माता दुर्गा की ‘आराधना’ से मिलती है, ‘जीवनी शक्ति’
नौ दिनों तक चलने वाली इस नवरात्र में प्रथम दिन शैलपुत्री माता, दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी माता, तृतीय चंद्रघंटा माता, चतुर्थी के दिन कुष्मांडा माता, पंचमी स्कंद माता, छठे दिन कात्यानी माता , सप्तमी कालरात्रि माता, अष्टमी महागौरी माता और नवमी के दिन सिद्धिदात्री माता की विशेष रूप से आराधना की जाती है ।
विजय केसरी
दुर्गा माता की आराधना से जीवनी शक्ति प्राप्त होती है । हर मनुष्य के अंदर विद्यमान ज्ञान शक्ति, बुद्धि शक्ति, विवेक शक्ति, दृष्टि शक्ति, श्रवण शक्ति, वाचन शक्ति, कर्म शक्ति आदि शक्तियां सब मां की ही कृपा का प्रतिफल है मनुष्य को प्राप्त अपनी शक्तियों का इस्तेमाल मानव कल्याण में करना चाहिए । यही मां के प्रति सच्ची भक्ति कही जाती है। अगर मनुष्य प्राप्त अपनी शक्तियों का इस्तेमाल मनुष्य के अहित में करता है, तब उसका अंत महिषासुर के समान ही होता है। मनुष्य प्राप्त अपनी शक्तियों के इस्तेमाल से स्वयं को देवता अथवा राक्षस बनाता है। नवरात्र मैं माता दुर्गा की आराधना देवत्व की प्राप्ति के लिए होता है । मां अपने भक्तों के हर दुख कष्ट को मिटाने का आशीर्वाद देती है। इसलिए हर मनुष्य को मां की सच्ची आराधना कर उनकी कृपा प्राप्त करनी चाहिए।
माता दुर्गा जी की शक्ति अपरंपार है । संसार में जितनी भी शक्तियां, परोक्ष व अपरोक्ष रूप से दिख रही हैं, सभी शक्तियां माता की कृपा से ही उत्पन्न हुई होती हैं , अर्थात सभी माता की कृपा का ही प्रतिफल है । माता की आराधना और भक्ति कभी भी निष्फल नहीं जाती है । हर वर्ष संपूर्ण देश में दशहरा बड़े ही धूमधाम के साथ आश्विन मास के दूसरे पक्ष में मनाई जाती है । दशहरा पर होने वाले अनुष्ठान को नवरात्रि कहा जाता है। इस अवसर पर देशभर में माता दुर्गा जी की बड़ी-बड़ी प्रतिमाएं स्थापित की जाती है । दुर्गा नवरात्र पर नौ दिनों तक माता की आराधना होती है । दसवीं के दिन माता की भावभीनी विदाई की जाती है।
चंहुओर माता की भक्ति ही भक्ति दिखाई पड़ती है । मां के कई उपासक नौ दिनों तक सिर्फ फलाहार में रहते हैं । कई उपासक निर्जला उपवास में रहते हैं । कई उपासक अपने उदर पर कलश की स्थापना कर कठिन नवरात्र की साधना करते हैं । कई उपासक जल में रहकर नवरात्र की उपासना करते हैं । भक्तों की यह विविध प्रकार की भक्ति देखते बनती है । दुर्गा माता जी के जयकारा से सारा माहौल गूंज उठता है। यह पर्व हर वर्ष अश्विन माह में इसलिए मनाया जाता है कि इसी माह के षष्ठी के दिन माता दुर्गा जी का प्रादुर्भाव ऋषि कात्यानी जी के यहां हुआ था ।ऋषि कात्यायनी की पूजा स्वीकार कर दुर्गा मां महिषासुर का नाश करने के लिए निकल पड़ी थी।
देवी पुराण के अनुसार सृष्टि का निर्माण आदि शक्ति स्वरूपा के हास्य मुस्कान से हुआ था । सृष्टि के निर्माण के पूर्व सिर्फ मां की ही शक्ति एक पिंड के रूप में विद्यमान थी । मां के मन में सृष्टि के निर्माण का विचार आया । तब उन्होंने अपने विचार के अनुरूप सृष्टि का निर्माण किया था । उन्होंने सभी जीव धारियों को स्वयं से उत्पन्न किया। देवता गण भी उन्हीं से उत्पन्न हुए थे । भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश, ये त्रिदेव आदि शक्ति स्वरूपा की ही शक्ति से उत्पन्न हुए । माता की भक्ति जो भी भक्त सच्चे मन से करते हैं, उनके अंदर एक अदम्य साहस उत्पन्न होता है। मां के भक्तों को जल भय, अग्नि भय, जंतु भय, रात्रि भय नहीं होता है । माता के भक्तों को शत्रु का भी भय नही होता है । अर्थात वे सभी तरह के भय से मुक्त होते हैं।
शारदीय नवरात्र में माता दुर्गा की विशेष रूप से आराधना की जाती है । नौ दिनों तक चलने वाली इस नवरात्र में प्रथम दिन शैलपुत्री माता, दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी माता, तृतीय चंद्रघंटा माता, चतुर्थी के दिन कुष्मांडा माता, पंचमी स्कंद माता, छठे दिन कात्यानी माता , सप्तमी कालरात्रि माता, अष्टमी महागौरी माता और नवमी के दिन सिद्धिदात्री माता की विशेष रूप से आराधना की जाती है । सभी माताएं माता जगदंबा की ही विविध रूप हैं । सभी माताओं की भक्ति से भक्तों को अलग-अलग तरह की शक्तियां प्राप्त होती हैं । जो भी भक्त विधि पूर्वक पवित्र मन से नौ दिनों तक माता दुर्गा की आराधना करते हैं, उन्हें इन माताओं की कृपा प्राप्त होती हैं । इनकी विषेश शक्तियां भी उन्हें प्राप्त होती हैं । नवरात्र के नवमी के दिन विशेष रूप से माता सिद्धिदात्री की कृपा और शक्ति प्राप्त होती है । माता सिद्धिदात्री की कृपा से ही संसार में जितनी भी सिद्धियां और शक्तियां हैं, सभी प्राप्त की जा सकती है। संसार भर में जो भी सिद्धि और शक्तियां दिख रही हैं, मां की ही कृपा है। सभी उनकी ही देन है। इसलिए नवमी के दिन भक्तों को बहुत ही ध्यान पूर्वक माता सिद्धिदात्री की याचना करनी चाहिए। सिद्धिदात्री माता से अपने मन की बात माता कह देनी चाहिए। अगर भूलवश कोई गलती हो भी गई हो तो बिना संकोच किए माता से क्षमा याचना कर लेनी चाहिए । दोबारा गलती ना हो, यह भी प्रार्थना करनी चाहिए । माता सिद्धिदात्री बहुत ही ममता मई माता है। सिद्धिदात्री माता भक्तों की याचना को तुरंत सुनती है। उन्हें क्षमा भी करती हैं ।
दुर्गा पूजा का पर्व असत्य पर विजय के रूप में मनाया जाता है । अर्थात माता जगदंबा सत्य की प्रतीक है। महिषासुर असत्य के प्रतीक है । देवी पुराण के अनुसार महिषासुर, ईश्वर की घोर तपस्या कर वरदान प्राप्त कर अपने को ही ईश्वर के समान घोषणा कर दी । महिषासुर को जैसे ही शक्ति प्राप्त हुई , ईश्वर की भक्ति ही भूल गया । महिषासुर वरदान पाकर स्वयं को ही ईश्वर समझने लगा और देवताओं को अपमानित करने लगा। महिषासुर ने ईश्वर से प्राप्त शक्ति के उपरांत तीनों लोकों में हाहाकार मचा दिया। यहां तक कि उसने इंद्र,कुबेर, वायु, अग्नि आदि देवताओं को अपने गिरफ्त में कर लिया था। चारों ओर हाहाकार मचने लगा था । हर और महिषासुर का ही अत्याचार दिखने लगा था । महिषासुर के आतंक से तंग आकर सभी देवताओं ने मिलकर माता की आराधना की । माता देवताओं की आराधना से प्रसन्न होकर ऋषि कात्यानी के यहां प्रकट हुई थी। माता ऋषि कात्यानी की पूजा स्वीकार कर महिषासुर का नाश करने के लिए निकल पड़ी थी। पौराणिक ग्रंथों के इतिहास में महिषासुर और माता दुर्गा के बीच जिस प्रकार का युद्ध हुआ था, इस तरह के युद्ध का कोई दूसरा उदाहरण नहीं मिलता है।
माता दुर्गा और महिषासुर के बीच जबरदस्त व भयंकर युद्ध हुआ था । अग्नि की बारिश होने लगी थी। आसमान से भयंकर रूप से जल प्रलय हो रहे थे। पहाड़ कण बन कर बिखरने लगे थे। पेड़ – पौधे अपनी जड़ से हजारों – लाखों मिल टूट कर बिखर रहे थे । अर्थात युद्ध की विभीषिका इतनी प्रचंड हो गई थी कि स्मरण मात्र से ही रोंगटे खड़े हो जाते थे । इसके बावजूद भी महिषासुर ने अपनी हार नहीं मानी बल्कि उसने माता दुर्गा का ही वरण करने का घोषणा कर दिया था। फलत: माता दुर्गा का क्रोध बढ़ता ही चला गया था । अंत में माता दुर्गा ने अपने त्रिशूल महिषासुर का नाश कर दिया था।
दुर्गा माता सत्य और शक्ति की प्रतीक है । महिषासुर असत्य के प्रतीक है। इसलिए असत्य पर सत्य की जीत के रूप में यह पर्व हर वर्ष बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है । माता जितनी दयालु व ममतामई है,उनका क्रोध भी उतना ही प्रचंड है । अगर भक्त अपनी गलती स्वीकार करने के पश्चात दोबारा गलती करते हैं, तो माता उनसे रुष्ठ हो जाती हैं । ऐसे भक्तों को बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है। इसलिए ऐसे भक्तों को विशेष रूप से इस बात पर ख्याल चाहिए कि असत्य के मार्ग का जितना जल्द हो सके त्याग कर देना चाहिए। सत्य के मार्ग पर चलने वाले भक्तों को हर प्रकार की सुख, समृद्धि और शांति की प्राप्ति होती है । माता के भक्त इसी संसार में रहकर सभी सुखों को प्राप्त करते हैं । माता दुर्गा के भक्तों को समाज के हर वर्ग के लोगों से सम्मान प्राप्त होता है । भक्त अपने परिवार, कुटुम्ब और समाज में रह कर सभी प्रकार के सुखों को प्राप्त करते हैं । अंत में जब वे मृत्यु को प्राप्त करते हैं, तो माता स्वर्ग में अपने श्री चरणों में स्थान प्रदान करती हैं। माता मोक्षदायिनी भी हैं। अपने भक्तों को आवागमन के चक्र से मुक्त भी करती हैं।
माता दस भुजाधारी होती हैं। उनके दसों भुजाओं में शस्त्र होते हैं। लेकिन उनकी दो भुजा विशेष कृपा बरसती रहती हैं । उनकी एक भुजा अभय की मुद्रा में होती हैं, जो भक्तों को अभय का वरदान देती हैं। दुर्गा माता की आराधना निर्विकार होकर करनी चाहिए। माता शीघ्र फल देने वाली होती हैं।