शब्दवीणा की कर्नाटक प्रदेश समिति ने आयोजित की मासिक काव्यगोष्ठी

शब्दवीणा की कर्नाटक प्रदेश समिति ने आयोजित की मासिक काव्यगोष्ठी

शब्दवीणा की कर्नाटक प्रदेश समिति ने आयोजित की मासिक काव्यगोष्ठी

गयाजी। राष्ट्रीय साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था 'शब्दवीणा' की कर्नाटक प्रदेश समिति ने प्रादेशिक काव्यगोष्ठी का आयोजन किया, जिसकी अध्यक्षता शब्दवीणा कर्नाटक प्रदेश साहित्य मंत्री निगम राज़ ने की। कार्यक्रम का शुभारंभ शब्दवीणा की कर्नाटक प्रदेश अध्यक्ष लोकगीतकार सुनीता सैनी गुड्डी ने स्वरचित सरस्वती वंदना "दुनिया से मतभेद मिटा दो माँ, कोई ऐसा भेद सिखा दो माँ" से किया। संचालन कर्नाटक प्रदेश उपाध्यक्ष विजयेन्द्र सैनी ने किया। काव्यगोष्ठी में मुख्य अतिथि वरिष्ठ कवि डॉ. मधुकर राव लारोकर, विशिष्ट अतिथि ग़ज़लकार मीना कुमारी, जैनेन्द्र कुमार मालवीय, दीपक कुमार, पंकज मिश्र, अजय कुमार वैद्य, वंदना चौधरी, संध्या निगम, ब्रजेन्द्र मिश्र, पंकज मिश्र, अंजुम भारती, निगम राज़, विजयेन्द्र सैनी, सुनीता सैनी गुड्डी एवं डॉ रश्मि प्रियदर्शनी ने विविध ज्वलंत विषयों पर रचनाएँ पढ़ीं।
शब्दवीणा की राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ रश्मि ने अपनी रचना "आज झमाझम बरसा पानी, बौछारों ने की मनमानी" तथा "बादल मनमौजी हुए, बारिश करे बवाल। जीवन को ग्रसने खड़ी, मौत बिछाकर जाल" द्वारा देश-विदेश के विभिन्न हिस्सों में लगातार हो रही बारिश के सुंदर तथा रौद्र रूपों को चित्रित किया। राष्ट्रीय साहित्य मंत्री वंदना चौधरी की प्रेरक रचना "जीवन पथ पर शूल मिलेंगे, कहीं-कहीं पर फूल मिलेंगे। पर्वत-सी हों सख्त जड़ें तो, तूफां भी अनुकूल मिलेंगे। पथ के पथरीले कंटक चुन, मंजिल तक तो बढ़ना होगा। निज क्षमता को पढ़ना होगा" एवं जहानाबाद जिला संरक्षक दीपक कुमार की "कब चलूं, कितना चलूं मैं, संग ले किनको चलूं। इस अनिर्णय में सफर की राह तक गुम हो गई" को श्रोताओं ने खूब पसंद किया। राष्ट्रीय उप संगठन मंत्री एवं गया जी के युवा रचनाकार पंकज मिश्र की "चल पड़ा हूँ राह पर, मंजिल अभी बाकी है", गया जी जिलाध्यक्ष जैनेन्द्र कुमार मालवीय की "हे माँ लक्ष्मी घर-घर प्रवेश कर, इस राष्ट्र को सुख समृद्धि दे", गया जी जिला प्रचार मंत्री अजय कुमार वैद्य की "लगे दोष कभी ना मिटते, जब तक यह संसार है", कर्नाटक प्रदेश प्रचार मंत्री संध्या निगम की "गौरा गणेश मनाऊँ, अरज सुन लीजे हमारी", ग़जलकार फना की "एक लम्हा हँसाया गया। उम्र भर फिर रुलाया गया" एवं पेशे से एडवोकेट कवयित्री अंजुम भारती की "भाव को छेड़ो नहीं, वरना ये कुछ कर जायेंगे" को खूब सराहना मिली। डॉ. मधुकर राव लारोकर ने "शब्दों ने तो जीवन संवारा भी, और इतिहास बना डाला। पांचाली के कटु व्यंग्य वाणों ने महाभारत रचा डाला" द्वारा शब्दों का सार्थक प्रयोग करने की सीख दी।
शब्दवीणा के कर्नाटक प्रदेश संगठन मंत्री ब्रजेन्द्र मिश्र 'ज्ञासु' की "इक घड़ी का विरह, वेदना हो गया। तुझे देखकर दिल फना हो गया" को खूब वाहवाहियां मिलीं। पटना से जुड़ीं मीना कुमारी की ग़ज़ल "मेरे ज़ख्मों को रह-रहके सहला गया। ग़म मेरा इस क़दर और गहरा गया" की सस्वर प्रस्तुति ने सभी का हृदय जीत लिया। निगम राज़ ने विश्लेषणात्मक अध्यक्षीय वक्तव्य के उपरांत "क्या सोच कर हम कहा कहते हैं, गणपति बप्पा मोरिया" रचना पढ़ी। कार्यक्रम का सीधा प्रसारण फेसबुक पर शब्दवीणा केन्द्रीय पेज से किया गया, जिससे जुड़कर प्रो सुनील कुमार उपाध्याय, प्यारचन्द कुमार मोहन, डॉ रवि प्रकाश, बोधिसत्व कस्तूरिया, राम नाथ बेख़बर, हीरा लाल साव, पुरुषोत्तम तिवारी, डॉ विजय शंकर सहित अनेक साहित्यानुरागियों ने कार्यक्रम का आनंद उठाया। श्रोताओं ने अपनी टिप्पणियों द्वारा रचनाकारों का उत्साहवर्द्धन किया।