जीवन का अर्थ तलाशती यायावर की कविताएं

माया में रहकर भी माया में न फंसे। कविता की पंक्तियां यह संदेश देती नजर आती है।

जीवन का अर्थ तलाशती यायावर की कविताएं

विजय केसरी

प्रख्यात साहित्यकार भारत यायावर की कविताएं जीवन का अर्थ तलाश करती नजर आती हैं। जीवन क्या है? जीवन मनुष्य के लिए इतना महत्वपूर्ण क्यों है? शास्त्रों में ऐसा वर्णन है कि देवता गण भी मनुष्य जीवन प्राप्त करने का अवसर तलाशते रहते हैं। इस मानवीय जीवन की महता पर यायावर की कविताएं एक नए अर्थ की तलाश में नजर आती हैं। जीवन का अर्थ तलाश करती भारत यायावर की कविताओं पर लब्ध प्रतिष्ठित कथाकार रतन वर्मा से हुए विमर्श की बातें आगे की पंक्तियों में चर्चा कर करूंगा।
मैं, बीते लगभग छत्तीस वर्षों से प्रतिदिन टहलने के उपरांत रतन वर्मा से सुबह सुबह मिल ही लेता हूं। उनके साथ चाय की चुस्कियों के बीच साहित्य पर रोजाना जमकर चर्चा भी होती रहती हैं। आज यायावर की एक कविता पर हुई चर्चा, साहित्य की दृष्टि से महत्वपूर्ण प्रतीत होती है। भारत यायावर अब हमारे बीच नहीं हैं। वे ना रहकर भी अपनी कविताओं के माध्यम से संवाद करते नजर आते हैं।

कविता फिर भी मुस्कुराएगी
भारत यायावर की एक कविता ‘कविता फिर भी मुस्कुराएगी’ की पंक्तियां मर्म को छूने के साथ ही मानवीय जीवन का अर्थ तलाश करती नजर आती हैं। कविता मनुष्य के जीवन का सच्चा सहचर है।जीवन क्या है ? जीवन एक कविता के समान निरंतर बहती धारा है। समयानुसार हम सब जन्म लेते हैं। बचपन से शुरुआत होती है। आगे जवानी को प्राप्त करते हैं । अंत में बुढ़ापे के रूप में रूपांतरण होता है। फिर मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। यह जीवन का रूपांतरण, जीवन का कटु सत्य है। कविता एक सहचर के रूप में मेरे साथ जीवन भर चलती रहती है। कविता हमारे होने का एहसास भी कराती रहती है। कविता हमारे हंसने – रोने, सुख – दुख में साक्षी भाव से बनी रहती हैं । कविता हमारे दुख और सुख दोनों में साक्षी भाव में तटस्थ खड़ी होती है। निर्लिप्त होती है। हमारी हर परिस्थिति में कविता मुस्कुराती नजर आती है। कविता का यही स्वभाव है।

‘कविता फिर भी मुस्कुराएगी’ कविता की पंक्तियां कहती है ।

‘टहनियां सूख जाएंगी…………………. हमारा अपना होने का अर्थ मिट जाएगा, कविता फिर भी मुस्कुराएगी’।

हमारा जीवन भी वृक्ष के एक टहनी के समान है। टहनियां जब जन्म लेती है। तब उसका रूप बहुत ही सूक्ष्म होता है। धीरे धीरे बढ़कर टहानियां आकार ग्रहण करती हैं। जिस प्रकार हम सब गर्भ होते हैं, तो हमारा भी रूप सुक्ष्म होता है। धीरे – धीरे बढ़कर आकार प्राप्त करते हैं। कवि कहता है, एक न एक दिन टहनियां सूख जाएंगी। अर्थात एक न एक दिन हम सब भी मृत्यु के गाल में समा जाएंगे। मृत्यु से पूर्व मनुष्य का रूपांतरण होना, मनुष्य के होने का कटु सत्य है।
आगे कवि कहता है, हमारा अपना होने का अर्थ मिट जाएगा । अर्थात कुछ समय के लिए ही हमारी उपस्थिति इस धरा पर है। हम सब जो इस दुनिया को अपना मान बैठे हैं। सब मिथ्या है। मेरे न होने पर होने का अर्थ मिट जाएगा। इस पर कवि कहता है, मेरे न होने पर ‘कविता फिर भी मुस्कुराएगी’। जब हम न थे, तब भी कविता थी । हम हैं, तब भी कविता है । हम न रहेंगे, तब भी कविता रहेगी। कवि बहुत ही सहजता के साथ जीवन के रहस्य को खोलते नजर आते हैं । ‘कविता फिर भी मुस्कुराएगी,’ में कवि यह बतलाने की कोशिश करता है, इस माया नगरी को जो हम लोगों ने अपना मान बैठा है। एक न दिन हम सबों को छोड़कर चल जाना है। समय रहते हम सबों को इस माया के बंधन से मुक्त होने की जरूरत है। इस संसार में स्वयं को एक कविता के रूप में प्रस्तुत होना ही श्रेष्यकर है। इस धरा में निर्लिप्त भाव से रहने की जरूरत है । माया में रहकर भी माया में न फंसे। कविता की पंक्तियां यह संदेश देती नजर आती है।
कविता आगे बढ़ते हुए कहती हैं। कविता/ मेरे धीरे-धीरे मरने का संगीत ही नहीं। कविता सहचर है, हमारे होने का। साथ ही मेरे धीरे-धीरे मरने का संगीत तो नहीं ? कवि बिल्कुल साफ शब्दों में बयान करता है, जीवन मेरे धीरे धीरे कर मरने का संगीत है । इससे घबराने की जरूरत नहीं है । कविता हमारे जीवन के होने का अर्थ भी है। कविता की पंक्तियां आगे कहती हैं कि कविता/ सृष्टि को अकेले में/ या भीड़ में भोगी / संवेदना का गीत ही नहीं । कवि कहता है, यह मानवीय जीवन संवेदना का गीत ही है। संवेदना के होते ह्रास पर कवि दुख प्रकट करते हैं । इस धरा से संवेदना क्यों मिटती चली जा रही है ? यह तो मानवीय जीवन का एक मजबूत पक्ष है । अगर संवेदना मिट गई तो हमारे जीवन का अर्थ ही मिट जाएगा। हमारा मिटना तो निश्चित है, लेकिन हमारी संवेदना कभी न मिटे। संसार के विविध रूपों, संघर्षों , कठिनाइयों और परेशानियों को देखकर कवि कहते हैं कि लोग / रेंगते / घिसटते /थके – हारे लोग/ कविता सिर्फ। इन पंक्तियों में कवि की नजर समाज के उन लोगों पर पड़ती है । जहां लोग जीवन की परेशानियों को झेल रहे होते हैं। अभाव को भोग रहे होते हैं। दाने-दाने को मोहताज होते हैं। उनका जीवन एक घिसटते हुए मनुष्य की भांति होता है। लोग थके हारे हैं । जीवन में दर्द और दुख है। फिर भी मनुष्य जीता चला जा रहा है। कवि मनुष्य के जीवन की परेशानियों को हूबहू प्रस्तुत करते नजर आते हैं। यह जीवन है । दुख हो, सुख हो, दोनों परिस्थितियों में जीवन को जीना ही पड़ता है।

यायावर जी की पंक्तियां आगे कहती है कि

मेरे अंदर टूटती है शिलाएं रोज फिर मैं गहरे अंधेरे में खो जाता हूं रौशनी मेरी आंखों में ढेर सारा दुआ उड़ेलने लगती है लगातार जारी इस बहस में’।

कवि इन पंक्तियों के माध्यम से हमारी हमारे मन के हाल को बयान करता हैं । हमारे मन मस्तिष्क में कई तरह के विचार निरंतर चलते रहते हैं। इन विचारों का रोज टूटना, फिर टूटकर जन्म लेना। इन विचारों का अंधेरे में खो जाना । आज हर मनुष्य के अंदर जो नए-नए विचार उत्पन्न होते हैं । टूटते हैं। बनते हैं । इन्हीं विचारों के बीच कहीं न कहीं आशा की रोशनी आंखों में छलक पड़ती है। कवि, विचारों के टूटने- बनने के इस भंवर से निकलने की भी बात कहता है।
आगे की पंक्तियों में कवि कहता है,

लगातार जारी इस बहस में आजाद कब हो जाओगे, भाई ! इस विफल यात्रा की झूठ को ढोता थक गया हूं।

कवि मनुष्य के जीवन का विश्लेषण कर प्रश्न खड़ा करते है। कविता की पंक्तियां मनुष्य के भागमभाग भरी जिंदगी से आजादी की मांग करती हैं। आजादी का संदर्भ जीवन से मुक्ति का है। जीवन एक यात्रा के समान है। यह यात्रा अनंत काल से चली आ रही है । यह जीवन की यात्रा अनंत काल तक चलती रहेगी। क्या इस यात्रा का कोई अंत है ? जीवन से मुक्ति ही इसका किनारा है। आगे कवि कहता है, मनुष्य इस विफल यात्रा की झूठ को ढोता थक गया है।

आगे की पंक्तियों में कवि के स्वर बहुत ही विद्रोही रूप में नजर आते हैं ।

आओ ! हम अपने को नंगा कर स्वतंत्र हो जाएं।

कवि इन पंक्तियों में यह बताने की कोशिश की है कि स्वंय को नंगा कर स्वतंत्र हो जाएं। अर्थात मैं जैसा अंदर हूं। वैसा बाहर भी रहूं । मेरे अंदर का जो स्वरूप है, बाहर भी वही प्रकट हो । अंदर – बाहर के भेद से मुक्त हो जाने की बात कवि कहता है। अंदर – बाहर के भेद से मुक्ति, मनुष्य की बड़ी जीत है। यही मनुष्य की स्वतंत्रता है।
आगे कवि कहता हैं,

यात्राओं के बीच हमारी अस्मिता का सुंदर रूप हो

लय हो ।

जीवन की यात्रा एक न एक दिन समाप्त होना ही है। इसलिए हमारे अस्मिता का जीवन सुंदर हो। कविता अंतिम तीन पंक्तियों में पुनःलोगों से यह निवेदन करती है कि टहनियां सूख जाएंगी/ हमारे होने का अर्थ मिट जाएगा /कविता फिर भी मुस्कुराएगी । भारत यायावर की पंक्तियां जीवन के मर्म को छूती है। जीवन का अर्थ तलाशती नजर आती हैं।