भारतीय संविधान की रक्षा : हर भारतीय का कर्तव्य
भारतीय संविधान हर एक नागरिक की स्वतंत्रता के मार्ग को प्रशस्त करता है।
विजय केसरी
भारतीय संविधान की रक्षा करना हर भारतीय का कर्तव्य है। भारतीय संविधान का निर्माण हमारे स्वाधीनता सेनानियों व संविधान सभा के सदस्यों ने इसलिए किया था, ताकि देश पूर्ण ‘गणतंत्र’ प्राप्त कर सके। भारतीय संविधान की रक्षा से देश की एकता और अखंडता मजबूत होगी।आज के ही दिन भारतीय संसद ने भारत का संविधान पारित किया था। हमारा देश पूर्णरूपेण एक गणतंत्र देश बन गया । भारतीय गणतंत्र प्राप्ति का एक गौरवशाली इतिहास है। इस इतिहास पर समस्त देशवासियों को गर्व है। आज के इस पवित्र बेला में हम सब भारतीय संविधान की चर्चा कर गौरवान्वित महसूस करते हैं। भारत का संविधान समस्त देशवासियों को एक सूत्र में बांधता है । यहां ना कोई छोटा है और ना कोई बड़ा है। सभी भारत माता की संतान एवं देश के नागरिक हैं। सभी नागरिकों को समान अधिकार है। भारत का संविधान विश्व के सभी संविधान ओं की तुलना में बड़ा व विस्तृत है । भारतीय संविधान हर एक नागरिक की स्वतंत्रता के मार्ग को प्रशस्त करता है। भारतीय संविधान विस्तृत होने के बावजूद देश के हर एक नागरिकों को पूर्ण सुरक्षा एवं अधिकार प्रदान करता है ।
भारत की स्वतंत्रता की गौरव गाथा का इतिहास बहुत ही संघर्षपूर्ण है। स्वाधीनता सेनानियों के लंबे संघर्ष के बाद 15 अगस्त 1947 को देश को आजादी मिली थी। ब्रिटिश हुकूमत ने लाखों स्वाधीनता सेनानियों को जेल में डाल दिया, हजारों स्वाधीनता सेनानियों को काला पानी की सजा और हजारों स्वाधीनता सेनानियों को फांसी दे दी थी। तब कहीं जाकर देश को आजादी मिली थी। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के भारत छोड़ो आंदोलन की घोषणा के बाद देश भर में ऐसा उबाल आ गया था कि चहुंओर से ब्रिटिश हुकूमत को भारत से खदेड़ देने के स्वर गुंजित हो रहे थे। देशभर में स्वाधीनता आंदोलन इस रूप में खड़ा हो गया था कि ब्रिटिश हुकूमत को यह निर्णय लेने के लिए बाध्य होना पड़ा था कि अब भारत से जाना ही पड़ेगा । अब भारत में शासन करना मुश्किल है । संपूर्ण देश में स्वाधीनता के होते तेज स्वर और 1942 द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश हुकूमत ने यह निर्णय लेना पड़ा था कि अब भारत को आजाद करना ही होगा। स्वाधीनता सेनानियों को यह जानकारी हो गई थी कि अब अंग्रेजों को इस देश से जाना ही होगा। देश की आजादी की तिथि तय नहीं हुई थी। लेकिन इतना निश्चित हो गया था कि ब्रिटिश हुकूमत को देश छोड़कर जाना ही पड़ेगा। स्वाधीन भारत के सपने हमारे स्वाधीनता सैनानियों को आने लगे थे।
इस निमित्त देश संचालन के लिए एक स्वनिर्मित संविधान की जरूरत पड़ेगी। स्वाधीनता सेनानियों की अगुवाई में 1946 में संविधान सभा का गठन किया गया था। देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद को संविधान सभा का सभापति बनाया गया था। डॉ० बी. आर. अंबेडकर को प्रारूप समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था। संविधान ड्राफ्ट रिपोर्ट तैयार करने के लिए तेरह समितियों का गठन किया गया था । संविधान सभा में प्रारंभ में 389 सदस्य थे। लेकिन मुस्लिम लीग का संविधान सभा से अलग हो जाने के बाद संविधान सभा में 289 ही सदस्य रह गए थे। 1946 से 1950 तक संविधान सभा की लगातार बैठकें होती रही थी। संविधान सभा के सभी सदस्यों ने खून पसीना एक कर भारत का संविधान तैयार किया था । यह कोशिश की गई थी कि संविधान में कोई भी त्रुटि ना रह जाए ।
भारत एक संप्रभुता व गणतंत्र राष्ट्र के रूप में स्थापित हो। भारत के संविधान के संदर्भ में चर्चा करते हुए यह जानना जरूरी हो जाता है कि इसमें 25 भाग, 448 आर्टिकल और 12 शेड्यूल है। जबकि मूल संविधान में 395 आर्टिकल्स और नौ शेड्यूल थे। भारतीय संविधान की सबसे बड़ी खूबसूरती यह है कि इसको तैयार करते समय देश की सांस्कृतिक, धार्मिक और भौगोलिक विविधता का ध्यान रखा गया। भारत के संविधान की प्रस्तावना अथवा उद्देशिका के अध्ययन से यह बात स्पष्ट होती है कि भारत का संविधान भारत के सभी नागरिकों के लिए न्याय, स्वतंत्रता, समानता सुरक्षित करता है। भारत का संविधान देश की एकता और अखंडता के प्रति प्रतिबद्ध है। लोगों के बीच भाईचारा स्थापित हो। कहीं कोई भेदभाव नहीं हो। भारत के संविधान की प्रस्तावना इस प्रकार है। ‘हम भारत के लोग भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक, गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुरक्षित सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए, दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान में आज तारीख 26 नवंबर 1949 ईस्वी ( मार्गशीर्ष युक्त सप्तमी, संवत 2006 विक्रम) को राष्ट्र द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।’
भारत के संविधान की प्रस्तावना के अध्ययन से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि भारत का संविधान भारत के हर एक नागरिक के अधिकार और कर्तव्य दोनों की स्पष्ट व्याख्या करता है । भारत का संविधान भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न राष्ट्र के रूप में देखना चाहता है । संविधान प्रस्तावना के प्रारंभ में ‘हम भारत के लोग’ अंकित है। इसका तात्पर्य यह है कि यह संविधान भारत के लोगों द्वारा ही निर्मित है। इस संविधान निर्माण में किसी भी बाहरी लोगों का दखल नहीं है। यह संविधान केवल भारत के लोगों के द्वारा तैयार किया है। सच्चे अर्थों में भारत के संविधान की प्रस्तावना व उद्देशिका इसकी आत्मा है। संविधान की प्रस्तावना को देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल लाल नेहरू ने 26 नवंबर 1949 को प्रस्तुत किया था। उसी दिन भारत के संविधान को अंगीकार किया गया था। भारत का संविधान हर एक भारतीये को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक आजादी प्रदान करता है। सभी भारतीयों को एक समान अवसर प्रदान करता है। व्यक्ति के अंदर केवल काबिलियत होनी चाहिए। वह देश के सर्वोच्च शिखर पर भी पहुंच सकता है। उद्देशिका देश में भाईचारे के साथ रहने का अवसर प्रदान कहता है। सभी देशवासी बंधुता के साथ रहें। सभी में भाईचारा हो। इसको बढ़ाने के लिए हमारा भारतीय संविधान कृत संकल्पित है। देश की एकता और अखंडता को बनाए रखने के लिए भारतीय संविधान पूरी तरह प्रतिबद्ध है।
भारतीय संविधान सभी देशवासियों को एक सूत्र में बांधने के साथ सभी को समान अधिकार देकर नागरिकों को ऊंचा स्थान प्रदान करता है। यह अपने आप में बहुत ही महत्वपूर्ण बात है। देश की एकता और अखंडता को बनाए रखने के लिए संपूर्ण देशवासियों के बीच भाईचारा व बंधुत्व स्थापित करने का भी संकल्प लेने की जरूरत है । भारत का संविधान देशवासियों को जोड़ता है।