मरणोपरांत “झारखंड रत्न” से नवाजे जाएंगे नामचीन शख्सियत सैयद अनवर हुसैन खान
रांची। एकीकृत बिहार के समय छोटानागपुर क्षेत्र के जाने-माने समाजसेवी और प्रख्यात अधिवक्ता सैयद अनवर हुसैन खान मरणोपरांत झारखंड रत्न से नवाजे जाएंगे। सामाजिक संस्था लोक सेवा समिति की ओर से यह सम्मान मरणोपरांत उन्हें देने का निर्णय लिया गया है।
मूल रूप से बिहार के भागलपुर व पटना निवासी स्व.खान साहब के पिता स्व. सैयद अजहर हुसैन खान भी बिहार के नामचीन शख्सियत थे। उनका तालुकात रईस खानदान से रहा। चंडीगढ़ का मुगल गार्डन उनके पूर्वजों की ही देन बताई जाती है। यही नहीं, उनके पूर्वज मुगलकालीन साम्राज्य, ब्रिटिश हुकूमत के दौर में कई आला ओहदे पर काबिज रहे।
सैयद अनवर हुसैन खान का जन्म पटना में वर्ष 1907 में हुआ। उनकी प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा पटना में हुई। भागलपुर से उन्होंने स्नातक की डिग्री हासिल की। पटना लॉ कॉलेज से उन्होंने एलएलबी किया। वर्ष 1932 में वह रांची आ गए। यहां उन्होंने वकालत के पेशे में काफी शोहरत हासिल की। उन्हें जिला सत्र न्यायालय में और सुप्रीम कोर्ट में भी न्यायाधीश बनने का अवसर प्राप्त हुआ, लेकिन उन्होंने वकालत करते रहने का ही निर्णय लिया। पीड़ितों, गरीबों की सेवा को सबसे बड़ा मानव धर्म समझते हुए सर्व धर्म-समभाव के सिद्धांतों को आत्मसात कर उन्होंने वकालत के पेशे की गरिमा को बनाए रखा।
स्व. खान सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल थे। शहर में किसी भी मजहब का पर्व-त्यौहार हो, वह उसमें बढ़-चढ़कर सहभागिता निभाया करते थे। सामाजिक समरसता बरकरार रखने और एक दूसरे से भाईचारा बनाए रखने में उनका योगदान अविस्मरणीय है। स्व. खान के बारे में उनके पौत्र और शहर के समाजसेवी सैयद फराज अब्बास बताते हैं कि शिया मुस्लिम समुदाय के धार्मिक स्थल (मस्जिद) की स्थापना में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही।
उनके दोस्तों की सूची में प्रख्यात समाजसेवी मीनू मसानी, अब्दुल कयूम अंसारी, प्रोफेसर अब्दुल बारी, पूर्व मुख्यमंत्री केबी सहाय, जस्टिस एम फजल अली, विधायक जहूर अली मोहम्मद, समाजसेवी जमील मजहरी सहित कई नामचीन हस्तियों का नाम शुमार था। वे राजधानी रांची में मेन रोड पर अवस्थित पब्लिक उर्दू लाइब्रेरी के संस्थापक रहे। शहर स्थित मौलाना आजाद हाई स्कूल और मौलाना आजाद डिग्री कॉलेज की प्रबंध समिति के सदस्य के रूप में भी उन्होंने अपनी भूमिका बखूबी निभाई। रांची में मिल्ली तालिमी मिशन की स्थापना में उनकी उनका योगदान रहा।
वर्ष 1967 में जब रांची शहर दंगों की आग में धधक रहा था, उस समय उन्होंने सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल पेश करते हुए सभी धर्मों के बीच समन्वय स्थापित कर शांति और सौहार्द्र की पहल की।
शहर में सेंट्रल रिलीफ कमिटी का संचालन, राहत शिविर का संचालन कर उन्होंने मानव सेवा के क्षेत्र में बेमिसाल कार्य किया।
सामाजिक कार्यों में उनकी सक्रियता और सहभागिता को देखते हुए शहर के अन्य समाजसेवियों ने भी उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम किया।
राजधानी रांची स्थित अंजुमन अस्पताल की स्थापना में भी उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अस्पताल की स्थापना के लिए जमीन खरीदने में उन्होंने न सिर्फ आर्थिक सहयोग दिया, बल्कि स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में अंजुमन अस्पताल को उत्कृष्ट बनाने में भी योगदान दिया।
स्वर्गीय सैयद अनवर हुसैन खान को मरणोपरांत झारखंड रत्न से सम्मानित किया जाना पूरे झारखंडवासियों के लिए गर्व की बात है।