उपायुक्त राँची की अनदेखी से परेशान होकर महापौर ने हाईकोर्ट का रुख़ किया ।
लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण में शहरी व्यवस्था को लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण अंग माना जाता है। फिर भी उपायुक्त शहरी निकाय के जनप्रतिनिधि के अधिकारों का हनन कर रहे हैं।
रांची की महापौर श्रीमती आशा लकड़ा ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा है कि – रांची नगर निगम के माध्यम से राजधानी के विकास व सौंदर्यीकरण के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। परंतु आज राज्य में परिस्थितियां बदल गई है। रांची नगर निगम के माध्यम से किए जा रहे कार्यों में गतिरोध उत्पन्न किया जा रहा है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में निहित शक्तियों का रांची के उपायुक्त राय महिमापत रे दुरुपयोग कर रहे हैं। लोकल अथॉरिटी के नाम पर रांची उपायुक्त लगातार महापौर को बरगला रहे हैं। लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण में शहरी व्यवस्था को लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण अंग माना जाता है। फिर भी उपायुक्त शहरी निकाय के जनप्रतिनिधि के अधिकारों का हनन कर रहे हैं। पूरा राज्य वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण से जुझ रहा है। ऐसी परिस्थिति में रांची नगर निगम व उसके कर्मी अपनी जान जोखिम में डालकर लोगों की सेवा कर रहे हैं। रांची की महापौर व नगर निगम के कर्मियों को अपनी जिम्मेदारियों का ध्यान है। परंतु रांची शहरी क्षेत्र में वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण के बाद भी कंटेनमेंट जोन को सील मुक्त करना दुखद है। कंटेनमेंट जोन की को सील मुक्त करने से पूर्व रांची उपायुक्त ने आपदा प्रबंधन ऐक्ट के तहत गठित कमेटी की न तो बैठक की और न ही जिला प्रशासन द्वारा की गई बैठक की सूचना दी गई। शहर के महापौर होने के नाते मैं भी आपदा प्रबंधन एक्ट के तहत गठित समिति की सह – अध्यक्ष हूं। हाईकोर्ट के अधिवक्ता से परामर्श लेने के बाद स्पष्ट हो गया है कि आपदा प्रबंधन एक्ट के तहत गठित कमेटी में महापौर समिति की सह – अध्यक्ष के रूप में शामिल हैं। मुझे बेहद अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि कमेटी की बैठक बुलाने के लिए मैंने अब तक चार बार रांची के उपायुक्त को पत्र लिखा। हालांकि उपायुक्त ने मेरे द्वारा लिखे गए पत्रों को न सिर्फ नजरअंदाज किया बल्कि संबंधित पत्रों का जवाब देना भी उचित नहीं समझा। महापौर के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप कर इस प्रकार की प्रतिकूल परिस्थिति किसके इशारे पर और क्यों उत्पन्न की जा रही है किसी से छिपी नहीं है।
जब महापौर के माध्यम से जनहित को देखते हुए उपायुक्त को चार बार पत्र लिखा और उपायुक्त ने उन पत्रों को नजरअंदाज कर कोई जवाब नहीं दिया तो स्पष्ट है कि उपायुक्त महापौर पद की गरिमा को ठेस पहुंचा रहे हैं। अंतिम पत्र के माध्यम से छह बिंदुओं पर रांची उपायुक्त से 48 घंटे के अंदर जवाब भी मांगा गया था। फिर भी उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। देश की इस विधायी परंपरा में उपायुक्त की कार्यशैली से यही प्रतीत होता है कि यह महापौर के पद का तनिक भी सम्मान नहीं करते हैं। संवैधानिक रूप से लागू किए जाने वाले किसी भी अभियान में उपायुक्त रांची की महापौर को शामिल नहीं करना चाहते हैं। उपायुक्त के इस कार्यशैली से यही प्रतीत होता है कि शहर में इस तरह के हालात उत्पन्न कर उपायुक्त, रांची की महापौर से कुछ छिपाना तो नहीं चाहते। उपायुक्त के इस कार्यशैली पर सवाल उठाना भी लाजमी है। क्योंकि उन्होंने महापौर द्वारा लिखे गए पत्रों का जवाब न देकर पद की गरिमा को ठेस पहुंचाया है। यही कारण है कि अपने संवैधानिक अधिकारों की रक्षा व शहर के विकास में उत्पन्न किए जा रहे गतिरोध को रोकने के लिए माननीय उच्च न्यायालय की शरण में जाना पड़ा। इन सभी बिंदुओं को समाहित करते हुए हाईकोर्ट में अधिवक्ता शुभाशीष रसिक सोरेन के माध्यम से याचिका दायर की गई है।