फ्लेक्सिबल विचार उर्फ कुरसी @ चिराग़ पासवान

फ्लेक्सिबल विचार उर्फ कुरसी @ चिराग़ पासवान

चिराग पासवान कह रहे हैं कि नीतिश कुमार से उनके वैचारिक मतभेद हैं।

कुछ इस तरह की बातें राजस्थान में सचिन पायलेट अपनी ही पार्टी के नेता अशोक गहलोत के बारे में भी कह रहे हैं। राजस्थान से खबरें यह हैं कि सचिन पायलेट की अब अशोक गहलोत के साथ वैचारिक सहमति हो गयी , यद्यपि मौका मुकाम देखकर सचिन पायलेट दोबारा फिर असहमत हो सकते हैं। विचार दरअसल एक शर्ट टाइप आइटम है, आज बदल लो, कल बदल लो।

चिराग पासवान के नीतिश कुमार के साथ क्या वैचारिक मतभेद हो सकते हैं।

सबसे बड़ा मतभेद तो यही है कि चिराग पासवान यह कह सकते हैं कि बिहार का मुख्यमंत्री उन्हे बनना चाहिए, नीतिश कुमार को नहीं। पालिटिक्स में सबसे बड़ा राजनीतिक मतभेद इस बात पर टिक जाता है कि मुख्यमंत्री मुझे ही बनना चाहिए। महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे और देवेंद्र फड़नवीस के बीच भी सबसे बड़ा वैचारिक मतभेद इसी को लेकर था।

चिराग पासवान के पिताजी रामविलास पासवान भी फ्लेक्सिबल विचारक हैं। एक वक्त भाजपा का साथ छोड़ा वैचारिक मतभेद बताकर। फिर भाजपा के साथ आ गये, वैचारिक मतभेद खत्म हो गये। रामविलास पासवान बहुत सटीक विचारक हैं, ताड़ लेते हैं कि कुरसी का रास्ता किस विचार की पगडंडी से होकर जाता है। वही पगडंडी पकड़कर रामविलास पासवान कुरसी पर पहुंच जाते हैं। अब चिराग पासवान भी वैसे ही फ्लेक्सिबल विचारक होने की राह पर हैं।

विचार का रोल कुल इतना है कि कुरसी तक पहुंचा दे।

कुरसी पर पहुंचकर ना राष्ट्रवाद याद रहता, ना सैकुलरवाद। कुरसी मिल रही हो, तो बंदा एक झटके में सैकुलर से राष्ट्रवादी हो जाता है। रामविलास पासवान का पूरा राजनीतिक जीवन इसका उदाहरण है। कुरसी छोटी मिले या ना मिले, तो अंदर से सैकुलरवाद हुड़कने लगता है। हाय सैकुलर, हाय सैकुलर। शिवसेना को महाराष्ट्र में अगर कुरसी हिलती दिखेगी, तो वह भी राष्ट्रवादी हो जायेगी। राष्ट्रवाद से सैकुलर की यात्रा कुरसी से कुरसी की यात्रा है। कुरसी ही परम विचार है। कुरसी है, तो काहे का विचार है। कुरसी नहीं है, तो विचार ही विचार है।

तो चिराग पासवान को क्या माना जाये, सैकुलर हो जायेंगे क्या।

यह तो फिलहाल उनको भी ना पता।