शत्रुघ्न सिन्हा के भाइयों में राम, लखन और भरत भी हैं
शत्रुघ्न के तीन बड़े भाइयों में राम अभी अमेरिका में हैं और पेशे से साइंटिस्ट हैं। लखन इंजीनियर हैं और मुंबई में हैं। तीसरे भरत पेशे से डॉक्टर हैं औैर लंदन में रहते हैं। ऐसे में पिता चाहते थे कि उनका छोटा बेटा भी अपने तीनों बड़े भाइयों की तरह या तो डॉक्टर बने या साइंटिस्ट।
राजा दशरथ के चार बेटों के नाम के तर्ज पर ही पटना के कदमकुआं निवासी डॉ. भुवनेश्वर प्रसाद सिन्हा ने अपने बेटों का नाम रखा। हम बात कर रहे हैं बिहारी बाबू शत्रुघ्न सिन्हा के परिवार के बारे में।
शत्रुघ्न के तीन बड़े भाइयों में राम अभी अमेरिका में हैं और पेशे से साइंटिस्ट हैं। लखन इंजीनियर हैं और मुंबई में हैं। तीसरे भरत पेशे से डॉक्टर हैं औैर लंदन में रहते हैं। ऐसे में पिता चाहते थे कि उनका छोटा बेटा भी अपने तीनों बड़े भाइयों की तरह या तो डॉक्टर बने या साइंटिस्ट। इसी लिहाज से उनक एडमिशन प्रसिद्ध पटना साइंस कॉलेज में कराया गया लेकिन शत्रुघ्न सिन्हा को ये दोनों फील्ड उनकी रुचि के नहीं लगे। उनके लिए तो नियति ने कुछ अलग रोल तय कर रखा था।
पुणे फिल्म इंस्टीट्यूट में ली अभिनय की ट्रेनिंग
ऐसे में एक दिन शत्रुघ्न ने पिता को बिना बताए पुणे फिल्म इंस्टीट्यूट से फॉर्म मंगवाया। अब मुश्किल यह थी कि उस पर गार्जियन कौन बनेगा? पिता साइन करने से रहे। ऐसे में बड़े भाई लखन ने फॉर्म पर साइन किया। इस तरह शत्रुघ्न सिन्हा की जिंदगी का रुख बदल गया।
शत्रुघ्न सिन्हा की इच्छा बचपन से ही फ़िल्मों में काम करने की थी। अपने पिता की इच्छा को दरकिनार कर वे फ़िल्म एण्ड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ पुणे में प्रवेश लिया।
कटे होंठ की प्लास्टिक सर्जरी कराने से देवानंद ने मना किया
पुणे से ट्रेनिंग लेने के बाद वे फ़िल्मों में कोशिश करने लगे। लेकिन कटे होंठ के कारण किस्मत साथ नहीं दे रही थी। ऐसे में वे प्लास्टिक सर्जरी कराने की सोचने लगे। तभी देवानंद ने उन्हें ऐसा करने से मना कर दिया था। अपनी ठसकदार बुलंद, कड़क आवाज और चाल-ढाल की मदमस्त शैली के कारण शत्रुघ्न जल्दी ही दर्शकों के चहेते बन गए। आए तो वे थे वे हीरो बनने, लेकिन इंडस्ट्री ने उन्हें खलनायक बना दिया।
खलनायक के रूप में की शुरुआत
खलनायकी के रूप में छाप छोड़ने के बाद शत्रुघ्न हीरो भी बने। जॉनी उर्फ राजकुमार की तरह शत्रुघ्न की डॉयलाग डिलीवरी एकदम मुंहफट शैली की रही है। उनके मुँह से निकलने वाले शब्द बंदूक की गोली समान होते थे, इसलिए उन्हें ‘शॉटगन’ का टाइटल भी दे दिया गया। शत्रुघ्न की पहली हिंदी फ़िल्म डायरेक्टर मोहन सहगल निर्देशित ‘साजन’ (1968) के बाद अभिनेत्री मुमताज़ की सिफारिश से उन्हें चंदर वोहरा की फ़िल्म ‘खिलौना’ (1970) मिली। इसके हीरो संजीव कुमार थे। बिहारी बाबू को खलनायक का रोल दिया गया। शत्रुघ्न ने इसे इतनी खूबी से निभाया कि रातों रात वे निर्माताओं की पहली पसंद बन गए। उन्हें देवानंद के साथ फिल्म प्रेम पुजारी में अभिनय करने का मौका मिला। उसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा और एक से एक हिट फिल्म देते चले गए।
अमिताभ बच्चन को टक्कर
शत्रुघ्न सिन्हा और अमिताभ बच्चन ने काला पत्थर में साथ काम किया था। इसमें शत्रुघ्न सिन्हा अपने छोटे से रोल में भी अपने डॉयलॉग बोलने के अनूठे अंदाज के बल पर कड़ी टक्कर देते हैं। यह जोड़ी दोस्ताना में भी नजर आती है।
रीना से अफेयर, पूनम से शादी
इसी बीच उनके और रीना रॉय के अफेयर की चर्चाएं शुरू हो गईं. लेकिन ये अफेयर ज्यादा दिन तक नहीं चला।उसके बाद उनका नाम पूनम से जोड़ा जाने लगा. पूनम उनके साथ फिल्म इंस्टीट्यूट पुणे में साथ पढ़ती थीं. पूनम भी शत्रुघ्न सिन्हा की तरह एक फिल्म स्टार बनना चाहती थीं. उन्होंने मुंबई में आयोजित एक सौंदर्य प्रतियोगिता जीतकर फिल्म का कॉन्ट्रेक्ट प्राप्त किया और उसके बाद कोमल के नाम से उन्होंने एक्टिंग भी शुरू की. वह उस दौर की चंद फिल्मों में आईं।
शत्रुघ्न ने पूनम को चलती हुई ट्रेन में फिल्म ‘पाकीजा’ के डायलॉग ‘अपने पांव जमीन पर मत रखिएगा…’ को कागज पर लिखकर प्रोपोज किया था।
इसके बाद कोमल ने शत्रुघ्न सिन्हा से विवाह कर अभिनय को अलविदा कह दिया। आज इनके परिवार में एक बेटी और दो बेटे हैं. इनकी बेटी सोनाक्षी सिन्हा हैं जो आज लगातार हिट फिल्में दे रही हैं।
शत्रुघ्न सिन्हा ने गुलजार की फिल्म ‘मेरे अपने’ में काफी फेमस ‘छेनू’ का किरदार निभाया था. उसके बाद ‘कालीचरण’ फिल्म में काम करके शत्रु बॉलीवुड की लाइमलाइट में आए. ‘कालीचरण’ रिलीज होने के बाद 24 घंटे में शत्रुघ्न ने यूनिट मेंबर्स को अपनी एक महीने की सैलरी को बोनस के रूप में देने का ऐलान कर दिया था।
एनीथिंग बट खामोश : द शत्रुघ्न सिन्हा
शत्रुघ्न सिन्हा की बायोग्राफी ‘एनीथिंग बट खामोश : द शत्रुघ्न सिन्हा ‘ लेखक भारती एस. प्रधान ने लिखी है। इसके बारे में शत्रुघ्न ने कहा “मेरी जीवनी मनोरंजक और प्रभावशाली है, क्योंकि इसमें अच्छी बुरी हर तरह की चीजें हैं और इसमें नकारात्मक पहलू को भी ईमानदारी से बताया गया है। मेरा मानना है कि मेरी जीवनी सच्ची और पारदर्शी है। ” शत्रुध्न ने कहा “लोग मेरे बारे में बहुत कुछ कहते हैं जो मझे पसंद नहीं है, लेकिन इसमें कुछ भी छिपा नहीं है। इस देश में लोकतंत्र है और यहां सभी को बोलने का अधिकार है। शत्रुघ्न की बायोग्राफी में उनके और बिग बी के बीच मनमुटाव और खटास के बारे में कई बातें लिखी गई हैं, यदि हम दोस्त हैं, तो हमें लड़ने का भी हक है. अगर आज आप मुझसे पूछे तो मैं कहूंगा कि मेरे दिल में अमिताभ बच्चन के लिए बेहद आदर हैं और मैं उन्हें पर्सनालिटी ऑफ द मिलेनियम मानता हूं।
शत्रुघ्न सिन्हा फिल्म सूची
खिलोना (1970), चेतना (1970), परवाना (1971), मेरी अपने (1971), जुम्बलर (1971), एक नारी एक ब्रह्मचारी (1971), रिवाज (1972), बुनियाद (1972), भाई हो तो ऐसा (1972), बॉम्बे टू गोवा (1972), रामपुर का लक्ष्मण (1972), कश्मकश (1973), एक नारी दो रूप (1973 (1977), परमात्मा (1978), दिल्लगी (1978), अमर शक्ति (1978), मुकाबला (1979), शिरडी के साइ बाबा (1977) 1979), जानी दुश्मन (1979), हीरा-मोती (1979), गौतम गोविंदा (1979), काला पत्थर (1979), चंबल की कसम (1980),, क्रांति (1981), नसीब (1981) मंगल पांडे (1982), हाथीकडी (1982), तीसरी आँख (1982), गंगा मेरी मां (1983), क़यामत (1983), जीन नाई दोओंगा (1984), आंधी-तूफ़ान (1985), कातिल (1986), इलज़ाम 1986), असली नकली (1986), खुदगर्ज(1987), इन्सानियत के दुश्मन (1987), लोहा (1987), सागर संगम (1988), ख़ून भरी मांग (1988), गंगा तेरे देश में (1988), रणभूमि (1991), बेताज बादशाह (1994), प्रेम योग (1994), ज़माना दीवाना (1995), दीवाना हूं पागल नहीं (1998), आन: मेन इन वर्क (2004) और रक्ता चरित्र (2010) इत्यादि।
शत्रु ने फिल्मों के साथ-साथ राजनीति में भी अपना हाथ आजमाया. बिहारी बाबू यूनियन मिनिस्टर रहे हैं। वे बिहार के पटना साहिब से बीजेपी सासंद रहे हैं।
अंंत एक बात शत्रुघ्न सिन्हा की हिंदी सिनेमा में इंट्री को लगभग 50 साल होने को हैं लेकिन संयुक्त बिहार के इलाके से मनोज वाजपेयी व सुशांत सिंह राजपूत को छोड़कर एक भी बड़ा हीरो नजर नहीं आता है।