रमेश, अनिल, नवीन, रौशन एवं प्रिंस का योगदान सराहनीय रहा.
इधर, अस्पताल में बच्चे को लेने आए उसके दादाजी मुखदेव रविदास ने बताया कि बाराचट्टी के निजी अस्पताल में जिस अवस्था में उनके पोते का जन्म हुआ था, उसे देखकर वे उसके जीवित रहने की उम्मीद छोड़ चुके थे. उनको लग रहा था कि अगर यह बच्चा नहीं बचा तो उनका वंश कैसे आगे बढ़ेगा. उस अस्पताल के डॉक्टर और अन्य परिजनों के कहने पर बच्चे को लेकर वे खुद ही विगत 6 जून को बच्चों का अस्पताल, गया, लेकर पहुंचे थे. इस अस्पताल के संस्थापक डॉ बीडी शर्मा और उनके स्टाफ का शुक्रिया अदा करता हूं कि उन्होंने मेरे पोते की ज़िंदगी बचाने के लिए अपनी पूरी झोंक दी और आज करीब दो महीने बाद बच्चे को लेकर वे घर जा रहे हैं. मेरे लिए डॉक्टर साहब भगवान से कम नहीं हैं. उनको जितना भी धन्यवाद या आशीर्वाद दिया जाय, कम ही होगा. मुखदेव जी ने यह भी बताया कि उनका बेटा दिव्यांग है और बहू मानसिक रूप से बीमार है. इस उम्र में भी घर-परिवार का सारा खर्च उन्हें ही उठाना पड़ रहा है.