करमा पर्व प्रकृति से प्रेम करने की सिख प्रदान करता है

(3 सितंबर, भादो एकादशी, करमा पर्व पर विशेष)

करमा पर्व प्रकृति से प्रेम करने की सिख प्रदान करता है

झारखंड में प्रचलित त्योहारों में 'करमा पर्व' बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। करमा पर्व हम सबों को प्रकृति से प्रेम करने की सीख प्रदान करता है।  प्रकृति को  देवता के रूप में मानने की परंपरा आदिकाल से चली आ रही है । इस परंपरा को करमा पर्व आज भी जीवित रखे हुए हैं।  यह  पर्व झारखंड, उड़ीसा, बंगाल, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, बिहार सहित उत्तर प्रदेश में भी मनाया जाता है।  यह पर्व भादो मास के एकादशी के दिन मनाया जाता है । इस पर्व के संदर्भ में ये बातें प्रचलित है कि प्रकृति ही हम सबों की जन्मदात्री है । प्रकृति ही हम सबों के आराध्य देव हैं।  जब तक संसार में हरियाली है, तभी तक जीव जंतु सुरक्षित हैं। अर्थात हरियाली पर ही यह संसार टिका हुआ है।  संसार के सभी  पेड़ - पौधे देवता के रूप में हमारे बीच विद्यमान है।  इनकी आराधना से सभी प्रकार के कृष्ट  दूर हो जाते हैं।
  संसार में जब गांवों और शहरों का निर्माण नहीं  हुआ था, तब इन मनुष्य जंगलों में रहा करते थे । जंगल आधारित वस्तुएं खाकर जीविकोपार्जन किया करते थे । तब ना ये बिजली थी और ना ही कंप्यूटर था।  हमारे पूर्वज  झुंड में रहा करते थे । जंगली जानवरों से बचने के लिए रात्रि में आग जलाकर निगरानी किया करते थे । आराम से गहरी नींद में सोया करते थे। भूख लगने पर वे  जंगल के ही फल फूल खाकर भूख मिटाया करते थे । वे तालाब - पोखरों के शुद्ध जल   पीकर  प्यास मिटाया करते थे।  उन्हें ना घर बनाने की झंझट थी।  ना आलीशान जीवन जीने की कोई बात थी।  खेतों - खलीहानों   में काम कर शांति पूर्वक जीवन व्यतीत करते थे। शेष समय  वे मिलजुल कर, आपस में बातचीत कर, नृत्य कर बड़े मजे में रहते थे।   यह सब  उन सबों  के दैनंदिन जीवन में शामिल था। उन सबों का  जीवन बहुत ही मधुर ढंग से गुजर रहा था।  और ना ही कोई बैलेंस था।  मन में अपार खुशियां थी।
   समय के साथ आविष्कारों ने मनुष्य सोच को बदल कर रख दिया। आविष्कारों के सृजन कर्ता मनुष्य ही हैं।  आज हम सब कंप्यूटर युग में जी रहे हैं।  हम सबों ने बड़े-बड़े महल बना लिए हैं।  भ्रष्टाचार कर अरबों खरबों की संपत्ति अर्जित कर देश और विदेश के विभिन्न बैंकों में जमा कर दिए हैं।  चारों ओर अशांति ही अशांति दिख रही है। यूक्रेन और रूस के बीच बीते छह महीने से भयावह युद्ध चल रहे हैं।  करोड़ों - अरबों की संपत्तियां विनष्ट हो चुकी हैं।  इस इस युद्ध में हजारों जाने असमय चली गईं। लाखों लोग घर से बेघर हो गए हैं।  कैसा विकास है ? यह कैसा आविष्कार है यह कैसा कंप्यूटर युग है ? इससे बेहतर तो हम कल ही थे । जब झुंड बनाकर जंगलों में रहा करते थे । ना ही कोई शिक्षित था।  ना ही ज्ञान प्रचार प्रसार था। लेकिन आज के विकसित मनुष्य की अपेक्षा ज्यादा सहज, सरल और मृदुल थे । उन्हें ना कोई भविष्य की चिंता थी ।  ना भूत का डर था । ना परिवारवाद था।  ना जातिवाद था।  सब लोग आपस  में मिलकर रहा करते थे । जो भी मिला, मिल बांट कर प्रेम पूर्वक खाते थे । वे सिर्फ और सिर्फ प्रकृति की पूजा किया करते थे ।
  आज की बदली परिस्थिति में करमा पर्व से लोगों को जीवन जीने की कला सीखती है।  करमा पर्व प्रकृति की पूजा का एक महान पर्व है।  हम सबों ने अपनी सुख सुविधा के लिए जंगलों की अवैध कटाई कर  दिया है और अपने घरों को सजा जरूर लिया है। अर्थात जिस  टहनी पर बैठे हैं, उसी को काट  रहे हैं।  जब जंगल है , तभी तक हम सब सुरक्षित हैं।  जैसे जैसे जंगल और  हरियाली  जाती रहेगी वैसे वैसे   मानव पर संकट के बादल घिरते जाएंगे । आज जो पर्यावरण कि स्थिति गड़बड़ा रही है।  समय से पूर्व बारिश का होना, अतिवृष्टि का होना, धीरे धीरे कर हिमालय पर्वत की ग्लेशियर का पिघलना, पहाड़ों का टूटना, आसमानी पानी बिजली का फटना और सूखा, ये सब संकेत हैं, हम सबों ने प्रकृति  को बहुत नुकसान पहुंचाया है। अभी भी बहुत विलंब नहीं हुआ है । लोग चेत जाएं । सचेत हो जाएं। प्रकृति को नुकसान पहुंचाना बंद कर दें । पेड़ पौधों को फिर से लगाने में जुट जाएं। जहां भी खाली स्थान मिले, छोटे व बड़े पौधे जरूर लगाएं । अपने घरों में छोटे-छोटे पौधे लगाएं।  इससे वातावरण में जो असंतुलन आ गया है, वह रुकेगा । प्रकृति की जो विनाश लीला दिख रही है, थम जाएगी।
   विश्व पर्यावरण समिति बराबर लोगों को इस दिशा में जागृत करती रहती है।  हरियाली जीवन के लिए बहुत जरूरी है । ये पेड़ पौधे लगाकर मुफ्त में जीने की महानतम औषधि ऑक्सीजन  देती रहती है। बीते कोरोना काल में लोगों ने ऑक्सीजन के महत्व को समझा। ये बेशकीमती ऑक्सीजन  पेड़ पौधे हम सबों को मुफ्त में प्रदान करते हैं । 
 क्षकरमा पर्व हर साल भादो एकादशी के दिन हम सबों के बीच उपस्थित होकर यह संदेश देता है कि पेड़ पौधे देवता के सच्चे प्रतिनिधि हैं।  ये आराध्य देव है।  ये हमारे जान की रक्षा करते हैं। इनकी रक्षा से ही मानव जाति की रक्षा संभव है।  यह पर्व सिर्फ आदिवासी समाज का ही नहीं है बल्कि सकल समाज का है। यह पर्व आदिवासी समाज से निकसकर सकल समाज में मजबूत उपस्थिति दर्ज कर चुका है।  
  यह पर्व लोगों को आपस में प्रेम करना भी सिखाता है । यह पर्व आपस में मिलजुल कर रहने की भी बात बताता है । आपस में परस्पर सहयोग से हर कार्य करने की भी सीख प्रदान करता है । यह पर्व लोकमंगल की भी बात करता है । करमा पर्व के प्रचलित गीतों के अध्ययन से प्रतीत होता है कि गीत की पंक्तियां प्रकृति की उपासना और लोकमंगल की ही बात कहती हैं । हम सब वैमनस्यता त्याग कर मित्रता के मार्ग को प्रशस्त करें।  करमा पर्व अच्छे फसल की कामना के लिए किया जाता है । लोग इस दिन उपवास कर रात्रि में करमा के डाल की पूजा करते हैं । लोग यह कामना करते हैं कि नई फसल अच्छी हो ।  फसलों की रक्षा आराध्य देव करें ।  समाज में मंगल  हो । बहने अपने भाई की लंबी उम्र की कामना के लिए दिन भर उपवास करती हैं।  बहनें संध्या के समय करम डाल की पूजा करती हैं।  यह पर्व भाई बहन के प्रेम को दर्शाता है । भाई घर के कुलदीपक होते हैं।  वही बहने अपने माता पिता के घर का त्याग कर दूसरे घर की शोभा बढ़ाती है । वे वहां नए बच्चों की जन्मदात्री बनती हैं।  भाई बहन के बीच प्रेम बना रहे, यह पर्व उसकी भी सीख प्रदान करता है । यह पर्व समाज में अच्छाई की स्थापना  और बुराई  समाप्ती की भी सीख प्रदान करता है।  इसीलिए यह पर्व लोगों के बीच लोकप्रिय होता चला जा रहा है । प्रकृति पूजा और भाई बहनों के प्रेम को समर्पित करमा पर्व लोकमंगल की कामना करता है।  इस पर्व पर कई आंचलिक फिल्मों का भी निर्माण हुआ है । करमा पर्व पर रामदयाल मुंडा,  गिरधारी लाल गौंझू, बी.पी केसरी सहित कई साहित्यकारों ने काफी कुछ लिखा है । करमा पर्व के अवसर पर रामदयाल मुंडा समूह में मांदर बजाकर नृत्य किया करते थे । करमा पर्व पर मांदर बजाकर नाचने  का भी रिवाज है । लोग संध्या में करम देवता की पूजा कर रात भर समूह में मांदर बजाकर नाच गान करते हैं । दूसरे दिन सुबह स - सम्मान घर के आंगन में स्थापित करम की टहनी को कंधे पर बिठाकर किसी पोखरा अथवा तलाव में विसर्जित कर देने की परंपरा है । आज भी इस परंपरा का  पालन हो रहा है। करमा पर्व पर मैं लोगों से ही कहना चाहता हूं कि हम सब कितने भी ज्ञानवान और आधुनिक हो जाएं ?  जीने के लिए हवा बहुत जरूरी है । भोजन जरूरी है । ये दोनों चीजें हम सबों को प्रकृति ही देती है। इसलिए प्रकृति की रक्षा की जवाबदेही हम सबों की ही है।  कोई ऐसा कार्य ना करें, जिससे प्रकृति का नुकसान हो।  जब तक प्रकृति अपने हरियाली रूप में विद्यमान रहेगी, तब तक बाढ़, सूखा अथवा अन्य प्राकृतिक विपदाएं  दूर रहेंगी ।  हम सब प्रकृति की रक्षा के संकल्प के साथ करमा पर्व को हंसी खुशी मनाएं।