हिन्दुत्व नवजागरण की ओर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बढ़ते कदम
('राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ' के शताब्दी वर्ष पर एक शोध परख आलेख)

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपने स्थापना के एक सौ वर्ष पूर्ण कर एक इतिहास रचने का काम किया है। संघ के संस्थापक डॉ केशव बलिराम हेडगेवार ने विक्रम संवत 1982 की विजयदशमी के दिन, 27 सितम्बर 1925 को नागपुर, महाराष्ट्र में इसकी स्थापना की थी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बीते एक सौ वर्षो के इतिहास पर गौर किया जाए तो ये तप और साधना के वर्ष कहे जा सकते हैं। बीते एक सौ वर्षो के दरमियान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने जो देश भर में जो कार्य किया है, यह अपने आप में द्वितीय है। आज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता देश के सभी क्षेत्रों में दिखाई देते हैं। संघ द्वारा उठाए गए सभी कदम प्रभावी भी हैं । आज संपूर्ण भारत में 98 प्रतिशत जिलों में 92 प्रतिशत खंडों में संघ की शाखाएं चल रही हैं । देश भर में 51740 स्थानों पर 83129 दैनिक शाखाएं तथा अन्य 26460 स्थानों पर 37147 साप्ताहिक मिलन चल रहे हैं, जो लगातार बढ़ते चले जा रहे हैं। इनमें 59 प्रतिशत शाखाएं युवाओं की लग रही हैं।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ दुनिया के लगभग अस्सी से अधिक देशों में कार्यरत है। संघ के लगभग पचास से ज्यादा संगठन राष्ट्रीय ओर अंतराष्ट्रीय स्तर पर चल रहे हैं। इसके साथ ही लगभग दो सौ से अधिक संघठन क्षेत्रीय प्रभाव रखते हैं, जिसमे कुछ प्रमुख संगठन हैं ,जो संघ के विचारधारा को आधार मानकर राष्ट्र और सामाज के बीच सक्रिय हैं। जिनमे कुछ राष्ट्रवादी, सामाजिक, राजनैतिक, युवा वर्गों के बीच में कार्य करने वाले, शिक्षा के क्षेत्र में, सेवा के क्षेत्र में, सुरक्षा के क्षेत्र में, धर्म और संस्कृति के क्षेत्र में, संतो के बीच में, विदेशो में, अन्य कई क्षेत्रों में संघ परिवार के संगठन सक्रिय रहते हैं।
यह मेरा सौभाग्य रहा कि मात्र दस वर्ष की उम्र में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ने का अवसर प्राप्त हो पाया था। जहां तक मेरी स्मृति मे है, यह वर्ष संभवत 1970 का रहा था। हजारीबाग जिला अंतर्गत पंच मंदिर की शाखा से जुड़ने का यह अवसर प्राप्त हुआ था। उस कालखंड में पंच मंदिर में सुबह और शाम दोनों समय शाखा लगा करता था। सुबह की शाखा में नगर के बड़े लोग सम्मिलित होते थे । संध्या कालीन शाखा में ज्यादातर बच्चें सम्मिलित होते थे। संघ की शाखा में हम सभी बच्चों को अनुशासन, अपने से बड़ों का आदर, नियमित स्कूल जाना, समय से पढ़ना, समय से उठाना, समय से जागना, राष्ट्र के प्रति हमारे कर्तव्य, सत्य, निष्ठा नैतिकता आदि धर्म का पालन करना सिखाया जाता था। हम सभी चार भाई हैं। क्रमवार हमारे तीनों भाई क्रमश: राज कुमार, मनोज कुमार और प्रदीप केसरी भी शाखा से जुड़ते चले गए। आज भी उसी रूप में हम सभी चारों भाइयों का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संबंध बना हुआ है । बाल काल की शाखा का हम सभी चारों भाइयों पर ऐसा प्रभाव पड़ा कि हम सभी आज तक शाकाहारी हैं। किसी भाई में कोई दूर्व्यशन नहीं हैं । हम सभी अनुशासन प्रिय हैं । सभी मिलजुल कर एक छत के नीचे रहते हैं । आपस में कोई तकरार नहीं है । साथ साथ व्यापार से जुड़े रहकर आगे बढ़ रहे हैं।
जहां तक मैं संघ को समझ पाया हूं कि आज की बदली सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य में भारत की सांस्कृतिक विरासत को बचाने के लिए पूरी शक्ति के साथ अग्रसर है। इस बात को डॉ हेडगेवार जी बहुत पहले समझ चुके थे। भारत की सांस्कृतिक विरासत और धार्मिक पहचान को मिटाने के लिए बरसों पूर्व रची गई साजिश को हेडगेवार की समझ चुके थे। आखिर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा में होता है, क्या ? देश का विपक्ष राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संदर्भ में हमेशा अनर्गल अलाप करता ही रहता है। विपक्ष का अलाप बिल्कुल सत्य से परे है। जिस दिन भारत की सांस्कृतिक विरासत और हिंदू पहचान कमजोर पड़ने लगेगा, तब आज की तरह भारत की तस्वीर न होगी। इस बात को बहुत ही गंभीरता के साथ समझने की जरूरत है। देश की आजादी के लिए देशवासियों ने मिलजुल कर स्वाधीनता आंदोलन में भाग लिया था, लेकिन अंत में क्या हुआ ? देश को आजादी जरूर मिल गई । भारत धर्म के आधार पर दो भागों में बट गया। नुकसान किसका हुआ ? भारत की एकता और अखंडता का। आगे देश को एक और विभाजन से बचाने के लिए जरूरी यह है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखाओं का विस्तार हो। इन शाखाओं में संघ के बौद्धिक स्वयं सेवक शारीरिक रूप से मजबूत रहने की सीख प्रदान करते हैं । इसके साथ ही स्वयंसेवकों को संघ के उद्देश्य की जानकारी देते हैं। साथ-साथ समाज, राष्ट्र और धर्म की शिक्षा भी देते हैं।
संघ के संस्थापक डॉ केशव बलिराम हेडगवार भी यही चाहते थे कि भारत एक सुसंगठित,आत्म निर्भर, नैतिकवान और मजबूत देश के रूप में स्थापित हो। किसी भी देश की सबसे छोटी इकाई परिवार होता है। संघ ने इस छोटी सी इकाई को बीते सौ वर्षो में सशक्त, स्वावलंबी, आत्म निर्भर, चरित्रवान और मजबूत करने का काम किया है। संघ की इस उपलब्धि पर मैं यह कर सकता हूं कि मुझे गर्व है कि मैं राष्ट्रीय स्वयं संघ का एक कार्यकर्ता हूं।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ केशव बलिराम हेडगेवार ने संघ की स्थापना का लक्ष्य संपूर्ण हिंदू समाज को संगठित कर हिंदुत्व के अधिष्ठान पर भारत को समर्थ और परम वैभवशाली राष्ट्र बनाना रखा था । इस महत्वपूर्ण कार्य हेतु वैसे ही गुणवान, अनुशासित, देशभक्ति से ओतप्रोत चरित्रवान एवं समर्पित कार्यकर्ता आवश्यक थे। ऐसे कार्यकर्ता निर्माण करने के लिए उन्होंने एक सरल, अनोखी किंतु अत्यंत परिणाम कारक दैनंदिन शाखा की कार्य पद्धति संघ में विकसित की । संघ ने इस कार्य पद्धति से लाखों योग कार्यकर्ता तैयार किए, जो इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए सौ वर्षों से समाजिक जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत हैं।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक के रूप में डॉक्टर केशवराव बलिराम हेडगेवार , 1925 - 1940, माधव सदाशिवराव गोलवलकर, गुरूजी, 1940 - 1973, मधुकर दत्तात्रय देवरस, 1973 - 1993, प्रोफ़ेसर राजेंद्र सिंह, 1993 - 2000, कृपाहल्ली सीतारमैया सुदर्शन, 2000 से 2009 तक रहे। डॉ॰ मोहनराव मधुकरराव भागवत, 2009 से अब तक सरसंघचालक के रूप में कार्यरत है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर विपक्ष के नेता गण यह कहकर बराबर हमला बोलते रहते हैं कि भारत के स्वाधीनता आंदोलन में संघ की कोई भूमिका नहीं रही थी । यह बात पूरी तरह निराधार है, जबकि सच्चाई है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार स्वाधीनता आंदोलन के सभी प्रयासों में सक्रिय रहे थे । 1921 में अंग्रेजी हुकूमत ने स्वाधीनता आंदोलन में सक्रिय रहने पर उन पर राजद्रोह का मुकदमा चलाया था। उन्हें एक वर्ष तक के जेल में रहना पड़ा था। 1930 में नमक सत्याग्रह में शामिल रहने के कारण उन्हें नौ महीने की सजा सुनाई गई थी। देश की आजादी के बाद 30 जनवरी 1948 को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की निर्मम हत्या हो जाने के बाद तत्कालीन केंद्र सरकार द्वारा संघ पर पूर्णतः प्रतिबंध लगा दिया गया था। बाद के कालखंड में केंद्र सरकार द्वारा गठित जांच रिपोर्ट में यह बात खुलकर सामने आई कि गांधी की हत्या में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की कोई भूमिका नहीं थी। उसके बाद ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर से प्रतिबंध हटा था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का एक ही उद्देश्य रहा हिंदू समाज को संगठित एक सशक्त भारत का निर्माण करना।
25 जून 1975 को देश में आपातकाल की घोषणा हुई थी । तत्कालीन सरकार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ जनसंघ पर भी प्रतिबंध लगा दी थी। 1975 के बाद से धीरे-धीरे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का राजनैतिक महत्व बढ़ता गया और इसकी परिणति भाजपा जैसे राजनैतिक दल के रूप में हुई । जिसे आमतौर पर संघ की राजनैतिक शाखा के रूप में देखा जाता है। देश के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक साधारण बाल कार्यकर्ता के रूप में कार्य प्रारंभ किया। आगे चलकर वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक बने। बाद के कालखंड में संघ ने उन्हें राजनीतिक जिम्मेदारी दी। फलस्वरूप वे गुजरात के मुख्यमंत्री और वर्तमान में देश के प्रधानमंत्री पद पर कार्यरत है। इसके साथ ही बीते एक सौ वर्षों के दरमियान जब भी देश में किसी भी तरह का कोई संकट उत्पन्न हुआ, राष्ट्रीय स्वयं संघ के कार्यकर्ता तन मन धन से अपनी सेवाएं देते चले आ रहे हैं।