मुख्यमंत्री रघुवर दास के प्रति विरोध ने धीरे-धीरे पार्टी विरोध का रूप धारण कर लिया और हार गई भाजपा

रघुवर सरकारका हार का सबसे बड़ा कारण आजसू से गठबंधन टूटना, सरयू राय का टिकट काटना, बाहरी लोगों को टिकट देना, कार्यकर्ताओं को तरजीह नहीं मिलना, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा की अनदेखी सहित और भी कई कारण है।

मुख्यमंत्री रघुवर दास के प्रति विरोध ने धीरे-धीरे पार्टी विरोध का रूप धारण कर लिया और हार गई भाजपा

झारखण्ड : झारखंड विधानसभा चुनाव के नतीजे चौंकाने वाले नहीं रहे। यह तो होना ही था। मुख्यमंत्री रघुवर दास के प्रति विरोध ने धीरे-धीरे भाजपा के विरोध का रूप धारण कर लिया। इसीलिए पांच माह पहले लोकसभा चुनाव में 67 विधानसभा सीटों पर शानदार बढ़त बनाने वाली भारतीय जनता पार्टी झारखंड विधानसभा का चुनाव बुरी तरह हार गई। 65 पार का ख्वाब संजोये भाजपा मात्र 25 सीटों तक सिमट कर रह गई।
राज्य की 81 सदस्यीय विधानसभा में विपक्षी महागठबंधन की पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) को 30, कांग्रेस को 16 और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) को एक सीट पर विजय मिली है। भारतीय जनता पार्टी को 25, ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन (आजसू) को दो, झारखंड विकास मोर्चा (झाविमो) को तीन और नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (एनसीपी), सीपीआई तथा निर्दलीय को एक-एक सीट मिली है। ऐसे में अब झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन का मुख्यमंत्री बनना तय है। संभवतः वह 27 को शपथ लेंगे। निवर्तमान मुख्यमंत्री रघुवर दास जमशेदपुर पूर्वी से चुनाव हार गये हैं। उन्हें भाजपा के बागी सरयू राय ने 15 हजार 725 वोटों से पटकनी दे दी। रघुवर दास ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है।

विश्लेषकों की मानें तो राज्य में भाजपा की हार की कई वजहें हैं। उसमें सबसे बड़ा कारण रघुवर दास का एटिट्यूड रहा है। इसके अलावा आजसू से गठबंधन टूटना, सरयू राय का टिकट काटना, बाहरी लोगों को टिकट देना, कार्यकर्ताओं को तरजीह नहीं मिलना, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा की अनदेखी सहित लंबे फेहरिस्त हैं। इससे आम लोगों के साथ पार्टी के कार्यकर्ताओं में बहुत ही गुस्सा था। रघुवर सरकार ने मर्जर के नाम पर करीब साढ़े चार हजार स्कूलों को बंद कर दिया था। इस विरोध भी हुआ। विपक्ष ने चुनाव में इसे हथियार बना लिया।
टिकट बंटवारे में पार्टी कार्यकर्ताओं की अनदेखी और करीब एक दर्जन दलबदलुओं को भाजपा का सिंबल देना भी पार्टी को भारी पड़ा। चुनाव से पहले झामुमो से भाजपा में आए शशिभूषण मेहता और भानु प्रताप शाही को टिकट देने से पार्टी की काफी किरकिरी हुई। ऑक्सफोर्ड पब्लिक स्कूल के डायरेक्टर शशिभूषण मेहता अपने ही स्कूल की वॉर्डन की हत्या के आरोपी थे। हालांकि कोर्ट ने तीन दिन पहले 20 दिसम्बर को उन्हें बरी कर दिया। लेकिन पूरे चुनाव के दौरान यह मुद्दा छाया रहा। मीडिया ने जहां मौका मिला वहां शशिभूषण मेहता को लेकर भाजपा को कठघरे में खड़ा किया। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने हर मंच शशिभूषण मेहता को टिकट देने को लेकर भाजपा की नीति-सिद्धांतों पर अंगुली उठाई। हालांकि शशिभूषण मेहता पांकी से और भानु प्रताप शाही भवनाथपुर से खुद तो चुनाव जीत गए, लेकिन पार्टी को बड़ा डैमेज कर गए।
राजनीतिक पंडितों की मानें तो भाजपा को रघुवर दास को दोबारा एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) का चेहरा बनाना भारी पड़ गया। इस मामले को लेकर पहले ही भाजपा दो फाड़ थी। लेकिन भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। इसी वजह से वर्षों पुराना गठबंधन भी टूटा। साथ ही पार्टी के नेताओं-कार्यकर्ताओं का मनोबल भी टूटा। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की अनदेखी भी भाजपा को भारी पड़ी। अगर अंदरखाने की मानें तो पांच साल के कार्यकाल में संघ को रघुवर सरकार ने सुना ही नहीं। संघ के नाम पर एक-दो बड़े नाम ही चलते रहे।
रघुवर दास का अहंकारी स्वभाव भी भाजपा की पराजय का कारण बना। पार्टी इस परसेप्शन को तोड़ने में नाकामयाब रही। उनके दो-तीन चहेते मंत्रियों को छोड़ दें तो रघुवर के रूखे व्यवहार और अपने कॉकस के इशारे पर चलने के कारण पार्टी के विधायक और कार्यकर्ता सहित आम लोग काफी आहत थे। कार्यकर्ताओं से मुख्यमंत्री की दूरी वजह प्रधान सचिव सुनील वर्णवाल, अंजन सरकार सहित और दो-तीन खास लोग माने जा रहे हैं। भाजपा के कार्यकर्ताओं को लगता ही नहीं था कि उनकी अपनी सरकार है।
भाजपा की हार की एक वजह ऑल झारखंड स्टूटेंड यूनियन (आजसू) से गठबंधन का टूटना भी है। आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो चुनाव से पहले ही रघुवर दास को राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का चेहरा मानने को तैयार नहीं थे। इसके अलावा हटिया, लोहरदगा, चंदनकियारी सहित कुछ सीटों को लेकर भी दोनों में मतभेद थे। सुदेश ने भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व और झारखंड प्रभारी ओमप्रकाश माथुर को भी इससे अवगत कराया था। इसके बावजूद कोई परिणाम नहीं निकला और वर्षों पुराना गठबंधन टूट गया। कुछ सीटों पर आजसू के कारण भी भाजपा को नुकसान हुआ है। इस चुनाव में आजसू की सीटें भले ही घट गईं, लेकिन उसका मतदान प्रतिशत बढ़ गया और हर्जाना भाजपा को भरना पड़ा।
भाजपा की पराजय में पारा टीचरों का असंतोष भी अहम रहा। सेवा स्थाई करने और वेतनमान सहित अन्य मांगों को लेकर राज्य के 67 हजार पारा शिक्षक आंदोलनरत रहे। लंबे समय तक हड़ताल के कारण बच्चों की पढ़ाई बाधित हुई। इससे पारा शिक्षकों के साथ ही अभिभावकों का गुस्सा भी स्वाभाविक है। लेकिन रघुवर शासन-प्रशासन ने कभी उन्हें गंभीरता से नहीं लिया। इस समस्या के समाधान में राज्य की ब्यूरोक्रेसी बाधक रही। नतीजा हुआ कि पारा शिक्षकों और अभिभावकों की नाराजगी का खामियाजा भाजपा को भुगतना पड़ा।
हार की बड़ी वजह 83 हजार सेविका-सहायिकाएं भी बनीं। ये भी काफी बड़ा तबका है। मानदेय सहित अन्य मांगों को लेकर आंदोलन के दौरान सरकार ने सेविका-सहायिकाओं पर बुरी तरह लाठीचार्ज कराया था। महिलाओं को पुलिस ने दौड़ा-दौड़ा कर पीटा था। इस घटना का बहुत ज्यादा विरोध था। अब परिणाम सामने है। एफिलिएटेड कॉलेज के 6 हजार से अधिक शिक्षक और शिकक्षकेतर कर्मचारी भी भाजपा की हार की वजह बने। उनकी मांग थी कि कॉलेज को सरकार अंगीकृत करे। उनका कहना था कि अगर सरकार अंगीकृत नहीं करती है तो कम से कम घाटानुदान (डेफिसीट ग्रांट) दे। लेकिन ब्यूरोक्रेसी ने अड़ंगा डाल दिया। उधर, जमीनी हकीकत से अनजान रघुवर हवाई किला बनाने में मशगूल रहे।
लोगों की मानें तो भाजपा को इतनी सीटें भी सिर्फ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की वजह से आ गईं। अगर केंद्रीय टीम ने झारखंड में मेहनत नहीं की होती तो नतीजे इससे और खराब हो सकते थे। रघुवर दास को दोबारा मुख्यमंत्री बनाने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष व गृहमंत्री अमित शाह ने 18 सभाएं की। दोनों ने 9-9 रैलियों के जरिए 81 में से 60 सीटों को कवर किया। इसके अलावा उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य, केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी, स्मृति इरानी, दिल्ली भाजपा अध्यक्ष व भोजपुरी सिने स्टार मनोज तिवारी, रवि किशन सहित स्टार प्रचारकों की फौज उतार दी। जबकि, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने कुल 6 रैलियां कीं। राहुल-प्रियंका ने अपनी रैलियों के जरिए 24 सीटों को कवर किया।

सत्ता से बेदखल होने के बाद सोमवार देर शाम राज्यपाल द्रौपदी मूर्मू को इस्तीफा सौंपने के बाद रघुवर दास ने भाजपा की हार की नैतिक जिम्मेदवारी लेते हुए कहा कि वे जनादेश का सम्मान करते हैं। उन्होंने कहा कि हार और जीत के कई कारण होते हैं। हम अपने हार के कारणों की पड़ताल करेंगे। लेकिन बड़ा सवाल कि क्या भाजपा अपनी भूल से सबक लेगी?