राष्ट्रवाद का राग और तिरंगे से दूरी : भाजपा की ये कैसी देशभक्ति

राष्ट्रवाद का राग और तिरंगे से दूरी : भाजपा की ये कैसी देशभक्ति

पिछले दस वर्षों से पूरे देश की राजनीति में “राष्ट्रवाद” एक अहम मुद्दा बना हुआ है। सभी राजनीतिक पार्टियाँ भारत देश के प्रति अपनी देशभक्ति को साबित करने में लगी है। हालाँकि अपने आप को विश्व की सबसे बड़ी पार्टी का तमग़ा देनेवाली भाजपा इस मामले में सबसे आगे दिखाई पड़ती है। ऐसा प्रतीत होता है जैसे भाजपा के अलावा किसी को देश की चिंता ही नहीं है।

राष्ट्रवाद को अपना हथियार बनाकर भाजपा ने देश की सत्ता पर अपना नियंत्रण पा लिया है। लेकिन देश की जनता को यह समझने की ज़रूरत है कि राजनीतिक पार्टियों के द्वारा थोपा गया राष्ट्रवाद क्या वाक़ई में देशभक्ति ही है। जो भारतीय नागरिक किसी राजनीतिक पार्टी का सदस्य नहीं है क्या वह देशभक्त नहीं है? क्या देशभक्त सिर्फ़ राजनेता ही हैं? क्या राजनीति से जुड़े भारतीय नागरिकों को ही देशभक्त कहलाने का अधिकार है? ऐसे कई सवाल हैं जो एक ज़िम्मेवार भारतीय के ज़ेहन में आज गूंज रहे हैं।

आज देशभर में भाजपा की रैलियाँ हो रही है। भाजपा के शीर्षस्थ राजनेता इन कार्यक्रमों का संचालन और निर्देशन कर रहे हैं। लेकिन पूरे देश में कहीं भी इनके कार्यक्रमों में एक भी तिरंगा झंडा नहीं दिखाई दिया। जबकि ख़ुद भाजपा ही यह कहती है कि यह तो भारत देश का चुनाव है। आप शुरू से ही देश में हो रहे चुनावों पर नज़र डालेंगे तो शुरू से ही देश के प्रमुख राजनीतिक दल तिरंगे झंडे के साथ देशहित और राष्ट्रहित की बातें करते रहे हैं। यह सभी जानते हैं कि वर्तमान भाजपा विपक्षी पार्टियों पर राष्ट्रविरोधी होने तक का आरोप लगाती रही है और भारतीय जनता पार्टी को देश का एकमात्र देशभक्त पार्टी बताती है। इसके बावजूद यह आश्चर्यजनक है कि भाजपा तिरंगे को पसंद नहीं करती है। इसका प्रमुख कारण यह भी है कि, देश में भाजपा की मुख्य प्रतिद्वंदी पार्टी “कांग्रेस” हमेशा तिरंगे को अपने साथ रखती है। भाजपा का मानना है कि कांग्रेस जो भी करती है ग़लत करती है, या फिर कांग्रेस जो करेगी भाजपा उसका उल्टा करेगी।

राजनीति ने आज राष्ट्रवाद और देशभक्ति की परिभाषा ही बदल कर रख दी है। राष्ट्रवाद की लाठी के सहारे अपनी राजनीति को सींचती राजनीतिक पार्टियाँ राष्ट्रवाद की वास्तविकता से कोसों दूर हैं। आप सबको जानकर यह आश्चर्य होगा कि जिस राष्ट्रवाद के सहारे भाजपा आज देश की सत्ता पर काबिज है, उसी भाजपा का देश के राष्ट्रीय ध्वज “तिरंगे” के प्रति प्रेम बिल्कुल दिखाई नहीं पड़ती है। हमने जब इस मक़सद से भाजपा के नेताओं और उससे जुड़े लोगों के घरों और कार्यालयों का भ्रमण किया तो पाया कि – घर और कार्यालय का एक एक कोना कमल के झंडे (भाजपा का चुनाव चिन्ह) से भरा पड़ा है, लेकिन कहीं भी तिरंगे का नामोनिशान नहीं मिला। जब मैंने तिरंगा नहीं लगाने का वजह पूछा तो- उनका कहना था कि ” हमलोगों के लिये पार्टी सबसे पहले है, हालाँकि बाद में उन्होंने अपनी बातों को बदल दिया और कहने लगे कि तिरंगा सभी जगह नहीं लगाया जा सकता है और सबसे प्रमुख बात तो यह है कि तिरंगा कांग्रेस के झंडे जैसा लगता है।” जब मैंने उनसे कहा कि भारत सरकार ने सभी नागरिकों को अपने घरों और कार्यालयों पर (कुछ शर्तों के साथ) तिरंगा लगाने का अधिकार दे दिया है। तब वे कहने लगे कि इस बारे में पार्टी प्रमुख ही बता पायेंगे। चूँकि पार्टी प्रमुख चुनाव प्रचार में व्यस्त थे, इसलिए उनसे संपर्क नहीं हो पाया।

इसके अलावा भारतीय जनता पार्टी के द्वारा किए जानेवाले बड़े बड़े रैलियों एवं कार्यक्रमों में भी कहीं तिरंगा दिखाई नहीं पड़ता है। जबकि भाजपा के किसी भी कार्यक्रम में आपको चारों तरफ़ कमल निशान के झंडों की भरमार दिखेगी। इस मुद्दे पर एक भाजपा नेता से सवाल पूछने पर उन्होंने अजीबो-ग़रीब जवाब दिया। उन्होंने कहा कि – तिरंगा तो कांग्रेस की रैलियों में दिखाई पड़ती है। मैं तो बिलकुल ही चौंक गया जब उन्होंने कहा कि तिरंगा देखने पर ऐसा प्रतीत होता है जैसे कांग्रेस पार्टी का कार्यक्रम हो।

फिर जब राष्ट्रवाद के मुद्दे पर एक दूसरे भाजपा नेता से हमने पूछा कि ” आपलोग राष्ट्रवाद का राग अलापते हैं, लेकिन कहीं भी तिरंगे के प्रति आपकी सजगता नहीं दिखती है। अपने घरों पर जीतने कमल के झंडे लगाए रहते हैं, उससे तो अच्छा होता कि आप राष्ट्रभक्ति में तिरंगा लगाकर अपनी शान बढ़ाते”

इसपर भाजपा नेता ने जो जवाब दिया वह सुनकर तो मैं स्तब्ध रह गया। उन्होंने कहा कि “तिरंगा कांग्रेसियों की पहचान है। हमलोग भगवाधारी हैं। हमलोगों के लिये देश का भगवा झंडा है। भगवा ही हमारी पहचान है।”

जब हमने पूछा कि तब तो भाजपा को देश के झंडे को भी बदल देगी। इस पर उन्होंने बड़े आत्मविश्वास के साथ कहा कि-“बिलकुल बदलना ही चाहिए, हम सनातनी हैं और भगवा ही हमारा वजूद और कमल हमारा पहचान है।”

जबकि हम सभी भारतीय यह जानते हैं कि हमारा राष्ट्रीय ध्वज हमारी आन,बान और शान है। हमारे तिरंगे में मौजूद भगवा ( केसरिया) रंग हमारी शक्ति , सफ़ेद रंग शांति और प्रेम का संदेश तथा हरा रंग हमारी संप्रभुता का प्रतीक है। यही कारण है कि संपूर्ण जगत में अपनी ख़ास पहचान रखे हुए हमारा भारत विश्व को मार्ग दिखाता आया है। हमारे तिरंगे में दिखाई देनेवाले ये तीन रंग पूरे जगत में शांति और ख़ुशियों के रंग बरसाते हैं।

कहीं न कहीं यह बात राजनीतिक पार्टी द्वारा ही देश के नागरिकों के ज़ेहन में फैलाई जा रही है। जो आनेवाले समय में काफ़ी घातक हो सकती है। किसी भी पार्टी का चुनाव चिन्ह अपनी जगह है। लेकिन देशहित और राष्ट्रवाद की बात करनेवाली पार्टियाँ जब अपने राष्ट्रध्वज से ही इतनी दूरी बनाकर रखेगी, फिर यह कैसा राष्ट्रवाद? ज़रूरी नहीं है कि देश में अमरकाल तक भाजपा की ही सरकार रहे। ऐसे में जब भी किसी अन्य राजनीतिक दल की सरकार सत्ता में आएगी तब फिर वो अपनी पार्टी के चुनाव चिन्ह को तिरंगे के समानांतर रखने की कोशिश करेगा। राजनीति और राष्ट्रवाद बिलकुल एक दूसरे के उलट हैं। आज की यह उल्टी धारा की राजनीति किसी भी राष्ट्र के लिये शुभ नहीं है। तिरंगा हर भारतीय की शान है। भारतीय की पहचान तिरंगा ही है। ऐसा लगता है कि राजनीतिक वर्चस्व में तिरंगे की पहचान कहीं गुम होती जा रही है। देश के सबसे बड़े राजनीतिक दल के द्वारा ऐसी सोच कहीं से जायज़ नहीं है।

राजनीति का नशा, सत्ता का पॉवर और माया का जाल ये तीन ऐसे कारक हैं जो किसी भी राजनेता को पथभ्रमित कर ही देते हैं। हालाँकि आज के समय में किसी भी राजनीतिक दल से राष्ट्रप्रेम और देशहित की उम्मीद लगाना, कोयले के ढेर में हीरा तलाशने के समान है। आज की राजनीति सिर्फ़ और सिर्फ़ स्वहित और स्वार्थ सिद्धि का सुलभ मार्ग है। राजनीतिक दल हमेशा से जनता को सब्जबाग़ और झूठे सपने दिखाकर ठगते रहे हैं।

सबसे गौरवान्वित करनेवाली बात तो यह है कि यहाँ के राजनेता अभी तक यह नहीं समझ पाये हैं कि यह भारत की भूमि है। जो सदियों से आक्रमणकारियों और भारत के बलिदानियों के लहू में सनी रही है। भारत की मिट्टी की शक्ति ऐसी रही है कि इसे लाख कोई भी बदलना चाहे, उल्टे वही भारत की मिट्टी में मिल जाता है।

।।जय हिन्द।। जय भारत।।हर घर तिरंगा।।