जब जेलर ने “गांधीवाला” कहकर संबोधित किया था – ट्रेजडी किंग “दिलीप कुमार” को

अपनी ऑटोबायोग्राफी 'The Substance and Shadow' में दिलीप कुमार ने लिखा है कि "वह गांधीजी के अनुयायियों के साथ एक रात गुजारकर गर्व महसूस कर रहे थे" ।

जब जेलर ने “गांधीवाला” कहकर संबोधित किया था – ट्रेजडी किंग “दिलीप कुमार” को

हिंदी सिनेमा जगत में ट्रेजडी किंग के नाम से मशहूर दिग्गज अभिनेता दिलीप कुमार का बुधवार सुबह 98 साल की उम्र में निधन हो गया।वे पिछले दो साल से बीमार चल रहे थे। उन्हें पिछले महीने से ही सांस संबंधित समस्याएं बनी हुई थी। जिसके चलते उन्हें मुंबई के हिंदुजा अस्पताल में भर्ती कराया गया था। यही पर दिलीप कुमार उर्फ यूसुफ खान ने आखिरी सांस ली। “ये देश है वीर जवानों का”, “अपनी आजादी को हम हरगिज मिटा सकते नहीं” जैसे गीतों को करोड़ों लोगों की जुबां तक पहुंचाने वाले और जीवन को अभिनय के जरिए पर्दे पर उकेरने वाले महान अभिनेता दिलीप कुमार जी का जाना सिनेमा के एक युग का अंत है।

हिंदी सिनेमा में दिलीप कुमार को लाने की पहली कोशिश राज कपूर ने की। लेकिन उन्हें कैमरा के सामने लाने का श्रेय जाता है देविका रानी को ।

अटल बिहारी बाजपेयी ने दिया था साथ

अपने करियर में दिलीप कुमार तमाम किस्सों की वजह बने, लेकिन मुंबई शहर में उन्हें लेकर फसाद होने की नौबत तब आ गई थी जब पाकिस्तान की सरकार ने उन्हें अपने यहां का सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘निशान ए इम्तियाज’ दिया। महाराष्ट्र में तब भी शिवसेना की मिली जुली सरकार थी। लेकिन, शिवसैनिकों के हंगामे के आगे दिलीप कुमार के लिए जैसे ही उस समय के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ढाल बनकर खड़े हुए, सारा मसला मिनटों में काफूर हो गया।

ये तब की घटना है जब पूरा देश पाकिस्तान के खिलाफ आक्रोशित था। कारगिल की लड़ाई में भारतीय सेना के कई जवान शहीद हो चुके थे।सन 1999 में पाकिस्तान की सेना ने कारगिल में जो घुसपैठ किया, उसके बाद मुंबई में दिलीप कुमार के घर के आगे धरने प्रदर्शन शुरू हो गए। शिवसेना ने दिलीप कुमार से मांग की कि वह पाकिस्तान सरकार से मिला ‘निशान ए इम्तियाज’ सम्मान लौटा दें। लगातार दबाव पड़ने पर दिलीप कुमार ने उस समय के प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी से कुछ समय की माँग की । बाजपेयी ने उन्हें मुलाकात के लिए बुलाया । क़रीब आधे घंटे की मुलाकात के बाद दिलीप कुमार जब बाहर निकले तो उनके चेहरे पर संतोष तो था ही एक हिंदुस्तानी होने का फख्र भी था। तब देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था, ‘फिल्म स्टार दिलीप कुमार की देशभक्ति और देश के प्रति उनके समर्पण को लेकर कोई शक नहीं है।’

दिलीप कुमार और अटल बिहारी बाजपेयी की मुलाक़ात

तत्कालीन प्रधानमंत्री बाजपेयी की तरफ से एक आधिकारिक बयान भी जारी किया गया ,जिसमें उन्होंने कहा की दिलीप कुमार ने अपने पूरे फिल्मी जीवन में देशभक्ति और देश के प्रति अपने समर्पण को साबित किया है। ये अब उनके ऊपर है कि वह व्यक्तिगत हैसियत में मिले इस पुरस्कार को रखना चाहते हैं कि नहीं। किसी को उनके ऊपर इसे वापस करने का दबाव नहीं बनाना चाहिए।”

इसी के बाद दिलीप कुमार ने ‘निशान ए इम्तियाज’ न लौटाने का फैसला किया। प्रधानमंत्री के उस बयान के बाद मुंबई में शिवसेना के हौसले भी पस्त हो गए। उसके बाद फिर कभी किसी मसले पर दिलीप कुमार के ऊपर ‘निशान ए इम्तियाज’ को लेकर कोई आरोप नहीं लगे । दिलीप कुमार ने इससे पहले प्रधानमंत्री को लिखे ख़त में बताया था कि , अगर इससे ‘निशान ए इम्तियाज’ लौटने से देश का भला होता है तो वह ‘निशान ए इम्तियाज’ लौटाने को तैयार हैं।

पाकिस्तान ने सर्वोच्च नागरिक सम्मान “निशान-ए-इम्तियाज़” दिया

फिल्मों में आने से पहले दिलीप कुमार ने एयर फोर्स कैंटीन में भी काम किया है। अपनी ऑटोबायोग्राफी ‘The Substance and Shadow‘ में दिलीप कुमार ने एक घटना का जिक्र किया है, जिसमें देशभक्ति के लिए उन्हें जेल जाना पड़ा था ।

जेलर ने ‘गांधीवाला’ कहा

दिलीप कुमार ने अपनी किताब में लिखा था- मैं उस वक्त दंग रह गया जब कुछ पुलिस अफसर आए और मुझे हथकड़ी लगाकर ले गए। उन्होंने लिखा है कि मेरी ब्रिटिश सरकार के खिलाफ मेरे विचार और सोच के लिए गिरफ्तार किया जा रहा है। उन्हें यरवदा जेल ले जाया गया और कुछ विपरीत लोगों के साथ बंद कर दिया गया। उन्हें बताया गया कि वे सत्याग्रही थे। उनके जेल पहुंचने पर जेलर ने उनका परिचय ‘गांधीवाला’ कहकर दिया था। वे जब तक यह समझ पाते कि उन्हें “गांधीवाला” क्यों कहा गया तब तक उन्हें पता चला कि पुलिसवाले जेल में बंद सभी को गांधीवाला बुला रहे थे। गांधीजी को मानने वालों को सभी लोगों को वे ऐसे ही संबोधित करते थे। 

अगले दिन सुबह आर्मी के एक मेजर ने दिलीप कुमार को छुड़वाया था। वापस अपनी कैंटीन पहुंचकर दिलीप कुमार ने सबको ये किस्सा सुनाया। किताब में उन्होंने लिखा है कि रात में जब वह अपने कमरे में बैठे तो जेलर के शब्द उनके कानों में गूंज रहे थे और वह गांधीजी के अनुयायियों के साथ एक रात गुजारकर गर्व महसूस कर रहे थे।